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Monday, 25 November, 2024
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संघ मुस्लिमों को खुद से अलग नहीं समझता : मोहन भागवत

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आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत चिंताओं पर विराम लगाते हुए इस बात का खंडन करते हैं कि संघ संविधान को बदलना चाहता है और कहते हैं कि वे संविधान का सम्मान करते हैं और कभी उसके खिलाफ़ नहीं गए.

नई दिल्ली: आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने मंगलवार को कहा कि संघ की हिंदुत्व की परिभाषा मुस्लिमों को अपने दायरे से बाहर नहीं रखती है और प्रकृति में समावेशी है.

उन्होंने संघ के राजधानी के विज्ञान भवन में आयोजित तीन दिवसीय सम्मेलन, भविष्य का भारत – एक आरएसएस परिप्रेक्ष्य के दूसरे दिन कहा -“हिंदू राष्ट्र का यह मतलब नहीं है कि मुस्लिम इसका हिस्सा नहीं हैं. जिस दिन हम कहते हैं कि मुस्लिम इस देश का हिस्सा नहीं हैं, उस दिन वह हिंदुत्व नहीं होगा.”

“भारत के सभी निवासियों की एक पहचान है और हम उस पहचान को हिंदुत्व बुलाते हैं. लेकिन हमें उन लोगों के साथ कोई समस्या नहीं है जो खुद को हिन्दू नहीं बुलाते,” भागवत ने कहा.

उन्होंने कहा, “कुछ लोग लालच या फिर राजनीतिक शुचिता की वजह से से नहीं कहते हैं.” उन्होंने दावा किया कि यह हिंदुत्व का मूल्य था, जिसने भारत के जैसे एक विविध समाज को बांधने में मदद की.

आरएसएस प्रमुख ने इन आशंकाओं का सामना भी किया कि वह संविधान को कम समावेशी बनाने के लिए बदलने की मांग कर रहे थे. उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि संगठन संविधान का पालन और सम्मान करता है.

“संविधान हमारे देश की सर्वसम्मति है. संविधान का अनुसरण हर किसी का कर्तव्य है. हम संविधान के सभी प्रतीकों का सम्मान करते हैं. हमने कभी भी कानून या कानून के खिलाफ कुछ भी नहीं किया है, ” भागवत ने संविधान की प्रस्तावना पढ़ते हुए कहा.

“धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्द बाद में संविधान में जोड़े गए, लेकिन वे वहां हैं ज़रूर”, उन्होंने कहा.


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पहले दिन की तरह ही , भागवत ने संघ की विचारधारा और हिंदुत्व की व्याख्या को समझाते हुए काफी समय बिताया. ऐसा करते हुए उन्होंने आरएसएस के उस दावे पर भी ज़ोर दिया जिसके अनुसार भारत एक हिंदू राष्ट्र है. तीसरे दिन वे एक चुनी हुई ऑडिएंस के सवालों का जवाब देंगे.

‘आरएसएस एक राजनीति विरोधी संगठन’

संघ के भाजपा के संचालन में हस्तक्षेप होने वाली प्रचलित धारणा को दूर करने की कोशिश करते हुए भागवत ने यह समझने में मेहनत की कि संघ एक “अराजनैतिक” संगठन है.

भाजपा के संदर्भ में भागवत ने कहा कि ऐसी धारणा है कि आरएसएस एक विशेष पार्टी के कामकाज में एक प्रमुख भूमिका निभाता है क्योंकि पार्टी में इसके कई कार्यकर्ता भी शामिल हैं.

भागवत ने कहा, “आरएसएस राजनीति से दूर रहता है लेकिन राष्ट्रीय हित के मुद्दों पर हमारे अपने विचार हैं. हम मानते हैं कि सत्ता का केंद्र जैसा संविधान में वर्णित है, वैसा होना चाहिए.” “हम कभी भी किसी स्वयंसेवक को किसी पार्टी विशेष के लिए काम करने को नहीं कहते. हम उन्हें राष्ट्र हित में काम करने के लिए कहते हैं. ”


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आरएसएस प्रमुख ने कहा, “यह कहना सरासर गलत है कि नागपुर सरकार में बैठे लोगों को निर्देश देता है और उनके काम में हस्तक्षेप करता है. उनके पास मुझसे ज़्यादा अनुभव है. उन्हें अपने काम करने के लिए मेरी सलाह की ज़रूरत नहीं है. हम उन्हें तभी सलाह देते है जब वे मांगते हैं . अन्य पार्टियों के लिए यह सोचने का विषय है कि क्यों स्वयंसेवक केवल एक पार्टी में शामिल होना पसंद करते हैं”.

उन्होंने यह भी कहा कि आरएसएस हमेशा प्रतिस्पर्धी और चुनावी राजनीति से दूर रहा है.

“हमारे पास राष्ट्रीय नीतियों पर एक स्टैंड है, जिसे हम अपनी शक्ति के आधार पर व्यक्त करते हैं. सिर्फ इसलिए कि हम राजनीतिक नहीं हैं इसका मतलब यह नहीं है कि हम घुसपैठियों की तरह मुद्दों के बारे में बात नहीं करेंगे. लेकिन हम राजनीति को प्रभावित नहीं करते हैं, “भागवत ने कहा.

Read in English : RSS interpretation of Hindutva does not exclude Muslims: Mohan Bhagwat

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