पटना: अभी सुबह का वक्त है. मधुबनी से बिस्फी जाने के रास्ते के बीच जीरोमाइल चौराहे के बाद बिस्फी विधानसभा का क्षेत्र शुरू होता है. इसके आगे बढ़ने पर नज्जाम चौक में एक चाय की दुकान दिखती है. अगर इस दुकान के साइज को आधार माना जाए तो जितने लोग दिखते हैं, उस हिसाब से इसे हाउसफुल कहा जा सकता है. इस चौक के आस-पास मुसलमानों की आबादी अधिक है, इसलिए चाय पीने वाले अधिकांश लोग इसी समुदाय के हैं.
आम तौर पर माना जाता है कि बिहार में राजनीति की सबसे अधिक चर्चा चौक-चौराहे की चाय और पान की दुकानों पर होती है. अगर चुनावी मौसम हो तो ये चर्चा लगातार चलती रहती है. साथ ही, यहां हर व्यक्ति चुनावी विश्लेषक की भूमिका में होता है.
इनसे हम पूछते हैं, ‘इस बार चुनाव कैसा चल रहा है? इस पर पेशे से कारोबारी इब्जूल रहमान कहते हैं, ‘इस बार तो 1990 जैसा लहर है. महागठबंधन लीड कर रहा है.’ इसके बाद जब हम उनसे पूछते हैं कि यहां उम्मीदवार कितने हैं और कौन-कौन रेस में है? इस पर वे कहते हैं, ‘उम्मीदवार तो बहुत है, लेकिन दो ही टक्कर में हैं- राजद से डॉ. फैयाद अहमद और भाजपा के हरिभूषण ठाकुर.’
हमारे ये पूछने पर की इनके अलावा और कोई नहीं है, रेस में? इस पर वहां मौजूद कुछ लोग एक साथ बोल पड़ते हैं, ‘और कौन है, रेस में ! कोई नहीं है.’
‘पुष्पम प्रिया चौधरी भी तो हैं, यहां से उम्मीदवार.’ हम कहते हैं.
इस सवाल पर सभी ग्रामीण एक-दूसरे का मुंह ताकने लगते हैं.
फिर हमारे ये कहने पर कि एक महिला हैं, जो लंदन से पढ़कर आई हैं. काले कपड़ों में दिखती हैं. वह भी तो यहीं से लड़ रही हैं न?
इस पर 22 साल के अब्दुल हन्नान कहते हैं, ‘अरे….वो चेस वाली (शतरंज छाप चुनाव चिन्ह)’ हमारे ‘हां’ कहने पर एक स्थानीय जनप्रतिनिधि – लाल बाबू कहते हैं, ‘पहले कोई नहीं जानता था, उसको. पिछले एक हफ्ते से जाने हैं. हमको तो ये भी नहीं पता कि वे खुद यहां से उम्मीदवार हैं या नहीं.’
इन स्थानीय मतदाताओं का कहना है कि वे इस क्षेत्र में कभी नहीं आई हैं और न ही उनकी पार्टी का कोई कार्यकर्ता दिखता है. इस इलाके में कभी-कभी केवल एक प्रचार गाड़ी दिखती है.
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बिस्फी विधानसभा
मधुबनी जिले स्थित बिस्फी विधानसभा ऐतिहासिक और राजनीतिक नजरिए काफी महत्वपूर्ण है. यह 14 वीं शताब्दी के कवि ‘मैथिल कोकिल’ विद्यापति की जन्मस्थली रही है. वहीं, राजनीति की बात करें तो यहां के मतदाताओं ने सीपीआई के नेता राजकुमार पूर्बे को दो बार (1977 और 1980) और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डॉ. शकील अहमद को तीन बार (1985,1990 और 2000) चुनकर बिहार विधानसभा भेजा है. इनके अलावा साल 1995 के चुनाव में सीपीआई के रामचंद्र पासवान ने भी यहां से जीत दर्ज की है.
वहीं, मौजूदा राजद विधायक डॉ. फैयाज अहमद 2010 से इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. उनकी चुनावी लड़ाई भाजपा के हरिभूषण ठाकुर से है, जिन्होंने साल 2005 के दोनों चुनावों (फरवरी और अक्टूबर) में बतौर निर्दलीय उम्मीदवार जीत दर्ज की थी. माना जाता है कि इस सीट पर ‘एमवाई’ (मुसलमान-यादव) समीकरण काम करता है. ये दोनों जिसके पक्ष में हो तो उसकी जीत करीब-करीब तय मानी जाती है. हालांकि, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की परिस्थिति बनने पर ये समीकरण काम नहीं करता.
बिस्फी सीट की लड़ाई में पुष्पम प्रिया चौधरी कहां हैं?
