बेंगलुरु: कर्नाटक में बसवराज बोम्मई के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार को अपने ही पार्टी के नेताओं से चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. ऐसा लगता है मानो वो बीजेपी के नहीं बल्कि किसी विपक्षी दल के सदस्य हैं. पार्टी के निर्वाचित प्रतिनिधि अपने बयानों और कार्यों से राज्य सरकार को नीचा दिखा रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो इस साल मई से पहले होने वाले आगामी कर्नाटक विधानसभा चुनावों में पार्टी की संभावनाओं को नुकसान पहुंचा सकता है.
विवादित बयान देना, पार्टी के कामों पर सवाल उठाना और सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाना, भाजपा की मूल विचारधारा को दरकिनार करना, चुनाव परिणामों के बारे में अविवेकपूर्ण भविष्यवाणी करना और पार्टी को शर्मिंदा करना इसमें शामिल है.
बेंगलुरू के राजनीतिक विश्लेषक विश्वास शेट्टी ने दिप्रिंट से कहा, ‘‘जितना वे भाजपा में हैं, वे मंत्रालय (कैबिनेट) में नहीं हैं. अपने व्यक्तिगत निहित स्वार्थ के लिए ये भाजपा के दृष्टिकोण पर लगभग हावी हो रहे हैं या उसे कुचल रहे हैं.’’
भाजपा सत्ता में वापस आएगी या नहीं, हालांकि इसे लेकर अभी तक किसी भी तरह के कोई संकेत नहीं मिले हैं. लेकिन बोम्मई सरकार चुनावों को कंधा देने के लिए खुद को अपनी पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व की दया पर निर्भर होती दिख रही है. क्योंकि पिछले लगभग दो सालों तक शीर्ष कार्यालय पर कब्जा करने के बावजूद विकास या कल्याणकारी योजनाओं की कमी को दूर करने के लिए उसने कुछ नहीं किया है.
असंतुष्ट नेताओं की तरफ से अपनी ही पार्टी की सरकार के खिलाफ दिए गए बयानों पर भाजपा के शीर्ष नेताओं ने चुप्पी साध ली है.
एक नजर सीएम बोम्मई के लिए परेशानी पैदा करने वाले कुछ नेताओं पर भी.
बसनगौड़ा आर. पाटिल (यतनाल)
वह पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा और बोम्मई जैसे नेताओं के मुखर आलोचक रहे हैं. पिछले साल उन्होंने शेखी बघारते हुए कहा था कि उन्हें 2,500 करोड़ रुपये में मुख्यमंत्री की कुर्सी की ‘पेशकश’ की और परंपरागत रूप से भाजपा के मतदाता रहे पंचमसाली लिंगायत समुदाय ने 2021 के हनागल उपचुनावों में बोम्मई का समर्थन नहीं किया था. यहां तक कि इस महीने की शुरुआत में एक बयान में उन्होंने उद्योग मंत्री मुरुगेश निरानी को ‘दलाल’ तक कह डाला था.
एक पूर्व केंद्रीय मंत्री और उत्तरी कर्नाटक के बीजापुर शहर से विधायक यतनाल ने येदियुरप्पा और उनके परिवार पर व्यक्तिगत हमले तक किए हैं. उन्होंने बोम्मई से सदन के पटल पर सवाल भी किए हैं और वह पंचमसाली आरक्षण आंदोलन का हिस्सा रहे हैं. इस आंदोलन का नेतृत्व करने वाले नेताओं में से एक ने चुनाव से पहले उनकी मांगें पूरी नहीं होने पर ‘भाजपा के खिलाफ अभियान चलाने’ की धमकी भी दी है.
गली जनार्दन रेड्डी
भाजपा के एक पूर्व विधायक और लौह अयस्क खनन घोटाले में आरोपी रहे रेड्डी का बल्लारी और उसके आस-पास के जिलों में काफी दबदबा है. पिछले साल के अंत में उन्होंने एक नई राजनीतिक पार्टी – कल्याण राज्य प्रगति पक्ष – बनाई और बल्लारी की सीमा से लगे कोप्पल जिले से चुनाव लड़ने का फैसला किया.
रेड्डी का अभी भी कल्याण-कर्नाटक क्षेत्र के कुछ जिलों पर प्रभाव बरकरार है. हालांकि उन्होंने कहा है कि उनके भाई सोमशेखर रेड्डी एवं करुणाकर रेड्डी और करीबी सहयोगी बी. श्रीरामुलु बीजेपी नहीं छोड़ेंगे. लेकिन दिप्रिंट से बात करने वाले कई सूत्रों ने कहा कि भाजपा उनकी नई पार्टी और उनके चुनाव लड़ने के फैसले को लेकर चिंतित है.
2018 में उन्होंने पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व पर भी निशाना साधा था. उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि 2018 के विधानसभा चुनावों के बाद उनके घर पर छापा मारा गया था, क्योंकि उन्होंने मोलाकलमुरु में श्रीरामुलु की जीत के लिए काम किया था.
