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Monday, 4 November, 2024
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चौटाला परिवार में तीन दशक बाद फिर छिड़ी वर्चस्व की जंग

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इतिहास अपने आप को दोहराता है. तीन दशक पहले चौधरी देवीलाल के दो बेटों में जो वर्चस्व की जंग छिड़ी थी, वही जंग आज अजय और अभय चौटाला के बीच छिड़ी हुई है.

नई दिल्ली: परिवारों की बंधक बन चुकी राजनीति अनिवार्य रूप से कभी न कभी ऐसे मोड़ पर पहुंचती है, जहां परिवार के लोगों में आपसी जंग होती है. बिहार में लालू यादव का परिवार, उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव का परिवार और हरियाणा में चौटाला परिवार इसी पारिवारिक जंग से जूझ रहा है. चौटाला परिवार में इस नई ने जंग तीन दशक पुरानी पारिवारिक कलह की यादें ताज़ा कर दी हैं. तब चौधरी देवीलाल जिस मोड़ पर खड़े थे, आज ओमप्रकाश चौटाला भी उसी दोराहे पर खड़े हैं कि भाइयों में वर्चस्व के झगड़े को कैसे सुलझाएं.

इंडियन नेशनल लोकदल हरियाणा का मुख्य विपक्षी दल है. पार्टी सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला और उनके बड़े बेटे अजल चौटाला शिक्षक भर्ती घोटाले में जेल गए तो पार्टी की कमान छोटे बेटे अभय चौटाला ने संभाली. अभय चौटाला प्रदेश में विपक्ष के नेता हैं. अजय चौटाला के बेटे दुष्यंत चौटाला हिसार से सांसद हैं.

दुष्यंत और अभय में मतभेद

दुष्यंत चौटाला और चाचा अभय चौटाला के बीच मतभेद इतने गहरा गए कि अब परिवार का झगड़ा बाहर आ गया है. ओमप्रकाश चौटाला ने दुष्यंत को अनुशासनहीनता और पार्टी विरोधी गतिविधि के लिए सभी पदों से निलंबित कर दिया है.

ओमप्रकाश चौटाला ने पार्टी की छात्र इकाई इंडियन स्टूडेंट ऑर्गेनाइज़ेशन(इनसो) और पार्टी की यूथ विंग को भी भंग कर दिया है जिसकी कमान दुष्यंत के भाई दिग्विजय चौटाला संभाल रहे थे.

इस कार्रवाई के बाद मीडिया में दिग्विजय चौटाला का बयान छपा है कि ‘इनसो को भंग नही किया जा सकता. इनसो एक इंडिपेंडेंट बॉडी है. इनसो के फैसले केवल इनसो कार्यकारिणी या इनसो के फाउंडर अजय चौटाला ले सकते हैं. इनसो आधिकारिक रूप से भंग नहीं हुई है और ना ही इसे कोई और भंग कर सकता है.’

अभय की हूटिंग पर हुई कार्रवाई

सात अक्तूबर को गोहाना में पार्टी की एक रैली हुई थी जिसमें विपक्ष के नेता अभय सिंह चौटाला की हूटिंग की गई. ऐसा माना जा रहा है कि यह जानबूझ कर किया गया. पार्टी की ओर से जारी आधिकारिक बयान में कहा कि ‘गोहाना रैली में पार्टी की युवा इकाई इंडियन स्टूडेंट ऑर्गेनाइज़ेशन अपनी भूमिका निभाने में असफल रहा है. यह पार्टी के खिलाफ़ हो रही गतिविधियों में संलिप्त है और पार्टी विरोधी तत्वों के साथ षडयंत्र में शामिल है. इसने रैली में पार्टी विरोधी गड़बड़ी फैलाई.’

इसके बाद पार्टी अध्यक्ष ओमप्रकाश चौटाला ने पार्टी में बड़े पैमाने पर फेरबदल किया है. इस बदलाव से उनके बड़े बेटे अजय चौटाला और उनके समर्थकों को तगड़ा झटका लगा है, क्योंकि इन ताज़ा फैसलों से अभय चौटाला का कद पार्टी में बढ़ गया है. अभय चौटाला के समर्थकों को महत्वपूर्ण पद सौंपे गए हैं तो अजय चौटाला के समर्थकों को रणनीतिक रूप से साइडलाइन किया गया है.

फिलहाल हरियाणा विधानसभा में इंडियन नेशनल लोकदल के 19 विधायकों के साथ मुख्य विपक्ष है और इसकी कमान अभय चौटाला के हाथ में है. अजय चौटाला और उनके बेटे मीडिया में कोई भी बयान देने से बच रहे हैं.

