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Monday, 22 April, 2024
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महाराष्ट्र में एक बार फिर से ‘ठाकरे बनाम ठाकरे’ की जंग ने क्यों जोर पकड़ लिया है

महाराष्ट्र की राजनीति में दरकिनार रही राज ठाकरे की मनसे ने एक कट्टर हिंदुत्व वाली लाइन अपना ली है ताकि कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन के कारण शिवसेना के वैचारिक तौर पर कमजोर पड़ने का मुद्दा भुना सके.

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मुंबई: महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) कार्यकर्ता बुधवार को जब महाराष्ट्र की सड़कों पर घूमते हुए लाउडस्पीकर इस्तेमाल करने वाली मस्जिदों को तलाश रहे थे और फिर उनके सामने हनुमान चालीसा बजा रहे थे, पार्टी प्रमुख राज ठाकरे ने अपने ट्विटर अकाउंट पर एक वीडियो साझा किया.

यह ‘बाला साहेब’ के नाम से ख्यात उनके चाचा और शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे की एक पुरानी वीडियो क्लिप है, जो अपने कंधे पर भगवा शॉल लपेटे एक रैली को संबोधित करते नजर आ रहे हैं.

वीडियो में बाल ठाकरे को यह कहते सुना जा सकता है, ‘जिस दिन महाराष्ट्र में मेरी सरकार सत्ता में आएगी, हम सड़कों पर नमाज पढ़ना बंद कराकर रहेंगे….अगर हमारा हिंदू धर्म कहीं भी लोगों को परेशान कर रहा है, तो वह आकर हमें बताएं…. मस्जिदों से लाउडस्पीकर हटेंगे, बंद.’

लेकिन जहां राज ठाकरे ने यह संकेत देने की कोशिश की कि वही अपने चाचा के वैचारिक उत्तराधिकारी हैं, वहीं शिवसेना नेताओं ने व्हाट्सएप पर बाला साहेब के वीडियो सर्कुलेट किए जिसमें उन्होंने पार्टी से अलग होकर 2006 में मनसे का गठन करने वाले अपने भतीचे की आलोचना की थी.

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एक वीडियो में, जिसकी तारीख स्पष्ट नहीं है, सीनियर ठाकरे यह कहते नजर आते हैं, ‘अमचा पुतन्याने झक मरली. काय त्याचा दोक्यत शिरला कहीं कलात नहीं (मेरा भतीजा अपना समय बर्बाद कर रहा है, मुझे समझ नहीं आ रहा कि उसके दिमाग में क्या चल रहा है.)’

बुधवार को छिड़ी ये वीडियो वार राज ठाकरे और उनके चचेरे भाई उद्धव- बाल ठाकरे के बेटे- के बीच लंबे समय से जारी उस झगड़े की ही अगली कड़ी है कि शिवसेना संस्थापक की विरासत का असली उत्तराधिकारी कौन है.

2006 में इसी विवाद को लेकर दोनों चचेरे भाई अलग हो गए थे, और एक परिवार सदस्य और राजनीतिक सहयोगियों से कट्टर प्रतिद्वंद्वियों में बदल गए थे. तब से, उनकी राजनीतिक किस्मत भी बदल गई.

आज, शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री हैं, जबकि राज ठाकरे की मनसे खुद को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही है, जिसके पास महाराष्ट्र विधानसभा और बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) में सिर्फ एक-एक सीट है. बीएमसी के चुनाव इसी साल आखिर में होने वाले हैं.

अब मनसे प्रमुख दो वैचारिक और राजनीतिक विरोधियों कांग्रेस और एनसीपी के साथ साझेदारी कर महा विकास अघाड़ी (एमवीए) की गठबंधन सरकार बनाने की वजह से शिवसेना की छवि को पहुंचे नुकसान को भुनाने की कोशिश कर रहे हैं. इस गठबंधन ने कोर मतदाताओं का शिवसेना के प्रति मोहभंग कर दिया है, यह देखकर हिंदुत्व के प्रतीक बालासाहेब की विरासत पर कब्जाने के लिए मनसे की तरफ से नए सिरे से की जा रही कोशिशों ने एक बार फिर ठाकरे-बनाम-ठाकरे संघर्ष तेज कर दिया है.


