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Tuesday, 5 November, 2024
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पायलट के लिए संभावनाएं खत्म नहीं हुई हैं क्योंकि नंबर गेम में गहलोत सरकार के लिए चुनौती बरकरार है

राजस्थान की 200 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस की संख्या अभी बस 100 तक पहुंच रही है, जबकि भाजपा, उसके सहयोगी और पायलट समर्थक मिलकर 98 के आंकड़े तक पहुंच सकते हैं. हाईकोर्ट का फैसला इस नाजुक समीकरण को बदल सकता है.

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नई दिल्ली: राजस्थान कांग्रेस के बागी नेता सचिन पायलट 107 पार्टी विधायकों में से केवल 18 के समर्थन के कारण भले ही कमज़ोर पड़ गए दिखते हों, लेकिन उनके लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को हटाने की संभावना खत्म नहीं हुई है.

विधानसभा के स्पीकर द्वारा 19 बागी विधायकों को नोटिस दिए जाने के खिलाफ याचिका पर राजस्थान उच्च न्यायालय का शुक्रवार का फैसला गहलोत सरकार के सुरक्षित बचने के सवाल के साथ-साथ पायलट के तात्कालिक राजनीतिक भविष्य के लिए भी अहम होगा. कांग्रेस पार्टी के संकटमोचकों ने दिप्रिंट से बातचीत में स्वीकार किया कि गहलोत पर खतरा अभी टला नहीं है, भले ही पार्टी 200 सदस्यीय विधानसभा में छोटे दलों और निर्दलियों समेत कुल 109 विधायकों के समर्थन का दावा करती हो.

पायलट की उम्मीदों की वजह ये है: 19 बागियों के बिना सत्तारूढ़ कांग्रेस की ताकत 107 से घटकर 88 विधायकों की रह जाती है. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के 72 और उसकी सहयोगी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) के 3 विधायक हैं. इस तरह मौजूदा स्थिति में गहलोत सरकार को बने रहने के लिए 13 गैर-कांग्रेसी विधायकों का साथ चाहिए, जबकि विपक्षी भाजपा-आरएलपी को सरकार गिराने के लिए 26 अतिरिक्त विधायकों के समर्थन की दरकार है.

सचिन पायलट द्वारा मुख्यमंत्री बनने के लिए किया गया प्रयास अब अहम के टकराव में बदल चुका है — उपमुख्यमंत्री के रूप में सचिन द्वारा, उनके अनुसार, झेले गए अपमान का बदला लेने का मौका.

पायलट खेमे में मौजूद विधायकों के अनुसार अपने पूर्व बॉस मुख्यमंत्री गहलोत की कुर्सी गिराने के लिए पायलट किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हैं. दिप्रिंट से बातचीत में पायलट ने कहा कि वह भाजपा में नहीं जाएंगे, उसकी बजाय ज़रूरत पड़ी तो उन्हें ‘अगले 5-10 साल तक धूल-मिट्टी में संघर्ष करना’ स्वीकार्य है. मतलब पायलट भाजपा और कांग्रेस से अलग अपनी अलग राह बनाने के लिए लंबा वक्त बिताने के लिए तैयार हैं.

हालांकि वह कांग्रेस नेताओं के संपर्क में हैं और गुरुवार को पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम से उन्होंने बात भी की, लेकिन पायलट के वफादारों के अनुसार वह उनके आश्वासनों पर भरोसा करने को तैयार नहीं हैं क्योंकि पार्टी हाईकमान ने ‘पूर्व में भी अनेक वादे’ किए थे जिन्हें पूरा नहीं किया गया.


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हाईकोर्ट के फैसले का संभावित असर

यदि राजस्थान हाईकोर्ट 19 बागी कांग्रेस विधायकों को विधानसभा स्पीकर के नोटिस पर किसी तरह का रोक लगाता है, तो वैसे में पायलट गुट को सत्तारूढ़ पार्टी और उसके सहयोगियों के कुछ और विधायकों को तोड़ने और अपनी स्थिति मज़बूत करने के लिए वक्त मिल सकेगा.

जैसा कि ऊपर बताया गया है, गहलोत को कुर्सी पर बने रहने के लिए 13 गैर-कांग्रेसी विधायकों का साथ चाहिए जबकि सरकार गिराने के लिए पायलट-भाजपा को 26 अतिरिक्त विधायकों की ज़रूरत होगी. गहलोत की निर्भरता 13 स्वतंत्र विधायकों में से 10 पर है — शेष तीन के खिलाफ राज्य के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो की जांच चल रही हैं, जिन पर सरकार गिराने के लिए कथित रूप से अन्य विधायकों को धन की पेशकश करने का आरोप है. निर्दलीय विधायकों समेत सरकार के पक्ष में 98 विधायक होते हैं. इसके अलावा गहलोत माकपा के एक विधायक — दूसरा वामपंथी विधायक पायलट के खेमे में है — और अजीत सिंह के राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के एक विधायक, गहलोत का विश्वस्त जोकि मंत्री भी है, के समर्थन पर भरोसा कर सकते हैं. इन सबको मिलाकर सत्तारूढ़ कांग्रेस के पक्ष में 100 विधायक हो जाते हैं.