शेर-ए-हरियाणा का संघर्ष

आज बेटों में वर्चस्व की जंग को लेकर ओमप्रकाश चौटाला जिस मोड़ पर खड़े हैं, 1989 में यही स्थिति चौधरी देवीलाल के भी सामने आई थी. चौधरी देवीलाल दो भाई थे. चौधरी देवीलाल छोटे थे और उनके बड़े भाई साहिबराम ब्रिटिश काउंसिल से पहला चुनाव लड़कर जीत चुके थे. खुद चौधरी देवीलाल ने 1952 में सिरसा से विधानसभा का चुनाव लड़े और जीत गए. स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी रह चुके देवीलाल 1956 में पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष भी बने और 1958 में वे लोकसभा के लिए चुने गए.

हरियाणा राज्य बनने में अहम भूमिका निभाने वाले देवीलाल ने 1971 में कांग्रेस छोड़ दी. चौधरी देवीलाल ने 1971 में दो जगह से चुनाव लड़ा. आदमपुर सीट से भजनलाल के खिलाफ और तोशाम सीट से चौधरी बंसीलाल के खिलाफ. हालांकि, वे यह दोनों चुनाव हार गए. लेकिन 1971 में ही वे रोड़ी विधानसभा का उपचुनाव जीत गए.

1975 में इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की तो चौधरी देवीलाल विपक्षी नेताओं के साथ जेल में डाल दिए गए और 19 महीने तक जेल में रहे. 1977 में वे जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीते और हरियाणा के मुख्यमंत्री बने. इसके बाद उन्होंने लोकदल का गठन किया और ‘न्याय युद्ध’ की शुरुआत की जिसके वृद्धावस्था पेंशन आदि के लिए अभियान चलाया. हरियाणा में कांग्रेस से अलग होकर उन्होंने विपक्ष की भूमिका में जो कद हासिल किया, उसके चलते उन्हें शेर-ए-हरियाणा कहा जाता था

1989 में उनकी पार्टी को 90 में से 85 सीटों पर जीत हासिल हुई. इस चुनाव में उन्हें भाजपा और अकाली दल का भी सहयोग हासिल था.

चौधरी देवीलाल का कड़ा फैसला

हरियाणा में देवीलाल का बढ़ा हुआ कद उन्हें केंद्र की राजनीति में ले गया और 1989 में वे वीपी सिंह और उसके बाद चंद्रशेखर की सरकार में उपप्रधानमंत्री भी बने.

उनके उपप्रधानमंत्री बनने के बाद उनके बेटों रणजीत सिंह और ओम प्रकाश चौटाला में वर्चस्व की जंग शुरू हो गई. इस स्थिति से निपटने के लिए देवीलाल ने पार्टी की कमान ओम प्रकाश चौटाला के हाथ में सौंपकर यह झगड़ा खत्म कर दिया.

देवीलाल दो बार हरियाणा के मुख्यमंत्री भी रह चुके थे. उनके बेटे ओमप्रकाश चौटाला पांच बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं. हालांकि, पिछले 14 सालों से पार्टी का राजनीतिक वनवास चल रहा है. ऐसे में परिवार की यह कलह पार्टी को नुकसान पहुंचा सकती है. अब देखना यह है कि ओमप्रकाश चौटाला वर्चस्व की इस पारिवारिक मगर राजनीतिक जंग को कैसे निपटाते हैं.

20 साल बाद बसपा-इनेलो का गठबंधन

शिक्षक भर्ती घोटाले में जेल काट रहे ओमप्रकाश चौटाला ने 7 अक्टूबर को कहा कि उनकी पार्टी मायावती को प्रधानमंत्री बनाने के लिए विपक्षी दलों को साथ लाएंगे. चौटाला फिलहाल जमानत पर हैं और 18 अक्टूबर को उनकी पैरोल खत्म हो रही है. 18 को वे फिर से जेल जाएंगे.

बीते अप्रैल में बहुजन समाज पार्टी और इनेलो के गठबंधन की घोषणा हुई थी. इस गठबंधन के बाद चौटाला का दावा है कि प्रदेश में अगली सरकार इसी गठबंधन की बनेगी. इससे पहले 1998 में इनेलो और बसपा ने मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ा था, जिसमें बसपा को एक और इनेलो को चार लोकसभा सीटें हासिल हुई थीं. करीब 20 साल बाद दोनों दलों में फिर से गठबंधन हुआ है. दोनों दलों ने घोषणा की है कि वे आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ मिलकर लड़ेंगे.

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