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पोस्टर और भगवा शॉल

दोनों चचेरे भाइयों में से पुत्र उद्धव के बजाये भतीजे राज ठाकने को शक्ल-सूरत, भाषण कला और आक्रामक तेवरों के मामले में बाल ठाकरे के ज्यादा करीब माना जाता रहा है.

मनसे के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘उद्धव साहब एक बेहतरीन प्रशासक हैं. यह उस समय नजर आया जब उन्होंने कोविड-19 महामारी की स्थिति को संभाला, जब राज्य को एक सीईओ की जरूरत थी, न कि किसी राजनेता की. लेकिन, राजसाहेब को बालासाहेब जैसी नेतृत्व क्षमता, करिश्माई व्यक्तित्व और उनकी विचारधारा विरासत में मिली, जिसे शिवसेना ने कमजोर कर दिया है. हमें यह बताने की जरूरत नहीं है. यह स्प्षट है.’

यह पहले ‘स्वाभाविक’ था, लेकिन अब इसके लिए काफी देर हो चुकी है.

राज ठाकरे को अब कार्यक्रमों में अपने कंधों पर भगवा शॉल लपेटे देखा जाता है, जबकि पार्टी के पदाधिकारी एक पोस्टर अभियान चला रहे हैं, जो भतीजे को बाल ठाकरे की विरासत का वास्तविक हकदार बताते हैं.

दादर, मुंबई में शिवसेना कार्यालय के बाहर मनसे का पोस्टर/ दिप्रिंट

पिछले महीने, मनसे ने दादर में शिवसेना के मुख्यालय के बाहर इसी बात को रेखांकित करते हुए एक पोस्टर लगाया था.

बालासाहेब ठाकरे को लिखे एक पत्र की तरह, इसमें कहा गया था: ‘यदि कोई आपकी विरासत को आगे बढ़ा रहा है और आपका सच्चा उत्तराधिकारी है, तो वह केवल राज ठाकरे हैं.’

औरंगाबाद में भी राज ठाकरे की 1 मई की रैली से पहले (जिसमें भड़काऊ भाषण देने के लिए उन पर मामला दर्ज किया गया है) मनसे नेताओं ने भगवा शॉल ओढ़े अपने पार्टी प्रमुख के पोस्टर लगाए.

इसके जवाब में, शिवसेना सदस्यों ने भी होर्डिंग लगाए, जिसमें पार्टी संस्थापक की तरह ‘दिखने’ की कोशिश करने वालों पर निशाना साधते हुए लिखा गया, ‘हिंदू हृदय सम्राट बालासाहेब ठाकरे, या सम दूसरे होने नहीं (उनके जैसा कोई दूसरा नहीं हो सकता).’

राजनीतिक विश्लेषक हेमंत देसाई ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि शिवसेना पर निशाना साधने के लिए मनसे बाल ठाकरे की छवि का इस्तेमाल कर रही है.

उन्होंने कहा, ‘राज ठाकरे ने न केवल भगवा शॉल लिया है, बल्कि उन्होंने इसे ठीक उसी तरह ओढ़ा है जैसे बालासाहेब करते थे. मनसे काफी हद तक बाल ठाकरे के नाम को अपने राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रही है और सीधे उद्धव ठाकरे को निशाना बना रही है.’

देसाई ने कहा कि एक समय मनसे अपनी रैलियों में बालासाहेब की छवि का भी इस्तेमाल करती थी, लेकिन शिवसेना की तरफ से ‘कड़े विरोध’ के बाद यह बंद हो गया था. लेकिन राज ठाकरे ने फिर भी साक्षात्कारों में परिवार के प्रमुख के साथ बिताए अपने शुरुआती वर्षों का जिक्र करना जारी रखा.

