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Friday, 22 November, 2024
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विरोध प्रदर्शन और लाठीचार्ज- क्यों तेजी के साथ AAP सरकार से पंजाब के किसानों का हो रहा है मोहभंग

जीरा स्थित शराब कारखाने के खिलाफ जताया जा रहा विरोध मान सरकार और पंजाब के किसानों, जो मार्च 2002 में हुई आप की शानदार जीत के प्राथमिक उत्प्रेरक थे, के बीच बढ़ती दरार का एक और उदाहरण है.

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चंडीगढ़: पंजाब में भगवंत मान सरकार के सत्ता में आने के एक साल से भी कम समय में आम आदमी पार्टी (आप) का पंजाब के किसानों के साथ हनीमून वाला दौर खत्म होता नजर आ रहा है.

पिछले साल मार्च में पंजाब में आप की शानदार जीत के प्रमुख उत्प्रेरकों में से एक माने जाने वाले पंजाब के किसान पिछले कुछ महीनों से विभिन्न कारणों से मान सरकार के खिलाफ खड़े रहें हैं. प्रदर्शनकारियों का दावा है कि सरकार जिस तरह से उनकी समस्याओं से निपट रही है उससे उनका पूरी तरह से मोहभंग हो गया है.

इस बीच, पंजाब के कृषि मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल ने गुरुवार को एक प्रेस बयान जारी करते हुए मार्च 2022 में सत्ता संभालने के बाद से मान सरकार द्वारा लिए गए विभिन्न ‘किसान समर्थक फैसलों’ की सूची पेश की. इस प्रेस कॉन्फ्रेंस (संवाददाता सम्मेलन) में, धालीवाल ने यह बताने पर काफी सारा जोर दिया कि कैसे उनकी सरकार मूंग दाल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) लेकर आई, साल 2020-2021 में हुए किसान आंदोलन के दौरान मरने वाले किसानों के परिजनों को नौकरी दी और राज्य में पराली जलाए जाने को कम किया.

यह बयान फ़िरोज़पुर की ज़ीरा तहसील के मंसूरवाल गांव स्थित मालब्रोस इंटरनेशनल लिमिटेड के पास जमा प्रदर्शनकारियों को शांत करने का एक प्रयास प्रतीत होता है. मुख्य रूप से किसान यूनियनों द्वारा संचालित इस विरोध ने दिसंबर में अपने पांचवें महीने में प्रवेश किया. इस मामले में प्रदर्शनकारियों ने मालब्रोस कारखाने को बंद करने की मांग की और उनका दावा है कि यह उनकी मिट्टी, हवा और भूजल को प्रदूषित करने के लिए जिम्मेदार है.

हालांकि, धालीवाल के बयानों के बावजूद किसान अप्रभावित लग रहे हैं.

भारतीय किसान यूनियन (क्रांतिकारी), जो वर्तमान में चल रहे जीरा सांझा मोर्चा वाले प्रदर्शन का एक हिस्सा है, के प्रमुख सुरजीत सिंह फूल ने कहा, ‘यह स्पष्ट है कि आप ने जो कुछ वादा किया था और जिसे वे पूरा कर रहे हैं, उसमें बहुत बड़ा अंतर है.’

बीकेयू (क्रांतिकारी) ज़ीरा में चल रहे विरोध प्रदर्शन में शामिल एकमात्र किसान संघ नहीं है. संयुक्त किसान मोर्चा, कई किसान संघों का वह गठबंधन जिसने अब निरस्त हो चुके कृषि कानूनों के खिलाफ साल भर तक चले विरोध प्रदर्शनों की अगुवाई की थी, भी इसका हिस्सा है.

क्यों खफा हैं पंजाब के किसान?

ग्रामीणों द्वारा जीरा स्थित मालब्रोस फैक्ट्री गेट के बाहर धरना दिए जाने के बाद से यह फैक्ट्री 24 जुलाई से ही बंद है.

