आरएसएस मुस्लिम मंच के प्रमुख इंद्रेश कुमार ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के अयोध्या मामले की सुनवाई जनवरी में करने कै फैसला ‘लोकतंत्र का मखौल है’.
नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के वरिष्ठ कार्यकर्ता इंद्रेश कुमार सर्वोच्च न्यायालय के अयोध्या पर सुनवाई टालने के विवाद में घुस गए हैं. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के ‘एक जज के निर्णय’ ने हिंदुओं का ‘अनादर’ किया है.
कुमार आरएसएस के राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के अध्यक्ष हैं और उनका इशारा मुख्य न्यायाधीष रंजन गोगोई की ओर था.
इंद्रेश कुमार ने दिप्रिंट को कहा कि ‘एक जज के कारण हिंदुओं के मौलिक अधिकारों का हनन हुआ है और जब ऐसा होता है तो सरकार और शासक को न्याय दिलवाना चाहिए.’
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एक जज के निर्णय ने हिंदूओं के लिए, जो कि अयोध्या में राम मंदिर की आस लगाए बैठे थे, न्याय को न केवल विलंबित किया बल्कि उनको इससे वंचित भी रखा. उन्होंने कहा कि ‘अदालत का निर्णय लोकतंत्र का मखौल है.’
पिछले महीने सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि उसकी ‘अपनी प्राथमिकताएं’ हैं और उसने अयोध्या मामले से जुड़े केस की सुनवाई टाल दी थी. उसने आदेश दिया था कि अदालत ‘सही बेंच’ के समक्ष जनवरी 2019 में इस मामले की सुनवाई की तरीख तय करें.
इस आदेश के बाद कई प्रतिक्रियाएं आने लगीं, विशेषकर आरएसएस से, जिसने कहा कि अदालत ने मामले को उतनी जल्दी नहीं सुना जितना जल्दी सुना जाना चाहिए था बल्कि उसे टाल कर हिंदुओं का अनादर किया है.
‘जज निजी रूप से कहते हैं कि सरकार कानून ला सकती है’
कुमार ने कहा कि अदालत के इस निर्णय के बाद जो व्यावहारिक रास्ता बचा है, वह है संसद इस पर अध्यादेश लाए.
जब उनसे पूछा गया कि क्या सरकार ऐसे मामले में कानून ला सकती है जो मामला अदालत में लंबित हो, कुमार ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के जज निजी रूप से कहते हैं कि सरकार राम निर्माण के लिए अध्यादेश ला सकती है.
उन्होंने कहा, सरकार या तो अध्यादेश का रास्ता अपना सकती है या फिर संसद के शीतकालीन सत्र में विधेयक ला सकती है.
हालांकि कुमार ने कहा कि सरकार को किसी समय सारिणी का अनुपालन करने की ज़रूरत नहीं है और ये 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले और बाद में भी हो सकता है.
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कुमार कहते हैं, ‘कोई समयावधि नहीं है. सर्वोच्च न्यायालय की एक समयावधि थी, लोग धैर्य के साथ इंतज़ार में थे पर देखिए क्या हुआ. अब ये सांसदों के हाथ में है.’
कुमार ने कहा कि ‘कुछ मुसलमान भी राम मंदिर चाहते हैं. मुसलमानों का एक वर्ग भी राम मंदिर चाहता है, सारा देश अयोध्या में राम मंदिर देखना चाहता है और अब सब निराशा महसूस कर रहे हैं.’
इस सप्ताह के शुरू में आरएसएस ने कहा था कि अगर ज़रूरत पड़ी तो वो 1992 की तरह ही राम मंदिर निर्माण के लिए अयोध्या में आंदोलन शुरू कर सकते हैं.