नई दिल्ली: मुगल सल्तनत के राजकुमार दारा शिकोह पर अलीगढ़ मु्स्लिम विश्वविद्यालय देश की पहली शोध पीठ स्थापित करेगा. शिक्षण संस्थानों में यह पहला मौका होगा जब शाहजहां, हुमायूं या अकबर जैसे चर्चित मुगलों की बजाए दारा शिकोह पर बौद्धिक मंथन किया जायेगा. ये बात इसलिए भी अहम है कि हाल ही में संघ परिवार ने संकेत दिया था कि दारा शिकोह उनके पसंदीदा मुग़ल होंगे.
औरंगज़ेब के नाम पर घोर असहमति जताने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रेम उनके भाई दारा शिकोह पर उमड़ता दिख रहा है. मुस्लिम मुगल काल के सहिष्णु राजा के तौर पर दारा शिकोह को पेश करने की तैयारी हो चुकी है. बीते दिनों ही संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने दारा शिकोह की तारीफ में कसीदे गढ़े थे और इत्तेफाक देखिये कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को भी दारा शिकोह का ख्याल आ गया है.
साझी विरासत का संदेश दारा शिकोह ने दिया
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति तारिक मंसूर ने दिप्रिंट को बताया कि विश्वविद्यालय ने शांति के विषय पर अध्ययन को प्रोत्साहित करने के लिए दारा शिकोह के नाम पर एक पीठ स्थापित करने का फैसला किया है. इस प्रस्ताव को विश्व विद्यालय की अकादमिक परिषद से मंजूरी मिल गई है. जल्द ही फाइनेंस कमेटी से मंज़ूरी मिलने के बाद इस प्रस्ताव को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के पास भेजा जाएगा.
कुलपति मंसूर ने दिप्रिंट से कहा कि भारत में साझी विरासत का संदेश दारा शिकोह ने ही दिया था. इसी मकसद को आगे बढ़ाएंगे जिससे समाज में सौहार्द का नया रास्ता भी खुलेगा. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ने इस साझी विरासत को आगे बढ़ाने के लिए संघ नेता कृष्ण गोपाल का भी समर्थन मांगा है.
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दारा शिकोह में थी सर्वधर्म समभाव की प्रवृत्ति: संघ
11 सितंबर को कांस्टीट्यूशन क्लब में एकेडमिक्स फॉर नेशन के तत्वावधान में भारत की समन्वयवादी परंपरा के नायक दारा शिकोह पर परिसंवाद आयोजित हुआ था. इसमें आरएसएस के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने कहा था, ‘भारत के यहूदी, पारसी, जैन और बौद्ध सुरक्षित महसूस करते तो देश पर 600 वर्षों तक राज रखने वाले मुसलमान क्यों डरते है.’
उन्होंने कहा, ‘औरंगजेब की जगह दारा शिकोह मुगल सम्राट होते तो भारत में इस्लाम अधिक विकसित होता क्योंकि दारा शिकोह में सर्वधर्म समभाव की प्रवृत्ति थी.’
प्रस्ताव मंजूर होंगे वैसे ही काम शुरु कर देंगे
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के चैयरमेन और कार्डिनेटर सैय्यद अली नक़वी रेज़वी ने दिप्रिंट से कहा कि ‘विश्चविद्यालय के दारा शिकोह के लिए पीठ बनाने का प्रस्ताव सभी विभागों से मंजूर हो गया है. इसे यूजीसी की मंजूरी के लिए भेज दिया गया है. इसके अलावा विश्वविद्यालय ने सर सैयद अहमद ख़ान की पीठ के लिए भी प्रस्ताव यूजीसी को भेजा है.
‘जैसे ही प्रस्ताव मंजूर होंगे उसके एक महीने के भीतर ही प्रोफेसर को नियुक्त कर देंगे.’
उन्होंने आगे कहा, ‘इस पीठ की स्थापना के लिए हम तीन माह से काम कर रहे हैं.’ एएमयू में ‘सर सैयद चेयर’ पर भी काम कर रहा है.’