जरकीहोली बंधु
जरकीहोली बंधु भाजपा के लिए लगातार दर्द का कारण रहे हैं. पांच भाइयों में से चार सक्रिय राजनीति में हैं और परिवार के हितों को पार्टी से ऊपर रखने के लिए जाने जाते हैं.
मार्च 2021 में ‘सेक्स-फॉर-जॉब’ स्कैंडल में अपनी कथित संलिप्तता के कारण कैबिनेट से बाहर हुए पूर्व मंत्री रमेश जरकिहोली वापसी करने की पुरजोर कोशिश कर रहे है. उन्होंने आगामी चुनावों में भाजपा को वोट देने वाले हर मतदाता को 6,000 रुपये देने का वादा किया और यह भी कहा कि भाजपा सरकार हर हालत में सरकार बानाएगी, अब चाहे उसके पास अपने दम पर बहुमत हो या नहीं. शायद वह ‘ऑपरेशन कमल’ का जिक्र कर रहे थे, जिसे पहली बार 2008 में आजमाया गया था और फिर 2019 में. उस समय कांग्रेस और जनता दल-सेक्युलर (JDS) के विधायकों ने तत्कालीन कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार को गिराते हुए भाजपा का दामन थाम लिया था.
पूर्व मंत्री और कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी (केपीसीसी) के कार्यकारी अध्यक्ष सतीश जारकीहोली ने अपने भाइयों के सक्रिय समर्थन से मई 2021 के लोकसभा उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवार मंगला अंगड़ी को लगभग हराने की कगार पर ला खड़ा किया था. जबकि लखन जरकीहोली ने दिसंबर 2021 के एमएलसी चुनावों में सफलतापूर्वक निर्दलीय चुनाव लड़ा और भाजपा के महंतेश कवातागीमठ को हरा दिया.
के.एस. ईश्वरप्पा
पूर्व मंत्री और राज्य के सबसे वरिष्ठ बीजेपी नेताओं में से एक ईश्वरप्पा को रिश्वत मांगे जाने के एक मामले में आरोपी बनाया गया और एक निजी ठेकेदार द्वारा सीधे उनका नाम लिए जाने के बाद पिछले साल कैबिनेट से उन्हें इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा था.
उन्हें पिछले साल शिवमोग्गा में सांप्रदायिक तनाव भड़काने के लिए भी सीधे तौर पर जिम्मेदार माना गया था. वह इसका नेतृत्व कर रहे थे. इसी दौरान बजरंग दल के कार्यकर्ता हर्षा जिंगाडे की उनके घर के पास हत्या कर दी गई थी.
ईश्वरप्पा ने पिछले साल मई में कहा था कि भविष्य में भगवा ध्वज ‘तिरंगे’ की जगह ले लेगा. उन्होंने यह भी कहा है कि ईसाई और मुसलमान किसी न किसी दिन आरएसएस के साथ जुड़ जाएंगे.
उनकी अपनी पार्टी ने नेता से खुद को तब दूर कर लिया जब उन्होंने कहा कि 2023 में किसी भी मुसलमान को टिकट नहीं दिया जाएगा. आगामी चुनावों में अपने दम पर बहुमत हासिल करने में मदद करने के लिए पार्टी के अल्पसंख्यक आउटरीच नैरेटिव का खंडन करते हुए उन्होंने यह बात कही थी.
बी.एस. येदियुरप्पा
यकीनन कर्नाटक में बीजेपी अपने सबसे बड़े और उम्रदराज (79) नेता से किनारा करने के लिए कोई बेहतर तरीका खोजने के लिए जूझ रही है. वह एक ऐसे नेता हैं जिन्हें न तो वे नज़रअंदाज कर सकते हैं और न ही अपने साथ लेकर चल पा रहे हैं.
येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय का समर्थन दिलाने वाली शख्सियत हैं जो बोम्मई को अपने प्रतिनिधि के रूप में नहीं देखते हैं.
बोम्मई उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे तो पार्टी को येदियुरप्पा को संसदीय बोर्ड में वापस लाना पड़ा. हालांकि, राजनीतिक टिप्पणीकारों का कहना है कि येदियुरप्पा कर्नाटक में बीजेपी के हिंदुत्व को आगे बढ़ाने के लिए ‘अनुपयुक्त’ हैं क्योंकि लिंगायत नेता ने अपनी राजनीति में थोड़ा अधिक समावेशी और जाति-आधारित दृष्टिकोण को अपनाया हुआ है.
उनका एक बेटा शिवमोग्गा से मौजूदा सांसद हैं और येदियुरप्पा ने अपने दूसरे बेटे बी.वाई विजयेंद्र को अपनी सीट (शिकारीपुरा) देने की पेशकश की है, जो राज्य बीजेपी के उपाध्यक्ष भी हैं.
