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Saturday, 21 December, 2024
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पवार Vs पवार – NCP की विरासत की लड़ाई के दौरान युवा रोहित चाचा अजित से कैसे मुकाबला कर रहे हैं

शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले के सार्वजनिक जीवन में आने के बाद से एनसीपी में तनाव बढ़ रहा है. रोहित पवार का अपने चाचा अजित का विरोध करना दिखाता है कि अब यह तनाव अगली पीढ़ी में प्रवेश कर चुका है.

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नई दिल्ली: पिछले हफ्ते मीडिया से बात करते हुए महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने कहा कि कर्जत जामखेड में प्रस्तावित औद्योगिक क्षेत्र महाराष्ट्र औद्योगिक विकास निगम (एमआईडीसी) का विकास भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) एमएलसी राम शिंदे के कहने पर किया जाएगा, जिन्होंने 2009 से 2014 तक विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया.

समर्थकों की हंसी के बीच जानबूझकर आश्चर्य जताते हुए अजित पवार ने मीडिया से कहा, “देखिए, वह मुद्दा (प्रोजेक्ट) राम शिंदे साहब के आधार पर शुरू किया जाएगा,”

यह बयान इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि अहमदनगर जिले के कर्जत जामखेड में मतदाताओं ने 2019 में अजित के भतीजे रोहित को अपना विधायक चुना.

अपने चाचा की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, रोहित ने अजित को यह साबित करने की चुनौती दी कि जब “ऐसी चीजों” की बात आती है तो वह राजनीति का सहारा नहीं लेंगे. रोहित ने परियोजना के समय पर कार्यान्वयन की मांग को लेकर इस साल जुलाई में महाराष्ट्र विधानसभा में धरना दिया था.

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के संस्थापक और प्रमुख शरद पवार के बड़े भाई के पोते रोहित ने संवाददाताओं से कहा, “दादा (जैसा कि अजित पवार को कहा जाता है) को उनकी (राम शिंदे) बात सुनने दीजिए, लेकिन हमने परियोजना का अध्ययन किया है और इस बात पर जोर दिया है कि यह 1,000 हेक्टेयर से कम नहीं होनी चाहिए. हमें बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां लानी होंगी और युवाओं को रोजगार देना होगा. इसलिए, अगर सरकार की वजह से परियोजना में कुछ भी गलत होता है, तो हम चुप नहीं बैठेंगे.”

जाने-माने किसान दिनकरराव ‘अप्पासाहेब’ पवार के 38 वर्षीय पोते ने कहा: “हम पहले कहते थे ‘दादा, आप राजनीति मत करो’. आज इसे साबित करने का समय आ गया है. आप डिप्टी सीएम हैं और आज आपके पास यह साबित करने का मौका है कि आप पक्षपातपूर्ण नहीं हैं.

यह ठंडी कहासुनी शक्तिशाली पवार के परिवार के सदस्यों के बीच किस तरह के रिश्ते हैं उस पर प्रकाश डालता है. इस साल जुलाई में अजित द्वारा अपने चाचा और राकांपा के 83 वर्षीय संस्थापक व प्रमुख शरद पवार के खिलाफ विद्रोह करने और पार्टी के विधायकों और पदाधिकारियों के एक महत्वपूर्ण समूह के समर्थन के साथ सीएम एकनाथ शिंदे और डिप्टी सीएम देवेंद्र फड़नवीस के नेतृत्व में सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन के साथ एलायंस करने के बाद रिश्ते में दरारें सामने आईं.

इसके बावजूद, दोनों गुट एक-दूसरे के खिलाफ अपनी राजनीतिक बयानबाजी को लेकर सतर्क हैं. जबकि शरद पवार और उनकी बेटी और बारामती से सांसद सुप्रिया सुले ने अजित पर किसी भी सीधे मौखिक हमले से परहेज किया है, लेकिन रोहित को ऐसी कोई चिंता नहीं है.

