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Wednesday, 20 November, 2024
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‘पार्टी की संभावनाओं पर सवाल’ — गुलाम नबी आज़ाद के J&K चुनाव प्रचार से दूर रहने की क्या है वजह

आज़ाद — जो पिछले दो साल से असामान्य रूप से अनिर्णायक रहे हैं — ने पिछले महीने खराब स्वास्थ्य का हवाला देते हुए DPAP अभियान को लगभग छोड़ दिया, जिसके बाद कई उम्मीदवारों ने अपना नाम वापस ले लिया था.

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जम्मू: गुलाम नबी आज़ाद ने अगस्त 2022 में कांग्रेस के साथ अपने पांच दशक लंबे संबंध को समाप्त कर दिया, सोनिया गांधी को विस्फोटक त्यागपत्र भेजा जिसमें उन्होंने कहा कि पार्टी ने लड़ने की अपनी “इच्छाशक्ति और क्षमता” खो दी है और एक संगठित इकाई के रूप में बरकरार रहने के लिए उसे तत्काल बदलाव करने की ज़रूरत है.

एक महीने बाद, उन्होंने अपनी खुद की पार्टी — डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आज़ाद पार्टी (DPAP) लॉन्च की — जिसके बारे में उन्होंने कहा कि यह लोकतांत्रिक तरीके से काम करेगी और महात्मा गांधी के आदर्शों को कायम रखेगी. उनके साथ कांग्रेस के कई क्षेत्रीय दिग्गज खड़े थे, जो पलायन के झटके से लड़खड़ा रहे थे.

अब, जब DPAP जम्मू और कश्मीर में अपना पहला विधानसभा चुनाव लड़ रही है, आज़ाद के सामने वही सवाल हैं जो उन्होंने कभी अपनी पूर्व पार्टी के सामने रखे थे. लड़ने की उनकी अपनी “इच्छाशक्ति और क्षमता” पर संदेह किया जा रहा है, जिससे उनका दुर्जेय राजनीतिक करियर दोराहे पर आ गया है और सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि आखिर उन्होंने अपने हाथ क्यों खड़े कर दिए?

तकनीकी रूप से बेशक, डीपीएपी का नेतृत्व आज़ाद कर रहे हैं, जो 12 सितंबर से जम्मू और कश्मीर संभागों में फैले पार्टी के 22 उम्मीदवारों के लिए प्रचार कर रहे हैं. डीपीएपी के मुख्य प्रवक्ता सलमान निज़ामी ने दिप्रिंट को बताया, “हम जिन सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं, उनमें से कम से कम 70 प्रतिशत जीतने का लक्ष्य बना रहे हैं.”

हालांकि, राजनीतिक पर्यवेक्षक चुनावों में पार्टी की संभावनाओं के बारे में उतने आशान्वित नहीं हैं, एक ऐसा दृष्टिकोण जिसे डीपीएपी के अंदरूनी लोग भी निजी तौर पर साझा करते हैं.

जम्मू विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान की पूर्व प्रोफेसर रेखा चौधरी ने दिप्रिंट को बताया, “उन्होंने अपनी पार्टी को बहुत सद्भावना के साथ लॉन्च किया था, लेकिन नेताओं को बनाए रखने में उनकी असमर्थता, अनिर्णय और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के प्रतिनिधि होने के टैग ने उन्हें नुकसान पहुंचाया है. प्रक्रिया के दौरान उन्होंने वह सद्भावना खो दी है.”

लंबे करियर में अपनी तेज़ तर्रार राजनीतिक सोच के लिए प्रसिद्ध आज़ाद ने पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य के मुख्यमंत्री से लेकर केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह बनाने से लेकर राज्यसभा में विपक्ष के नेता जैसे कई उच्च पदों पर काम किया है. पिछले दो सालों में आजाद अपनी आदत के विपरीत अनिर्णायक रहे हैं.

डीपीएपी के गठन के तीन महीने के भीतर ही आज़ाद ने पूर्व उपमुख्यमंत्री तारा चंद, पूर्व विधायक बलवान सिंह और पूर्व मंत्री मनोहर लाल शर्मा को पार्टी से निकाल दिया था. ऐसी खबरें आई थीं कि वे राहुल गांधी की अगुवाई में श्रीनगर में होने वाली ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में शामिल होने की योजना बना रहे हैं. यात्रा के बाद डीपीएपी के कई अन्य नेता कांग्रेस में वापस चले गए.

2024 के लोकसभा चुनावों से पहले डीपीएपी ने घोषणा की थी कि आज़ाद अनंतनाग-राजौरी निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगे. कुछ दिनों बाद, आज़ाद ने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली और बाद में दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में अपने फैसले को जम्मू-कश्मीर के लोगों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता से पीछे हटने की अनिच्छा के लिए जिम्मेदार ठहराया कि वह राष्ट्रीय राजनीति में लौटने के बजाय उनकी सेवा करेंगे.

