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Sunday, 3 November, 2024
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बादल और अमरिंदर से आगे, पंजाब में खोए हुए गौरव को फिर से हासिल करना चाहते हैं चार सियासी परिवार

प्रदेश चुनावों में चार जानी-मानी हस्तियों के नाती-पोते चुनाव मैदान में हैं. ये हस्तियां हैं- पूर्व मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों और बेअंत सिंह, लोकसभा स्पीकर बलराम जाखड़ और अकाली नेता गुरचरण तोहरा.

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चंडीगढ़: 20 फरवरी को होने वाले पंजाब विधानसभा चुनाव, न सिर्फ राज्य के दो सबसे प्रमुख परिवारों- बादल घराने, और पटियाला के पूर्व महाराजा कैप्टन अमरिंदर सिंह के वंश की चुनावी तकदीर का फैसला करेंगे, बल्कि लुप्त होते उन घरानों की भी जिनका कभी सूबे की राजनीति में दबदबा हुआ करता था.

पंजाब के आधा दर्जन मुख्यमंत्रियों और पूर्व शीर्ष सिख नेताओं तथा बड़े राजनेताओं के रिश्तेदार, इन चुनावों में अपनी किस्मत आजमाने जा रहे हैं. दिप्रिंट ऐसे नेताओं के प्रोफाइल पेश कर रहा है और उनकी विरासत पर भी नजर डाल रहा है जिसे वो बरकरार रखने या फिर से पाने की कोशिश कर रहे हैं.

आदेश प्रताप सिंह कैरों

वरिष्ठ अकाली नेता आदेश प्रताप सिंह कैरों (62) जो मांझा क्षेत्र की पट्टी सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, पूर्व कांग्रेस मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों के पोते हैं- जिन्हें बटवारे के बाद के पंजाब के सबसे बड़े नेताओं में से एक माना जाता है.

बड़े कैरों ने अपना करियर शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) नेता के तौर पर शुरू किया था, जिसके बाद 1941 में वो कांग्रेस में शामिल हो गए. विभाजन के बाद पुनर्वास मंत्री होने के नाते उनके ऊपर, पाकिस्तान से भारी संख्या में पंजाब आ रहे हिंदुओं और सिखों को संभालने का ज़िम्मा था और बसने में उनकी सहायता करना था.

उन्होंने आठ साल तक (1956-1964) पंजाब के मुख्यमंत्री के तौर पर काम किया, जिसके बाद 1966 में हरियाणा को राज्य से काटकर अलग कर दिया गया. पंजाब और हरियाणा में बहुत से आधुनिक संस्थान बनाने का श्रेय उन्हीं को जाता है. लेकिन उनके परिवार को भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करना पड़ा, और हालांकि एक जांच में उन्हें प्रमुख आरोपों से मुक्त कर दिया गया, लेकिन 1964 में उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.

अगले साल जब वो दिल्ली से चंडीगढ़ जा रहे थे, तो रास्ते में उनकी उस जगह हत्या कर दी गई जो अब हरियाणा है. उनके क़ातिलों को, जिन्हें कैरों से निजी रंजिश थी, 1969 में फांसी पर चढ़ा दिया गया.

कैरों के दो बेटे, सुरिंदर सिंह और गुरिंदर सिंह भी राजनीति में आ गए, और सुरिंदर ने विधायक तथा सांसद दोनों हैसियतों से काम किया. हालांकि गुरिंदर कांग्रेस में ही बने रहे, लेकिन सुरिंदर अकाली दल में शामिल हो गए, और अपने बेटे आदेश की शादी अकाली दल के सरपरस्त, प्रकाश सिंह बादल की बेटी प्रणीत कौर के साथ कर दी.