मौजूदा राजनीतिक उठापटक से पहले कांग्रेस को गुजरात के छोटूभाई बासवा की भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) के दो विधायकों का भी समर्थन था. पर बासवा ने अब अपने विधायकों को विधानसभा में ना तो कांग्रेस और ना ही भाजपा के पक्ष में मतदान करने का निर्देश दिया है. यदि बीटीपी अपने रुख पर अड़ी रही तो 198 सदस्यीय (बीटीपी को छोड़कर) सदन में गहलोत सरकार को 100 विधायकों के साथ बहुमत मिला रहेगा. गहलोत अतिआशावादी माने जाएंगे यदि वह सदन में बस 1 के बहुमत पर भरोसा करते हों, खासकर इतने परिवर्तनशील राजनीतिक माहौल में और अमित शाह की भाजपा जैसी प्रतिस्पर्धी पार्टी के होते हुए.

यदि राजस्थान हाईकोर्ट बागी कांग्रेस विधायकों की याचिका को खारिज कर देता हो तो फिर गहलोत बढ़त की स्थिति में आ जाएंगे. वैसे में विधानसभा के स्पीकर बागी कांग्रेस विधायकों को अयोग्य ठहराने का कदम उठा सकते हैं, जिससे मौजूदा राजनीतिक नाटक में उनकी भूमिका खत्म हो जाएगी. अयोग्य घोषित किए जाने, और तीन साल बाद निर्धारित राज्य के विधानसभा चुनावों से पहले चुनकर आने की चुनौती के मद्देनज़र पायलट गुट के कुछ विधायकों को घरवापसी करना शायद अधिक सुरक्षित लगे. गहलोत के वफादार निर्दलीय विधायकों — 13 में से 10 — को अपने खेमे में लाने की उम्मीद लगाए बैठे पायलट गुट के लिए ये निराशानजक बात होगी. उस स्थिति में बीटीपी भी अपने रवैये पर पुनर्विचार कर सकती है.


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मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने की पायलट की महत्वाकांक्षा

कांग्रेस के मध्यस्थों ने दिप्रिंट से अपना आकलन साझा करते हुए कहा कि राजस्थान के बर्खास्त उपमुख्यमंत्री को गहलोत की विदाई से कम कुछ भी अस्वीकार्य होगा. उनके अऩुसार पायलट के लिए मुख्यमंत्री बनना अब उनकी दूसरी प्राथमिकता बन गई है. इसलिए हाईकोर्ट का फैसला अपने पक्ष में आने और परिणामस्वरूप गहलोत सरकार के गिरने का रास्ता साफ होने पर पायलट पहले भाजपा के समर्थन से सरकार बनाने के लिए पर्याप्त संख्या में विधायकों को जुटाने का प्रयास करेंगे. ये परिदृश्य संभव है.

जैसा कि ऊपर कहा गया है, भाजपा और उसके सहयोगी के पास कुल 75 विधायक हैं. यदि गहलोत विरोधी गुट के 19 कांग्रेसी विधायकों, भ्रष्टाचार विरोधी ब्यूरो की जांच का सामना कर रहे तीन स्वतंत्र विधायकों और माकपा के एक विधायक को जोड़ लिया जाए तो विपक्षी सदस्यों की संख्या बढ़कर 98 हो जाती है. और, किसी को नहीं पता कि वैसी स्थिति में बीटीपी के दो सदस्य क्या फैसला करेंगे.

यदि 19 बागी कांग्रेस विधायक विश्वास मत या अविश्वास प्रस्ताव से पहले अयोग्य ठहरा दिए जाते हैं, तो सदन की कुल क्षमता 181 विधायकों की रह जाएगी. वैसी स्थिति में गहलोत के आसानी से सरकार बचा लेने की संभावना है.

हालांकि, यदि हाईकोर्ट अयोग्य ठहराने की कार्रवाई पर रोक लगा देता है और वे अविश्वास प्रस्ताव पर — बाद में अयोग्य ठहराए जाने की जोखिम उठाते हुए — वोट करते हैं तो ये गहलोत के लिए बहुत ही नाजुक स्थिति होगी. संभव है वैसे में कुछ समय के लिए राष्ट्रपति शासन लगाया जाए, जोकि पायलट और भाजपा के लिए अपने पक्ष में नंबर बढ़ाने का अवसर होगा. बागी सदस्य हमेशा ही दोबारा निर्वाचित होने और फिर पुरस्कृत किए जाने की उम्मीद कर सकते हैं, जैसा कि कर्नाटक में हुआ था.


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खेल बिगाड़ सकने वाले अप्रत्याशित कारक

संख्याओं के इस सारे खेल का एक अप्रत्याशित पहलु भी हो सकता है— पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का. भाजपा हाईकमान राजस्थान में उनको कमज़ोर करने की लगातार कोशिश करता रहा है. वह नहीं चाहेंगी कि सचिन पायलट भाजपा या उसके समर्थित किसी गुट के सदस्य के रूप में उनकी पार्टी के भीतर नेतृत्व की लड़ाई में कोई कारक बनकर उभरें. सार्वजनिक रूप से भाजपा नेता पायलट के साथ मिलकर गहलोत सरकार गिराने की योजना में उनके बाधक बनने की आशंका से इनकार करते हैं. लेकिन निजी तौर पर वे एक अलग ही कहानी बताते हैं. वैसे इस समय वसुंधरा चुप रह रही हैं.

शुक्रवार को हाईकोर्ट का फैसला चाहे जिस पक्ष में जाए, इस बात की पूरी संभावना है कि असंतुष्ट पक्ष सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाएगा और फिर कानूनी लड़ाई लंबे समय तक खिंच सकती है — इस संभावना पर भाजपा और पायलट को ऐतराज नहीं होगा.

वर्तमान स्थिति में पायलट भले ही गहलोत सरकार को गिराने के मंसूबे पाल सकते हों, पर उसके बाद वे मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल कर पाएंगे या नहीं, ये लाख टके का सवाल है. और इस संबंध में परिस्थितियां उनके बेहद खिलाफ हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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