नई दिल्ली: पूर्व विदेश सचिव और टाटा समूह से जुड़े रहे डॉ एस जयशंकर को विदेश मंत्री बनाया गया है. विदेश मंत्रालय में उन्हें शामिल करने के पीछे सोच मंत्रिमंडल में विशेषज्ञों की कमी को दूर करने की कोशिश की है. और साथ ही बदले सामरिक माहौल में जब ईरान संकट गहरा रहा है और ट्रंप प्रशासन का चीन से व्यापार युद्ध शुरू हो चुका है ये नियुक्ति बहुत अहम है. इसके साथ ही जयशंकर एक गैर राजनीतिक शख्सियत है जिनको अब राज्य सभा के रास्ते संसद में लाया जायेगा. और मोदी की विदेश नीति में व्यापक ध्यान रखने में वे उनके सक्षम हाथ होंगे. अभी तक ये मंत्रालय सुषमा स्वराज के हाथ था जोकि खराब स्वास्थ्य की वजह से चुनाव नहीं लगा था.
सुब्रमण्यम जयशंकर जनवरी 2015 से जनवरी 2018 तक विदेश सचिव के पद पर कार्यरत थे. 2017 में चीन के साथ डोकलाम में उभरे विवाद को सुलटाने में उनकी अहम भूमिका रही थी.
64 साल के जयशंकर 1977 में भारतीय विदेश सेवा में शामिल हुए थे और उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन और चेक गणराज्य में भारतीय राजदूत और सिंगापुर में उच्चायुक्त के रूप में कार्य किया.
जयशंकर की भारत और अमरीका के बीच 2007 में हुई परमाणु संधि को पूरा करवाने की बातचीत में भी इनकी अहम भूमिका रही थी. उस समय वो अमेरिका में ज्वाइंट सेक्रेटरी के रूप में काम कर रहे थे.
जयशंकर को इसी वर्ष मार्च में राष्ट्रपति कोविंद ने पद्मश्री सम्मान से भी नवाज़ा था.
जयशंकर ने अपनी स्कूली शिक्षा वायु सेना केंद्रीय विद्यालय, नई दिल्ली से की और वो दिल्ली विश्वविद्यालय में सेंट स्टीफन कॉलेज से स्नातक हैं. उन्होंने राजनीति विज्ञान में एमए और एमफिल किया है. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से अंतरराष्ट्रीय संबंध में पीएचडी की, यहीं से उन्होंने परमाणु कूटनीति में विशेषज्ञता हासिल की.
जयशंकर दिल्ली में 1955 में पैदा हुए थे और उनके पिता मशहूर सामरिक मामलों के जानकार, के सुब्रह्मण्यम के पुत्र हैं. इनके परिवार में पत्नी क्योको है और इनके दो पुत्र और एक पुत्री है.
Shri @DrSJaishankar and Shri @DrRPNishank take oath as Union Ministers. #ModiSwearingIn pic.twitter.com/DWcvKykBEh
— BJP (@BJP4India) May 30, 2019
सुजाता सिंह को हटाकर जयशंकर को विदेश सचिव बनाया गया था और उनके इस प्रमोशन पर विदेश सेवा में बहुत नाराज़गी भी देखी गई थी. प्रधानमंत्री मोदी जब गुजरात में मुख्यमंत्री रहते हुए चीन गए थे तब उनकी जयशंकर से मुलाकात हुआ थी. वे तब भारत के चीन में राजदूत थे. तभी मोदी उनके काम करने के तरीके से रूबरू हुए और उनके प्रधानमंत्री बनने पर जयशंकर को विदेश सचिव का पद सौंपा. मोदी की सितंबर 2014 की अमरीका यात्रा को सफल बनाने के लिए भी उनकी कोशिश रंग लाई और ये वही यात्रा है जिसे देखते हुए पीएम ने उनपर विश्वास जताया और उन्हें अपने मंत्रीमंडल में शामिल कर उनके हुनर का इस्तेमाल करने का मन बनाया है.
अटकलें है कि उन्हें विदेश मंत्रालय में जगह दी जायेगी जहां अपने विदेश नीति की जानकारी का वे पूरा इस्तेमाल कर पायेंगे. यदि वे विदेश मंत्रालय से जुड़ते हैं तो वे के नटवर सिंह के बाद देश के दूसरे ऐसे राजनायिक होंगे जिन्हें विदेश मंत्रालय का कार्यभार सौंपा जाएगा. गौरतलब है कि एनडीए के पहले कार्यकाल में विदेश मंत्री रहीं सुषमा स्वराज इस बार मंत्रिमंडल में शामिल नहीं हुई है.