नई दिल्ली: पंजाब में एक प्रचंड जीत दर्ज करने के तीन महीने बाद ही आम आदमी पार्टी (आप) इस रविवार को मुख्यमंत्री भगवंत मान के गृह क्षेत्र संगरूर में लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में हार गई.
इस हार के साथ ही आप के पास अब लोकसभा में कोई सांसद नहीं बचा है, हालांकि, उसके पास फिलहाल 10 राज्यसभा सांसद हैं – तीन दिल्ली से और सात पंजाब से. 16 मार्च को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले भगवंत मान के सांसद पद से इस्तीफे के बाद यह उपचुनाव कराना पड़ा था.
संगरूर जिले में आप के अध्यक्ष गुरमेल सिंह 23 जून को हुए इस उपचुनाव के लिए सत्तारूढ़ दल के उम्मीदवार थे और सत्ताधारी दल के कई सारे नेताओं ने इसे प्रतिष्ठा की लड़ाई बताया था. आप देश भर में अपनी मौजूदगी के विस्तार के लिए पंजाब के अच्छे प्रदर्शन पर भरोसा कर रही थी.
चुनाव आयोग (ईसी) से मिली जानकारी अनुसार, गुरमेल सिंह 5,822 मतों के मामूली अंतर से शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) – जो बादल के नेतृत्व वाले शिरोमणि अकाली दल (शिअद) से अलग हुआ एक समूह है- के अध्यक्ष सिमरनजीत सिंह मान से यह चुनाव हार गए.
चुनाव आयोग (ईसी) के अनुसार, सिमरनजीत मान को 2,53,154 वोट मिले और उन्हें कुल मतो का 35.61 प्रतिशत प्राप्त हुआ. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के केवल सिंह ढिल्लों को 66,298 वोट (9.33 फीसदी वोट शेयर), कांग्रेस के दलवीर सिंह गोल्डी को 79,668 वोट (11.21 फीसदी), शिअद की कमलदीप कौर राजोआना को 44,428 वोट (6.25 फीसदी) और आप के गुरमेल सिंह को 2,47,332 वोट (34.79 मत प्रतिशत) मिले.
जहां कांग्रेस के गोल्डी ने हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में धुरी विधानसभा सीट से भगवंत मान के खिलाफ चुनाव लड़ा था, वहीं शिअद की उम्मीदवार कमलदीप कौर राजोआना पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के मामले में मौत की सजा पाने वाले बलवंत सिंह राजोआना की बहन हैं.
एक पूर्व पुलिस अधिकारी से राजनेता बने, सिमरनजीत मान दो बार सांसद रह चुके हैं – पहली बार 1989 में तरनतारन से और फिर 1999 में संगरूर से. उनकी शादी गीतिंदर कौर मान से हुई है, जिनकी बड़ी बहन, परनीत कौर, पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की पत्नी हैं.
सिमरनजीत मान अपने खालिस्तान समर्थक रुख के लिए चर्चा में रहे हैं, उनके ट्विटर प्रोफाइल में उन्हें ‘#खालिस्तान ‘स्ट्राइविंग फॉर #खालिस्तान(सॉवेरेन स्टेट फॉर सिखस)’.- सिखों के लिए संप्रभु राज्य के लिए प्रयासरत – के रूप में वर्णित किया गया है. इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के अनुसार, शिअद (अमृतसर) एकमात्र ऐसी पार्टी है जो अभी भी पंजाब में एक अलग खालिस्तान की मांग के साथ चुनाव लड़ती है.
इस निराश करने वाली हार के बाद, जहां आप प्रवक्ता ने कहा कि सरकार लोगों के फैसले का सम्मान करती है, वहीं आप के पंजाब के नेताओं ने माना कि पार्टी के लिए आत्मनिरीक्षण जरूरी है, क्योंकि यह राज्य में ‘बदलाव’ लाने के वादे पर सवार होकर सत्ता में आई थी.