पेशे से इंजीनियर आदेश, जिन्होंने अपना एमबीए अमेरिका से किया, पट्टी से चार बार के विधायक हैं. 2012 से 2017 तक उन्होंने बादल सरकार में, खाद्य एवं नारगिक आपूर्ति मंत्री के तौर पर काम किया. आगामी चुनावों में उनके सामने पुराने विरोधी, कांग्रेस के हरमिंदर सिंह गिल हैं, जिन्होंने 2017 में उन्हें पट्टा से हराया था.


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करमवीर सिंह तोहरा

करमवीर सिंह तोहरा अकाली दिग्गज गुरचरण सिंह तोहरा के पोते हैं, जिन्हें ‘सिखों का पोप’ कहा जाता था. 11 जनवरी को अपनी पत्नी के साथ करमवीर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में शामिल हो गए. वो गुरचरण सिंह तोहरा की दत्तक पुत्री, और पूर्व अकाली मंत्री हरमैल सिंह के बेटे हैं. करमवीर अब अमलोह चुनाव क्षेत्र से बीजेपी के उम्मीदवार हैं.

सिख राजनीति की एक प्रमुख शख़्सियत तोहरा ने अकाली दल के अंदर ही अपना एक बग़ावती रास्ता इख़्तियार किया था, और उन्हें ‘हमेशा असंतुष्ट रहने वाले’ की उपाधि मिल गई थी. वो रिकॉर्ड 27 साल तक शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के अध्यक्ष रहे, जो सिखों के तमाम धार्मिक स्थलों का नियंत्रण करने वाली इकाई है.

कड़ा रुख रखने वाले तोहरा को जरनैल सिंह भिंड्रावाले की अगुवाई वाले सिख उग्रवादियों के प्रति उदार रवैये के लिए जाना जाता था. ऑपरेशन ब्लूस्टार के दौरान वो एसजीपीसी के अध्यक्ष थे. जो 1984 में स्वर्ण मंदिर से उग्रवादियों को बाहर निकालने की सैन्य कार्रवाई थी.

तोहरा चुनावी राजनीति में भी दखल रखते थे और वो कई बार राज्यसभा के लिए चुने गए. हालांकि सिखों के धार्मिक मामले उनका मुख्य कार्य रहे. उनके दामाद हरमैल सिंह 1997 के असेम्बली चुनावों में डकाला सीट से विजयी रहे और बादल की कैबिनेट में मंत्री बने.

1998 में बादल और तोहरा अलग हो गए, जिसके बाद बादल ने तोहरा को एसजीपीसी अध्यक्ष पद से हटवा दिया और उन्हें अकाली दल से निष्कासित कर दिया. हरमैल ने भी बादल मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया.

तोहरा ने फिर सर्व हिंद शिरोमणि अकाली दल के नाम से अपनी अलग पार्टी बना ली. लेकिन 2002 के असेम्बली चुनावों में, जब उन्हें और एसएडी दोनों को हार मिली, तो बादल और तोहरा ने आपस में सुलह कर ली और 2003 में दोनों पार्टियों का आपस में विलय हो गया. 2004 में दिल का दौरा पड़ने से तोहरा की मौत हो गई.

हरमैल ने 2002 और 2007 में डकाला से अकाली टिकट पर असेम्बली चुनाव लड़े लेकिन सफल नहीं हो पाए. इस बीच, कुलदीप कौर को एसजीपीसी सदस्य के तौर पर चुन लिया गया, जिसपर वो अभी तक बनी हुई हैं. उनके सबसे बड़े बेटे हरिंदर पाल युवा अकाली दल के वरिष्ठ उपाध्यक्ष बन गए.

कुलदीप ने 2012 विधान सभा चुनावों में पटियाला ग्रामीण चुनाव क्षेत्र से अकाली दल उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा. 2017 के असेम्बली चुनावों से पहले, परिवार आम आदमी पार्टी (आप) में शामिल हो गया, और कुलदीप ने सनौर से चुनाव लड़ा लेकिन वो हार गईं. 2019 के आम चुनावों से पहले परिवार फिर अकाली दल में वापस आ गया, लेकिन कंवरवीर जनवरी में बीजेपी में शामिल हो गए.

