मुंबई: महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार के लिए पहला साल काफी हद तक मिलाजुला रहा. गठबंधन सरकार ने 28 नवंबर 2019 को सत्ता संभाली थी.
सरकार बनाने के लिए पहली बार साथ आए राजनीतिक दलों शिवसेना, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस के लिए इस एक साल के दौरान असंतोष के कुछ सुर, कुछ लोकलुभावन उपाय, वित्तीय बोझ, निवेश के नए विकल्प, केंद्र के साथ लगातार टकराव, पुलिस ज्यादती के आरोप और एक महामारी से निपटना समय-समय पर चुनौती बने रहे.
एक साल पूर्व तीन अलग-अलग विचारधारा वाले राजनीतिक दलों ने कुछ खास वैचारिक मुद्दों पर मतभिन्नताओं को दरकिनार कर हाथ मिलाया था. हालांकि, पार्टियां आंतरिक स्तर पर इसे सुलझाने में सफल रही हैं लेकिन इन तीनों की बीच तालमेल की कमी की खबरें बार-बार सामने आती रहीं.
सत्ता में अपना पहला साल पूरी करने वाली सरकार ने शिवसेना के घोषणापत्र में किए गए वादे के अनुरूप कृषि कर्ज माफी जैसे कुछ लोकलुभावन कदम तो उठाए लेकिन कोविड-19 संकट से जूझते हुए वह कोई नई विकास योजना-परियोजना घोषित करने में नाकाम रही.
रायगढ़ में चक्रवात निसर्ग और राज्य के विभिन्न हिस्सों में बेमौसम बारिश के कारण हुए नुकसान ने सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए स्थितियां और विकट कर दीं जिसमें राहत के उपाय करना अपरिहार्य हो गया, इससे राज्य सरकार के खजाने पर बोझ भी बढ़ा. यह वित्तीय बोझ केंद्र के साथ उसका टकराव बढ़ने की वजह भी बना रहा, क्योंकि फंड की कमी का मुद्दा उठने पर हर बार राज्य ने केंद्र सरकार पर 38000 करोड़ रुपये का बकाया न चुकाने का आरोप लगाया.
हालांकि, महामारी के कारण बिगड़ी स्थिति से कुछ उबरने पर ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार ने अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए कुछ हद तक विदेशी निवेश, कृषि क्षेत्र, पर्यटन और अचल संपत्ति पर ध्यान केंद्रित किया.
पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने बुधवार को एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कोविड-19 संकट से निपटने में नाकाम रहने को लेकर एमवीए सरकार की आलोचना की. फडणवीस ने कहा, ‘पिछले एक वर्ष में राज्य सरकार ने केवल एक ही काम किया है, और वह है परियोजनाएं ठप करना. सरकार कोविड संकट से निपटने में भी विफल रही है और इसलिए पिछले एक साल में सरकार के प्रदर्शन के बारे में बात करने के बजाये… केंद्र को दोषी ठहरा रही है. मुख्यमंत्री धमकी भरी भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं और इस पद के लिए पूरी तरह अयोग्य हैं.’
फडणवीस इस हफ्ते के शुरू में शिवसेना के मुखपत्र सामना को दिए एक साक्षात्कार का जिक्र कर रहे थे जिसमें मुख्यमंत्री ने कहा था कि विपक्ष उन्हें किसी कार्रवाई के लिए बाध्य न करे. ठाकरे ने कहा, ‘याद रखें कि आप भी परिवार और बच्चों वाले हैं.’
वहीं, शिवसेना प्रवक्ता और राज्य विधान परिषद में उपाध्यक्ष नीलम गोरहे ने सरकार का बचाव किया.
गोरहे ने दिप्रिंट को बताया, ‘शिवसेना ने जो फैसले लिए हैं, वे सभी सतत विकास से जुड़े हैं, जिसमें आरे कॉलोनी से मेट्रो कार शेड स्थानांतरित करने का निर्णय भी शामिल है. भाजपा केवल लोगों को गुमराह करने की कोशिश कर रही है और केंद्र की तरफ से राज्य को जीएसटी का बकाया जारी किए जाने जैसे प्रमुख मुद्दों की अनदेखी कर रही है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘पूर्व मुख्यमंत्री भी अतीत में ‘साम दाम दंड भेद’ जैसी शब्दावली का इस्तेमाल कर चुके हैं, और भाजपा ने हमेशा अपने दोस्त के साथ धोखा किया है. ऐसी पार्टी को मुख्यमंत्री की भाषा पर टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है.’
