नई दिल्ली: चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर ने कहा कि अगर नीतीश कुमार की सरकार राज्य की 1.5 करोड़ महिलाओं को वादा किया हुआ 2-2 लाख रुपये दे दे, तो वे राजनीति छोड़ देंगे. उनकी पार्टी, जन सुराज पार्टी, को विधानसभा चुनाव में बड़ी हार मिली—उन्हें 3.4% वोट मिले और एक भी सीट नहीं मिली.
मंगलवार को उन्होंने हिम्मत दिखाते हुए कहा, “अभिमन्यु मारे गए थे, लेकिन उससे महाभारत नहीं जीती गई. कुछ लोग सोचते हैं कि मैं बिहार छोड़ दूंगा; वे गलत हैं. जन सुराज और पीके बिहार को सुधारने के लिए बने हैं और मैं इसे सुधारता रहूंगा. मैं पीछे नहीं हटूंगा; यही मेरा संकल्प है.”
पटना में प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रशांत किशोर ने बिहार चुनाव में हुई गलतियों को माना. उन्होंने कहा, “लेकिन हमने कोई अपराध नहीं किया—वोट न मिलना कोई अपराध नहीं है. हमने जाति की राजनीति नहीं की, न ही हिंदू-मुस्लिम का खेल खेला.” उनसे लगातार पूछा गया कि उन्होंने पहले कहा था कि अगर नीतीश कुमार की जेडीयू 25 से ज्यादा सीटें ले आई, तो वह राजनीति छोड़ देंगे. जेडीयू ने 243 में से 85 सीटें जीतीं.
उन्होंने कहा, “मैं आज भी अपने कहे पर कायम हूं कि जेडीयू 25 से ज्यादा सीटें नहीं ला सकती. अगर नीतीश कुमार और उनकी सरकार ने ये वोट खरीदे नहीं हैं और उन्हें 2 लाख रुपये दे दिए, तो मैं राजनीति से पूरी तरह रिटायर हो जाऊंगा.”
उन्होंने आगे कहा, “इसमें कोई दिक्कत नहीं है. अगर नीतीश बिहार की 1.5 करोड़ महिलाओं को 2 लाख रुपये दे पाते हैं, तो हम मान लेंगे कि हमारा अनुमान गलत था. यह हमारी गलती थी. अगर बिहार से बेरोज़गारी खत्म हो जाती है, पलायन रुक जाता है और 1.5 करोड़ लोगों की गरीबी खत्म हो जाती है, तो पीके को विधायक बनने की या राजनीति की ज़रूरत नहीं; मैं दूसरा काम कर लूंगा.”
उनकी सरकार से केवल एक मांग है—छह महीने में महिलाओं को 2 लाख रुपये दे दिए जाएं, जिससे बेरोज़गारी और पलायन कम होगा.
उन्होंने कहा, “अगर नहीं दिया, तो साफ हो जाएगा कि यह सिर्फ वोट खरीदने का तरीका था.”
किशोर ने एक हेल्पलाइन नंबर भी जारी किया और उन लोगों से कहा जिन्होंने 10,000 रुपये पाए हैं कि अगर आगे 2 लाख नहीं मिलते तो उनसे संपर्क करें.
बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में महिलाओं को 2 लाख देने का वादा किया था, लेकिन समयसीमा नहीं बताई थी.
सरकार के बयान के मुताबिक: “योजना के तहत हर लाभार्थी को शुरुआत में डीबीटी से 10,000 रुपये दिए जाएंगे और आगे ज़रूरत के अनुसार 2 लाख तक की अतिरिक्त मदद दी जा सकती है. यह मदद खेती, पशुपालन, हैंडीक्राफ्ट, सिलाई, बुनाई और छोटे-मोटे व्यापारों में इस्तेमाल की जा सकती है.”
चुनाव की हार की पूरी जिम्मेदारी लेते हुए किशोर ने भितिहरवा आश्रम में एक दिन का मौन व्रत रखने की घोषणा की.
