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Saturday, 21 December, 2024
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राजस्थान: मोदी की लोकप्रियता की लड़ाई वसुंधरा की अलोकप्रियता से है

भाजपा के मुख्यमंत्री सत्ता में वापसी के लिए लड़ रहे हैं. वसुंधरा राजे की छवि सबसे ज्यादा ख़राब है. क्या मोदी की लोकप्रियता उनके लिए कारगार साबित हो सकती है?

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नई दिल्ली : राजस्थान के एग़्जिट पोल उन सभी सवालों का जवाब दे देंगे जिसका जवाब लोग जानना चाहते हैं. क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता वसुंधरा राजे को दोबारा सत्ता पर काबिज़ कराने में मदद करेगी.

जिन पांचों राज्यों में चुनाव हो रहे हैं, राजस्थान एक ऐसा राज्य है जहां पर मुख्यमंत्री की अलोकप्रियता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुडविल और समर्थन के बिलकुल विपरीत है.

शाम को आने वाले एग़्जिट पोल संकेत दे देंगे कि क्या लोग मोदी के नेतृत्व में भरोसा करेंगे या राजे को सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए वोट करेंगे.

हालांकि एक्जिट पोल प्री-पोल सर्वेक्षण के जैसे तुलनात्मक रूप से गलत साबित हुए हैं. लेकिन उनके पास बेहतर ट्रैक रिकॉर्ड होते हैं.

अलोकप्रिय वसुंधरा राजे

छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में उनके समकक्षों जैसे रमन सिंह और शिवराज सिंह चौहान ने भाजपा के लंबे शासन के साथ कथित सत्ता विरोधी लहर के बावजूद व्यक्तिगत लोकप्रियता को बनाये रखा है, वसुंधरा राजे की छवि को सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा है.

कृषि संकट, बेरोजगारी, खराब शासन, ख़राब जातिगत तालमेल और भाजपा में आंतरिक कलह ने उनकी समस्याओं को और ज्यादा बढ़ाया है.


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भाजपा का मूल मतदाता जिसने 2013 में 200 सीटों में से 162 जितवाने के लिए के लिए भाजपा के पक्ष में ऐतिहासिक मतदान किया था, वही मतदाता भी भाजपा से छिटकते नज़र आ रहे हैं. इस चुनाव में जाट और राजपूतों का एक बड़ा वर्ग बीजेपी के खिलाफ है, जबकि जातिगत तौर पर गुर्जर-बनाम-मीणा, जाट बनाम गुर्जर और जाट बनाम राजपूत जिन्होंने पिछले चुनाव में बीजेपी को समर्थन दिया था. इस बार वे भी भाजपा से अलग-थलग हुए हैं.

भाजपा का वैचारिक अभिभावक माने जाने वाले संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पार्टी का आधार है. ऐसे में भाजपा कार्यकर्ताओं के एक वर्ग ने देखा था कि कैसे वसुंधरा राजे ने राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के साथ भाजपा के राज्य इकाई अध्यक्ष पद की पसंद को लेकर मतभेद सबके सामने उजागर किये थे.

अब भी लोकप्रिय हैं मोदी

लोकप्रियता में गिरावट के बावजूद मोदी अभी भी लोगों में विश्वास पैदा करने में कामयाब हैं और उन्होंने राजस्थान में अपनी प्रभावशाली सभाओं के माध्यम से समझाया है.

हालांकि बेरोजगारों में असंतोष है. कृषि संकट को लेकर लोगों में रोष है. लोग मोदी को समर्थन देने को तैयार हैं लेकिन सारा दोष मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे पर मढ़ रहे हैं.

वसुंधरा राजे के शासन के खिलाफ असंतोष को दूर करने के लिए चिंतित भाजपा ने सांप्रदायिकता का साथ भी लिया. शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित कई अन्य नेताओं ने अपने अभियान में उत्तेजक भाषण दिये. लेकिन यह चुनावी नैरेटिव को बदलने में मदद नहीं करेंगे.

अन्य कारक

इन सब विषमताओं के बावजूद मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए भाजपा मोदी की लोकप्रियता पर दांव लगाएगी.

हालांकि भाजपा और कांग्रेस दोनों को आतंरिक विद्रोह का सामना करना पड़ा है. भाजपा ने कई सीटों पर कांग्रेस के खेल को ख़राब करने के लिए बागियों को उतारा है. कम से कम 6 सीटों पर कांग्रेस के बागी बहुत मज़बूत स्थिति में है और करीब 6 सीटों पर बागी खेल को और ख़राब करेंगे.


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कांग्रेस भाजपा सरकार के खिलाफ जाटों की नाराज़गी का फायदा उठाने की आशा कर रही थी. लेकिन पूर्व भाजपा विधायक हनुमान बेनीवाल के उदय ने इस लाभ को बेअसर कर दिया.

बेनीवाल ने राष्ट्रीय लोकतंत्रिक पार्टी बनाकर अपने 57 उम्मीदवारों को मैदान में उतार दिया. छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी और मायावती की तरह बेनीवाल भी शेखावटी क्षेत्र में 39 सीटों पर एक्स फैक्टर साबित हो सकते हैं.

इसी तरह छोटूभाई वसावा की भारतीय ट्राइबल पार्टी ने 11 सीटों पर उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. यह पार्टी दक्षिण राजस्थान के जनजातीय जिलों में दो मुख्य दलों की मतदान गणना को प्रभावित करेगी.

राहुल की दुविधा

कांग्रेस ने राजस्थान में अपने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा नहीं की, लेकिन दोनों दावेदारों राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अभियान शुरू होने के बाद एकजुट होकर काम किया.

जब 11 दिसंबर को नतीजे आएंगे. उसके बाद राजस्थान में धुआंधार प्रचार करने वाले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए यह चुनना मुश्किल हो सकता है कि अगर कांग्रेस की सत्ता में वापस होती है तो मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार कौन होगा.

पार्टी के पुराने नेता गहलोत के पक्ष में गुटबाजी कर रहे हैं पर राहुल गांधी के लिए युवा नेताओं को नज़रअंदाज़ करना मुश्किल है. युवा नेता ने पांच साल पहले दिल्ली से जाकर जयपुर में निरंतर आंदोलन कर पार्टी को जीवित रखा है.

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