वैचारिक मतभेदों के साथ शासन
एमवीए सरकार के पहले सौ दिनों के दौरान ही नागरिकता संशोधन अधिनियम और एल्गार परिषद की जांच जैसे मुद्दों पर वैचारिक मतभेद सामने आने पर इस नाजुक गठबंधन की स्थिरता को लेकर सवाल उठने लगे थे.
शिवसेना ने शुरू में नागरिकता कानून का समर्थन किया था, जबकि कांग्रेस और एनसीपी के मंत्री चाहते थे कि राज्य सरकार बिल का विरोध करे. हालांकि, राज्य विधानसभा ने कई अन्य गैर-भाजपा शासित राज्यों के विपरीत अधिनियम को लागू करने के खिलाफ कोई प्रस्ताव पारित नहीं किया.
एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने तो एल्गार परिषद मामला राष्ट्रीय जांच एजेंसी को सौंपने के ठाकरे के फैसले पर सार्वजनिक तौर पर नाराजगी जताई थी.
तीनों ही दलों ने भाजपा को सत्ता से बाहर रखने के अपने उद्देश्य को सर्वोपरि रखा और शासन के पहले साल के दौरान सामने आए तमाम मतभेदों और समन्वय में कमी के मुद्दों को दरकिनार कर दिया.
विशेषज्ञों के साथ-साथ एमवीए के घटक दलों को भी लगता है कि इस सारी अवधारणा को और भी बेहतर तरीके से प्रबंधित किया जा सकता था.
एमवीए सरकार के साथ काम करने वाले एक विशेषज्ञ ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि ये सब अवधारणा का मामला है. विशेषज्ञ ने कहा, ‘मुख्यमंत्री आम तौर पर नजर नहीं आते और उनसे मिलना मुश्किल माना जाता है, यह सब कॉरपोरेट ढांचे में तो ठीक ही लेकिन एक लोकतांत्रिक सरकार में यह सब नहीं चलता है, खासकर जब आपका मुकाबला एक ऐसे विपक्ष के साथ हो जो नजरों में आने, अपनी बात जोर-शोर से रखने और कोई धारणा बनाने में माहिर हो. सहयोगियों के बीच समन्वय की कमी की खबरों से मतदाताओं के बीच कोई अच्छा संदेश नहीं जाता है.’
सोशल मीडिया पर असंतोष फैलाने वालों की गिरफ्तारी, अभिनेत्री कंगना रनौत के साथ तू तू-मैं मैं और उनके दफ्तर को गिराना, और रिपब्लिक टीवी और इसके प्रधान संपादक अर्णब गोस्वामी के खिलाफ केस दर्ज कराए जाने जैसे मामलों ने, खासकर तब जब सरकार एक तरफ महामारी से भी जूझ रही है, विपक्ष को एमवीए पर हमलों के लिए कारगर हथियार दे दिया. हालांकि एमवीए के किसी भी घटक ने खुलकर तो असंतोष नहीं जताया लेकिन दिप्रिंट से बातचीत करने वाले कुछ कांग्रेस सदस्यों ने जरूर इन घटनाओं को लेकर असहज होने की बात कही.
कृषि, लोकलुभावन उपायों और ग्रामीण वोट बैंक पर ध्यान
महामारी के कारण इस साल सरकार की तमाम रणनीतियां धराशायी हो जाने के बावजूद महा विकास अघाड़ी सरकार ने कृषि पर विशेष ध्यान केंद्रित किया जो कांग्रेस के साथ-साथ एनसीपी के ग्रामीण वोट बैक के लिहाज से काफी अहम है, साथ ही यह ऐसा क्षेत्र है जहां शिवसेना अपना जनाधार मजबूत करने की दिशा में काम कर रही है.
नाम न छापने की शर्त पर कांग्रेस के एक वरिष्ठ मंत्री ने कहा कि पार्टियों के बीच छोटे-मोटे मुद्दों को समय-समय पर हल किया जाता रहा है. मंत्री ने कहा, ‘सरकार की तरफ से किसानों के हित में लिए गए कई फैसलों से कांग्रेस को भी फायदा हो रहा है. राज्य सरकार ने इस वर्ष न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों से कपास की रिकॉर्ड खरीद की है, फिर हमने धान किसानों को सहायता देने का फैसला किया. इनमें से अधिकांश किसान विदर्भ क्षेत्र के हैं. इसलिए निश्चित रूप से हमारी पार्टी को फायदा हो रहा है.’