वहीं, शिवसेना नेता अपनी ओर से राज ठाकरे द्वारा बालासाहेब का अनुकरण किए जाने को मात्र नकल उतारना करार देते हैं.
शिवसेना के वरिष्ठ नेता रवींद्र मिरलेकर ने दिप्रिंट को बताया, ‘उन्होंने (राज ठाकरे) हमेशा बालासाहेब की शैली की नकल करने की कोशिश की है. वह अपने अपने भाषणों में हाथों के हाव-भाव से बालासाहेब की नकल करने की कोशिश करते हैं. लेकिन, केवल नकल से कोई उत्तराधिकारी नहीं बन सकता.’

वीडियो वार में कूदते हुए बुधवार को शिवसेना नेताओं ने भी एक पुरानी क्लिप को खोज निकाला और इसे साझा किया जिसमें बालासाहेब खुद उन लोगों का मजाक उड़ाते दिखते हैं जो उनकी ‘नकल’ करते हैं—स्पष्ट तौर पर अपने भतीजे के संदर्भ में.
बेटे उद्धव के बगल में एक कुर्सी पर बैठे बाल ठाकरे वीडियो में कहते हैं, ‘वे कहते हैं कि किसी ने मेरी तरह ही बोलने की शैली चुनी है, मुझे नहीं पता कि कौन…लेकिन सबसे अहम बात है विचारधारा.’

हालांकि, मनसे नेताओं के पास इसका जवाब पहले से ही तैयार है: शिवसेना अपनी मूल विचारधारा से दूर हो गई है, जबकि मनसे इसे बरकरार रखे हुए है.

वरिष्ठ मनसे नेता शालिनी ठाकरे ने दिप्रिंट को बताया, ‘एमवीए के गठन के बाद से हर कोई देख सकता है कि शिवसेना अपनी मूल विचारधारा से हट गई है. मुझे पता है कि एक सीएम होने के नाते उद्धव ठाकरे के लिए सभी को साथ लेकर चलना जरूरी है, लेकिन हिंदुओं से जुड़े मुद्दों को दरकिनार नहीं किया जा सकता.’ शालिनी की शादी राज और उद्धव के चचेरे भाई जीतेंद्र ठाकरे से हुई है.

उन्होंने आगे कहा, ‘हिंदुओं का मोहभंग हो गया है, और किसी के लिए वो जगह लेना और उनका प्रतिनिधित्व करना आवश्यक हो गया है. वो जगह खाली हो गई है और मनसे सोच-समझकर उसे भरने की कोशिश कर रही है. आखिरकार, अगर राजसाहेब वैचारिक स्तर पर बालासाहेब की जगह लेने की कोशिश नहीं करेंगे नहीं तो कौन करेगा?’

विरासत संभालने को लेकर झगड़े की शुरुआत

30 जनवरी 2003 को महाबलेश्वर में शिवसेना के सम्मेलन में पार्टी ने उद्धव ठाकरे को अपने कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में चुना.
हालांकि, वह राज ठाकरे ही थे जिन्होंने औपचारिक तौर पर प्रस्ताव को आगे बढ़ाया, लेकिन दोनों चचेरे भाइयों के बीच सब कुछ ठीक नहीं था क्योंकि दोनों ही बाल ठाकरे के बाद दूसरे स्थान पर रहने की महत्वाकांक्षा पाले थे.

राज ठाकरे शिवसेना की छात्र इकाई भारतीय विद्यार्थी सेना के प्रमुख थे और पार्टी कैडर के बीच उन्हें अपार समर्थन और लोकप्रियता हासिल थी.

ऊपरी तौर पर राज ठाकरे ही बालासाहेब की विरासत को आगे बढ़ाने वाला आदर्श चेहरा नजर आते थे.

वह शिवसेना के संस्थापक की तरह मुखर और आक्रामक थे, आगे बढ़कर नेतृत्व संभालने के साथ चुनाव प्रचार और धारदार भाषण देने में अधिक सहज थे. वही, उद्धव ठाकरे अधिक शांत-स्वभाव वाले और विनम्र थे और बैकरूम प्रबंधन में अधिक कुशल माने जाते थे. इसलिए, शुरू से ऐसी अटकलें चलती रहीं कि उद्धव को केवल इसलिए चुना गया क्योंकि उनका बालासाहेब से खून का रिश्ता था.

