पटना: लोकसभा चुनावों से पहले लालू प्रसाद यादव के चुने उत्तराधिकारी 29 वर्षीय तेजस्वी यादव को देश के सबसे होनहार युवा नेताओं में से एक बताया जा रहा था. पर चुनावों में करारी हार, जब उनके राष्ट्रीय जनता दल (राजद) का बिहार में खाता तक नहीं खुल पाया, के बाद तेजस्वी के नेतृत्व पर पार्टी के भीतर भी सवाल उठने लगे हैं.
गुरुवार को चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद से कुछ वरिष्ठ राजद नेता राज्य में विपक्षी गठबंधन के चुनाव अभियान के अगुआ रहे तेजस्वी पर परोक्ष हमले कर रहे हैं.
वैशाली लोकसभा सीट पर भारी अंतर से हारने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह ने अपनी हार के लिए राजद द्वारा अगड़ी जातियों को 10 प्रतिशत आरक्षण का विरोध किए जाने को जिम्मेदार ठहराया है. उन्होंने कहा, ‘अगड़ी जातियों को आरक्षण दिए जाने का विरोध करना आत्मघाती कदम था. मैंने इसे सुधारने की कोशिश की पर उन्होंने इसे मेरी निजी राय करार दिया.’
सिंह ने कहा, ‘अगड़ी जातियों को आरक्षण की बात खुद राजद के 2010 के घोषणा-पत्र में शामिल थी. पर उन्होंने उसे पढ़ा तक नहीं.’
रघुवंश प्रसाद सिंह और जगदानंद सिंह, जो बक्सर सीट से उम्मीदवार थे, जैसे राजद के ऊंची जाति के उम्मीदवारों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा क्योंकि उनकी खुद की राजपूत जाति के मतदाताओं ने उनका साथ छोड़ दिया.
बढ़ता असंतोष
असंतोष सिर्फ रघुवंश सिंह तक ही सीमित नहीं है. दरभंगा चुनाव क्षेत्र में 2 लाख से ज़्यादा मतों के अंतर से हारने वाले वरिष्ठ राजद नेता अब्दुल बारी सिद्दिकी ने ‘पार्टी में नई जान फूंकने के लिए इसके ढांचे को नए सिरे से खड़ा करने की ज़रूरत’ का संकेत दिया है, जबकि पार्टी के विधायक सुरेंद्र यादव ने हार के लिए महागठबंधन में समन्वय के अभाव को जिम्मेवार ठहराया.
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लगभग 1,700 मतों के मामूली अंतर से जहानाबाद लोकसभा सीट पर पराजित रहे यादव ने कहा, ‘हमने सिर्फ कागजों पर महागठबंधन खड़ा किया था. और ज़मीनी स्तर पर गठबंधन सहयोगियों के कार्यकर्ताओं के बीच समन्वय का नितांत अभाव था.’
मधुबनी सीट के लिए टिकट नहीं दिए जाने पर राजद छोड़ देने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री ए.ए. फातिमी विपक्ष की नाकामी के लिए सीधे तेजस्वी को दोषी ठहराते हैं. उन्होंने कहा, ‘महागठबंधन ध्वस्त हुआ सिर्फ और सिर्फ तेजस्वी के अहंकार के कारण. उन्हें समझना चाहिए था कि नीतीश कुमार को पलटू चाचा कह कर अपमानित करने से वोट बढ़ते नहीं, बल्कि घटते हैं.’ फातिमी ने आगे कहा, ‘साथ ही तेजस्वी ने महागठबंधन के दूसरे दलों के निर्वाचन क्षेत्रों में सभाएं करने का भी प्रयास नहीं किया.’
राजद के नेता तेजस्वी की शैली उनके पिता लालू प्रसाद यादव से बिल्कुल अलग होने की भी शिकायत करते हैं. अपना नाम नहीं दिए जाने की शर्त पर राजद के एक विधायक ने कहा, ‘लालूजी 10 सर्कुलर रोड के अपने निवास पर पार्टी कार्यकर्ताओं से मिला करते थे. वे उनसे फीडबैक लेते थे. ..तेजस्वी किसी पार्टी कार्यकर्ता से नहीं मिलते और आमतौर पर दो करीबी विश्वासपात्रों के सहारे काम करते हैं.’
इस राजद विधायक ने चुनावों के दौरान तेजस्वी के एक गैरसंजीदा नेता की छवि बनने की भी बात की. उन्होंने सवाल किया, ‘कौन लोकसभा चुनावों के दौरान प्रचार अभियान से पांच दिनों के लिए गायब होगा, और राहुल गांधी या महागठबंधन के अन्य नेताओं के साथ मंच साझा करने की परवाह नहीं करेगा? ..और इतना ही नहीं, उन्होंने उस शख्स (पटना साहिब से शत्रुघ्न सिन्हा) के लिए अपना वोट डालने की भी जहमत नहीं उठाई कि जिसके लिए उन्होंने प्रचार किया था.’
हर तरह से पराजय
राजद ने बिहार में 19 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उनमें से एक पर भी जीत नहीं पाना ही पूरी कहानी नहीं है. यदि लोकसभा चुनावों के परिणामों की विधानसभा क्षेत्रों से तुलना की जाए तो बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से 225 पर एनडीए के उम्मीदवार विजयी रहते.
राजद का प्रदर्शन इतना खराब रहा कि हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र में पड़ने वाले तेजस्वी के खुद के विधानसभा क्षेत्र राघोपुर में पार्टी को महज 242 वोटों की बढ़त मिल पाई. पूरे राज्य के मात्र नौ विधानसभा क्षेत्रों में राजद अपनी बढ़त दर्ज करा सकी है. अपने मौजूदा विधायकों की सीटों में से करीब 90 फीसदी पर पार्टी पिछड़ गई है.
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बिहार विधानसभा में इस समय राजद के 79 विधायक हैं.
इतना ही नहीं, पार्टी उन विधानसभा क्षेत्रों में बहुत बड़े अंतर से पीछे रही है, जिन्हें कि इसका गढ़ माना जाता रहा है – यानि मधेपुरा, अररिया, दरभंगा और मधेपुरा जैसे क्षेत्र जहां कि राजद के मुख्य समर्थक माने जाने वाले यादव और मुस्लिम वर्गों के मतदाता बड़ी संख्या में हैं.
चुनाव परिणाम आने के बाद से तेजस्वी और लालू परिवार के अन्य सदस्य अपने 10 सर्कुलर रोड आवास के भीतर ही रहे हैं. राजद ने अपनी अपमानजनक हार के कारणों की समीक्षा के लिए 28 और 29 मई को दो-दिवसीय बैठक बुलाई है. परिणामों से लालू प्रसाद इतने दुखी बताए जा रहे हैं कि उन्होंने कथित रूप से रांची के रिम्स अस्पताल में दिन का खाना त्याग दिया, और अपने डॉक्टरों को चिंतित कर दिया. पार्टी के बाकी नेता और भी अधिक हतोत्साहित हैं.
राजद के एक नेता ने कहा, ‘सबसे आसान है हार के लिए संप्रदायवाद और ईवीएम को दोष देना. लेकिन तेजस्वी को इस सवाल का जवाब देना होगा कि वह करीब 18 महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनावों में ठोस प्रदर्शन के लिए पार्टी को तैयार करने में सक्षम हैं या नहीं.’
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