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Monday, 18 November, 2024
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‘कुंडा का गर्व’ या ‘गुंडा’? UP में 6 बार के MLA राजा भैया अभी भी क्यों हैं एक सियासी ताकत

राजा भैया जो फिलहाल सपा प्रमुख अखिलेश यादव के साथ जुबानी जंग में उलझे हैं, सातवीं बार कुंडा से यूपी विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं. उन्होंने भाजपा और सपा दोनों सरकारों में मंत्री के तौर पर काम किया है.

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लखनऊ/प्रतापगढ़: उत्तर प्रदेश के कुंडा से छह बार के निर्दलीय विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया, उस समय से समाजवादी पार्टी (एसपी) प्रमुख अखिलेश यादव के साथ जुबानी जंग लड़ रहे हैं, जब पिछले साल नवंबर में प्रतापगढ़ जिले के एक दौरे पर पूर्व सीएम ने उन्हें अहमियत नहीं दी थी.

उत्तर प्रदेश में चल रहे विधानसभा चुनावों में इस बार ‘बाहुबलि-विरोधी’ नैरेटिव छाया रहा है. जहां बीजेपी ने माफिया के साथ कथित ‘रिश्तों’ के लिए एसपी पर बार-बार हमला किया है, वहीं राजा भैया जिन पर बहुत से अपराधों के आरोप हैं, उनका अखिलेश के भाषणों और टिप्पणियों में परोक्ष रूप से जिक्र होता रहता है.

अखिलेश और उनके पूर्व सहयोगी राजा भैया के बीच बैर तभी से बढ़ा, जब कुंडा में एक चुनावी रैली के दौरान अखिलेश ने उनपर निशाना साधते हुए एक तीखा कटाक्ष किया कि ‘कुंडी बंद कर दो ’ और लोगों से ‘परिवर्तन के लिए वोट’ करने का आग्रह किया.

अब, राजा भैया ने ऐलान कर दिया है कि वो एसपी को सूबे में सरकार नहीं बनाने देंगे.

एसपी के एक पूर्व सहयोगी राजा भैया, अखिलेश मंत्रिमंडल के एक प्रभावशाली सदस्य थे, जब उन्होंने 2012 में सीएम की कुर्सी संभाली थी. सरकार का कार्यकाल पूरा होने पर दोनों ने एक दूसरे का साथ छोड़ दिया और 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान अखिलेश ने कहा कि वो भविष्य में कभी राजा भैया से हाथ नहीं मिलाएंगे.

राजा भैया, जो अभी तक निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ते आए हैं, कुंडा चुनाव क्षेत्र से सातवीं बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. लेकिन इस बार, वो अपनी पार्टी- जनसत्ता दल (लोकतांत्रिक)- के नाम पर चुनाव लड़ रहे हैं, जिसका उन्होंने 2018 में गठन किया था.

पार्टी ने 2022 के विधानसभा चुनावों में 18 उम्मीदवार खड़े किए हैं.

कुंडा में पांचवें चरण में 27 फरवरी को वोट डाले गए थे.


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अखिलेश और राजा भैया का आमना-सामना

27 फरवरी को कुंडा से एसपी उम्मीदवार गुलशन यादव के जुलूस पर हमले के फौरन बाद अखिलेश यादव ने एक ट्वीट में घटना की वीडियो साझा किया और कहा कि (खिड़कियों के) शीशे तोड़ने से उनका हौसला नहीं टूटेगा.

1 मार्च को अखिलेश ने एक पोलिंग बूथ में कथित गड़बड़ी का एक वीडियो साझा किया, जिसमें एक युवक को एक महिला की ओर से बटन दबाते हुए देखा जा सकता था. उन्होंने कहा कि ये वीडियो कुंडा से था.

ट्वीट को तो जल्द ही हटा दिया गया लेकिन राजा भैया ने अखिलेश पर जवाबी वार करते हुए, अब हटा दिए गए ट्वीट का एक फोटो ट्वीट किया और कहा कि वो वीडियो हरियाणा से 2019 लोकसभा चुनावों का था.

राजा भैया ने लिखा, ‘आदरणीय अखिलेश यादव जी, आप एसपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और एक वरिष्ठ राजनेता हैं. चुनाव रद्द करने की मांग के साथ आप जिस वीडियो का हवाला दे रहे हैं, वो 2019 का है. राजनीति में इतनी नफरत अच्छी नहीं होती’.

पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि उनकी पार्टी के ‘माफिया और बाहुबलियों के साथ रिश्तों’ पर बीजेपी के ज़ोरदार हमलों को देखते हुए अखिलेश यादव ने ज़ाहिरी तौर पर प्रयास किए हैं कि ऐसे आरोपों से दूर रहा जाए.

लखनऊ-स्थित राजनीतिक विशेषज्ञ ब्रजेश शुक्ला ने दिप्रिंट से कहा, ‘अखिलेश इस बात का खास ध्यान रख रहे हैं कि उन्हें दबंगों के साथ न देखा जाए और शायद थोड़े अति-उत्साह में, वो बार-बार राजा भैया पर हमले कर रहे हैं’.

शुक्ला ने आगे कहा, ‘इससे शायद उन्हें इस बात पर ज़ोर देने में मदद मिलती है कि वो उन लोगों का पक्ष नहीं लेते जिनकी आपराधिक पृष्ठभूमि रही है लेकिन इससे सिर्फ राजा भैया का आकर्षण बढ़ता है’.

एसपी के प्रदेश प्रवक्ता राजकुमार भाटी ने कहा, ‘अखिलेश आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को पसंद नहीं करते’.

उन्होंने कहा, ‘2011 में, जब शिवपाल जी ने डीपी यादव को पार्टी में शामिल कराने का प्रयास किया, तो अखिलेश ने मना कर दिया और जब अतीक़ अहमद ने पार्टी में आने की कोशिश की, तो उन्होंने फिर इनकार कर दिया. अखिलेश इस मानसिकता के ही खिलाफ हैं’.

डीपी यादव और अतीक़ अहमद दोनों, बहुत से आपराधिक मुकदमों का सामना कर रहे हैं.


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राजा भैया की लंबी राजनीतिक पारी

रघुराज प्रताप सिंह या राजा भैया , जिन्हें 2003 में मायावती सरकार ने ‘आतंकवादी’ घोषित कर दिया था, कुंडा के एक पूर्व राज परिवार से आते हैं और उनका ताल्लुक राजपूत जाति से है.

प्रतापगढ़ जिले में, जिसमें कुंडा आता है, उनका ज़बर्दस्त प्रभाव है.

उन्होंने अतीत में पांच सरकारों में मंत्री के तौर पर काम किया है- जिनमें तीन बीजेपी और दो एसपी सरकारें थीं. इनमें कल्याण सिंह सरकार (1997 में शपथ) और अखिलेश यादव सरकार (2012) शामिल हैं.

वो योगी आदित्यनाथ सरकार का हिस्सा क्यों नहीं हैं, ये पूछे जाने पर राजा भैया ने दिप्रिंट से कहा कि हर समय सरकार में शामिल होना जरूरी नहीं होता.

उन्होंने कहा, ‘मैं हर सरकार में मंत्री नहीं था. मैं मायावती के शासन काल में मंत्री नहीं था. मैं 1993 और 1996 में भी नहीं था. इसलिए ऐसा नहीं है…मुझे सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों में रहने का अवसर मिला है’.

ये पूछने पर कि उन्हें कौन सा सीएम सबसे अच्छा लगा, उन्होंने कहा कि हर सीएम जिसके साथ उन्होंने काम किया, ‘उनमें अलग-अलग गुण और विशेषताएं थीं’.


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मायावती के आरोप

2002 में बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) प्रमुख मायावती ने राजा भैया पर उनकी सरकार को गिराने की कोशिश का आरोप लगाया. इसके बाद मायावती ने उन्हें पूर्व आतंकवाद निरोधक अधिनियम (पोटा) के अंतर्गत जेल में बंद कर दिया.

ऐसा दावा किया गया कि कुंडा में उनकी हवेली पर मारे गए एक छापे में बहुत सारे हथियार बरामद हुए और हवेली के पीछे 600 एकड़ में फैली एक झील से एक नर-कंकाल भी बरामद हुआ (ये आरोप कि उन्होंने अपने दुश्मनों को कथित रूप से झील के मगरमच्छों के आगे डाल दिया था, एक मिथक का रूप ले चुका है).

राजा भैया ने आरोपों का ज़ोरदार तरीके से खंडन किया था.

2003 में मायावती सरकार के गिरने के बाद, उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया और मुलायम सिंह यादव की एसपी सरकार में मंत्री बना दिया गया. 2010 में, मायावती की सत्ता वापसी के तीन साल बाद एक पंचायत चुनाव उम्मीदवार को धमकाने के आरोप में उन्हें फिर जेल में डाल दिया गया.