बी.वाई. विजयेंद्र
एक चालाक राजनेता के रूप में पहचाने जाने वाले विजयेंद्र एक विवादास्पद व्यक्ति भी हैं. उनके पिता येदियुरप्पा उनके लिए विधानसभा का टिकट और शायद जल्द से जल्द राज्य सरकार में एक पद दिलाने की कोशिश कर रहे हैं.
हालांकि, विजयेंद्र के मार्गदर्शन में ही भाजपा ने मांड्या जिले और तुमकुरु जिले के सिरा तालुक में केआर पीट नगरपालिका में अपनी पहली जीत दर्ज की थी.
लेकिन पार्टी ने अब तक उन्हें एमएलसी टिकट से वंचित रखा है. सरकार के कई मंत्रियों के साथ उन्होंने पहले भी येदियुरप्पा सरकार को दोषी ठहराते हुए गुमनाम रूप से पत्र लिखे हैं.
पार्टी के भीतर कई लोगों ने दिप्रिंट को बताया कि विजयेंद्र के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों और दिन-प्रतिदिन के प्रशासन में उनके अत्यधिक हस्तक्षेप ने कई नेताओं को नाराज़ कर दिया है और वे उनके बेटे को हटाने की मांग कर रहे हैं. इनमें से कई तत्कालीन सीएम येदियुरप्पा के साथ काम कर चुके है.
यह भी माना जाता था कि विजयेंद्र अपने मुख्यमंत्री पिता के तत्वावधान में एक समानांतर सरकार चला रहे है और बोम्मई के नेतृत्व में उन्हें महत्वपूर्ण भूमिकाओं निभाने के लिए आगे किया जा रहा है.
ए.एच. विश्वनाथ
जेडीएस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ने 2019 में भाजपा का दामन थामा था. वह कई मौकों पर अपनी ही सरकार के मुखर आलोचक रहे हैं.
उन्होंने धर्मांतरण विरोधी कानून और भाजपा द्वारा अपनाई जाने वाली धार्मिक राजनीति का विरोध किया है और अपनी ही सरकार की आलोचना करने के लिए प्रेस कॉन्फ्रेंस की है.
पिछले शुक्रवार को उन्होंने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डी.के. शिवकुमार, और राष्ट्रीय महासचिव, रणदीप सिंह सुरजेवाला से मुलाकात की थी.
नलिनकुमार कटील
राजनीतिक पर्यवेक्षकों और पार्टी कार्यकर्ताओं के एक वर्ग ने दिप्रिंट को बताया कि राज्य बीजेपी अध्यक्ष कटील अब स्थानीय इकाइयों के सभी परस्पर विरोधी नेताओं को एकजुट करने की जिम्मेदारी लेने के लिए आधिकारिक व्यक्ति नहीं हैं.
अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को दिए गए भाषण में कटील ने कहा कि उन्हें गड्ढों और सड़कों जैसे छोटे मुद्दों पर चर्चा नहीं करनी चाहिए और इसके बजाय लव जिहाद की बात करनी चाहिए. इस तरह के बयानों ने बोम्मई सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं.
उन्हें भाजपा के महासचिव (संगठन) बी.एल संतोष का विश्वासपात्र भी माना जाता है, जो पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से सलाह लेते हैं. अभी तक पार्टी और सरकार के खिलाफ बयान देने वाले नेताओं को काबू में नहीं कर पाए हैं
सीपी योगेश्वर
योगेश्वर रामनगर जिले और चन्नापटना शहर से संबंधित मामलों में हस्तक्षेप करने के लिए पार्टी नेतृत्व को बुरा-भला कहते रहे हैं, खासतौर पर विजयेंद्र को लेकर. योगेश्वरा चन्नपटना से मौजूदा बीजेपी एमएलसी हैं.
उन्होंने अतीत में आरोप लगाया है कि उनकी अपनी पार्टी के कुछ सदस्य इन हिस्सों में विपक्ष के साथ गठबंधन में काम करते हैं. जब उन्हें येदियुरप्पा की सरकार में मंत्री बनाया गया था, तो उन्होंने जिले में विजयेंद्र के हस्तक्षेप की शिकायत करने के लिए कथित तौर पर दिल्ली का दौरा किया था और मुख्यमंत्री के खिलाफ पैरवी करते देखे गए थे.
अभय पाटिल
बेलगावी के तीन बार के विधायक को अभी तक कोई नहीं जानता था, लेकिन मस्जिदों का सर्वेक्षण करने और यह कहने के लिए वह विवादों में आ गए कि क्या बेलगावी वास्तव में कर्नाटक से संबंधित है क्योंकि पूरा क्षेत्र अविकसित है और सरकार उत्तरी जिलों पर आंखें मूंदे रहती है.
(अनुवादः संघप्रिया | संपादनः आशा शाह)
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