इस हफ्ते के शुरू में धान किसानों के लिए योजना मंजूरी की गई है और 1,400 करोड़ रुपये की लागत के साथ इसमें किसानों को प्रति क्विंटल 700 रुपये का भुगतान किए जाना शामिल है. विदर्भ में नागपुर संभाग के जिलों में धान एक महत्वपूर्ण फसल है. यह क्षेत्र परंपरागत रूप से कांग्रेस का मजबूत गढ़ रहा है लेकिन 2014 के बाद से भाजपा के आगे उसका जनाधार सिमटने लगा था.
इसके अलावा सभी दलों के मंत्री 2 लाख रुपये तक प्रस्तावित कृषि ऋण माफी की बात करते हैं, जिसके तहत एमवीए सरकार ने 30.77 लाख खातों में 19,643 करोड़ रुपये का वितरण किया है.
मुख्यमंत्री की एक अन्य अहम पहल है ‘विकेल ते पिकेल’ (जो बिके उसे उगाओ), जिसमें किसानों को 1370 मार्केट-बेस्ड वैल्यू चेन से जोड़ना और उपभोक्ताओं की मांग के अनुरूप फसलें उगाने में सक्षम बनाना शामिल है.
एमवीए सरकार ‘शिव भोजन’ योजना को भी अपनी बड़ी सफलताओं में एक गिनाती है, शिवसेना का यह कार्यक्रम सीएम ने सत्ता में आने के बाद व्यवस्थित रूप में शुरू किया है.
इस योजना को पार्टी की ‘शिव वड़ा पाव योजना’ का ही विस्तार करार दिया जाता है जिसके तहत पूरे राज्य के 907 केंद्रों पर 5 रुपये में भरपेट भोजन मिलने की व्यवस्था की गई है. इसी तरह पारिस्थितिकी के लिहाज से संवेदनशील आरे कॉलोनी से मेट्रो कार शेड परियोजना हटाने का नीतिगत निर्णय, जिसे शिवसेना और पर्यावरण मंत्री आदित्य ठाकरे के लिए एक बड़ी जीत माना जा रहा है, एमवीए के तीनों घटकों की तरफ से उठाया गया एक बड़ा कदम है.
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ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो सायली उदास मनकीकर ने दिप्रिंट से कहा, ‘इस सरकार की एक सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि इसने कृषि ऋण माफी के अपने वादे पर इतनी जल्दी अमल किया. उसने कोविड संकट से पहले ही कुछ ऐसी लोकलुभावन योजनाएं लागू कीं. महामारी का संकट देखते हुए सरकार के पहले वर्ष का निष्पक्ष मूल्यांकन नहीं हो सकता है.’
उन्होंने कहा, ‘लेकिन सरकार दूतावासों के साथ संपर्क में है, समझौतों पर हस्ताक्षर भी कर रही है. यही सही रास्ता भी है क्योंकि आने वाले सालों में निवेश हासिल करने में सफलता के लिए केवल यही रास्ता है.’
राज्य सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, राज्य के उद्योग विभाग ने औद्योगिक निवेश के लिए 50,000 करोड़ रुपये से अधिक के सहमति पत्रों (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं.
मुंबई यूनिवर्सिटी में सीनियर रेजीडेंट फेलो अभय पेठे ने कहा कि हालांकि इसके लिए मुख्यमंत्री की आलोचना की गई थी, लेकिन लॉकडाउन के बाद पूरी सावधानी के साथ अर्थव्यवस्था को खोलने का उनका नजरिया विवेकपूर्ण था.
उन्होंने कहा, ‘सबका व्यक्तित्व अलग-अलग होता है. उद्धव ठाकरे रूढ़िवादी हैं, जोखिम से परहेज करते हैं और जमीनी स्तर पर मिलने वाली सूचनाओं के आधार पर सहजता से फैसले ले रहे हैं. मुझे लगता है कि यह बुद्धिमत्ता है. स्टांप ड्यूटी में कटौती जैसे कदमों से अर्थव्यवस्था को गति देने का फैसला भी उचित है क्योंकि रियल एस्टेट कारोबार रोजगार सृजन में अग्रणी क्षेत्र है. ऐसे और विशेष पैकेज तैयार करने की आवश्यकता है.’
