नई दिल्ली : छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने सोमवार को ट्वीट कर कहा, ‘जीवन में जब संघर्ष का समय आये तो भयभीत न हों अपितु प्रसन्नता से उस समय का स्वागत करें यह संघर्षपथ ही हमें हमारी सफलता तक पहुंचाने का सबसे सटीक मार्ग है. निरंतर संघर्ष करने वाले व्यक्ति कभी असफल नहीं होते वे अपने धैर्य से एक दिन सफलता को अवश्य प्राप्त करते हैं.’ उन्होंने दंतेवाड़ा विधानसभा उपचुनाव से ठीक एक दिन पहले यह बात कही. भाजपा विधायक की मृत्यु के के बाद यह विधानसभा सीट खाली पड़ी थी. रमन सिंह ने इस सीट पर प्रचार किया. उन्होंने इससे पहले किसी भी विधानसभा उपचुनाव में रोड शो नहीं किया था. रमन सिंह ने इस निर्वाचन क्षेत्र में कई दिनों तक डेरा डाले रखा और पूर्व दंतेवाड़ा कलेक्टर और भाजपा नेता ओपी चौधरी को जीत सुनिश्चित करने के लिए प्रचार में लगाए रखा.
शुक्रवार को आने वाले नतीजें भाजपा के लिए मायने नहीं रखते हैं, भाजपा पिछले साल दिसंबर में विधानसभा चुनाव में 15 सीटों पर सिमट गई थी. लेकिन, रमन सिंह के लिए इस चुनाव में बहुत कुछ दांव पर है, वे 15 साल तक मुख्यमंत्री रहे और एक बार संभावित प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में देखे गए. विधानसभा चुनाव में हार के बाद पार्टी में हाशिये पर आ गए.रमन सिंह इस उपचुनाव में जीत के साथ वापसी की उम्मीद कर सकते हैं. लेकिन एक नुकसान पार्टी में उनके कद को और कम कर सकता है.
दिल्ली की चार यात्राएं
पिछले साल विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार के बाद से रमन सिंह दिल्ली की तुलना में रायपुर में अधिक समय बिता रहे हैं. वास्तव में उन्होंने दिल्ली में भाजपा मुख्यालय का केवल चार बार दौरा किया, क्योंकि पार्टी ने मई में लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की थी.
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मई 2019 में पीएम नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के बाद रमन सिंह अगली बार 13 जून को भाजपा के पदाधिकारियों की बैठक के लिए दिल्ली आए. उनकी अगली यात्रा पीएम मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मिलने के लिए जुलाई में हुई थी.
अगस्त में उन्होंने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और कार्यकारी भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ राष्ट्रीय राजधानी में एक बैठक की. इस पूरे समय में रमन सिंह को रायपुर से बाहर किसी भी बड़े समारोह में भाग लेते नहीं देखा गया है.
दिप्रिंट से बात करते हुए पूर्व सीएम रमन सिंह ने कहा, ‘वह केवल दिल्ली तभी आते हैं जब छत्तीसगढ़ से संबंधित किसी भी विकास परियोजना के लिए केंद्रीय सहायता की आवश्यकता होती है तो.
उन्होंने कहा, ‘छत्तीसगढ़ में मेरे कार्यक्रम को देखें जहां मैंने सभी कार्यक्रमों में भाग लिया हैं. अब तक मैं दंतेवाड़ा उप-चुनाव के प्रचार में व्यस्त हूं और वहां जनता का मूड काफी अनुकूल है.’
अनिश्चित भविष्य
15 साल के अंतराल के बाद छत्तीसगढ़ चुनाव हारने के बाद यह उम्मीद की जा रही थी कि केंद्र में रमन सिंह को दिल्ली बुलाया जायेगा. लोकसभा चुनाव में रमन सिंह के बेटे अभिषेक सहित सभी मौजूदा सांसदों का टिकट काट दिया गया था. यहां तक कि ओपी चौधरी, जिन्हें रमन सिंह ने राजनीति में लाया था, को टिकट से वंचित कर दिया गया था. टिकट बंटवारे में सरोज पांडे जैसे उनके विरोधियों की चली. जब मोदी को नए सिरे से जनादेश मिला तो उम्मीद थी कि रमन सिंह को केंद्र में सरकार में शामिल किया जाएगा. लेकिन, छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री को अकेले छोड़ दिया गया, पार्टी ने उन्हें राज्यसभा में भी नामित नहीं किया.
हालांकि, रमन सिंह के समर्थकों ने उनके अलग-थलग होने के अटकलों को खारिज कर दिया. उनका दावा है कि सिंह की इच्छा के खिलाफ छत्तीसगढ़ में कोई निर्णय नहीं लिया गया है, चाहे वह नए राज्य भाजपा अध्यक्ष या विधायक दल के नेता की नियुक्ति हो.
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भाजपा के एक महासचिव ने दिप्रिंट को बताया कि सिंह छत्तीसगढ़ में भाजपा का चेहरा बने रहेंगे. अभी भाजपा के संगठन में ऐसा कोई काम नहीं है जो उनके क्षमता के अनुकूल हो. फिर भी राजनीति में, कोई नहीं जानता कि कल क्या होगा. भाजपा के लिए छत्तीसगढ़ में मुखर विपक्ष की भूमिका निभाने के लिए रमन सिंह का मार्गदर्शन बहुत महत्वपूर्ण है.
अलग-थलग रमन सिंह
रमन सिंह अंतगढ़ उपचुनाव स्कैंडल में खुद को फंसा पा रहे हैं. जिसमें पूर्व विधायक ने न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने एक बयान में पूर्व मुख्यमंत्री की भूमिका पर आरोप लगाया था. रमन सिंह के बेटे और दामाद पर भी अलग-अलग मामलों में आरोप लगे है. जबकि, रमन सिंह कानूनी लड़ाई में अपने और अपने परिवार की रक्षा के लिए लड़ रहे हैं. लेकिन, भाजपा में उनकी कोई मदद नहीं कर रहा है.