हालांकि, शिवसेना के बुजुर्ग नेता इससे इनकार करते हैं और कहते हैं कि बालासाहेब की कुशल राजनीतिक दृष्टि ने उन्हें भतीजे के बजाये बेटे को चुनने के लिए प्रेरित किया.

पहचान न बताने की शर्त पर शिवसेना के एक पुराने नेता ने कहा, ‘यह कहना सही नहीं है कि बालासाहेब ने उद्धवसाहेब को अपना उत्तराधिकारी सिर्फ इसलिए चुना क्योंकि वह उनके बेटे थे. बालासाहेब के पास दूरदृष्टि थी और उन्होंने उद्धवसाहेब में कुछ ऐसे कौशल, नेतृत्व के गुण देखे जो उस समय दूसरों को नजर नहीं आ रहे थे. लेकिन, अगर आप अभी देखें, तो बालासाहेब का नजरिया रंग लाया है. (उद्धव) राज्य प्रशासन और पार्टी को इस तरह संभाल रहे हैं, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी.’
इस नेता के मुताबिक, राज ठाकरे ने भले ही शिवसेना सुप्रीमो के तौर पर हावभाव अपनाएं हो, लेकिन वह उनकी तरह दृष्टिकोण नहीं रखते हैं.

उन्होंने कहा, ‘अगर उनके पास उन्हीं के जैसा विजन होता तो पार्टी में दूसरे सबसे बड़े नेता के तौर पर बने रहते. आज जब उद्धव साहब सीएम हैं तो पार्टी की पूरी जिम्मेदारी राज ठाकरे की हो सकती थी. अगर उनके पास दूरदृष्टि होती तो कम से कम उनकी पार्टी आज की तरह संघर्ष न कर रही होती.’

राज ठाकरे ने 2005 में शिवसेना छोड़ी दी थी और 2006 में मनसे का गठन किया. उन्होंने सबसे पहले प्रवासी विरोधी एजेंडा अपनाया, जिसने राजनीतिक विश्लेषकों को पार्टी के शुरुआती वर्षों में इस मुद्दे पर शिवसेना की आक्रामकता की याद दिला दी.

मनसे को मुंबई नगर निकाय और राज्य विधानसभा में कुछ त्वरित सफलता तो मिली, लेकिन 2014 से उसे चुनावी हार का सामना करना पड़ा. अभी मनसे के पास सिर्फ एक विधायक और एक नगरसेवक है, और बार-बार रुख बदलने को लेकर पार्टी को अपने प्रतिद्वंद्वियों की आलोचना झेलनी पड़ रही है. पहले तो पार्टी ने 2014 के चुनावों से पहले नरेंद्र मोदी की प्रशंसा की, फिर 2019 के चुनावों से पहले उनके शासन की जमकर आलोचना की और अब फिर वह भाजपा की तरह हिंदुत्ववादी रुख अपना रही है.

नाम न छापने की शर्त पर बात करने वाले एक मनसे नेता के मुताबिक, राज ठाकरे ने हमेशा अपने विश्वास के आधार पर कोई रुख अपनाया है, सही काम करने के लिए किसी की प्रशंसा की और अच्छा प्रदर्शन न करने पर उसकी आलोचना. उन्होंने कहा, ‘हम जानते हैं कि राजनीतिक रूप से इसे ठीक नहीं माना जा सकता, और हमने चुनावों से इसका खामियाजा भी भुगता है. लेकिन यह ऐसे ही हैं.’

तनावपूर्ण रिश्ते

राज ठाकरे के अपने चाचा और चचेरे भाई के साथ रिश्ते तब और बिगड़ गए जब उन्होंने पार्टी छोड़ दी और ‘मराठी मानुष’ के मुद्दे को आधार पर चुनाव लड़ा, जो मूल रूप से शिवसेना की एक पहचान माना जाता था.