इन विरोध प्रदर्शनों के कारण किसानों का राज्य सरकार के साथ टकराव भी हुआ है – इस महीने लगातार तीन दिनों तक प्रदर्शनकारी उस वक्त पंजाब पुलिस से भिड़ गए थे,  जब उन्हें विरोध स्थल से जबरन हटाने का प्रयास किया गया था.

कई प्रदर्शनकारियों पर मामला दर्ज किये जाने और कि उनसे तीखी झड़प के बाद उन्हें हिरासत में लिए जाने के बाद, किसान संघों ने प्रदर्शनकारियों की संख्या और बढ़ा दी, जिससे पुलिस को उन पर लाठीचार्ज करना पड़ा.

पंजाब सरकार ने यह कहते हुए इस लाठीचार्ज को सही ठहराया कि वह फैक्ट्री के गेट के बाहर से इन प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए दिए गए पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेशों का पालन कर रही थी.

हालांकि, प्रदर्शनकारियों का कहना है कि वे तब तक वहां से नहीं हिलेंगे, जब तक कि यह फैक्ट्री बंद नहीं हो जाती. पंजाबी गायक जगदीप रंधावा, जो गुरुवार को ज़ीरा विरोध स्थल पर गए थे, ने कहा कि वह कभी मान और आप के कट्टर समर्थक हुआ करते थे, लेकिन वह इस बात से ‘हैरान’ हैं कि अब राज्य किस तरह से यहां के लोगों को बेवकूफ बना रही है.

उन्होंने कहा, ‘आप नेता वास्तविक मुद्दों पर केवल तभी तक बात कर रहे थे, जब तक वे सत्ता में नहीं थे. सत्ता में आने के बाद से वे उन सभी पार्टियों की तरह ही व्यवहार कर रहे हैं जिन्होंने पंजाब को लूटा है.’

प्रदर्शनकारी किसानों को नाराज करने वाला एकमात्र मुद्दा पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई ही नहीं है. उन्होंने मान सरकार पर फैक्ट्री मालिक और शराब के बड़े कारोबारी दीप मल्होत्रा का पक्ष लेने का भी आरोप लगाया.

शिरोमणि अकाली दल के पूर्व विधायक रहे मल्होत्रा को अब आप के दिल्ली स्थित शीर्ष नेतृत्व का करीबी माना जाता है. पिछले साल अक्टूबर में, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने दिल्ली आबकारी नीति घोटाले की चल रही जांच के तहत पंजाब स्थित उनके दो परिसरों पर छापा भी मारा था.

प्रदर्शनकारियों को सबसे ज्यादा परेशान करने वाली बात वह तेजी है जिसके साथ पंजाब सरकार ने हाई कोर्ट के आदेशों का पालन किया है. यह तेजी उस पर इन विरोध प्रदर्शनों की वजह से फैक्ट्री द्वारा दावा किए गए नुकसान के लिए 20 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया जाने के बाद दिखाई गई थी.

फूल ने गुरुवार को सवाल उठाया, ‘शराब फैक्ट्री को मुआवजा देने की इतनी क्या जल्दबाजी थी? किसानों को तो अपने फसलों को हुए नुकसान का मुआवजा पाने के लिए महीनों तक विरोध करना पड़ता है. अदालत द्वारा लगाए गए जुर्माने को चुनौती देने के लिए सरकार की ओर से कोई कदम नहीं उठाया गया है. कुछ-कुछ ऐसा लगता है कि वे हमें विरोध स्थल से जबरन हटाने की कोशिश करते हुए, शराब कारोबारी को मुआवजा देकर बड़े खुश हैं.’

बढ़ती दरार

नवंबर 2020 में, जब किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन किया था, तो आम आदमी पार्टी उन कई विपक्षी दलों में शामिल थी, जिन्होंने उन्हें अपना खुला समर्थन दिया था.

दिसंबर 2020 में, संगरूर के तत्कालीन लोकसभा सांसद रहे मान ने आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह के साथ मिलकर संसद में कृषि कानूनों का जमकर विरोध किया था और किसानों को ‘अन्न दत्ता’ भी कहा था.

