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Sunday, 28 April, 2024
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‘पोल-खोल’: बिहार BJP की ‘JD(U) की झूठ की फैक्ट्री’ को बेनकाब करने के लिए रैलियां आयोजित करने की योजना

भाजपा के साथ अपने विभाजन को सही ठहराते हुए जद (यू) ने दावा किया कि पीएम मोदी ने तत्कालीन पार्टी नेता आरसीपी सिंह को बिहार के सीएम नीतीश कुमार की सहमति के बिना केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया था.

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नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने जनता दल (यूनाइटेड) की ‘झूठ की फैक्ट्री’ को बेनकाब करने के लिए बिहार में लोगों के पास जाने का फैसला किया है. दरअसल जद(यू) ने दावा किया था कि तत्कालीन जदयू नेता आर.सी.पी. सिंह को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पार्टी सुप्रीमो और बिहार के सीएम नीतीश कुमार की सहमति के बिना केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया था.

जद(यू) के नेताओं ने इस महीने की शुरुआत में भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ने और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के साथ हाथ मिलाने के पार्टी के फैसले को सही ठहराने के लिए जिन मुद्दों का हवाला दिया था, उनमें से यह एक है.

यह मामला मंगलवार को बिहार भाजपा की कोर कमेटी की बैठक में उठाया गया. बैठक में शामिल होने वाले नेताओं में से एक ने दिप्रिंट को बताया, ‘बैठक के दौरान अमित शाह जी ने कहा कि नीतीश कुमार आर.सी.पी. सिंह के मामले में बिल्कुल झूठ बोल रहे हैं.’

नेता ने कहा, ‘कुमार ने मोदी सरकार में जद(यू) के प्रतिनिधि के रूप में सिंह के नाम को मंजूरी दी थी और भाजपा को लोगों को उनकी इस झूठ की फैक्ट्री के बारे में बताने की जरूरत है.’

भाजपा की बिहार इकाई अब राज्य में ‘पोल-खोल’ (सच्चाई का खुलासा) रैलियां करने की योजना बना रही है. इन रैलियों में पार्टी बताएगी कि कैसे सीएम ने ‘न केवल भाजपा को बल्कि बिहार के लोगों को भी धोखा दिया है और कैसे वह पूरे मामले के बारे में झूठ बोल रहे हैं.’

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नेता ने कहा ‘ये रैलियां जिला स्तर पर शुरू होंगी और जद (यू) के फैलाए गए झूठ पर इनका पूरा फोकस होगा. साथ ही भाजपा, जद (यू)-राजद गठबंधन में मौजूद आंतरिक अंतर्विरोधों और यह कैसे राज्य को ‘जंगल राज’ के युग में वापस ले जाएगा, इस पर अपना दबाव बनाए रखेगी.’

पूर्व केंद्रीय मंत्री आर.सी.पी. सिंह ने इस महीने की शुरुआत में उस समय जद (यू) से इस्तीफा दे दिया था, जब पार्टी ने उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों पर उनकी प्रतिक्रिया मांगी थी. वह बिहार में भाजपा-जद (यू) गठबंधन के संकट के केंद्र में थे.

7 अगस्त को जद (यू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने पटना में प्रेस के साथ एक बातचीत में कहा था कि ‘2020 के विधानसभा चुनावों में जिस तरह से जद (यू) को आहत करने के लिए चिराग मॉडल बनाया गया था, उसी तरह आरसीपी मॉडल बनाने के लिए एक कदम उठाया गया था.’

वह लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख चिराग पासवान पर 2020 में जद (यू) के उम्मीदवारों के मैदान में सीटों पर चुनाव लड़कर जद (यू) की सीट के हिस्से में सेंध लगाने के लिए भाजपा के साथ साजिश रचने के आरोपों का जिक्र कर रहे थे. उस समय चिराग पासवान भाजपा और जद (यू) के साथ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का हिस्सा थे.


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बिहार के लिए बीजेपी की योजना

जद(यू) के राजद, कांग्रेस और वाम दलों (महागठबंधन) के साथ गठबंधन करने के बाद राजनीतिक रूप से अलग-थलग पड़ी भाजपा ने अब बिहार के नए विपक्ष की भूमिका निभाने का मन बना लिया है. पार्टी सूत्रों ने कहा कि यह अधिक ‘आक्रामक’ होने और जद (यू) के ‘अपवित्र’ गठबंधन पर दबाव बनाए रखने की योजना बना रहा है.

ग्रामीण जुड़ाव, भाजपा नेताओं और मंत्रियों का प्रवास, कैडर का मनोबल बढ़ाना और अपने दम पर चुनाव लड़ना – यही वह मंत्र है जिसे पार्टी अब बिहार में अपनाना चाहती है.

सूत्रों ने कहा कि राज्य इकाई को बूथ समितियों और पन्ना प्रमुखों- मतदाता सूची के एक विशेष पन्ने पर मतदाताओं से जुड़ने वाला प्रभारी कार्यकर्ता – को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा गया है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि पार्टी राज्य के हर नुक्कड़ पर दिखाई दे.

