नई दिल्ली : सूरत कोर्ट ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा 2019 में ‘मोदी उपनाम’ टिप्पणी पर मानहानि मामले में अपनी सजा पर रोक लगाने की याचिका खारिज कर दी है और निचली अदालत की सजा को बरकरार रखा है. यानि दो साल की राहुल की सजा को बरकरार रखा है.
बता दें कि गांधी ने अपनी सजा पर रोक लगाने के लिए इस अदालत में एक याचिका दायर की थी.
राहुल गांधी की सजा बरकरार रखे जाने पर कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता जयराम रमेश ने ट्वीट किया कि, “कानून के तहत हमारे लिए अभी भी कई विकल्प उपलब्ध है और इसके लिए हम और भी दरवाजे खटखटाएंगे.”
उन्होंने कहा कि राहुल गांधी की अपील पर शाम चार बजे डॉ मनु सिंघवी जानकारी देंगे.
We will continue to avail all options still available to us under the law. @DrAMSinghvi will brief the media on Rahul Gandhi's appeal at 4pm.
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) April 20, 2023
3 अप्रैल को, सूरत की सत्र अदालत ने मामले में अपने खिलाफ सजा पर रोक लगाने को लेकर फाइल की गई कांग्रेस नेता की याचिका पर जमानत दे दी थी. कांग्रेस नेता की सजा पर रोक लगाने की याचिका पर जमानत देते हुए अदालत ने शिकायतकर्ता प्रणेश मोदी और राज्य सरकार को भी तलब किया था. दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद 20 अप्रैल तक आदेश को सुरक्षित रख लिया गया था.
राहुल गांधी केरल के वायनाड से लोकसभा सांसद थे, लेकिन सूरत की निचली अदालत ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के विधायक प्रणेश मोदी द्वारा आईपीसी की धारा 499 और 500 (मानहानि) के तहत फाइल याचिका पर सुनवाई करते हुए 23 मार्च गांधी को 2 साल की सजा सुनई थी जिसके बाद डिस्क्वालीफाइड होने पर उनकी लोकसभा की सदस्यता चली गई थी.
गांधी ने 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान एक जनसभा को संबोधित करते हुए ‘मोदी’ सरनेम पर टिप्पणी की थी.
कर्नाटक के कोलार में अप्रैल 2019 में एक रैली में प्रधानमंत्री मोदी पर तंज कसते हुए राहुल गांधी ने कहा था कि ‘आखिर सारे चोरों का सरनेम मोदी ही क्यों होता है?’ उन्होंने यह बात भगोड़े ललित मोदी, नीरव मोदी के संदर्भ में कही थी.
सुप्रीट कोर्ट के 2013 में दिए गए एक फैसले के मुताबिक, उन्हें मिली सजा के बाद 24 मार्च को उनकी संसद की सदस्यता चली गई थी. इस नियम के तहत किसी भी सांसद या विधायक को अगर दो साल या उससे ज्यादा की सजा होती है तो उसकी सदस्यता खुद-ब-खुद चली जाती है.
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