इस साल कथित तौर पर पवार परिवार की हर साल मनाई जाने वाली दीवाली, जिसमें परिवार के सभी सदस्य इकट्ठा होते हैं, उससे दूर रहने से लेकर सोशल मीडिया के साथ-साथ सदन के पटल पर अजित की खुलेआम आलोचना करने तक, उन्होंने अपने चाचा की राजनीतिक चालबाजी के प्रति अपनी नाराजगी व्यक्त करने का कोई मौका नहीं गंवाया.

अपनी ओर से, अजित जहां चाचा शरद पवार और चचेरी बहन सुप्रिया सुले पर सीधा हमला करने से बचते रहे हैं, वहीं वह कभी-कभार रोहित पर कटाक्ष करने से भी नहीं कतराते हैं.

दिसंबर में, अजित ने उस युवा संघर्ष यात्रा का मज़ाक उड़ाया जिसका नेतृत्व उनका भतीजे रोहित कर रहे थे. रायगढ़ के कर्जत में एक कार्यशाला में बोलते हुए उन्होंने कहा: “वह किस संघर्ष की बात कर रहे हैं? क्या आपने (रोहित) अपने जीवन में कभी संघर्ष किया है?”

राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार, चाचा और भतीजे के बीच चल रहे झगड़े का मतलब पार्टी के भीतर विभाजन की बात को सबके सामने स्पष्ट रूप से सिद्ध करने जैसा है, खासकर संसदीय और राज्य विधानसभा चुनावों को देखते हुए.

राजनीतिक विश्लेषक अभय देशपांडे ने दिप्रिंट को बताया, “कार्यकर्ताओं के मन में कुछ संदेह था कि क्या एनसीपी वास्तव में विभाजित हो गई है. इसीलिए कार्यकर्ताओं को विश्वास दिलाना पड़ा. यह बताने की ज़रूरत है कि विभाजन हो गया है, और चुनाव नजदीक होने के कारण, एक सीधा संदेश दिया जाना था. इसीलिए यह आक्रामक रुख है.”

दिप्रिंट ने टिप्पणी के लिए कॉल के माध्यम से अजित और रोहित पवार दोनों से संपर्क किया, लेकिन खबर पब्लिश होने तक उनकी तरफ से हमें कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी. प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.

हालांकि, अजित पवार के नेतृत्व वाले गुट के प्रवक्ता संजय तटकरे का मानना है कि रोहित पार्टी में वह जगह लेना चाहते हैं जो कभी अजित के पास थी. उन्होंने कहा, “रोहित खुद को केंद्र में रखना चाहते हैं और अजित दादा का स्थान लेना चाहते हैं. इसीलिए उनकी तरफ से इस तरह के बयान दिए जा रहे हैं,”


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पवार बनाम पवार

रोहित पवार, अप्पासाहेब के बेटे राजेंद्र पवार और उनकी पत्नी सुनंदा के छोटे बेटे हैं.

जबकि पवार परिवार के अन्य लोग दशकों से सक्रिय राजनीति में हैं, रोहित का परिवार अपेक्षाकृत लो-प्रोफाइल रहा है और अपने फैमिली बिजनेस बारामती एग्रो पर ही फोकस रखा है.

रोहित ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 2017 में पुणे जिला परिषद के सदस्य के रूप में की थी. वे रिकॉर्ड मतों से निर्वाचित हुए. वह अब कर्जत जामखेड से विधायक और शरद पवार के नक्शेकदम पर चल रहे हैं जो कि खुद भी महाराष्ट्र क्रिकेट एसोसिएशन (एमसीए) और बीसीसीआई के अध्यक्ष रह चुके हैं.

वहीं, अजित पवार, शरद पवार के दूसरे भाई दिवंगत अनंतराव पवार के बेटे हैं. एक समय उन्हें एनसीपी में सबसे बड़े नेताओं में से एक के रूप में देखा जाता था, जो शरद पवार के बाद दूसरे स्थान पर थे, और यहां तक कि उन्हें उनका उत्तराधिकारी भी माना जाता था, भले ही एनसीपी के संरक्षक शरद पवार ने कभी भी उन्हें स्पष्ट रूप से अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी नियुक्त नहीं किया था. हालांकि, यह सब 2009 में उस वक्त बदल गया, जब शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने पवार परिवार का गढ़ माने-जाने वाले बारामती से सांसद के रूप में निर्वाचित हुईं.

