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Tuesday, 5 November, 2024
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‘पंचायतों को भंग करने की मंजूरी CM ने दी, निलंबित IAS अधिकारी हुए’, SAD ने मान के इस्तीफे की मांग की

चुनाव से कुछ महीने पहले ग्राम पंचायतों, जिला परिषदों और ब्लॉक समितियों को भंग करने की सरकारी अधिसूचना पर विवाद केंद्र में है. विपक्ष ने इस फैसले को 'राजनीति से प्रेरित' बताया था.

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चंडीगढ़: पंजाब में आप सरकार द्वारा ग्रामीण चुनावों से कुछ महीने पहले राज्य भर में ग्राम पंचायतों को भंग करने में ‘गलत निर्णय’ लेने के लिए दो वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों को निलंबित करने के एक दिन बाद, विपक्षी शिरोमणि अकाली दल (शिअद) ने कहा कि यह कदम मुख्यमंत्री भगवंत मान और ग्रामीण विकास एवं पंचायत मंत्री लालजीत सिंह भुल्लर के कहने पर उठाया गया था.

SAD के नेता बिक्रम सिंह मजीठिया ने शुक्रवार को जारी एक वीडियो संदेश में यह दावा किया, जहां उन्होंने ग्रामीण विकास और पंचायत विभाग की नोटिंग फ़ाइल से एक पृष्ठ की एक कथित प्रति जारी की. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने खुद 8 अगस्त को राज्य की 13,000 से अधिक ग्राम पंचायतों को भंग करने के फैसले को अंतिम मंजूरी दी थी.

नोटिंग फाइल पर मुख्यमंत्री और मंत्री के हस्ताक्षर दिखाते हुए मजीठिया ने कहा, “कैबिनेट मंत्री भुल्लर ने सबसे पहले 7 अगस्त को फैसले पर हस्ताक्षर किए थे और फाइल मुख्यमंत्री के सामने रखी थी, जिन्होंने अगले दिन ही इस पर हस्ताक्षर किए थे.”

उन्होंने कहा कि यह फैसला जल्दबाजी में लिया गया.

विवाद ग्रामीण विकास और पंचायत विभाग द्वारा 10 अगस्त को जारी एक अधिसूचना पर केंद्रित है, जिसमें नवंबर-दिसंबर में होने वाले निकायों के चुनावों से कुछ महीने पहले पंजाब में ग्राम पंचायतों, जिला परिषदों और ब्लॉक समितियों को भंग कर दिया गया है.

इस फैसले के लिए निलंबित किए गए दो आईएएस अधिकारी वित्तीय आयुक्त विकास 1994 बैच के डी.के. तिवारी और 2009 बैच के ग्रामीण विकास एवं पंचायत विभाग के निदेशक गुरप्रीत सिंह खैरा हैं.

मजीठिया के मुताबिक, पंचायतें भंग करने के फैसले से जुड़ी फाइल पर पहली नोटिंग 3 अगस्त की है, जो खैरा ने लिखी थी, जिसके बाद उन्होंने फाइल तिवारी को भेज दी. मजीठिया ने कहा, बाद में उन्होंने इस पर हस्ताक्षर किए और 4 अगस्त को इसे मंजूरी के लिए मंत्री के पास भेज दिया गया.

10 अगस्त की अधिसूचना की विपक्ष ने कड़ी आलोचना की थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि मान सरकार का निर्णय ग्रामीण प्रशासन निकायों के कामकाज को अपने हाथ में लेकर पंचायत चुनावों में अन्य दलों पर लाभ हासिल करने के लिए राजनीति से प्रेरित था.

इस कदम को पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में कई याचिकाओं के माध्यम से चुनौती दिए जाने के बाद, सरकार ने गुरुवार को अदालत को बताया कि उसने अधिसूचना वापस लेने का फैसला किया है और पंचायतों को भंग करने के अपने फैसले को रद्द कर दिया है.

तिवारी और खैरा को “तकनीकी रूप से त्रुटिपूर्ण” निर्णय लेने के लिए उसी दिन तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया था. गुरुवार शाम जारी एक वीडियो संदेश में भुल्लर ने निर्णय लेने के लिए अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया.

भुल्लर ने कहा कि सरकार ने पंचायतों को भंग कर दिया है ताकि समय रहते चुनाव की तैयारी की जा सके, लेकिन जैसे ही मुख्यमंत्री भगवंत मान को इस फैसले के बारे में पता चला, उन्होंने इसे तुरंत रद्द कर दिया और निर्णय लेने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की गई.

मजीठिया के खुलासे से राज्य में राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया है और कांग्रेस और भाजपा दोनों मान के खिलाफ एकजुट हो गए हैं और उनके इस्तीफे की मांग कर रहे हैं.

सरकार ने आरोपों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. दिप्रिंट ने मुख्यमंत्री और मंत्री से कॉल के ज़रिए संपर्क करने की कोशिश की लेकिन कोई जवाब नहीं आया.


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‘लोकतंत्र की हत्या’

विधानसभा में विपक्ष के नेता और वरिष्ठ कांग्रेस नेता प्रताप सिंह बाजवा ने भी एक्स (ट्विटर) पर नोटिंग फ़ाइल की एक प्रति पोस्ट करते हुए कहा कि यह “शर्मनाक” है कि सीएम अपने अधिकारियों को बलि का बकरा बनाने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने ही फैसले पर हस्ताक्षर किये थे.

भाजपा नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने मांग की कि पंजाब में पंचायतें भंग करने के फैसले पर हस्ताक्षर करने के लिए मान और भुल्लर इस्तीफा दें.

मजीठिया ने पूछा कि जब निर्णय मुख्यमंत्री के स्तर पर लिया गया तो दो अधिकारियों को जिम्मेदार क्यों ठहराया गया और निलंबित क्यों किया गया. उन्होंने मांग की कि आम आदमी पार्टी सुप्रीमो और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल राज्य में “लोकतंत्र की हत्या” के लिए भगवंत मान को बर्खास्त करें.

(संपादन: अलमिना खातून)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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