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Saturday, 21 December, 2024
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‘कौन राम लखन सिंह?’ पूर्व IPS ने गवर्नर से पूछा- किस आधार पर नीतीश के पिता को स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा मिला

बिहार में कैबिनेट ने फैसला लिया है कि आजादी की लड़ाई में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पिता के योगदान को देखते हुए हर वर्ष 17 जनवरी को राज्य में उनके सम्मान में समारोह आयोजित किया जाएगा. विपक्षी दलों ने भी इस फैसले पर सवाल उठाया है.

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पटना: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में राज्य कैबिनेट की बुधवार को हुई बैठक में तय किया गया कि बिहार में हर वर्ष 17 जनवरी को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान के लिए कविराज राम लखन सिंह के सम्मान में एक राजकीय समारोह आयोजित किया जाएगा. हालांकि, कुछ आलोचकों ने इस फैसले की वैधता पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं.

राम लखन सिंह नीतीश कुमार के स्वर्गीय पिता थे, जो पटना जिले के बाहरी इलाके बख्तियारपुर में एक वैद्य थे. ऐसे में उनके प्रति मुख्यमंत्री की भावनाएं जगजाहिर हैं.

नीतीश ने कुछ साल पहले एक जनसभा में उनका जिक्र करते हुए बताया था कि कैसे एक स्कूली छात्र के तौर पर वह अपने पिता के दवाखाने में बैठा करते थे और उन्हें दवाओं की पुड़िया बनाकर देते थे. नीतीश ने कहा था, ‘मैं आज भी बहुत अच्छी पुड़िया बना लेता हूं.’

हालांकि, भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के बिहार-कैडर के पूर्व अधिकारी अमिताभ कुमार दास के मुताबिक, नीतीश यह अहम बात बताना तो भूल ही गए थे कि उनके पिता एक स्वतंत्रता सेनानी भी थे.

दास ने अब बिहार के राज्यपाल फागू चौहान को पत्र लिखकर पूछा है, ‘कविराज राम लखन सिंह कौन हैं? और सरकार से रिपोर्ट मांगी है कि किस आधार पर मुख्यमंत्री के पिता को एक महत्वपूर्ण स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा दिया गया.’

इस पर नीतीश के नेतृत्व वाली जनता दल (यूनाइटेड) के नेताओं का कहना है कि वे इस बात से ‘हैरान’ हैं कि पूर्व आईपीएस दास राम लखन सिंह की साख पर सवाल उठा रहे थे जबकि वह इस क्षेत्र के एक जाने-माने कांग्रेसी नेता रहे हैं.


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‘इतिहास की किताबों में कहीं जिक्र नहीं, कोई सम्मान भी नहीं मिला’

अमिताभ कुमार दास ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि बतौर स्वतंत्रता सेनानी राम लखन सिंह के सम्मान में राजकीय समारोह का आयोजन करना एक ‘स्कैम’ की तरह है.’

दास ने गुरुवार को कहा, ‘मैं इतिहास का छात्र रहा हूं और मैंने तमाम किताबें पढ़ी हैं और यहां तक कि मैंने गूगल भी किया. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान किसी भी आंदोलन में उनकी भूमिका का कहीं कोई उल्लेख नहीं मिलता है. स्वतंत्रता सेनानी के रूप में उन्हें कोई सम्मान या पेंशन भी नहीं मिली.’

उन्होंने कहा, ‘हम अपनी स्वतंत्रता के 75 वर्ष मना रहे हैं और उसी वर्ष उन्हें स्वतंत्रता सेनानी घोषित किया गया है. यह स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान की भावना के खिलाफ है.’

उनके मुताबिक, यह पूरा मामला राज्य के लिए ‘हास्यास्पद’ है. हालांकि, सार्वजनिक तौर पर नीतीश के विरोध की हिम्मत शायद ही किसी में है.

1994-बैच के आईपीएस अधिकारी दास को 2018 में कथित तौर पर नॉन-परफॉर्मेंस के आधार पर सेवानिवृत्त के लिए मजबूर किया गया था. वह उस समय महानिरीक्षक स्तर के अधिकारी थे और उनके मुताबिक कथित तौर पर कानून के खिलाफ काम करने वाले राजनेता हमेशा ही उनके निशाने पर रहे हैं.