संघ दारा के नाम का फायदा उठाना चाहता है
विश्वविद्यालय से जुड़े एक प्रोफेसर से नाम नहीं छापने के अनुरोध पर दिप्रिंट को बताया कि देश में एकता के मकसद से ही हम इस शोध को आगे बढ़ा रहे है. ‘आज के माहौल में मजहब को निशाना बनाकर लोगों को बांटा जा रहा है. इसलिए आज दारा की विचारधारा की सख्त जरूरत है. जहां पर सभी मजहब को एक निगाह से देखा जाए.’
उन्होंने कहा, ‘दारा शिकोह उस विचारधारा को फॉलो करता था जिसके खिलाफ भाजपा और आरएसएस. दारा शिकोह सभी मजहब को एक मानने वाला था.
‘आरएसएस वह है जो अकबर को बुरा कहता है. लेकिन अब अपनी सियासत को देखकर वह दारा शिकोह को लेकर क्या सोच रहे है और क्या कह रहे है वह ही अच्छे से जानते है.’
‘संघ दारा के नाम का फायदा उठाना चाहता है. यह दिखाना चाहता है कि वह सब महजब के साथ है जबकि वह नहीं है.’
कौन है दारा शिकोह
दारा शिकोह मुगल मुमताज़ महल और मुगल बादशाह शाहजहां का बड़ा पुत्र था. उनका जन्म 20 मार्च 1615 को हुआ था.शाहजहां बेटे दारा को बहुत पसंद करते थे इसलिए वह अपने बेटे को मुगल वंश का अगला बादशाह देखना चाहते थे. दारा शिकोह मुगल वंश से होने के बावजूद अन्य मुगलों से अलग थे. वे हिंदू और इस्लाम धर्म को बराबर का दर्जा देते थे. वह अपने एक हाथ में उपनिषद और दूसरे हाथ में पवित्र कुरान रखते थे. वे भगवान श्रीराम के नाम की अंगुठी पहनते थे तो नमाज़ भी पढ़ते थे. उनकी इन्हीं बातों की वजह से दरबार के लोग उसे काफिर भी कहने लगे थे.
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बचपन से धार्मिक किताबें पढ़ने का था शौक
बचपन से ही दारा शिकोह को किताबे पढ़ने का शौक था. वे धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन करता थे तो सूफी संतों को भी पढ़ते थे. दारा शिकोह का निकाह नादिरा बेगम से हुआ था. उनकी एक बेटी भी थी लेकिन उसकी जल्द ही मौत हो गई. इसके बाद से दारा शिकोह का ज्यादा समय किताबे पढ़ने और धार्मिक कामों में ही बीतने लगा. दारा शिकोह ने एक किताब भी लिखी थी.
शाहजहां के चार बेटे थे. चारों बेटे के आपसी झगड़ों के चलते शाहजहां चारों को अलग अलग सूबे सौंप दिए. इसमें दारा को काबुल और मुल्तान, शुजा को बंगाल, औरंगजेब को दक्कन और मुरादबख्श को गुजरात का जिम्मा दिया गया. इस दौरान शाहजहां ने दारा को दिल्ली दरबार में ही रहने का आदेश दिया.
औरंगज़ेब से जंग में मिली हार, करवाया सिर कलम
जब कंधार में ईरान की सेना ने कब्ज़ा किया तो फिर दारा शिकोह के नेतृत्व में हुए युद्ध में उनकी सेना को हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद से ही दोनों भाईयों दारा शिकोह और औरंगज़ेब में मतभेद बढ़ गया.जब मुगल बादशाह बीमार पड़े तो दारा शिकोह के तीनों भाई दिल्ली पहुंचे.
औरंगजेब की सेना के आगे दारा शिकोह जंग के मैदान में हार गए. इसके बाद वे कई दिनों तक भागते रहे और छिपते रहे. इधर, औरंगज़ेब ने पिता शाहजहां को नज़रबंद कर लिया और खुद बादशाह बन गए. इधर, अफगानिस्तान में दारा शिकोह को पकड़ा गया. इसके बाद औरंगज़ेब ने दारा शिकोह को सर कलम करवा दिया.