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Sunday, 22 December, 2024
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सत्यपाल मलिक विधानसभा भंग करने वाले कोई पहले राज्यपाल नहीं हैं

केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टियां राज्यपाल के जरिये राज्यों में सरकारें गिराती रही हैं. 1952 में मद्रास से शुरू हुआ यह सिलसिला अब तक जारी है.

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नई दिल्ली: बुधवार को जब जम्मू कश्मीर की विभिन्न पार्टियों ने साथ जुड़कर सरकार बनाने के दावे को पेश किया तो जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने राज्य की विधानसभा ही भंग कर दी.

लेकिन ऐसा पहली बार नहीं है जब राजयपाल ने बहुमत होने का दावा करने वाली पार्टियों को सरकार बनाने की अनुमति न दी हो.

आइये देखते हैं भारत में कब-कब राज्यपालों ने बहुमत का दावा करने वाली पार्टियों को सरकार बनाने की इजाज़त नहीं दी

1952 मद्रास: राज्यपाल श्री प्रकाश ने सी राजगोपालाचारी को मद्रास की सरकार बनाने के लिए कहा, जबकि उन्होंने चुनावों में भाग नहीं लिया था.

1959 केरल: ईएमएस नंबूदरीपाद की पहली बार चुनी गयी लेफ्ट की सरकार को राज्यपाल बुर्गुला रामकृष्ण राव ने ख़ारिज कर दिया था, राज्य में हो रहे विरोध को दबाने के लिए ही तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने यह फैसला किया था. राज्य सरकार द्वारा लाये गए भूमि सुधारों की वजह से बड़ी मात्रा में विरोध दर्ज किया जा रहा था.

1967 पश्चिम बंगाल: राज्यपाल धर्मवीर ने अजय मुख़र्जी की यूनाइटेड फ्रंट वाली सरकार को ख़ारिज कर दिया और कांग्रेस को सत्ता में ले आये.

1970 पश्चिम बंगाल: यूनाइटेड फ्रंट के अजय घोष के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के बाद, सीपीएम नेता ज्योति बसु ने सरकार बनाने का दावा तो किया, लेकिन तत्कालीन राज्यपाल स्वरूप धवन ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगवा दिया.

1982 हरियाणा: राज्यपाल गणपतराव देवजी तपसे ने लोक दल और भाजपा के गठबंधन को ख़ारिज किया और कांग्रेस के भजन लाल को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया.

1984 आंध्र प्रदेश: आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद संभालने के एक साल बाद ही एन टी रामा राव अपने ह्रदय की सर्जरी करने अमरीका चले गए. उनकी गैर मौजूदगी में उनके वित्त मंत्री नडेला भास्कर राव, जो एक पूर्व कांग्रेस नेता थे, ने पार्टी को तोड़ दिया, और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर दावा किया. राज्यपाल राम लाल ने उन्हें मुख्यमंत्री नियुक्त कर दिया.

1988 कर्नाटक: एक बेढब घटना में राज्यपाल वेंकटसुबैया ने कर्नाटक जनता दल से मुख्यमंत्री एस आर बोम्मई को विधानसभा में बहुमत साबित करने का मौका ही नहीं दिया. हालांकि बोम्मई ने उन्हें रेजोल्यूशन की कॉपी भी सौंपी थी.

1996 गुजरात: भाजपा से मुख्यमंत्री सुरेश मेहता को शंकर सिंह वाघेला और 40 विधायकों द्वारा बग़ावत का सामना करना पड़ा था. राज्यपाल कृष्ण पाल सिंह ने मेहता को विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए आदेश दिया. मेहता बहुमत साबित करने में सफल भी हो गए, लेकिन इसके बावजूद तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवगौडा से राष्ट्रपति शासन लागू करने के लिए प्रार्थना की.

1997 उत्तर प्रदेश: लोकतान्त्रिक कांग्रेस और जनता दल का समर्थन वापस लेने के बाद, भाजपा के नेतृत्व वाली कल्याण सिंह सरकार बहुमत से चूक गयी. राज्यपाल रोमेश भंडारी ने सरकार को बर्खास्त किया और लोकतान्त्रिक कांग्रेस के जगदम्बिका पाल को नया मुख्यमंत्री घोषित किया. कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद जगदम्बिका पाल को तीन दिन के अंदर ही इस्तीफ़ा देना पड़ा और बाद में कल्याण सिंह वापस मुख्यमंत्री बहाल हुए.

2005 बिहार: 243 विधायकों वाली विधानसभा में जनता दल (यूनाइटेड) और भाजपा के 115 विधायकों के समर्थन का दावा होने के बावजूद, राज्यपाल बूटा सिंह ने बिहार विधानसभा को भंग करने का सुझाव दिया. सिंह ने एनडीए के नेतृत्व वाली सरकार न बनने के लिए बहुत कोशिशें कीं.

2005 झारखण्ड: झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के शिबू सोरेन के पास पर्याप्त विधायक न होने के बावजूद, राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी ने उन्हें मुख्यमंत्री घोषित किया. 80 सदस्यों वाली विधानसभा में एनडीए ने 41 विषयकों के समर्थन का दावा किया. सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया, जिसमें सोरेन फेल हो गए, और इसके बाद भाजपा के अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री बने.

2016 उत्तराखंड: अपनी ही सरकार के खिलाफ बग़ावत करने वाले 9 कांग्रेसी विधायकों के बाद, राज्यपाल केके पॉल ने मोदी सरकार को राज्य में राष्ट्रपति शासन के लिए आग्रह किया. उत्तराखंड हाई कोर्ट के जज केएम जोसफ ने राष्ट्रपति शासन को खारिज कर दिया और मुख्यमंत्री हरीश रावत ने बहुमत साबित किया.

2017 गोवा: 40 सदस्यों वाली विधानसभा में 17 विधायक वाली कांग्रेस, सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद, गोवा में सरकार न बना पाई. राज्यपाल मृदुला सिन्हा ने उनको लिए आमंत्रित भी नहीं किया.

2017 मणिपुर: 60 सदस्यों वाली मणिपुर विधानसभा में कांग्रेस के पास सबसे ज़्यादा 28 सीटें थीं, लेकिन इसके बावजूद पूर्व भाजपा नेता और अब राज्यपाल नज्मा हेपतुल्ला ने भाजपा को बहुमत साबित करने के लिए बुलाया.

2018 मेघालय: 50 सदस्यों वाली मेघालय विधानसभा में कांग्रेस के पास जहाँ 21 सीटें थीं, वहीं एनपीपी के पास 19, भाजपा के पास दो और यूडीपी के पास 6 सीटें थीं. फिर भी, राज्यपाल गंगा प्रसाद ने एनपीपी के कौनराड संगमा को सरकार बनाने के लिए बुलाया.

2018 जम्मू एवं कश्मीर: राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने किसी राजनीतिक पार्टी के संज्ञान में लाए बिना विधानसभा भंग करने का फैसला कर लिया.

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