हालांकि तब से परिवार के भीतर चचेरे भाइयों के बीच तनाव बढ़ गया था, लेकिन वे 2019 तक और हाल ही में पिछले साल तक खुलकर सामने नहीं आए थे और एक-दूसरे के खिलाफ नहीं बोलते थे. 2019 में, जब अविभाजित शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी का गठबंधन महा विकास अघाड़ी (एमवीए) विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद सरकार बनाने के लिए बातचीत कर रहा था, उसी बीच अजित ने भाजपा के देवेन्द्र फड़णवीस के उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेकर तख्तापलट करने का प्रयास किया.

वह सरकार चल नहीं सकी और उसकी जगह उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार बनी, लेकिन अजित की वापसी के बाद उन्हें फिर से उप मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया.

लेकिन ऐसा लगता है कि अब पवार परिवार में तनाव तीसरी पीढ़ी में भी व्याप्त हो गया है. शरद पवार की विरासत पर दावा करने के लिए रोहित और अजित के बड़े बेटे पार्थ के बीच की प्रतिस्पर्धा लगभग वैसी है जैसी एनसीपी संरक्षक और भतीजे अजित पवार के बीच की लड़ाई के छद्म रूप की तरह चल रही है.

जबकि पार्थ 2019 में मावल से संसदीय चुनाव हार गए – पवार परिवार के चुनाव हारने वाले पहले व्यक्ति – रोहित, जिनके पास पवार परिवार का सदस्य होने का लाभ था, ने केवल पांच महीने बाद दो बार के भाजपा विधायक राम शिंदे को हराकर विधानसभा चुनाव जीता. रोहित के एक करीबी सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, “सीनियर पवार हमेशा प्रेस कॉन्फ्रेंस या रैलियों में रोहित को अपने साथ ले जाते थे. इसमें कोई शक नहीं कि रोहित के सिर पर उनका हाथ है. उन्हें प्रभावित करना आसान नहीं है.”

विरासत की लड़ाई

जहां तक कर्जत जामखेड में एमआईडीसी औद्योगिक क्षेत्र के प्रस्ताव का सवाल है, इस मुद्दे पर अजित और रोहित के बीच मतभेद पहली बार इस साल राज्य विधानमंडल के मानसून सत्र के दौरान सामने आए जब रोहित ने विधानसभा के बाहर विरोध प्रदर्शन किया.

अजित ने कथित तौर पर तब कहा था, “सरकार ने 1 जुलाई को पत्र का जवाब देते हुए कहा कि सभी हितधारकों की एक बैठक आयोजित की जाएगी और उचित निर्णय लिया जाएगा. रोहित को विरोध वापस ले लेना चाहिए,”

लेकिन यह एकमात्र मुद्दा नहीं था जिस पर रोहित ने अपने चाचा के साथ झगड़ा किया था.

अक्टूबर में, महाराष्ट्र में निर्माणाधीन अस्पताल परियोजनाओं की स्थिति पर सवाल उठाते हुए, कर्जत जामखेड विधायक ने आरोप लगाया कि शिंदे सरकार में वित्त विभाग संभालने वाले अजित ने फड़नवीस के कहने पर उन्हें फंड देना बंद कर दिया था.

रोहित ने एक्स पर एक पोस्ट में दावा किया, “कर्जत और जामखेड तहसीलों में सरकार द्वारा संचालित अस्पतालों में निर्माण कार्य आंशिक रूप से पूरा हो गया है. अब फंड की कमी के कारण काम अटका हुआ है. अजित पवार वित्त मंत्री हैं, लेकिन भाजपा नेता और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने निर्देश दिया है कि उनकी अनुमति के बिना धन जारी नहीं किया जा सकता है.”