उसी महीने मीडिया के साथ बात करते हुए, मान ने कहा था कि आप दिल्ली में विरोध कर रहे किसानों को ‘बदनाम’ करने वाले भाजपा नेताओं के खिलाफ मुकदमा दायर करेगी.

फिर साल 2021 में, आप संयोजक अरविंद केजरीवाल ने कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली विधानसभा में एक प्रस्ताव भी पारित करवाया था.

लेकिन, पिछले कुछ महीनों में पंजाब के किसानों और आप के बीच की दरार लगातार बढ़ती हुई देखी जा रही है.

पहला टकराव आप सरकार के सत्ता में आने के कुछ ही दिनों बाद – 29 मार्च 2022 को – हुआ था.

मुक्तसर के लांबी में उस समय हुए पुलिस लाठीचार्ज में सात किसान घायल हो गए थे, जब बीकेयू (उगराहां) – जो राज्य का सबसे बड़ा किसान संघ है – क्षतिग्रस्त कपास की फसलों के मुआवजे की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहा था.

9 अक्टूबर को बीकेयू (उगराहां) एक बार फिर संगरूर में मान के घर के बाहर धरने पर बैठ गया था. यह विरोध प्रदर्शन तीन हफ्तों तक चला और तभी समाप्त हुआ जब किसानों को इस बात का लिखित आश्वासन दिया गया कि उनकी मुआवजे वाली मांग पूरी की जाएगी.

उस समय, बीकेयू (उगराहां) के प्रमुख जोगिंदर सिंह उगराहां ने कहा था कि अगर भगवंत मान ने 7 अक्टूबर को उनके साथ हुई बैठक के दौरान उनसे (किसानों से) किए गए वादे को पूरा किया होता तो विरोध की कोई आवश्यकता ही नहीं होती.

फिर, नवंबर के पहले सप्ताह में, सांझा मजदूर मोर्चा – खेतिहर मजदूरों संघों का एक समूह – से सम्बद्ध सैकड़ों किसानों पर तब लाठीचार्ज किया गया, जब वे मान के संगरूर स्थित निवास के बाहर विरोध कर रहे थे.

जहां खेतिहर मजदूर अपनी दिहाड़ी में बढ़ोतरी की मांग कर रहे थे, वहीं मान विधानसभा चुनाव से पहले गुजरात में केजरीवाल के साथ प्रचार में लगे हुए थे.

उसी महीने कुछ समय बाद संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) के प्रमुख जगजीत सिंह दल्लेवाल मान द्वारा किसानों को बदनाम किये जाने की कोशिश के विरोध में एक सप्ताह के उपवास पर बैठे थे . यह धरना मान द्वारा आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में किसान यूनियनों पर ‘पैसे लेकर इस तरह से विरोध प्रदर्शन करने जैसे कि उन्होंने आपस में विरोध प्रदर्शन का कार्यक्रम तैयार किया हुआ था’, का आरोप लगाए जाने के बाद हुआ था.

आप सरकार द्वारा ठगा हुआ महसूस करने वाले किसानों के लिए मान की इस तरह की प्रतिक्रिया कतई संतोषजनक नहीं रही है.

इस साल मई में जब चंडीगढ़-मोहाली सीमा के पास मान को सरकार विरोधी नारों का सामना करना पड़ा था, तो उन्होंने कहा था कि उस मौसम की गेहूं की उपज पर बोनस दिए जाने की मांग को लेकर किया जा रहा विरोध प्रदर्शन ‘अवांछनीय और अनुचित’ है

जहां किसान यूनियनों का कहना था कि पहले तो मान ने उनसे मिलने के लिए सहमति जताई थी और अंतिम समय में बैठक रद्द कर दी थी; वहीं मान ने सवाल किया था कि क्या ‘मुर्दाबाद के नारे लगाना बैठक आयोजित करने का कोई तरीका है.’

(अनुवादः राम लाल खन्ना | संपादनः ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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