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Monday, 6 May, 2024
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तमिल पर गर्व और हिंदी थोपने का विरोध—तमिलनाडु में कैसे द्रविड़ विचार युवाओं को प्रभावित कर रहे हैं

तमिलनाडु में चुनाव पूर्व दिप्रिंट ने कई युवाओं से बात की जिनका कहना है कि वे जिन मुद्दों पर वोट देंगे, उनमें तमिल संस्कृति का संरक्षण, हिंदी थोपे जाने का विरोध और धर्मनिरपेक्षता आदि शामिल हैं.

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कुड्डालोर: कुड्डालोर स्थित पेरियार गवर्नमेंट आर्ट्स कॉलेज के बाहर ही अपनी बाइक खड़ी कर रहा 26 वर्षीय अनवर कॉलेज गेट के सामने लगी इरोड वेंकटप्पा रामास्वामी, या पेरियार जिस नाम से वह लोकप्रिय हैं, की प्रतिमा को देख रहा है.

उसका कहना है, ‘हमारे लिए तो सब कुछ थानथाई (पिता) पेरियार के साथ ही शुरू और खत्म होता है. पार्टियों को तो वोट ही केवल उनके कारण मिलते हैं.’

वहीं, उत्तर में चेन्नई स्थित स्टेला मैरिस कॉलेज से बैंकिंग और फाइनेंस में वोकेशनल कोर्स कर रही 19 वर्षीय नियति रेड्डी भी अनवर की बात का समर्थन करती है.

वह मानती है कि आगामी तमिलनाडु चुनावों में मुद्दों की पूरी जानकारी नहीं है और अभी यह भी नहीं सोचा है कि किसे वोट देगी, लेकिन एक पहलू पर रुख एकदम स्पष्ट है. वह कहती है, ‘मैं एक नई पार्टी या व्यक्ति का तो स्वागत करूंगी लेकिन उसका आधार द्रविड़ होना चाहिए.’

एक बार फिर कुड्डालोर लौटते हैं, जहां 22 वर्षीय केसवन का कहना है कि उसे द्रविड़ राजनीति में तो कोई दिलचस्पी नहीं है. लेकिन जो मुद्दे उसके लिए मायने रखते हैं, उनमें शामिल हैं ‘तमिल संस्कृति का संरक्षण, भाषा की पहचान और धर्मनिरपेक्षता’, जो पेरियार आंदोलन का एक बड़ा आधार रहे हैं.

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अनवर, रेड्डी और केसवन तमिलनाडु के कुल 6.26 करोड़ मतदाताओं में से उन 1.37 करोड़ मतदाताओं में शुमार हैं जो 18 से 29 आयु वर्ग में आते हैं.

यहां तक कि इन युवा मतदाताओं को भी राज्य में लगभग पांच दशकों से राजनीति और चुनावों को प्रभावित करती आ रही द्रविड़ विचारधारा से कोई परहेज नहीं है.

दिप्रिंट से बातचीत करने वाले अधिकांश युवाओं ने कहा कि वे जिन मुद्दों पर वोट देंगे, उनमें तमिल संस्कृति का संरक्षण, हिंदी न थोपने और धर्मनिरपेक्षता आदि शामिल हैं.

हालांकि कुछ अन्य का तर्क था कि द्रविड़ विचारधारा अब फीकी पड़ गई है और कल्याणकारी राजनीति पर ज्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए. ऐसे युवाओं की अच्छी-खासी तादात थी कि जिनका मानना है कि द्रविड़ विचारधारा का मतलब राज्य में भाजपा शासन का विरोध करना रहा है.


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द्रविड़ आंदोलन और विचारधारा

पेरियार या इरोड वेंकटप्पा रामास्वामी द्रविड़ आंदोलन, जिसे आत्मसम्मान आंदोलन के तौर पर भी जाना जाता था, के अगुआ थे और इसने उन्हें 1930 और 1950 के बीच तमिलनाडु में लोकप्रिय बना दिया.

