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Thursday, 28 March, 2024
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प्रशांत किशोर बोले—मैं कभी भाजपा ज्वाइन नहीं करूंगा, ‘राजनीतिक सहयोगी’ कहलाना चाहता हूं, रणनीतिकार नहीं

दिप्रिंट के एडिटर-इन-चीफ संपादक शेखर गुप्ता और सीनियर एसोसिएट एडिटर नीलम पांडे के साथ ‘ऑफ द कफ’ बातचीत में आईपीएसी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने कई मुद्दों पर खुलकर अपनी राय रखी.

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नई दिल्ली: प्रशांत किशोर ने दिप्रिंट के एडिटर-इन-चीफ संपादक शेखर गुप्ता और सीनियर एसोसिएट एडिटर नीलम पांडे के साथ ‘ऑफ द कफ’ बातचीत में कहा कि वह खुद का ‘राजनीतिक सहयोगी’ कहलाना पसंद करते हैं, क्योंकि ‘राजनीतिक रणनीतिकार’ शब्द का न तो कोई मायने है और न ही कोई दायरा.

इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी के संस्थापक किशोर ने इस साल की शुरुआत में पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और तमिलनाडु में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम को चुनावी सफलता दिलाने में मदद की थी.

किशोर ने बुधवार शाम 7 बजे दिप्रिंट के यूट्यूब चैनल पर प्रसारित कार्यक्रम में कहा, ‘मैं खुद को उन राजनेताओं के एक राजनीतिक सहयोगी के तौर पर देखता हूं, जो मेरे साथ चुनाव और उससे जुड़े कार्यों के संदर्भ में काम करना चाहते हैं.’

यह बातचीत किशोर की अपनी विचारधारा और राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं से लेकर विपक्ष की स्थिति, भाजपा की सफलता के कारण और देश के मौजूदा सियासी परिदृश्य तक पर केंद्रित थी.

अपनी विचारधारा के बारे में पूछे जाने पर किशोर ने माना कि ‘जाहिर है’ उनकी भी एक विचारधारा रही है. हालांकि, उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि उनकी विचारधारा उनकी निष्पक्षता में आड़े नहीं आती. इसके बाद उन्होंने भाजपा नेताओं द्वारा लिंचिंग को सही ठहराने का उदाहरण देते हुए इसे ‘विचारधारा के आगे निष्पक्षता खो देने’ का एक उदाहरण बताया.

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अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं पर किशोर ने कहा कि वह बिहार में जनता दल (यूनाइटेड) के सदस्य के तौर पर एक ‘असफल राजनेता’ थे, क्योंकि राज्य में पार्टी के घटते जनाधार को लेकर नीतीश कुमार के साथ उनके मतभेद थे. उन्होंने यह भी बताया कि कैसे वह कांग्रेस में लगभग शामिल हो गए थे और स्वीकारा कि उनकी एक राजनीतिक महत्वाकांक्षा थी. लेकिन साथ ही कहा कि वह कभी भी भाजपा में शामिल नहीं होंगे.

उन्होंने कहा, ‘मैं कभी भाजपा में शामिल नहीं होऊंगा, इसकी कोई संभावना नहीं है. वैचारिक रूप से एक पार्टी के तौर पर भाजपा में शामिल होना मेरे लिए बहुत असहज होगा.’


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विपक्ष की भूमिका, कांग्रेस के लिए जगह और भाजपा की कमजोरियां

किशोर, जिन्होंने हाल ही में कहा था कि कांग्रेस पार्टी की कमान संभालना किसी का विशेषाधिकार नहीं है, ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सियासी पटल पर छा जाने के 7-8 साल बीत चुके हैं, और कांग्रेस अभी भी अपनी भूमिका को सही ढंग से निभाने में सक्षम नहीं हो पाई है.

पार्टी पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने धर्मनिरपेक्षता का प्रमाणपत्र देने और मोदी विरोधी होने का ‘ठेका’ ले रखा है, ठीक वैसे ही जैसे भाजपा राष्ट्रवाद का प्रमाणपत्र देती है.

उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस के लिए अपनी ताकत को समझने और खुद को फिर से तैयार करने की जरूरत है…कांग्रेस के पास अपनी विरासत संभालने की क्षमता की अभाव है. पिछले 20 वर्षों में कांग्रेस ने 72 घंटे से अधिक समय तक चलने वाले अखिल भारतीय आंदोलन जैसा कुछ नहीं किया है.’

हालांकि, किशोर ने माना कि विपक्षी दल के तौर पर कांग्रेस के पास एक मजबूत जगह है, लेकिन वह अभी भी सत्ता तक पहुंचने की कोई कोशिश नहीं कर रही.

प्रशांत किशोर ने कहा, ‘जो कोई भी भाजपा का मुकाबला करना चाहे, उसके लिए कांग्रेस के कब्जे वाली सियासी जगह हासिल करने की जरूरत है. यदि आप कांग्रेस को छोड़ देते हैं तो आपके लिए भाजपा को हराने लायक वोटबैंक हासिल करना संभव नहीं है. लेकिन कांग्रेस वैसी नहीं रह गई है जैसी वह हुआ करती थी.’

उन्होंने चुनावों में भाजपा के प्रदर्शन के बारे में भी बताया.

उन्होंने कहा, ‘विधानसभा (चुनाव) में भाजपा का प्रदर्शन इसलिए खराब रहा है क्योंकि वहां अतिराष्ट्रवाद काम नहीं आता. इसकी रणनीति में एक बड़ी खामी यह है कि पार्टी मोदी की लोकप्रियता पर बहुत ज्याद निर्भर है, साथ ही पूर्वी और दक्षिणी भारत में अच्छा प्रदर्शन करने में असमर्थ है. यहां तक कि सबसे ज्यादा ध्रुवीकरण वाले चुनावों में भी भाजपा को 50-55 फीसदी से ज्यादा हिंदू वोट नहीं मिले हैं.’


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