कोविड-19 और वित्तीय संकट
महाराष्ट्र कोविड-19 संकट से सबसे अधिक प्रभावित हुआ है, जहां कोविड पॉजिटिव मामलों की संख्या शनिवार तक 18,08,550 थी और अब तक 46,898 मौतें हो चुकी हैं.
जब महामारी का प्रकोप फैला तो एमवीए सरकार को पिछली सरकारों द्वारा सार्वजनिक स्वास्थ्य की अनदेखी किए जाने के कारण स्वास्थ्य क्षेत्र में मजबूत बुनियादी ढांचे के अभाव का सामना करना पड़ा.
पहले तीन महीनों तक तो अस्पताल के बेड की मारामारी मची रही खासकर मुंबई में. लेकिन ठाकरे सरकार ने जल्द ही समर्पित कोविड स्वास्थ्य सुविधाओं, जंबो अस्पतालों के निर्माण और राज्य के लिए निजी अस्पतालों में 80 प्रतिशत बेड कोविड मरीजों के लिए आरक्षित करने जैसे साहसिक कदम उठाते हुए बुनियादी ढांचे को ठीक कर दिया,
राज्य सभी के लिए कोविड-19 टेस्ट की पुख्ता व्यवस्था के साथ कोविड जांच की लागत, मास्क और अन्य चिकित्सा उपकरणों की कीमतों को नियंत्रित करने में भी आगे रहा.
राज्य वित्त विभाग के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि कोविड, लॉकडाउन और अर्थव्यवस्था को सावधानीपूर्वक खोलने की ठाकरे की नीति की वजह से राज्य सरकार को 2020-21 में एक लाख करोड़ से अधिक की राजस्व हानि का अनुमान है.
अब सभी गैर-जरूरी विकास खर्चों में 50 प्रतिशत की कटौती करने वाली राज्य सरकार ने पूर्व में वित्त वर्ष में 2.6 लाख रुपये की राजस्व प्राप्ति का अनुमान लगाया था.
ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन की मनकीकर का मानना है कि सिविल सेवा के प्रभावी ढंग से इस्तेमाल ने मुख्यमंत्री को इस कठिन समय को भी आसानी से झेलने में मदद पहुंचाई है.
मनकीकर ने कहा, ‘उद्धव ठाकरे के पास वास्तव में इस बड़ी भूमिका को निभाने का प्रशासनिक कौशल नहीं था. लेकिन एक अच्छी बात यह है कि वह इस कमजोरी को बहुत जल्दी समझ गए, और प्रशासनिक क्षमता यानी नौकरशाही का इस्तेमाल किया जिसने उन्हें आसानी से आगे बढ़ने में मदद पहुंचाई, हालांकि इसके लिए उन्हें बहुत ज्यादा राजनीतिक आलोचना का सामना भी करना पड़ा. कोविड जैसी परिस्थितियों में बचाने और योजनाएं बनाने में केवल नौकरशाह ही मददगार हो सकते थे.’
हालांकि, पिछले हफ्ते दिप्रिंट से बातचीत में महाराष्ट्र मेडिकल काउंसिल के अध्यक्ष डॉ. शिवकुमार श्रेष्ठ ने कहा था कि कांटैक्ट ट्रेसिंग और आक्रामक तरीके से टेस्ट के मामले में राज्य सरकार पिछड़ गई है और दूसरी लहर से निपटने के लिए इसे फिर से पटरी पर लाने की आवश्यकता है.
वहीं ऊपर उद्धृत राज्य सरकार के साथ काम करने वाले विशेषज्ञ ने कहा कि वित्तीय दबाव के बावजूद राज्य सरकार के लिए अभी उधार लेने की गुंजाइश है.
उन्होंने कहा, ‘किसी को भी अपने ऊपर ऋण के बोझ को उसे प्राप्त होने वाले राजस्व के अनुपात में देखना चाहिए. तब इस पर लाल झंडी की जरूरत पड़ती है जब ऋण राजस्व प्राप्तियों के 21 प्रतिशत से ज्यादा हो जाता है. अभी हम 15-16 प्रतिशत पर हैं और इसलिए उधार लेने की गुंजाइश बची हुई है. यह सही है कि केंद्र को डिवोल्यूशन के रूप में और ज्यादा राशि देनी चाहिए, लेकिन सरकार को धन की जरूरत से जुड़े हर कदम के लिए केंद्र को ही दोषी नहीं ठहराना चाहिए.
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