उन्होंने आगे कहा: “मुझे लगता है कि दोनों का पद बराबर होने के बावजूद फड़नवीस द्वारा उन्हें नियंत्रित करने का एक प्रयास है. अगर इलाज के अभाव में किसी व्यक्ति की जान चली जाती है तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा?”

हालांकि अजित ने उस समय बयान पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन उनके नेतृत्व वाले राकांपा गुट के नेता सूरज चव्हाण ने कहा कि डिप्टी सीएम ने निर्वाचन क्षेत्र के लिए 1,827.65 करोड़ रुपये आवंटित किए, जिसमें से 106 करोड़ रुपये सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग के माध्यम से आवंटित किए गए थे. दोनों तहसीलों में स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए 25 करोड़ रुपये आवंटित किए गए.

चव्हाण ने टिप्पणी की थी, ”अजित दादा ऐसे काम पर कभी राजनीति नहीं करते.”

इस सभी बातों के बीच, बारामती में पवार परिवार की वार्षिक दीवाली समारोह में रोहित की अनुपस्थिति ने भी सवाल खड़े कर दिए. हालांकि उनका कहना था कि उन्हें “कुछ और ज़रूरी काम” था, लेकिन उनकी अनुपस्थिति को सुप्रिया सुले के इस बयान के आलोक में देखा गया कि परिवार और राजनीति “अलग-अलग चीजें हैं”.

 

राजनीतिक विश्लेषक हेमंत देसाई के अनुसार, राकांपा में रोहित की बढ़ती प्रमुखता के कारण अजित खेमे में कुछ नाराजगी पैदा हुई. देसाई ने कहा, “जब एनसीपी एकजुट थी, तब भी ऐसा लग रहा था कि रोहित ही एनसीपी का भविष्य हैं और उन्हें पार्टी के भीतर प्रमुखता मिलनी शुरू हो गई थी. इसके साथ ही अजित पवार के भीतर यह भावना भी पनपने लगी कि पार्थ को नजरअंदाज किया जा रहा है,”

लेकिन अजित पवार के नेतृत्व वाले गुट का मानना है कि रोहित अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं. अजित पवार खेमे के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “यह उनकी (रोहित की) ओर से एक बहुत ही सोची-समझी चाल है कि जो स्थिति अजित दादा की अविभाजित एनसीपी में थी, वही स्थिति वह हासिल कर लें. तो दादा को प्रतिक्रिया क्यों देनी चाहिए? रोहित उनके प्रतिस्पर्धी नहीं हैं. अगर ऐसा है, तो समय आने पर पार्थ प्रतिक्रिया दे सकते हैं,”

इस बीच, रोहित के करीबी नेताओं का कहना है कि उनका मानना ​​है कि उनके खिलाफ अजित पवार के दिमाग को निगेटिव करने का प्रयास किया जा रहा है. ऐसे एक नेता ने कहा, “लेकिन वास्तविकता यह है कि युवा अपील और नियमित रूप से क्षेत्र के दौरे करने को लेकर सीनियर (शरद) पवार की कुछ सीमाएं हैं. यहीं उनकी भूमिका महत्त्वपूर्ण हो जाती है, जहां रोहित अपने दादा का सपोर्ट करते हैं.”

इन दावों के बावजूद, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि विभाजन के बाद से परिवार के भीतर के समीकरण बदल गए हैं. देसाई ने कहा, “अतीत में भी, ऐसा नहीं लगता था कि रोहित और अजित के बीच आपस में बहुत अच्छे संबंध थे क्योंकि हमने अजित को रोहित के पक्ष में या उसकी सराहना करते हुए कोई बयान देते नहीं देखा या सुना है,”

देशपांडे ने कहा, “शरद पवार को शायद यह लगता है कि अजित से उन्हें खुद मुकाबला करने के बजाय, रोहित जैसा कोई व्यक्ति ऐसा करेगा तो ठीक रहेगा ताकि युवा भीड़ शरद पवार गुट की ओर आकर्षित हो. इसके लिए खुला रुख अपनाने की जरूरत है. इसलिए आने वाले दिनों में यह (अजित और रोहित के बीच प्रतिद्वंद्विता) बढ़ेगी.

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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