भगवंत मान के लिए है एक बड़ी हार
संगरूर संसदीय क्षेत्र में नौ विधानसभा क्षेत्र हैं – लेहरा, दिर्बा, सुनाम, भदौर, बरनाला, महल कलां, मलेरकोटला, धुरी और संगरूर. फिलहाल इस सभी नौ पर आप का कब्जा है
भगवंत मान जहां खुद धूरी से विधायक हैं, वहीं वित्त मंत्री हरपाल चीमा दिर्बा का प्रतिनिधित्व करते हैं और शिक्षा मंत्री गुरमीत सिंह मीत हेयर बरनाला से विधायक हैं.
साल 2004 के लोकसभा चुनाव में, शिअद ने यह सीट जीती थी जबकि 2009 में कांग्रेस को यहां से जीत मिली थी. मगर 2014 के बाद से यह सीट पिछले आठ साल तक आप के पास थी. आप की स्थापना के ठीक दो साल बाद हुए 2014 के लोकसभा चुनाव में भगवंत मान ने अपने लोकसभा में पदार्पण के रूप में शिअद-भाजपा गठबंधन के उम्मीदवार सुखदेव सिंह ढींडसा को 2,11,721 मतों के रिकॉर्ड अंतर से हराकर संगरूर सीट जीती थी. यह उन चार लोकसभा सीटों में से एक थी, जिसे आप ने 2014 में जीता था.
साल 2019 में, इस कद्दावर आप नेता ने कांग्रेस उम्मीदवार केवल सिंह ढिल्लों को 1,10,211 मतों के अंतर से हराकर यह सीट अपने पास बरकरार रखी और लोकसभा में आप के अकेले सांसद बने.
2014 और 2019 के चुनावों में संगरूर में आप का वोट शेयर क्रमशः 48.47 फीसदी और 37.40 फीसदी था. रविवार को यह और कम होकर 34.79 फीसदी हो गया.
मुख्यमंत्री मान ने व्यक्तिगत रूप से संगरूर उपचुनाव में पार्टी के प्रचार अभियान का नेतृत्व किया और पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने भी पार्टी उम्मीदवार के पक्ष में प्रचार के लिए इस क्षेत्र का दौरा किया था.
एक ओर जहां आप ने अपने प्रचार अभियान को जन कल्याण और विकास के मुद्दों पर केंद्रित किया और अक्सर भगवंत मान के द्वारा एक सांसद के रूप में किए गये प्रदर्शन और दिल्ली एवं पंजाब में पार्टी की सरकारों के काम पर प्रकाश डाला, वहीं शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के चुनावी प्रचार अभियान का विषय मुख्य रूप से सिख राजनीतिक बंदियों की रिहाई के इर्द-गिर्द घूमता रहा था.
चुनाव आयोग के अनुसार, संगरूर में साल 2019 और 2014 के लोकसभा चुनावों में हुए क्रमशः 72.40 प्रतिशत और 77.21 प्रतिशत के मुकाबले इस साल काफ़ी कम (45.30 प्रतिशत) मतदान हुआ. 23 जून को चुनाव आयोग से संगरूर में मतदान का समय बढ़ाने का आग्रह करते हुए, मुख्यमंत्री मान ने कहा था कि बड़ी संख्या में लोग इस वजह से बाहर आकर मतदान नहीं कर सके क्योंकि यह धान की खेती के सबसे व्यस्त समय के साथ मेल खाता था.
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कानून और व्यवस्था था एक बड़ा मुद्दा
हालांकि, सत्तारूढ़ पार्टी की अपनी चिंताएँ भी थीं. पंजाब के एक वरिष्ठ आप नेता ने कहा, ‘अभियान के दौरान, हमें कानून-व्यवस्था की स्थिति के बारे में चिंताओं का सामना करा पड़ा और क्षेत्र में छिटपुट विरोध प्रदर्शनों भी दिखाई दिए जिनमें नौकरियों की मांग की गई थी और किसान यूनियनों ने आप सरकार के उस आश्वासन का हवाला दिया जिसके सहारे वह कुछ ही महीनों पहले सत्ता में आई थी. और फिर सिद्धू मूसेवाला वाला कारक भी था.’