कंवरवीर, जो इंजीनियर और एमबीए ग्रेजुएट हैं, पहली बार चुनाव लड़ने जा रहे हैं.

गुरकिरत कोटली

खन्ना से सिटिंग कांग्रेस विधायक गुरकिरत कोटली (49), जो अपनी सीट बचाने के लिए लड़ रहे हैं, पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के पोते हैं.

बेअंत सिंह सेना में थोड़ा समय बिताने के बाद राजनीति में आ गए थे, और कांग्रेस के भीतर ही तरक़्क़ी की सीढ़ियां चढ़ते हुए, अंत में 1992 में शीर्ष पर पहुंच गए, जब उन्होंने मुख्यमंत्री का पदभार संभाला.

बेअंत सिंह को पंजाब में दशकों से चली आ रहे उग्रवाद को ख़त्म करने का श्रेय जाता है, लेकिन इसकी क़ीमत उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ी. 1995 में सिख उग्रवादियों ने एक मानव बम का इस्तेमाल करते हुए उनकी हत्या कर दी.

बेअंत सिंह के सबसे बड़े बेटे तेज प्रकाश को, अगले मुख्यमंत्री हरचरण सिंह बरार ने अपनी कैबिनेट में शामिल कर लिया और वो कई बार पायल की पारिवारिक सीट से विजयी रहे. लेकिन ये उनके सबसे छोटे बेटे स्वर्णजीत थे, जिन्हें बेअंत ने राजनीति के लिए तैयार किया था. लेकिन 1985 में स्वर्णजीत की एक कार हादसे में मौत हो गई थी.

स्वर्णजीत के बेटे रवनीत बिट्टू को 2009 में राहुल गांधी ने आनंदपुर साहिब संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए चुना, जिसमें वो विजयी रहे. 2014 और 2019 में उन्होंने लुधियाना लोकसभा सीट पर जीत हासिल की.

बेअंत सिंह की सबसे छोटी औलाद गुरकंवल कौर भी सक्रिय राजनीति में शामिल हो गईं, और 2002 में जालंधर कैंट सीट से जीत हासिल की. बतौर सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह के पहले कार्यकाल में (2002-2007) वो मंत्री रहीं, लेकिन फिर 2007 के चुनावों में हार गईं.

2008 के बाद, परिवार की पारंपरिक सीट पायल को, आरक्षित चुनाव क्षेत्र में तब्दील कर दिया गया. तेज प्रकाश के बेटे गुरकिरत कोटली, 2012 और 2017 में खन्ना से कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर लड़े और विजयी रहे. कोटली पायल के पास एक गांव का नाम है, जहां बेअंत का परिवार बटवारे के बाद आकर बस गया था.

पिछले साल सितंबर में जब कांग्रेस ने कैप्टन अमरिंदर को मुख्यमंत्री पद से हटाया, तो कोटली को चरणजीत सिंह चन्नी के नए मंत्रिमंडल में शामिल किया गया, हालांकि उनके विवादास्पद अतीत की वजह से, पार्टी के भीतर ही इसका विरोध हुआ था.

कोटली पर आरोप था कि उन्होंने एक फ्रांसी पर्यटक का बलात्कार किया था, जो 1994 में पंजाब आई थी. पिछले साल ये आरोप फिर से उनके सामने आ गया, जब राष्ट्रीय महिला आयोग ने पंजाब सरकार से इस मामले में रिपोर्ट तलब कर ली.

संदीप जाखड़

42 वर्षीय संदीप जाखड़ पंजाब के एक सबसे जाने-माने हिंदू जाट राजनीतिक परिवार के सबसे युवा सदस्य हैं. राजस्थान के प्रसिद्ध किसान नेता बलराम जाखड़, जिन्होंने पंजाब को अपना घर बना लिया था, उनके पोते संदीप परिवार का गढ़ समझी जाने वाली अबोहर सीट से, कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं.