डीपीएपी के सभी तीन उम्मीदवार बुरी तरह हार गए, उनकी ज़मानत तक जब्त हो गई, पार्टी एक भी विधानसभा क्षेत्र में बढ़त लेने में विफल रही. इसके बाद डीपीएपी से पलायन का एक और दौर शुरू हुआ, जिसमें ताज मोहिउद्दीन और हारून खटाना जैसे प्रमुख नाम पार्टी छोड़ कर चले गए.

महीनों बाद, जब जम्मू-कश्मीर एक दशक के बाद पहली बार विधानसभा चुनावों के लिए तैयार हो रहा है, जिसमें अनुच्छेद-370 के तहत उसका विशेष दर्जा छीन लिया गया और उसे केंद्र शासित प्रदेश में बदल दिया गया, तो आज़ाद ने पिछले महीने खराब स्वास्थ्य का हवाला देते हुए डीपीएपी अभियान को लगभग छोड़ दिया.

उन्होंने एक बयान में कहा, “अप्रत्याशित परिस्थितियों ने मुझे अभियान से पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया है…उम्मीदवारों को यह आकलन करना चाहिए कि क्या वह मेरी उपस्थिति के बिना आगे बढ़ सकते हैं. अगर उन्हें लगता है कि मेरी अनुपस्थिति से उनकी संभावनाओं पर असर पड़ेगा, तो उन्हें अपनी उम्मीदवारी वापस लेने की स्वतंत्रता है.” डीपीएपी के चार उम्मीदवारों ने तुरंत नाम वापस ले लिया.

एक हफ्ते बाद आज़ाद ने घोषणा की कि वे “बेहतर महसूस कर रहे हैं” और अपना अभियान फिर से शुरू करेंगे. डीपीएपी महासचिव (संगठन) आरएस चिब, जो पार्टी नहीं छोड़ने वाले कुछ प्रमुख चेहरों में से एक हैं, ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा कि आज़ाद को दिल की बीमारी के कारण अभियान से बाहर होना पड़ा.

चिब ने कहा, “यह सच में एक झटका था, लेकिन एक बार जब वे बेहतर महसूस करने लगे, तो वे फिर से अभियान में शामिल हो गए. पिछले दो हफ्तों में उन्होंने जम्मू के चिनाब क्षेत्र में बड़े पैमाने पर प्रचार किया है. उन्होंने उत्तर और दक्षिण कश्मीर में भी प्रचार किया. चुनाव के अंतिम चरण से पहले, वे सुचेतगढ़, सांबा और बानी जैसी शेष सीटों पर प्रचार करेंगे.”

‘भाजपा के छद्म लेबल से छुटकारा नहीं’

हालांकि, डीपीएपी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने एक अलग दृष्टिकोण साझा किया.

नेता ने कहा, “लोकसभा चुनाव आज़ाद साहब के लिए एक चेतावनी थी. वे भाजपा के छद्म होने के लेबल से छुटकारा नहीं पा सके. उन्हें एहसास हुआ कि अगर उन्होंने विधानसभा चुनाव भी उतने ही आक्रामक तरीके से लड़ा होता, तो डीपीएपी द्वारा भाजपा विरोधी वोटों को विभाजित करने के लिए ओवरटाइम काम करने की धारणा पुख्ता हो जाती. वे अपने गृह क्षेत्र चिनाब में अपना आधार खोने का जोखिम नहीं उठा सकते थे. यही कारण है कि उनके पद छोड़ने की घोषणा के तुरंत बाद, चिनाब क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे डीपीएपी के चार उम्मीदवारों ने अपना नाम वापस ले लिया, जिसमें भद्रवाह से एक उम्मीदवार भी शामिल था, जिसका प्रतिनिधित्व उन्होंने 2005 और 2008 के बीच सीएम रहते हुए विधायक के रूप में किया था.”

चौधरी ने कहा कि आम चुनावों में मिली हार ने आज़ाद के मनोबल को काफी कम कर दिया होगा. उन्होंने कहा, “एक राष्ट्रीय नेता से, वे एक क्षेत्र, चिनाब के नेता तक सीमित हो गए हैं. भाजपा के साथ उनके कथित जुड़ाव ने उन्हें बहुत नुकसान पहुंचाया. उन्होंने अपने मामले में कोई मदद नहीं की, क्योंकि उनके सभी भाषणों में कांग्रेस ही उनकी आलोचना का केंद्र बिंदु थी.”