29 मई को हुई मूसेवाला की हत्या ने पंजाब से संबंधित कानून-व्यवस्था के मुद्दों पर सवाल खड़े कर दिए थे, विशेष रूप से युवाओं एक बीच. एक लोकप्रिय कलाकार से कांग्रेस के राजनेता बने मूसेवाला का राज्य में बहुत बड़ा प्रशंसक वर्ग है. उन्होंने इस साल की शुरुआत में मनसा से पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन असफल रहे थे. एक समय पर – विशेष रूप से केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ बैठक के बाद – ऐसी अटकलें भी लगीं थीं कि मूसेवाला के पिता बलकौर सिंह संगरूर से चुनाव लड़ेंगे. मगर बाद में सिंह ने स्वयं इन अटकलों पर विराम लगा दिया था.
कांग्रेस भी पंजाब में कानून-व्यवस्था से जुड़ी चिंताओं को उजागर करने के लिए मूसेवाला की हत्या पर भरोसा कर रही थी. 12 जून को, कांग्रेस ने एक प्रचार अभियान संबंधित वीडियो गीत जारी किया जिसमें मूसेवाला के मृत शरीर और मनसा जिले के मूसा गांव के उस स्थल के दृश्य शामिल थे जहां उनका अंतिम संस्कार किया गया था.
इसके जवाब में आप ने कांग्रेस पर संगरूर में सहानुभूति वोट हासिल करने की कोशिश करने का आरोप लगाया था. आप नेता ने कहा, ‘हमने सोचा था कि हमने इन सारे मुद्दों का समाधान कर लिया है, लेकिन अब ऐसा लगता है कि हमे बहुत अधिक आत्मनिरीक्षण की जरूरत है.’
हार के बाद चंडीगढ़ में हुई एक मीडिया ब्रीफिंग के दौरान आप के मुख्य प्रवक्ता मलविंदर सिंह कांग ने कहा कि पार्टी लोगों के फैसले का सम्मान करती है. उन्होने कहा, ‘एक पार्टी के रूप में, हमें निश्चित रूप से आत्मनिरीक्षण करने की आवश्यकता है. मतदान में इतनी भारी गिरावट के बावजूद,साल 2019 की तुलना में आप के वोट शेयर में सिर्फ़ 2-3 प्रतिशत की गिरावट आई है. लेकिन हर किसी को यह देखना चाहिए कि कैसे लोगों ने अकालियों, कांग्रेस और भाजपा जैसी पारंपरिक पार्टियों के उम्मीदवारों को खारिज कर दिया है.’
पंजाब के एक अन्य आप नेता ने कहा कि यह आम धारणा अभी भी कायम है कि पंजाब सरकार दिल्ली के आप नेतृत्व से आदेश ले रही है.उन्होंने कहा, ‘हम अभी भी जनता को यह समझाने में सक्षम नहीं रहे हैं कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है, जब तक कि यह पंजाब की भलाई के लिए की जा रहा है. इसके अलावा राज्यसभा के उम्मीदवारों के लेकर हमारी पसंद से भी लोगों में काफी नाराजगी थी. लोगों ने या तो पार्टी के उम्मीदवारों को बाहरी लोगों के रूप में देखा या ऐसे व्यक्तियों के रूप में पाया जो पर्याप्त रूप से पंजाब की भावना का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं.’ साथ ही, उन्होंने कहा कि लोकसभा में पंजाब का प्रतिनिधित्व करने के लिए सिमरनजीत सिंह मान की जीत लोगों की ओर से एक स्पष्ट संदेश है.
इस बीच, दिल्ली के एक आप नेता ने कहा कि लोग अक्सर ‘बदलाव’ की लहर पर पार्टी को मिले भारी जनादेश के बारे में बात करते हैं. उन्होने कहा, ‘लेकिन यह जनादेश इस पूर्व शर्त के साथ भी आया है कि परिवर्तन जल्द से जल्द दिखाई देना चाहिए. यह स्पष्ट है कि पंजाब में हमारी सरकार को उसे मिले जन समर्थन को बरकरार रखने के लिए अपने वादे के मुताबिक शासन के मॉडल को पूरा करने में तेजी लानी होगी. साथ ही, कम मतदान से यह भी पता चलता है कि बड़ी संख्या में ऐसे लोगों ने इस उपचुनाव में मतदान करने से परहेज किया, जिन्होंने पहले हमारा समर्थन किया था. इस बात समझने के लिए कि ऐसा क्यों हुआ, पार्टी को काफी मशक्कत करनी होगी.’
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