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Friday, 20 December, 2024
होमराजनीतिSC की क्रीमी लेयर पर टिप्पणी से BJP में घमासान के बीच सांसदों को PM का आश्वासन — यह ‘बाध्यकारी नहीं’

SC की क्रीमी लेयर पर टिप्पणी से BJP में घमासान के बीच सांसदों को PM का आश्वासन — यह ‘बाध्यकारी नहीं’

100 से अधिक भाजपा के एससी/एसटी सांसदों ने इस मुद्दे पर मोदी को ज्ञापन सौंपा है. उनका कहना है कि प्रधानमंत्री ने ‘उन्हें आश्वासन दिया है’ कि यह सिर्फ एक टिप्पणी है. एनडीए के सहयोगी दलों और विपक्षी दलों ने भी इस पर आपत्ति जताई है.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट द्वारा राज्य सरकारों द्वारा अनुसूचित जातियों (एससी) के उप-वर्गीकरण की अनुमति दिए जाने के कुछ दिनों बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के भीतर विभाजन पैदा हो गया, पार्टी के दलित और आदिवासी सांसदों ने कोटा के भीतर कोटा और क्रीमी लेयर पर कोर्ट की टिप्पणियों के बारे में अपनी चिंताएं व्यक्त करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से संपर्क किया. मोदी ने उन्हें आश्वासन दिया कि इस पर विचार किया जाएगा और इस मुद्दे का समाधान किया जाएगा.

लोकसभा और राज्यसभा के एससी और एसटी समुदायों से ताल्लुक रखने वाले सौ से अधिक भाजपा सांसदों ने शुक्रवार सुबह प्रधानमंत्री से मुलाकात की और इस मुद्दे पर एक ज्ञापन सौंपा.

दिप्रिंट से बात करते हुए प्रतिनिधिमंडल में शामिल ओडिशा के दलित भाजपा सांसद अविमन्यु सेठी ने कहा, “हमने उपश्रेणियों और क्रीमी लेयर का मुद्दा उठाया क्योंकि इससे विभाजन पैदा होगा. आरक्षण का लाभ हर दलित या आदिवासी तक नहीं पहुंचा है, इसलिए क्रीमी लेयर का मुद्दा उचित नहीं है. प्रधानमंत्री ने हमें आश्वासन दिया कि यह एक टिप्पणी है और इसे लागू नहीं किया जा रहा है और एससी और एसटी के हर उपवर्ग के हितों की रक्षा की जाएगी.”

आदिवासी समुदायों के सांसदों के प्रतिनिधिमंडल में शामिल छत्तीसगढ़ के भाजपा सांसद चिंतामणि महाराज ने कहा कि एससी के क्रीमी लेयर के मुद्दे पर बहुत भ्रम पैदा हो गया है और यह “भय को दूर करने के लिए ज़रूरी है”.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “एसटी की तुलना ओबीसी क्रीमी लेयर से कैसे की जा सकती है? नौकरशाही और न्यायपालिका में कितने एसटी शीर्ष पदों पर हैं? क्रीमी लेयर की बात गैर-ज़रूरी है. हमने प्रधानमंत्री को अपनी चिंता से अवगत करा दिया है.”

मध्य प्रदेश के सांसद महेंद्र सिंह सोलंकी के अनुसार, प्रधानमंत्री ने उन्हें “आश्वासन” दिया है कि इसे लागू नहीं किया जाएगा.

‘राज्य कैसे तय कर सकता है कि कौन आर्थिक रूप से सशक्त है?’

एक अगस्त को अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एससी और एसटी के भीतर ‘क्रीमी लेयर’ को बाहर करने की वकालत की, जिसके कारण भाजपा के भीतर विरोध हुआ. इस फैसले ने ई.वी. चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में 2004 के फैसले द्वारा स्थापित मिसाल को खारिज कर दिया, जिसमें एससी के भीतर उप-वर्गीकरण को अनुचित माना गया.