बलराम जाखड़ को जो एक संस्कृत विद्वान थे, एक समाज सुधारक स्वामी केशवानंद के शिष्य थे. जाखड़ कांग्रेस में शामिल हो गए, और 1972 में पहली बार अबोहर से पंजाब विधान सभा के लिए चुने गए, जिसके बाद उन्हें उप-मंत्री बनाया गया. 1977 में वो फिर इस सीट से विजयी रहे. उस साल प्रकाश सिंह बादल ने दूसरी बार मुख्यमंत्री का पद संभाला था, और जाखड़ को नेता प्रतिपक्ष चुना गया.

इंदिरा गांधी के वफादार जाखड़, केंद्रीय राजनीति में आ गए और 1980 में फिरोजपुर से लोकसभा सांसद बने, और 1984 से 1989 तथा 1991 से 1996 के बीच राजस्थान के सीकर से सांसद रहे. 1980 से 1989 के बीच वो लोकसभा स्पीकर रहे, जो किसी भी स्पीकर का अब तक का सबसे लंबा कार्यकाल है.

1991 में, उन्हें पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में, कृषि मंत्री के तौर पर शामिल किया गया. 1998 में वो फिर से बीकानेर से लोकसभा के लिए चुने गए, और एक वर्ष तक काम किया. 2004 से 2009 तक वो मध्यप्रदेश के राज्यपाल रहे, और 2016 में उनकी मौत हो गई.

जिस साल जाखड़ ने अपना रुख़ केंद्रीय राजनीति की ओर किया, उसी साल उनके सबसे बड़े बेटे सज्जन पंजाब में सक्रिय राजनीति में शामिल हो गए. सज्जन 1980 में पहली बार अबोहर से विधायक बने, लेकिन 1985 में वो इस सीट पर बीजेपी से हार गए. 1992 में उन्होंने ये सीट फिर जीत ली, लेकिन 1997 में हार गए. उन्होंने सूबे के कृषि मंत्री के तौर पर भी काम किया.

सज्जन के बेटे अजय वीर, जो एक किसान हैं, किसानों के एक मंच भारत कृषक समाज के प्रमुख हैं. पिछले साल तक वो पंजाब प्रदेश किसान और खेतिहर श्रमिक आयोग के अध्यक्ष थे, लेकिन फिर ‘राज्य में बदले हुए हालात के कारण’ उन्होंने इस्तीफा दे दिया, जब अमरिंदर सिंह को हटा दिया गया, और उनके चाचा सुनील जाखड़ की मुख्यमंत्री पद के लिए अनदेखी कर दी गई.

बलराम जाखड़ के सबसे छोटे बेटे सुनील 2002 से 2012 तक लगातार तीन बार अबोहर सीट से विजयी रहे. 2012 से 2017 तक उन्होंने नेता प्रतिपक्ष का काम किया. 2017 में एक उपचुनाव में उन्हें गुरदासपुर से लोकसभा के लिए चुना गया, और पिछले साल तक वो प्रदेश कांग्रेस के प्रमुख भी रहे, जब उनकी जगह नवजोत सिंह सिद्धू ने ले ली. अमरिंदर सिंह के हटाए जाने के बाद, मुख्यमंत्री पद के लिए उनका नाम चला, लेकिन ये हो नहीं सका.

जाखड़ के मंझले बेटे सुरिंदर सहकारी आंदोलन से जुड़े हुए थे. वो कई बार एशिया की सबसे बड़ी सहकारी फर्टिलाइजर दिग्गज इफको के अध्यक्ष रहे. 2011 में अपने फार्महाउस पर अपनी बंदूक साफ करते हुए, एक हादसे में उनकी मौत हो गई.

सुरिंदर के बेटे संदीप ने मेयो कॉलेज अजमेर, और बाद में फ्लोरिडा में पढ़ाई की है. उन्होंने 10 साल तक अमेरिका में काम किया, जिसके बाद राजनीति में शामिल होने के लिए वो पंजाब लौट आए.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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