चंडीगढ़: पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह पर्दे के पीछे से किसानों का आंदोलन खत्म कराने के लिए काम कर रहे हैं जबकि राहुल गांधी की अगुवाई में उनकी पार्टी हाईकमान ज़ोर-शोर से तीनों कृषि कानूनों को पूरी तरह रद्द कराने की, किसानों की मांग की हिमायत में लगा हुआ है.
मुख्यमंत्री ने कम से कम तीन शीर्ष सरकारी अधिकारियों- दो सीनियर भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारियों और एक कृषि विशेषज्ञ- को सिंघु बॉर्डर पर तैनात किया है ताकि आंदोलनकारी किसानों और उनके नेताओं के बीच उदारवादी आवाज़ों की शिनाख्त कर उनके साथ बातचीत कर सकें. वो चाहते हैं कि ये उदार वर्ग, कानूनों में बदलाव की केंद्र की पेशकश स्वीकार कर ले जिससे कि कानूनों को वापस लिए बिना उनकी शिकायतों और शंकाओं को दूर किया जा सके.
इन अधिकारियों को उसके कुछ ही समय बाद सिंघु बॉर्डर भेजा गया था जब मुख्यमंत्री पिछले महीने दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात करने के बाद लौटे थे.
मुलाकात के बाद, अमरिंदर ने पत्रकारों से कहा था, ‘मैंने इस मुद्दे पर अपनी सरकार के रुख को दोहराया है और मैंने उनसे (शाह) और किसानों से अनुरोध किया है कि इस मसले को जल्द सुलझा लें क्योंकि इससे मेरे सूबे की अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है और देश की सुरक्षा पर भी असर पड़ सकता है’.
गतिरोध खत्म करने की कोशिश में लगे अधिकारियों के अनुसार, शाह ने अमरिंदर को समझाने की कोशिश की, कि किसान आंदोलन के जारी रहने से पंजाब के लिए गंभीर नतीजे हो सकते हैं जिसका पहले ही एक ‘अशांत अतीत’ रहा है. बताया जाता है कि शाह ने गतिरोध खत्म करने में मुख्यमंत्री से सहयोग का आग्रह किया.
राहुल गांधी के विपरीत, जो इस आंदोलन में नरेंद्र मोदी सरकार पर हमला करने का एक अवसर देखते हैं, कहा जाता है कि पंजाब सीएम इस बात को समझ रहे हैं कि ये आंदोलन अब उनके लिए उतने फायदे का सौदा नहीं रहा है क्योंकि मौके का फायदा उठाने के लिए आम आदमी पार्टी (आप) भी मैदान में उतर आई है.
विधानसभा चुनावों में सिर्फ एक साल बचा है और सूत्रों का कहना है कि अमरिंदर ‘बेहद इच्छुक’ हैं कि ये मसला जल्दी से जल्दी सुलझ जाए चूंकि उन्हें डर है कि इससे सूबे में कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ सकती है.
सिंघु बॉर्डर पर तैनात एक आईपीएस अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, ‘हम यहां बॉर्डर पर पूरी तरह अनाधिकारिक रूप से तैनात हैं. हम किसानों और उनके नेताओं, दोनों से बात करने की कोशिश कर रहे हैं ताकि समझ सकें कि दरअसल वो चाहते क्या हैं और अपनी मांगों में वो कितनी कमी कर सकते हैं’.
उन्होंने आगे कहा, ‘हम यहां पर जो समझ पाए हैं वो ये है कि अब एक भीड़ है, जो (किसान) नेताओं की अगुवाई कर रही है, बजाय उल्टा होने के. और ये भीड़ अब तीनों कानूनों को वापस लिए जाने से कम, कुछ भी स्वीकार करने को तैयार नहीं है’.
फिलहाल दोनों पक्षों की ओर से गतिरोध बना हुआ है, चूंकि सोमवार को हुई सातवें दौर की बातचीत भी बेनतीजा खत्म हो गई. 8 जनवरी को एक और दौर की बैठक होने वाली है. पंजाब और हरियाणा के हज़ारों किसान, 28 नवंबर से दिल्ली की कई सीमाओं पर डेरा डाले हुए हैं.
सीएम के रुख ने उन्हें अपनी पार्टी से बिल्कुल अलग स्थिति में खड़ा कर दिया है.
राहुल गांधी की अगुवाई में कांग्रेस हाईकमान, कानूनों को वापस लेने की किसानों की मांग का समर्थन कर रहे हैं. गांधी लगातार किसानों के समर्थन में ट्वीट करते रहे हैं.
किसानों को MSP की लीगल गारंटी ना दे पाने वाली मोदी सरकार अपने उद्योगपति साथियों को अनाज के गोदाम चलाने के लिए निश्चित मूल्य दे रही है।
सरकारी मंडियां या तो बंद हो रही हैं या अनाज खरीदा नहीं जा रहा।
किसानों के प्रति बेपरवाही और सूट-बूट के साथियों के प्रति सहानुभूति क्यूँ?
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) January 3, 2021
पार्टी हाईकमान में सूत्रों का कहना है कि आंदोलन ने, जिसकी अगुवाई काफी हद तक पंजाब के किसान कर रहे हैं, पिछले छह सालों में शायद पहली बार, मोदी सरकार के लिए परेशानी खड़ी कर दी है और कांग्रेस चाहेगी कि उसकी ये परेशानी बनी रहे.