एक घोर नास्तिक पेरियार ने भगवान की खासी आलोचना की, जाति-आधारित आरक्षण और महिलाओं के अधिकारों की जंग लड़ी, और एक अलग तमिल राज्य की मांग भी की.

द्रविड़ आंदोलन 1967 से ही राज्य के राजनीतिक परिदृश्य की एक स्थायी विशेषता रहा है, जब सी.एन. अन्नादुराई, जो अलग रास्ता अपनाने से पहले पेरियार के शिष्य हुआ करते थे, के नेतृत्व में द्रमुक ने सत्ता की कमान संभाली.

राज्य के दोनों प्रमुख दल ही इस आंदोलन की उपज थे. द्रमुक द्रविड़ कझगम से ही अलग हुआ एक गुट था जिसका गठन पेरियार ने किया था.

अन्नाद्रमुक का गठन 1972 में उस समय हुआ जब ख्यात अभिनेता-राजनेता एम.जी. रामचंद्रन ने वैचारिक मतभेदों की वजह से द्रमुक से नाता तोड़ लिया.

हालांकि, बीते सालों में विचारधारा में काफी बदलाव आया है.

चेन्नई स्थित प्रेसिडेंसी कॉलेज में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख मुथुकुमार ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि अब चुनावी राजनीति में एक बड़ा बदलाव आ चुका है.

उन्होंने कहा, ‘सामाजिक सुधार द्रविड़ आंदोलन के सबसे अहम एजेंडे में से एक था, लेकिन अब पार्टियां राजनीतिक ताकत पर ज्यादा केंद्रित हो गई हैं और समझौते करने को तैयार रहती हैं. द्रमुक और अन्नाद्रमुक दोनों ही इससे अछूते नहीं हैं.’

उन्होंने आगामी चुनावों के लिए भाजपा के साथ अन्नाद्रमुक के गठबंधन की ओर इशारा किया, लेकिन साथ ही कहा कि द्रमुक ने भी सिद्धांतों से समझौता किया था और 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की भाजपा के साथ गठबंधन किया था. उन्होंने कहा, ‘दोनों दलों की विचारधाराएं एकदम अलग थीं-फिर भी एक साथ चुनाव लड़े. यह द्रविड़ विचारधारा के एकदम उलट था.’

बदलावों के बारे में समझाते हुए उन्होंने कहा कि पेरियार के द्रविड़ कझगम के नेता घोर नास्तिक थे, जबकि द्रमुक के नेता भगवान में विश्वास करते रहे हैं. मुथुकुमार ने कहा, ‘पेरियार पूरे दक्षिण भारत के लोगों के लिए एक द्रविड़ राज्य चाहते थे. हालांकि, अब पूरा फोकस सहयोगात्मक संघवाद पर है.’


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भाजपा का द्रविड़ विचारों को उभारने पर जोर

हमेशा से तमिलनाडु में अगड़ी जाति वाली उत्तर भारतीय पार्टी के रूप में देखी जाने वाली भाजपा अब दक्षिणी राज्य में अपनी पैठ बनाने में जुटी है. पार्टी द्रविड़ राजनीति को फिर से परिभाषित करने के लिए हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण करना चाहती है.

भाजपा के वरिष्ठ नेता एच. राजा ने दिप्रिंट को बताया कि द्रविड़ संस्कृति हिंदू संस्कृति का ही पर्याय थी लेकिन ‘कुछ दशकों तक इसे लोगों के सामने गलत तरीके से पेश किया गया है.’

उन्होंने कहा, ‘आज पूरा द्रविड़ आंदोलन अप्रासंगिक हो चुका है क्योंकि इसे एक परिवार की प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बना दिया गया है. द्रविड़ आंदोलन के नाम पर लोगों को खुद को एक आवरण में समेट लिया है.’