न्यायमूर्ति बी.आर. गवई ने फैसले में कहा कि नया क्रीमी लेयर सिद्धांत आरक्षण लाभों पर कुछ लोगों के एकाधिकार को रोकेगा और यह तय करेगा कि वास्तव में वंचित लोगों को लाभ मिले, साथ ही उन्होंने बताया कि इस तरह के दृष्टिकोण की ज़रूरत थी क्योंकि इन श्रेणियों के भीतर कुछ समुदाय दूसरों की तुलना में अधिक आगे बढ़े हैं. उन्होंने उप-वर्गीकरण का समर्थन करने के लिए अनुभवजन्य डेटा की ज़रूरत को भी उजागर किया, साथ ही कहा कि इसे राजनीतिक कारकों के आधार पर नहीं किया जाना चाहिए.

न्यायमूर्ति पंकज मिथल ने कहा कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के बीच कोटा पहली पीढ़ी तक सीमित होना चाहिए, न कि दूसरी पीढ़ी तक, अगर, पहली पीढ़ी का कोई सदस्य आरक्षण के माध्यम से उच्च स्थिति तक पहुंच गया है.

गवई ने कहा, “यह भी सभी को मालूम है कि असमानताएं और सामाजिक भेदभाव, जो ग्रामीण क्षेत्रों में अत्यधिक प्रचलित हैं, शहरी और महानगरीय क्षेत्रों में जाने पर कम होने लगते हैं.”

दिप्रिंट से बात करते हुए पश्चिम बंगाल के भाजपा सांसद जगन्नाथ सरकार ने पूछा, “राज्य कैसे तय कर सकता है कि कौन आर्थिक रूप से सशक्त है और उसे आरक्षण की ज़रूरत नहीं है? अनुभवजन्य डेटा उपलब्ध नहीं है. दूसरा, ओबीसी के विपरीत, एससी और एसटी श्रेणियों में आरक्षण मिलने के बावजूद पिछड़ापन बना हुआ है और समुदाय अभी भी शिक्षा प्राप्त करने और आर्थिक सशक्तीकरण के लिए संघर्ष कर रहे हैं. यहां तक ​​कि अस्पृश्यता की प्रथा भी जारी है. इसलिए, आरक्षण के प्रावधान को कम करना और कुछ समूहों को बाहर करना अव्यावहारिक और गलत संदेश है.”

भाजपा के एक पदाधिकारी के अनुसार, भाजपा ने पाया है कि लोकसभा चुनावों में कई एससी उपसमूहों ने पार्टी को वोट नहीं दिया, जिसके कारण परिणाम उतने रोमांचक नहीं रहे, इसलिए अब वह एससी और एसटी समुदायों की नाराज़गी को न झेलने के लिए सावधानी बरत रही है.

पदाधिकारी ने कहा, “सरकार क्रीमी लेयर के सुझाव को लागू करने के मूड में नहीं है. यह भानुमती का पिटारा खोल देगा.”
भाजपा के अलावा एनडीए के सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) और यहां तक ​​कि बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) ने भी सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की आलोचना की है. उनका कहना है कि इससे प्रमुख एससी पार्टी पर असर पड़ेगा. हालांकि, कांग्रेस ने अभी तक कोई अंतिम फैसला नहीं लिया है, लेकिन उसने व्यापक विचार-विमर्श की इच्छा जताई है.

केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) इस फैसले के खिलाफ समीक्षा याचिका दायर करने की योजना बना रही है. एनडीए से बाहर की पार्टियों के सांसदों ने भी इस पर आपत्ति जताई है. शिवसेना-यूबीटी के सदस्य भाऊसाहेब वाकचौरे ने लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान इस मुद्दे को उठाया. इस पर केंद्रीय राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि यह “एक अवलोकन” है और फैसले का हिस्सा नहीं है.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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