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अमरिंदर के लिए एक मुश्किल राह
सीएम अमरिंदर सिंह को, जिन्होंने अन्यथा किसानों का समर्थन किया है, अब अपने प्रांत में शांति बनाए रखने और आंदोलन के समर्थकों को किसी भी दूसरी दिशा में अपनी भड़ास निकालने की अनुमति देने के बीच, संतुलन बनाकर चलना पड़ रहा है.
अकेले पिछले एक हफ्ते में, दो घटनाएं हुई हैं जहां बीजेपी समर्थकों, जिनमें अधिकतर हिंदू थे और किसान आंदोलन का समर्थन करने वालों के बीच, जो ज़्यादातर सिख थे, लगभग झगड़े की नौबत आ गई थी.
शनिवार को, किसान आंदोलन के समर्थकों ने एक ट्रॉली में गाय का गोबर भरकर और उसे होशियारपुर में पूर्व कैबिनेट मंत्री तथा सीनियर बीजेपी नेता, तिक्शन सूद के घर में ले जाकर फेंक दिया. सूद के बहुत सारे समर्थकों ने, जो उस समय उनके घर पर थे, बीजेपी के समर्थन में नारेबाज़ी शुरू कर दी. भड़के हुए बीजेपी कार्यकर्ताओं के किसानों से टकराव को रोकने के लिए पुलिस को खासी मशक्कत करनी पड़ी.
पुलिस ने एक कड़ा संदेश देने की कोशिश की और शुरू में आंदोलनकारी किसानों के खिलाफ, हत्या के प्रयास का मामला दर्ज कर लिया. लेकिन उसके इस कदम की विपक्ष की ओर से कड़ी आलोचना की गई.
रविवार को, किसानों के एक समूह ने लुधियाना में प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष अश्वनी शर्मा के एक सार्वजनिक कार्यक्रम को बाधित करने की कोशिश की, जहां पुलिस ने फिर से कोशिश करके, किसानों और बीजेपी कार्यकर्ताओं के बीच, एक संभावित टकराव को टाल दिया. जब प्रदर्शनकारियों ने पुलिस से टकराने की कोशिश की, तो पुलिस ने कथित तौर पर उनपर लाठी चार्ज किया.
पुलिस कार्रवाई से गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने मंगलवार को सीएम का पुतला फूंका.
डीएवी कॉलेज चंडीगढ़ में राजनीति विज्ञान विभाग की प्रोफेसर, डॉ कंवलप्रीत कौर ने कहा कि मुख्यमंत्री पर इस समय हर तरफ से दबाव बढ़ता जा रहा है.
कौर ने कहा, ‘पिछले महीने जब सीएम गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर अपने राज्य में आए थे और ये बात की थी कि आंदोलन से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा पैदा हो सकता है, तब से ही वो अपने सूबे में बैकफुट पर हैं’.
उन्होंने आगे कहा, ‘अगर कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए, अब वो किसानों के खिलाफ कोई कार्रवाई करते हैं तो उन्हें सियासी रूप से नुकसान होगा. दिल्ली विरोध का एक-एक दिन, कांग्रेस को पंजाब में सियासी रूप से भारी पड़ रहा है’.
अमरिंदर के सामने पहले भी एक ऐसी ही कठिन परिस्थिति आई थी, जब किसान आंदोलन के समर्थकों ने पिछले महीने, राज्य में रिलायंस जियो टेलीकम्यूनिकेशन टावर्स को, नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया था. पहले उन्होंने एक अपील की, लेकिन जब उससे काम नहीं चला तो उन्हें चेतावनी जारी करनी पड़ी.
सीएम ‘टीम राहुल’ से खुश नहीं
कांग्रेस सूत्रों ने ये भी कहा कि मुख्यमंत्री सूबे के कुछ सांसदों से खुश नहीं हैं, जिन्हें ‘टीम राहुल’ का हिस्सा समझा जा रहा है और जो किसान आंदोलन की हिमायत कर रहे हैं लेकिन अमरिंदर के मुताबिक वो अनुचित बयानबाज़ी कर रहे हैं.
पिछले महीने, लुधियाना सांसद रवनीत बिट्टू, जिन्हें राहुत का करीबी समझा जाता है, ने एक मीडिया चैनल से कहा कि उनकी पार्टी, आखिर तक किसानों की लड़ाई लड़ेगी, भले ही इसमें ‘खून बहे’ और ‘लाशों के ढेर’ लग जाएं.
इस बयान की खूब आलोचना हुई, खासकर बीजेपी की ओर से, जिसने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि वो किसानों को अपना आंदोलन जारी रखने के लिए भड़का रही है.
एक अन्य कांग्रेस विधायक, जिन्हें ‘टीम राहुल’ का हिस्सा समझा जाता है, ने दिप्रिंट से कहा, ‘हां, इसमें कोई शक नहीं कि कैप्टन चाहेंगे कि किसान आंदोलन जल्दी से जल्दी खत्म हो जाए, चूंकि वो एक साल का चुनाव-पूर्व प्रचार अभियान शुरू करना चाहते हैं, जिसमें पहले ही देरी हो चुकी है. लेकिन मेरा मानना है कि जब तक किसानों की मांगें पूरी तरह नहीं मान ली जातीं, तब तक आंदोलन जारी रहना चाहिए’.
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