भाजपा का गठबंधन सहयोगी अन्नाद्रमुक भी यही राग अलापने लगा है. पार्टी के वरिष्ठ नेता और कैबिनेट मंत्री के. पंडियाराजन ने भी हाल ही में एक सम्मेलन के दौरान इसकी आलोचना की जो उनके मुताबिक द्रविड़ विचारधारा पर द्रमुक का वर्जन है. उन्होंने कहा, ‘द्रमुक के द्रविड़ दर्शन की व्याख्या हिंदू विरोधी, हिंदी विरोधी और ब्राह्मण विरोधी थी. यह हमारी अवधारणा नहीं है.’

हालांकि, अन्नाद्रमुक की युवा शाखा के नेता एन.आर. शिवपति का मानना है कि द्रविड़ विचारधारा अब कोई फैक्टर नहीं रही है. उन्होंने कहा, ‘कामराज जैसे नेताओं के समय यह (द्रविड़ विचारधारा) लोकप्रिय थी. लेकिन आजकल, लोग इसे ज्यादा अहमियत नहीं देते.’

कमल हासन की अगुवाई वाली मक्कल निधि मय्यन ने भी कुछ इसी तरह का विचार सामने रखा है, पार्टी के संचार एवं प्रचार मामलों के महासचिव सी.के. कुमारवेल ने दिप्रिंट से कहा, ‘द्रविड़ विचारधारा अब खास मायने नहीं रखती. युवाओं को मुख्य तौर पर नौकरियों, अच्छे अवसरों और शिक्षा से मतलब है.’

युवा मतदाताओं से बात करने पर ऐसी ही वैचारिक प्रक्रिया सामने आती है. कोडाईकनाल में गवर्नमेंट आर्ट्स एंड साइंस कॉलेज फॉर वीमेन में गेस्ट लेक्चरर 24 वर्षीय आनंद मणि ने दिप्रिंट से कहा कि उन्हें अब द्रविड़ विचारधारा का अस्तित्व नजर नहीं आता है और यहां यह खत्म हो चुकी है.

उन्होंने कहा, ‘कल्याणकारी राजनीति और द्रविड़ राजनीति के बीच एक अंतर है. द्रविड़ विचारधारा ने लोगों को जाति के आधार पर विभाजित किया और मुख्य रूप से ओबीसी पर फोकस किया और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को छोड़ दिया. इस आंदोलन में अब कोई करिश्माई नेता भी नहीं है.’

हालांकि, हर कोई तो नहीं लेकिन इसे भुनाया जा रहा है. पहली बार वाले मतदाता 21 वर्षीय मुलईवेंधन ने दिप्रिंट से कहा, ‘हम अपनी तमिल संस्कृति और विचारधारा पर गर्व करते हैं. भाजपा द्रविड़ विचारधारा नहीं समझती है, और वे बाहरी हैं.’


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‘हमेशा मौजूदगी रहती है भले ही अवचेतन स्तर पर हो’

हालांकि, विशेषज्ञों का तर्क है कि अधिकांश लोग द्रविड़ मुद्दों पर ही वोट करेंगे, भले ही उन्हें इसका भान तक न हो.

द्रविड़ आंदोलन को गहराई से समझने वाले किंग्स कॉलेज के पीएचडी स्कॉलर विग्नेश कार्तिक केआर ने कहा कि विचारधारा हमेशा से मौजूद रहेगी चाहे सचेतन रूप में या अवचेतन स्तर पर. उन्होंने कहा, ‘हमेशा जरूरी नहीं है कि कोई इसका झंडा लेकर ही चले, लेकिन यह हमेशा बनी रहती हैं और हमेशा एक फैक्टर होती है.’

राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख प्रोफेसर रामू मणिवन्नन ने कहा कि यह विडंबना ही है कि भाजपा द्रविड़ विचारों को पुनर्जीवित कर रही है. मणिवन्नन ने कहा कि पिछले चार वर्षों में उन्होंने द्रविड़ दर्शन पर चर्चा तेज होते देखी है. उन्होंने कहा, ‘मैं इसे सीधे तौर पर राज्य में भाजपा की पैठ बढ़ने से जोड़ता हूं. युवा अब फिर से पेरियार के बारे में जान और समझ रहे हैं.’

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