प्लूरल्स पार्टी की प्रमुख पुष्पम प्रिया चौधरी ने बिहार विधानसभा चुनाव-2020 के लिए दो सीटों पर नामांकन किया है. इसमें एक सीट पटना का -बांकीपुर पर है जहां दूसरे चरण के तहत मतदान हो चुका है. अब उनकी नजरें बिस्फी विधानसभा सीट पर है, जहां आखिरी चरण के तहत सात नवंबर को मतदान होना है. पुष्पम प्रिया चुनाव प्रचार खत्म होने के ठीक एक दिन पहले यानी बुधवार को बिस्फी पहुंची. इससे पहले वे बांकीपुर विधानसभा क्षेत्र में भी सक्रिय रूप से चुनाव प्रचार नहीं कर पाई थी. इस बात को उन्होंने ट्विटर पर साझा किया था.
अभी तक बांकीपुर पहुँच नहीं पायी हूँ क्योंकि बिहार मुझे छोड़ नहीं रहा है। दूसरे चरण प्रचार के अंतिम 24 घंटे! जहां नहीं पहुँच पायी वहाँ घर-घर जाकर मेरी ओर से माफ़ी माँग लें और मेरा संदेश दें कि मैं हर घर आऊँगी लेकिन बिहार में बदलाव का यह मौक़ा हाथ से न जाने दें। #ChooseProgress pic.twitter.com/wctJsywKwC
— Pushpam Priya Choudhary (@pushpampc13) October 31, 2020
बिस्फी बाजार के 80 वर्षीय सत्यनारायण महतो बताते हैं, ‘वे नामांकन के लिए एक दिन आई थीं. केवल पांच मिनट रुकी होंगी. इसके बाद उन्हें कभी नहीं देखा. यहां पर न तो उनका पार्टी ऑफिस है और न ही कोई कार्यकर्ता. यहां से वह क्यों लड़ रही है, हमें ये भी नहीं पता.’
वहीं, नज्जाम चौक पर लाल बाबू कहते हैं, ‘उनका अलग स्टाइल में फोटो आता है और इसमें वह बिहार की लगती भी नहीं हैं. जहां तक चुनाव लड़ने की बात है, तो उनमें राजनीतिक तजुर्बा भी नहीं है. अगर उनकी पार्टी की प्रचार गाड़ी आती भी है तो कहीं रूकती नहीं है. मतदाताओं के साथ कोई संवाद नहीं होता है. वह (पुष्पम प्रिया) चुनाव जीतने नहीं आई हैं, केवल अपनी छवि बनाने आई हैं.’
इनके अलावा बिस्फी विधानसभा क्षेत्र के मढ़िया गांव में रहने वाले किसान रघुनाथ ठाकुर का भी कहना है, ‘पुष्पम का यहां से कोई जुड़ाव नहीं है. वह केवल कल्पना कर रही हैं, खुद के मुख्यमंत्री बनने का. शायद केवल नाम कमाने के लिए विदेश से यहां (बिहार) आई होंगी.’
उधर, जब हमने बिस्फी विधानसभा क्षेत्र के अलग- अलग क्षेत्रों में मतदाताओं से बात की तो जो मुख्य बातें सामने आईं वह ये हैं कि -अधिकांश मतदाता पुष्पम प्रिया चौधरी को नहीं जानते. कई मतदाताओं को ये भी नहीं मालूम है कि वे बिस्फी के चुनावी मैदान में हैं.
– उनकी पार्टी ‘प्लूरल्स’ का नाम नहीं ले पाते और कुछ लोग चुनाव चिन्ह से उनको जानते हैं.
-पुष्पम प्रिया चौधरी बिस्फी से विधानसभा से चुनाव क्यों लड़ रही है, इसके बारे में मतदाताओं को कुछ भी नहीं पता.
हालांकि, विद्यापति जन्मस्थली विकास समिति –बिस्फी के अध्यक्ष चंद्रेश्वर प्रसाद चंद्रेश कहते हैं, ‘जब वे नामांकन के लिए यहां आई थीं तो हमने उनसे सवाल किया था कि आप यहां से चुनाव क्यों लड़ रही हैं, इस पर उन्होंने जवाब दिया था कि ये विद्यापति जी की जन्मभूमि है इसलिए. इसके अलावा और कुछ नहीं कहा.’
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पुष्पम प्रिया अपने पैतृक गांव से क्यों नहीं लड़ रही हैं?
बिहार में नई धारा की राजनीति की बात करने वाली प्लूरल्स पार्टी की प्रमुख पुष्पम प्रिया चौधरी का पैतृक गांव दरभंगा जिला स्थित बिशनपुर है. यह हायाघाट विधानसभा क्षेत्र में है. लेकिन उन्होंने इस सीट को छोड़कर यहां से करीब 70 किलोमीटर दूर मधुबनी के बिस्फी को चुना है.