2011 में इलाहबाद की एक अदालत के आदेश पर उन्हें ज़मानत पर रिहा कर दिया गया.

2017 में जब योगी आदित्यनाथ सरकार सत्ता में आई, तो राजा भैया को मंत्री पद न दिए जाने से अटकलें लगने लगी थीं कि बीजेपी के साथ उनके रिश्ते खराब हो जाएंगे.

लेकिन, पिछले महीने राजा भैया ने योगी आदित्यनाथ की तारीफ करते हुए कहा कि बहुत से क्षेत्रों में उनका प्रदर्शन पिछली सरकारों से बेहतर रहा है.


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‘कुंडा  का गुंडा’

पूर्व उत्तर प्रदेश सीएम और बीजेपी नेता कल्याण सिंह ने एक बार राजा भैया को उनकी कथित आपराधिक पृष्ठभूमि की वजह से, ‘कुंडा का गुंडा’ कहा था.

फिर भी 1997 में उन्होंने राजा भैया को अपने मंत्रिमंडल में मंत्री बनाया. उसके बाद से राजा भैया का प्रभाव बढ़ने लगा.

राजनीतिक विशेषज्ञ शुक्ला ने कहा कि राजा भैया का ‘दुर्भाग्य’ बीएसपी शासन में शुरू हुआ.

शुक्ला ने याद किया, ‘अगस्त 2003 में सरकार बदल गई और मुलायम सिंह यादव सत्ता में आ गए और विधानसभा में बहुमत साबित करने से पहले ही, उन्होंने राजा भैया के खिलाफ पोटा के आरोपों को खत्म कर दिया. इसके बाद राजा भैया की रिहाई होने पर मुलायम ने उन्हें अपनी कैबिनेट में भी शामिल कर लिया’. शुक्ला ने आगे कहा कि उसके बाद से मुलायम के प्रति राजा भैया का सम्मान कई गुना बढ़ गया.

2012 में जब मुलायम के बेटे अखिलेश यादव ने अपनी सरकार बनाई, तो राजा भैया को जेल तथा खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्रालयों का जिम्मा दिया गया.

लेकिन, राजा भैया को जल्द ही अखिलेश सरकार से इस्तीफा देना पड़ा, जब उनका नाम प्रतापगढ़ डीएसपी ज़िया-उल-हक़ के कत्ल की साज़िश में सामने आया, जिनकी 2 मार्च 2013 को गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.

हालांकि सीबीआई ने पूर्व मंत्री को इस मामले में क्लीन चिट दे दी लेकिन मारे गए डीएसपी की पत्नी अभी भी कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं. इलाहबाद हाई कोर्ट ने इस क्लीन चिट को खारिज कर दिया और सीबीआई अब क्लोज़र रिपोर्ट की फिर से जांच कर रही है.


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‘ग्लैमर और लोकप्रियता’

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि राजा भैया हमेशा खबरों में बने रहते हैं, उन्हें एक शाही दबंग माना जाता है और इन अवधारणाओं से हासिल हुए ग्लैमर से उन्हें लोकप्रियता मिलती है.

इसके अलावा प्रतापगढ़ और कौशांबी में राजपूत वोट बैंक पर भी उनकी अच्छी पकड़ है.

एक स्थानीय बीजेपी नेता ने कहा, ‘वो एक ऐसे व्यक्ति हैं जो हमेशा खबरों में बने रहते हैं, चाहे अच्छे कारणों से हो या बुरे. उनके साथ एक खास तरह का ग्लैमर जुड़ा है और उनपर जितने हमले होते हैं वो उतने ही खबरों में आते हैं. इसके अलावा, वो प्रतापगढ़ जिले और कौशांबी के कुछ इलाकों में भी राजपूत समुदाय के बीच लोकप्रिय हैं’.

राजा भैया के कट्टर समर्थक और ऐसे लोग बहुत हैं- जो उनके ‘जनता दरबार’ और सामूहिक विवाह आयोजन के साक्षी हैं उनका कहना है कि राजा भैया ‘कुंडा का गर्व’ हैं.

एक समर्थक सुरेंद्र सिंह ने कहा, ‘हां, वो एक बाहुबली हैं, लेकिन वो एक मसीहा भी हैं. उनके जनता दरबार में जाति या धर्म के आधार पर कोई पक्षपात नहीं होता. अनुसूचित और पिछड़ी जातियों के लोगों की समस्याओं का विशेष रूप से जल्दी समाधान किया जाता है’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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