scorecardresearch
Friday, 3 May, 2024
होमराजनीतिरघुवर ने कायम रखी परंपरा गंवाई अपनी सीट, झारखंड में अब तक के सभी सीएम हार चुके हैं चुनाव

रघुवर ने कायम रखी परंपरा गंवाई अपनी सीट, झारखंड में अब तक के सभी सीएम हार चुके हैं चुनाव

रघुवर दास छठे ऐसे सीएम हैं, जिन्हें कभी न कभी विधानसभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ा है.

Text Size:

रांची: रघुवर दास 15725 वोट से चुनाव हार चुके हैं. बीजेपी के ही बागी उम्मीदवार सरकार में खाद्य आपूर्ति मंत्री रहे सरयू राय ने उन्हें कड़े मुकाबले में मात दे दी है. रघुवर दास छठे ऐसे सीएम हैं, जिन्हें कभी न कभी विधानसभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ा है. कह सकते हैं कि उन्होंने सीएम के हार की जो परंपरा झारखंड में है, उसे कायम रखा है.

रघुवर दास झारखंड के उन गिने चुने नेताओं में शामिल हैं, जिसने आज तक एक भी विधानसभा चुनाव नहीं हारा था. वह लगातार पांच बार चुनाव जीत चुके हैं. वह भी एक ही सीट जमशेदपुर पूर्वी से. पहली बार 1101 वोट तो आखिरी बार लगभग 70 हजार वोटों से जीत हासिल किया था. लेकिन, इस बार यह सिलसिला यहीं टूट गया है. जिस गुरूर की वजह से उन्होंने सरयू को टिकट नहीं दिया, उसी जिद ने आज रघुवर की लुटिया डुबो दी है.

बीजेपी के बागी नेता सरयू राय से नाक की लड़ाई लड़ रहे रघुवर भले राज्य में अपनी सरकार गंवा बैठे हैं. सरयू राय के अपनी परंपरागत सीट जमशेदपुर पश्चिमी से न लड़ने की घोषणा के साथ ही जमशेदपुर पूर्वी पूरे 81 विधानसभा में सबसे हॉट सीट बन गया था.

सरयू के यहां से लड़ने की घोषणा के साथ ही पीएम मोदी ने यहां रघुवर के पक्ष में सभा की, अमित शाह और जेपी नड्डा ने भी कार्यकर्ताओं संग बैठक की. मोदी ने कहा जहां कमल है, वहीं मोदी है. अमित शाह ने कहा कि नेता को नहीं देखना है, बस बीजेपी को वोट देना है. इधर इस लड़ाई में सरयू अकेले थे. हां ये अलग बात है कि इस बीच हेमंत सोरेन ने समर्थन की अपील कर दी. भीतरखाने अर्जुन मुंडा के लोगों ने भी सरयू की मदद की.

देश की राजनीति में भले ही झारखंड की वर्चस्व थोड़ी कम हो, लेकिन राज्य में हर बार राजनीतिक रूप से चौंकाने वाले परिणाम देता रहा है. इसे खास संयोग ही कह सकते हैं कि राज्य बनने के बाद जितने भी सीएम हुए हैं, सभी को कभी न कभी विधानसभा चुनाव में हार का सामना जरूर करना पड़ा है.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

इसमें सबसे अधिक पिछले विधानसभा चुनाव यानी 2014 में तीन पूर्व सीएम को हार का सामना करना पड़ा था. इसमें भारतीय जनता पार्टी के अर्जुन मुंडा, झारखंड मुक्ति मोर्चा के हेमंत सोरेन, झारखंड विकास मोर्चा के बाबूलाल मरांडी शामिल हैं.

साल 2001 में पहली बार बाबूलाल मरांडी राज्य के मुख्यमंत्री बने. पूरे 28 महीने तक वह सीएम रहे. इसके बाद बीजेपी छोड़ उन्होंने अपनी पार्टी झारखंड विकास मोर्चा बनाई. साल 2014 विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इस साल वह दो-दो सीटों पर किस्मत आजमा रहे थे. संयोग देखिये, दोनों ही सीटों पर हार गए. धनवार विधानसभा सीट पर भाकपा माले के राजकुमार यादव और गिरिडीह सीट पर बीजेपी के निर्भय शाहाबादी ने उन्हें मात दी. इससे पहले लोकसभा चुनाव 2014 में भी उन्हें दुमका से हार का सामना करना पड़ा.

अर्जुन मुंडा दो बार राज्य के मुख्यमंत्री बने. पहली बार बाबूलाल को पार्टी द्वारा हटाने पर साल 2003 में और फिर दूसरी बार साल 2009 में. लेकिन बीजेपी के इस कद्दावर आदिवासी नेता को भी पिछले विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. वह भी तब जब मोदी लहर पूरे राज्य में थी. 2014 में खरसांवा विधानसभा सीट से जेएमएम के दशरथ गगरई उर्फ कृष्णा गगरई ने हरा दिया था.

मोदी लहर में एक और पूर्व सीएम बह गए थे. जेल से बाहर आने के बाद मधु कोड़ा ने जय भारत समानता पार्टी बनाई. इसके बाद साल 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में मझगांव विधानसभा से वह खड़े हुए और मात खा बैठे. उन्हें जेएमएम के निरल पूर्ति ने हराया.


यह भी पढ़ें: झारखंड में भाजपा की नहीं मेरी हार, परिणाम का स्वागत करता हूं: रघुवर दास


झारखंड के दिशोम गुरू कहे जाने वाले जेएमएम के मुखिया शिबू सोरेन को भी हार का सामना करना पड़ा. वह भी सीएम रहते हुए. साल 2009 में वह सीएम बने. जिस वक्त सीएम बने, वह विधानसभा के सदस्य नहीं थे. नियमों के मुताबिक उन्हें शपथ लेने के छह महीन के भीतर विधानसभा का सदस्य बन जाना था. वह तमाड़ सीट पर हुए उपचुनाव में उतर गए. यहां झारखंड पार्टी के राजा पीटर ने उन्हें पटखनी दे दी. इसके बाद उन्हें सीएम की कुर्सी गंवानी पड़ी थी.

अपने पिता की तरह हेमंत ने भी राजनीतिक इतिहास दोहराया. सीएम रहते हुए उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा. साल 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में भी वह इस बार की तरह दो जगहों से चुनाव लड़ा था. दुमका और बरहेट विधानसभा सीट से. बरहेट से तो वह चुनाव जीत गए, लेकिन दुमका से बीजेपी की लुईस मरांडी ने उन्हें चारो खाने चित्त कर दिया था.

हालांकि, इस बार हेमंत दोनों ही सीटों से चुनाव जीत गए हैं. मधु कोड़ा चुनावी मैदान में नहीं थे. उनकी पत्नी कांग्रेस की सांसद हैं. शिबू सोरेन ने इस बार चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया था. अर्जुन मुंडा केंद्र सरकार में मंत्री और खूंटी से सांसद हैं. भीतरखाने यह चर्चा जरूरी रही कि वह अपनी पत्नी के लिए खरसावां से टिकट जरूर चाह रहे थे, जो कि नहीं मिला. हाल ये रहा कि खरसावां सीट से बीजेपी प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा है.

(लेखक झारखंड के स्वतंत्र पत्रकार हैं.)

share & View comments