चिब ने यह भी माना कि भाजपा के प्रतिनिधि होने के टैग ने डीपीएपी को कमजोर कर दिया. उन्होंने कहा, “इसके अलावा, यह तथ्य कि लोग उन्हें कांग्रेस के हाथ के चिह्न से जोड़ते रहे, ने हमें नकारात्मक रूप से प्रभावित किया. इसलिए मुझे लगता है कि डीपीएपी को लोकसभा चुनाव में जम्मू सीट से भी चुनाव लड़ना चाहिए था. इससे डीपीएपी के चिह्न के बारे में जागरूकता फैलाने में मदद मिलती.”

डीपीएपी, जिसे चुनाव आयोग ने बाल्टी चुनाव चिह्न दिया था, ने संसदीय चुनावों में अनंतनाग-राजौरी, श्रीनगर और उधमपुर सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. डीपीएपी के एक उम्मीदवार जीएम सरूरी अब निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं.

डीपीएपी के एक अन्य पदाधिकारी ने कहा, “सार्वजनिक रूप से वे आज़ाद साहब के प्रति अपनी निरंतर वफादार हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि वे सभी जानते थे कि डीपीएपी के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने से उन्हें भाजपा के सहयोगी होने का बोझ उठाना पड़ेगा.”

हालांकि, चिब ने दावा किया कि डीपीएपी छोड़ने वाले ज़्यादातर लोग कांग्रेस के बहकावे में आ गए थे. उन्होंने बताया, “कांग्रेस ने उन्हें टिकट देने का वादा किया था, लेकिन उनमें से एक भी कांग्रेस से चुनाव नहीं लड़ पाया.”

उन्होंने कहा कि आज़ाद पर गलत तरीके से आरोप लगाए जा रहे हैं, “जो योग्यता के आधार पर चुनाव लड़ते हैं” क्योंकि किसी पार्टी या व्यक्ति के खिलाफ ज़रूरत से ज़्यादा आक्रामक होना उनके स्वभाव में नहीं है.

चिब ने कहा, “इसलिए उन्हें भाजपा के प्रति नरम रुख़ रखने वाले व्यक्ति के रूप में ब्रांड किया जाता है और एनसी और कांग्रेस जैसी पार्टियां उन्हें राजनीतिक ख़तरा मानकर ऐसा प्रचार करती हैं.”

उक्त डीपीएपी नेता ने कहा कि राहुल गांधी ने डीपीएपी छोड़ने वाले ज़्यादातर लोगों को कांग्रेस में शामिल होने से रोका.

नेता ने कहा, “दोनों (राहुल और आज़ाद) के बीच इतनी कटुता है.”


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‘सीमित सीटों पर केंद्रित अभियान’

विधानसभा चुनाव में जिसमें निज़ामी के अनुसार DPAP ने 22 उम्मीदवार उतारे, केवल दो प्रमुख नाम हैं अब्दुल मजीद वानी, जो डोडा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं और मोहम्मद अमीन भट जो देवसर निर्वाचन क्षेत्र से हैं.

DPAP के एक नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “पार्टी जानती है कि वो इन दो सीटों के अलावा कहीं और चुनाव नहीं लड़ रही है और शायद बानी, सुचेतगढ़, अनंतनाग जैसी जगहों पर दो से तीन और सीटें हैं. यह दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि उनके (आज़ाद) जैसे नेता जम्मू और कश्मीर के विकास के लिए मील का पत्थर साबित हो सकते थे.”

चौधरी ने यह भी कहा कि आज़ाद जम्मू और कश्मीर में एक दुर्लभ राजनीतिक चेहरा हैं, जिन्हें जम्मू और कश्मीर दोनों के लोग काफी मानते हैं. उन्होंने कहा, “जम्मू में गैर-डोगरा और मुस्लिम चेहरे को अच्छी तरह से स्वीकार किया जाना दुर्लभ है. कांग्रेस से उनका बाहर होना एक पार्टी और साथ ही उनके लिए भी एक नुकसान था.”

निज़ामी ने आज़ाद के कम शोर वाले अभियान के बारे में सिद्धांतों को खारिज करते हुए कहा कि यह पार्टी द्वारा “सीमित सीटों पर केंद्रित अभियान” लड़ने के लिए लिया गया एक सचेत निर्णय था.

निज़ामी ने कहा, “अगर लोग भाजपा के टैग से बचने के लिए डीपीएपी से चुनाव लड़ने से बचते, तो हम दक्षिण कश्मीर में उम्मीदवार क्यों रखते? इसके बजाय, लोगों को यकीन है कि यह एनसी है जिसका भाजपा के साथ समझौता है. एनसी ने अपने गठबंधन सहयोगी कांग्रेस के खिलाफ निर्दलीय के रूप में मैदान में उतरे पार्टी के नेताओं में से एक को भी निष्कासित नहीं किया है. अगली सरकार डीपीएपी के बिना नहीं बनेगी.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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