‘अब वे यहां से क्यों नहीं लड़ रही हैं, ये तो हम नहीं जानते हैं. हम तो अजय चौधरी (पुष्पम के चाचा) और उमाकांत चौधरी (पुष्पम के दादा) को जानते हैं. उनके पिता जी- विनोद चौधरी जदयू से एमएलसी (विधान परिषद सदस्य) रहे हैं. उनके दादा उमाकांत चौधरी भी 1990 के आस-पास यहां से विधानसभा का चुनाव लड़े थे, लेकिन जिन्होंने उनका खाया, उन्होंने ही उन्हें वोट नहीं दिया.’ बिशनपुर में राशन की दुकान चला रहे पिंटू कुमार चौधरी कहते हैं.
वे आगे हमें बताते हैं कि उन्होंने पहली बार पुष्पम का नाम तो पेपर के विज्ञापन (आठ मार्च, 2020) में ही देखा था. विनोद कहते हैं, ‘हम सब केवल इतना जानते थे कि विनोद जी को दो लड़कियां हैं. इसके अलावा कुछ नहीं जानते. गांव में रहेगी तब न नाम जानेंगे. विशेष मौके पर गांव आती हैं.’
वहीं, बिशनपुर स्थित पुष्पम प्रिया के पैतृक घर में हमारी मुलाकात उनके चाचा- बसंत कुमार चौधरी और उनके परिवार के अन्य सदस्यों से होती हैं. बसंत चौधरी हायाघाट स्थित एक प्राइवेट कॉलेज में क्लर्क हैं.
वे हमें बताते हैं, ‘पुष्पम के चुनाव लड़ने के बारे में अखबार के विज्ञापन से ही पता चला था. इससे पहले परिवार में इस बारे में कोई चर्चा, सलाह-मशविरा नहीं हुई थी. इस साल फरवरी में गांव आई थी तो भी इस बारे में कोई बात नहीं हुई थी.’ इसके आगे बसंत कुमार चौधरी इस बात पर खुशी जाहिर करते हैं कि पुष्पम प्रिया मेहनत करके चुनाव लड़ रही हैं.
वहीं, जब हमने पुष्पम प्रिया के चचेरे भाई- सौरव चौधरी से पूछा कि आप लोग अपनी दीदी के चुनावी प्रचार अभियान में शामिल नहीं हैं या मदद नहीं कर रहे हैं? उनका कहना था, ‘हम चुनाव प्रचार में साथ नहीं गए हैं. हम लोगों को अपना पढ़ाई भी देखना है और फिर हमारा करियर भी है. हमलोग कार्यकर्ता की तरह नहीं हैं. हम सामने आने की जगह बैकग्राउंड में काम कर रहे हैं.’
दूसरी ओर, पिंटू कुमार चौधरी हमें बताते हैं कि पुष्पम के चाचा- अजय चौधरी बेनीपुर सीट से चुनाव लड़ रहे हैं और हम लोग अपने खर्च पर उनके लिए प्रचार कर रहे हैं. ये पूछने पर कि पुष्पम भी इसी गांव की ही हैं, आप सब चुनावी अभियान में उनकी मदद नहीं कर रहे हैं?
उन्होंने कहा, ‘आप हमें प्रचार करने के लिए कहेंगे तब न करेंगे. जब आप यहां आएंगे और घर-घर जाकर पकड़ बनाएंगे, तो न होगा. आप आए और तुरंत यहां से चले गए. गांव के लोगों से मदद भी नहीं मांगी तो आज के दिन में किसके पास समय है.’
हालांकि, पिंटू आगे कहते हैं कि वे शिक्षित और योग्य हैं और भविष्य में उनसे हमारी उम्मीदें भी हैं. इसके अलावा वे इस बात को भी अफवाह बताते हैं कि पुष्पम के पीछे किसी नेता या फिर पार्टी का हाथ है और वह किसी का वोट काटने के लिए चुनाव लड़ रही हैं.
वहीं, पिंटू की तरह गांव के दूसरे लोग भी पुष्पम के बारे में अधिक कुछ नहीं जानते हैं. गांव के मजदूर जगन्नाथ दास कहते हैं, ‘हमलोगों को उसके बारे में कुछ नहीं मालूम है. हमलोग तो उनको पहचानते भी नहीं हैं. जो गांव में रहता है, उसी को हम लोग जानते हैं. जो गांव के हैं लेकिन यहां नहीं रहते हैं और सीधे चुनाव में आ जाए तो उसे वोट कैसे मिलेगा? लोग हमको जानेगा तो न वोट देगा.’
दूसरी ओर, बसंत कुमार चौधरी हमें बताते हैं, ‘चुनाव लड़ने के एलान से पहले पुष्पम यहां के समाज ही नहीं, बल्कि हमारे परिवार में भी फेस नहीं थी.’
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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