उद्धव और राज ठाकरे कुछ निजी मौकों पर एक-दूसरे के साथ नजर आए, जैसे 2012 में जब बाल ठाकरे की मृत्यु हुई थी, या फिर जब उद्धव की उसी वर्ष एंजियोप्लास्टी हुई थी. इसी तरह, 2014 में उद्धव भी राज ठाकरे की बेटी उर्वशी को देखने अस्पताल पहुंचे थे जब एक हादसे में उसका पैर टूट गया था.

हालांकि, दोनों पार्टी के नेताओं का कहना है कि कुल मिलाकर, दोनों चचेरे भाइयों के बीच रिश्तों में खटास बढ़ती गई है.
ऐसे मौके भी आए जब दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के करीब आने की कोशिश की लेकिन दूसरी तरफ से अपेक्षित प्रतिक्रिया नहीं मिली.

2012 में वरिष्ठ पत्रकार निखिल वागले को दिए एक इंटरव्यू में बाल ठाकरे ने स्वीकारा था कि वह अपने बेटे और भतीजे को एक साथ देखना पसंद करेंगे, लेकिन साथ ही कहा था कि वह इसके लिए मजबूर नहीं कर सकते.

अगले वर्ष, बाल ठाकरे की मृत्यु के बाद उद्धव ने शिवसेना के मुखपत्र सामना को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि वह उनके और राज ठाकरे के बीच गठबंधन के किसी भी प्रस्ताव का स्वागत करेंगे, ‘लेकिन कोई एक हाथ से ताली नहीं बजा सकता.’

मनसे अध्यक्ष ने इस बयान का खंडन करते हुए कहा था कि उनका किसी के साथ गठबंधन का कोई इरादा नहीं है और ‘गठबंधन की बातचीत समाचारपत्रों के माध्यम से नहीं होती है.’

कुछ साल बाद स्थिति उलट गई.

2014 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में अपनी हार के बाद कमजोर स्थिति में आ गई मनसे ने 2017 के मुंबई निकाय चुनावों से पहले शहर की मराठी आबादी के व्यापक हितों के नाम पर लिए शिवसेना के समक्ष बिना शर्त गठबंधन का प्रस्ताव रखा. लेकिन शिवसेना ने कोई जवाब न देकर प्रस्ताव को ठुकरा दिया.

यही नहीं दोनों के बीच खाई को पाटने के लिए खुले तौर पर किए गए प्रयास भी नाकाम रहे हैं.

2010 से 2014 के बीच मराठी प्रोफेशनल और शिवसेना समर्थकों के एक समूह ने दोनों चचेरे भाइयों को एकजुट करने और 2009 के लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों की तरह मराठी वोटों में विभाजन रोकने के इरादे से ‘ठाकरे जोड़ो’ अभियान चलाया.

इस अभियान के संयोजक सतीश वालांजू ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमने सितंबर 2010 में एक मौन रैली के साथ अभियान की शुरुआत की. इससे पहले हमने दोनों नेताओं को ज्ञापन दिया था. राज ठाकरे ने कोई जवाब नहीं दिया. उद्धवजी…हमसे बात करने के लिए मातोश्री (अपने आवास) से बाहर आए, और हमें शिवसेना के साथ रहने और पार्टी में विश्वास रखने को कहा.’
वालांजू ने कहा कि बालासाहेब ने उन्हें अपने बेटे और भतीजे को फिर से साथ देखने की इच्छा के बारे में बताया था, लेकिन यह एकदम असंभव लगने लगा है.

उन्होंने कहा, ‘आखिरकार, हमने दोनों भाइयों को एकजुट करने के अपने प्रयास बंद कर दिए. राज ठाकरे अपना राजनीतिक रुख बदलते रहे हैं, एक धर्मनिरपेक्ष विचार के साथ अपनी पार्टी को शुरू किया, फिर मराठी और अब हिंदुत्व की ओर बढ़ रहे हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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