पहले उद्धृत किए गए नेता ने बताया, ‘अमित शाह जी ने (बैठक में) जोर दिया कि हमें बूथ स्तर पर पार्टी को मजबूत करने और गांवों तक पहुंचने की जरूरत है. जद (यू) के निर्वाचन क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है, क्योंकि भाजपा ने अब तक उन्हें प्राथमिकता नहीं दी थी.’

बिहार भाजपा अध्यक्ष संजय जायसवाल का कार्यकाल समाप्त होने के साथ, पार्टी के एक वर्ग का यह भी विचार था कि भाजपा को ‘उच्च’ जातियों पर ध्यान देना चाहिए और साथ ही नीतीश को चुनौती देने के लिए एक ‘विश्वसनीय’ चेहरा खोजना चाहिए. नेता ने कहा, ‘छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन भी तय है, लेकिन विधानसभा चुनाव से पहले ही इस पर ध्यान दिया जाएगा.’ राज्य में अगला विधानसभा चुनाव 2025 में होना है.

सूत्रों के मुताबिक बीजेपी ने ग्रामीण इलाकों और केंद्र की मुफ्त राशन योजना पर फोकस करने का फैसला किया है.

एक दूसरे भाजपा नेता ने बताया, ‘पिछले कई महीनों से पार्टी कैडर हतोत्साहित या निराश महसूस कर रहे हैं क्योंकि वे काम करने में असमर्थ थे और केंद्रीय नेतृत्व की बात मानने के लिए मजबूर थे. गठबंधन का टूटना साबित करता है कि वे सही थे और इसलिए पार्टी को उन तक पहुंचने और यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि वे नई सरकार से और अधिक आक्रामक तरीके से लड़ने में सक्षम हैं.’

जद(यू) से अलग होने से पहले शाह ने पिछले महीने घोषणा की थी कि भाजपा अपने सहयोगी के साथ फिर से चुनाव लड़ेगी.

भाजपा के एक तीसरे वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘बैठक कई घंटों तक चली, लेकिन सभी के लिए मुख्य संदेश यह था कि भाजपा को अपने दम पर चुनाव की तैयारी शुरू करनी होगी. वह कब तक गठबंधन सहयोगियों को बैसाखी के रूप में इस्तेमाल करती रहेगी? पार्टी छोटे दलों के साथ गठजोड़ के खिलाफ नहीं है, लेकिन उसे खुद भी तैयार रहना चाहिए.’


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अकेले जाना आसान नहीं

कोर कमेटी के विचार-मंथन सत्र के दौरान बिहार इकाई को मजबूत करना चर्चा का एक प्रमुख बिंदु था. भाजपा ने 2024 के आम चुनाव में राज्य की 40 लोकसभा सीटों में से 35 पर जीत हासिल करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है.

मौजूदा समय में भाजपा के पास 17 सीटें हैं, जबकि जद(यू) के पास 16 हैं. अगले चुनाव में भाजपा अकेले जाने की योजना बना रही है. जाति अंकगणित और जद(यू)-राजद गठबंधन को ध्यान में रखते हुए पार्टी के लिए लक्ष्य हासिल करना और ज्यादा मुश्किल हो सकता है.

2020 के बिहार चुनाव में भाजपा 74 सीटों के साथ सबसे बड़ी एनडीए सहयोगी के रूप में उभरी थी, जबकि जद(यू) के पास 43 (अब 45) सीटें थीं. राजद के पास फिलहाल 80 सीटें हैं.

दिप्रिंट से बात करते हुए एक चौथे वरिष्ठ भाजपा नेता ने बताया कि कोर कमेटी के सदस्यों – जिनमें बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम सुशील मोदी, केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह व नित्यानंद राय और पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद शामिल हैं – को विशिष्ट जिलों का प्रभार दिया जाएगा और वो और प्रवास (यात्राओं) का संचालन करेंगे.

नेता ने कहा, ‘विचार उन समुदायों तक पहुंचने का भी है, जिनका अब तक हमारे पूर्व सहयोगी जद(यू) ने ध्यान रखा था. इसमें अत्यंत पिछड़ा (ईबीसी) और महादलित वर्ग शामिल हैं.’

उन्होंने कहा कि ‘केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार ने कई योजनाओं की घोषणा की और बिहार में नीतीश कुमार की सरकार ने उनका श्रेय लिया क्योंकि हम गठबंधन में थे.’

नेता ने समझाया, ‘हमारे कार्यकर्ताओं को अब इन समुदायों तक पहुंचना होगा और उन्हें जागरूक करना होगा कि यह भाजपा सरकार है जिसने उनके कल्याण के लिए फैसले लिए हैं और भविष्य में इस तरह के निर्णय लिए जाते रहेंगे.’

भाजपा नेताओं को लगता है कि इन दोनों समुदायों (ईबीसी और महादलित) के लिए चलाई गई कल्याणकारी योजनाओं और आरक्षणों का श्रेय लेकर जद(यू) इसका लाभ उठा रही है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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