2003 में उन्होंने केंद्रीय रेल मंत्री के तौर पर ठेके देने के मामले में नीतीश कुमार पर पद के दुरुपयोग का आरोप लगाया, और 2014 में कहा कि केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के रणवीर सेना नामक जमींदारों के एक गैरकानूनी संगठन के साथ संबंध हैं. दास को 2018 में सेवानिवृत्ति पर बाध्य कर दिया गया था लेकिन वह सरकार की नीतियों के मुखर आलोचक बने रहे.

पिछले साल अप्रैल में उन्होंने पटना स्थित खुदा बख्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी के एक हिस्से को ध्वस्त करने की बिहार सरकार की योजना के विरोध में अपना पुलिस पदक भारत के राष्ट्रपति को लौटा दिया.


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‘वह स्वतंत्रता सेनानी थे, लेकिन अन्य लोग अधिक योग्य’

नीतीश के पिता के बारे में जो जानकारी उपलब्ध है, उसके मुताबिक वह एक वैद्य और कांग्रेस के सदस्य थे, जिन्हें एक बार तो पार्टी का टिकट लगभग मिल ही गया था. उनका घर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित था और अक्सर ही वहां से गुजरते समय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता उनसे मिलने पहुंचते थे. 1978 में राम लखन सिंह की मृत्यु के समय तक नीतीश कुमार बतौर छात्र नेता जेपी आंदोलन से जुड़ चुके थे.

पूर्व विधान परिषद सदस्य (एमएलसी) रामचंद्र भारती के मुताबिक, यह ‘आश्चर्यजनक’ है कि दास मुख्यमंत्री के पिता की साख पर सवाल उठा रहे है.

जदयू नेता भारती ने कहा, ‘स्वर्गीय कविराज राम लखन सिंह आजादी की लड़ाई के क्रम में 1929, 1942 और 1943 में जेल गए थे. उन्हें जेल में यातनाएं सहनी पड़ीं और उनके घर पर बुलडोजर चला दिया गया. एक स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर उनकी पहचान देर से हुई क्योंकि नीतीश कुमार अपने परिवार के सदस्यों को आगे लाने के खिलाफ रहे हैं. उन्होंने आखिरकार बख्तियारपुर के लोगों के दबाव के कारण ही इसे स्वीकार किया.’

बख्तियारपुर में मुख्यमंत्री के पुश्तैनी घर के पास रहने वाले भारती ने पिछले साल इस इलाके में राम लखन सिंह की प्रतिमा लगवाने में अहम भूमिका निभाई थी.

राम लखन सिंह को एक स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर सम्मानित करने और हर साल उनकी स्मृति में राजकीय समारोह आयोजित करने के फैसले पर बिहार के राजनीतिक हलकों में मिली-जुली प्रतिक्रिया रही है.

जदयू छोड़कर राष्ट्रीय जनता दल में शामिल हो चुके पूर्व विधान परिषद सदस्य (एमएलसी) प्रेम कुमार मणि, जो कभी नीतीश के करीबी सहयोगी रहे हैं, ने कहा कि उक्त कदम उठाने के लिए यह सही समय नहीं था.

मणि ने दिप्रिंट से कहा, ‘नीतीश के पिता के स्वतंत्रता सेनानी होने में कोई संदेह नहीं होना चाहिए. वह एक अच्छे इंसान थे जिन्होंने दलितों का मुफ्त इलाज किया. लेकिन, जब नीतीश खुद मुख्यमंत्री हैं तो यह कदम नहीं उठाया जाना चाहिए था.’

एक भाजपा विधायक ने भी नाम न छापने की शर्त पर यही बात कही. उन्होंने कहा, ‘नीतीश के पिता एक स्वतंत्रता सेनानी थे. लेकिन उस समय पूरे बिहार में स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने वाले तमाम लोग थे और कई ऐसे लोग रहे हैं जो इस सम्मान के लिए अधिक योग्य थे.’

मुख्यमंत्री अब तक नालंदा जिले के अपने पैतृक गांव कल्याणबीघा में अपने दिवंगत पिता, माता और पत्नी की प्रतिमाओं पर उनकी जन्मतिथि और पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित करते रहे हैं. कैबिनेट के इस फैसले के बाद नीतीश और उनके समर्थक हर साल राम लखन सिंह की जयंती पर पटना में राजकीय समारोह में पुष्पांजलि अर्पित करेंगे.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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