किशोर ने कहा कि पार्टी ने ईमानदार कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली. उन्होंने कहा, “प्रणाली बदलने की तो बात ही छोड़ दें, हम सत्ता भी नहीं बदल पाए. ज़रूर हमने गलतियां की होंगी, इसलिए जनता ने हम पर भरोसा नहीं किया.”
राजनीतिक सलाहकार का करियर छोड़ने के महीनों बाद, 2 अक्टूबर 2022 को पीके ने जन सुराज पदयात्रा शुरू की थी, जिसमें उन्होंने दो साल में बिहार के हज़ारों गांवों का दौरा किया. 2 अक्टूबर 2024 को उन्होंने जन सुराज पार्टी लॉन्च की.
उन्होंने कहा, “मैं इस हार का जिम्मेदार हूं और पूरी जिम्मेदारी लेता हूं. उम्मीदों पर खरा न उतर पाने का पूरा दोष मेरा है. यह आत्मचिंतन का समय है.”
जनसुराज पार्टी ने बिहार की 243 में से 238 सीटों पर चुनाव लड़ा और एक भी सीट नहीं जीत पाए. पीके पहले से कहते रहे थे कि उनकी पार्टी या तो “अर्श पर होगी या फर्श पर”—या 150 सीटें जीतेगी या बिल्कुल नहीं.
उनका चुनाव अभियान प्रवासियों पर केंद्रित था—उन्होंने वादा किया था कि छठ पर बिहार लौटे लाखों लोग अगर उनकी पार्टी सरकार बनाती है, तो 10–12 हज़ार की नौकरी के लिए बाहर नहीं जाएंगे.
कई लोगों ने सवाल उठाया कि पीके ने खुद चुनाव क्यों नहीं लड़ा. इस पर उन्होंने कहा: “इमरान खान ने भी 25 साल पहले पाकिस्तान में पार्टी बनाई थी, 7 सीटों से लड़ा और सब हार गए—तो चुनाव लड़ना एक व्यक्तिगत फैसला है. लोग बहस कर सकते हैं कि मेरे लड़ने से फायदा होता या नहीं.”
उन्होंने यह भी कहा, “मैं मानता हूं कि मैं बिहार को समझ नहीं पाया. यह भी मानता हूं कि मुझे नहीं आता कि बिहार को जाति और धर्म के नाम पर कैसे बांटा जाता है—जैसे लालू यादव, सम्राट चौधरी और अशोक चौधरी करते हैं. राज्य को सुधारने की कोशिश करना अपराध नहीं है, लेकिन लोग ऐसे प्रतिक्रिया दे रहे हैं जैसे मैंने कोई अपराध किया है और आप सब मेरा पोस्टमार्टम करने आए हैं.”
किशोर ने कहा कि देश की आज़ादी के बाद पहली बार सरकार ने 40,000 करोड़ रुपये खर्च करने का वादा किया और इसी वजह से एनडीए को इतने वोट मिले.
उन्होंने कहा, “आजादी के बाद—खासकर बिहार में पहली बार किसी सरकार ने 40,000 करोड़ रुपये लोगों पर खर्च करने का वादा किया, इसलिए एनडीए को इतनी बड़ी जीत मिली. लोग कह रहे हैं कि वोटरों ने 10,000 रुपये में वोट बेच दिए. यह सच नहीं है; यहां के लोग अपना भविष्य या अपने बच्चों का भविष्य नहीं बेचेंगे.”
उन्होंने कहा, “इस बहस का कोई अंत नहीं. कुछ लोग चुनाव आयोग पर भी आरोप लगा रहे हैं—वह उनका मामला है. लेकिन हर विधानसभा सीट पर 60,000–62,000 लोगों को 10,000 रुपये दिए गए और 2 लाख रुपये का लोन देने का वादा किया गया. सरकारी अधिकारियों को ड्यूटी पर लगाया गया कि एनडीए की जीत पर उन्हें लोन मिलेगा, और जीविका दीदियों को भी इसके लिए लगाया गया.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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