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Tuesday, 5 November, 2024
होमराजनीति‘विपक्ष विरोधी नहीं, चुनाव युद्ध नहीं’, नई सरकार मणिपुर को दे प्राथमिकता : RSS प्रमुख मोहन भागवत

‘विपक्ष विरोधी नहीं, चुनाव युद्ध नहीं’, नई सरकार मणिपुर को दे प्राथमिकता : RSS प्रमुख मोहन भागवत

नागपुर में आरएसएस के एक कार्यक्रम में भागवत ने चुनावी बयानबाजी से ऊपर उठकर राष्ट्र के सामने आने वाली समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करने की ज़रूरत पर जोर दिया. उन्होंने यह भी कहा कि एक सच्चे ‘सेवक’ को “अहंकारी” नहीं होना चाहिए.

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नई दिल्ली: पिछले साल मई में हिंसा भड़कने के बाद मणिपुर में लंबे समय से जारी अशांति पर चिंता व्यक्त करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने पूर्वोत्तर राज्य में शांति लाने की ज़रूरत पर जोर दिया.

नागपुर में आरएसएस नेताओं और प्रशिक्षुओं के एक समूह को संबोधित करते हुए भागवत ने उन गुणों के बारे में भी बात की जो एक सच्चे ‘सेवक’ में होने चाहिए. उन्होंने कहा कि एक ‘सेवक’ को अपने काम पर गर्व होना चाहिए, लेकिन उसे “असंबद्ध” और “अहंकार से रहित” होना चाहिए.

आरएसएस प्रमुख ने कहा कि मणिपुर मुद्दे को ‘प्राथमिकता’ दी जानी चाहिए.

उन्होंने कहा, “मणिपुर एक साल से शांति का इंतज़ार कर रहा है. इससे पहले, यह 10 साल तक शांतिपूर्ण था. ऐसा लग रहा था कि बंदूक संस्कृति खत्म हो गई है और अचानक वहां जो संघर्ष पैदा हुआ था या भड़काया गया था, वह अभी भी धधक रहा है, मदद के लिए चिल्ला रहा है. इस पर कौन ध्यान देगा? इस पर प्राथमिकता के आधार पर विचार करना हमारा कर्तव्य है.”

भागवत, जिन्होंने राज्य में हिंसा के बाद दूसरी बार इस मुद्दे पर बात की, ने चुनावी बयानबाजी से ऊपर उठकर देश के सामने मौजूद समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करने की ज़रूरत पर भी प्रकाश डाला.

आरएसएस प्रमुख ने यह भी कहा कि चुनावों को “युद्ध” की तरह नहीं देखा जाना चाहिए.

भागवत ने कहा, “चुनाव आम सहमति बनाने की एक प्रक्रिया है. एक व्यवस्था है, ताकि किसी भी सवाल के दोनों पक्षों को समान विचारधारा वाली संसद में प्रस्तुत किया जा सके. बेशक, प्रतिस्पर्धा के बाद वहां पहुंचे लोगों के बीच ऐसी आम सहमति बनाना मुश्किल है. इसलिए हमें बहुमत पर निर्भर रहना पड़ता है. पूरी प्रतिस्पर्धा इसी के लिए है, लेकिन यह एक प्रतिस्पर्धा है, युद्ध नहीं.”

उन्होंने कहा, “जिस तरह से चीज़ें हुई हैं, जिस तरह से दोनों पक्षों ने कमर कस कर हमला किया है, जिस तरह से अभियान की रणनीतियों के प्रभाव को पूरी तरह से नज़रअंदाज किया गया है, जिससे विभाजन पैदा होगा, सामाजिक और मानसिक दरारें बढ़ेंगी और अनावश्यक रूप से आरएसएस जैसे संगठनों को इसमें शामिल किया गया है. तकनीक का इस्तेमाल करके झूठ फैलाया गया, सरासर झूठ. क्या तकनीक और ज्ञान का मतलब एक ही है?”

उन्होंने कहा, “हमें चुनाव के उत्साह से खुद को मुक्त करना होगा और देश के सामने आने वाली समस्याओं के बारे में सोचना होगा.”

संगठन के प्रमुख ने कहा कि आरएसएस ने “जनमत को जगाने का काम किया है. एक सच्चा सेवक मर्यादा का पालन करता है. अपने कर्तव्य को कुशलता से निभाना ज़रूरी है. काम करना है, लेकिन किसी के बहकावे में न आना, यह हमारी प्रवृत्ति है.”

उन्होंने कहा, “लोगों ने अपना जनादेश दिया है, सब कुछ उसी के अनुसार होगा. क्यों? कैसे? संघ इसमें नहीं पड़ता है.”

भागवत ने कहा कि संघ हर चुनाव में जनमत को परिष्कृत करने का काम करता है और वह परिणामों के विश्लेषण में नहीं उलझता.

विपक्ष के महत्व पर भागवत ने कहा, “…इसे विरोधी नहीं माना जाना चाहिए. वह विपक्ष हैं, एक पक्ष को उजागर कर रहे हैं. उनकी राय भी सामने आनी चाहिए.”

उन्होंने कहा, “विरोधी की जगह प्रतिपक्ष कहा जाए.”

भागवत ने कहा, “दो पक्ष हैं, वे इसे विरोधी पक्ष कहते हैं, मैं इसे प्रतिपक्ष कहता हूं. वे विरोधी नहीं है, उसे विरोधी नहीं माना जाना चाहिए. वे प्रतिपक्ष है, इसलिए यह (मुद्दे के) एक पहलू को उजागर कर रहा है.”

उन्होंने कहा, “इस पर भी विचार किया जाना चाहिए. जब ​​ऐसा करना होता है…तो चुनाव लड़ने में भी एक मर्यादा होती है. उस मर्यादा को बनाए नहीं रखा गया. इसका पालन किया जाना ज़रूरी है क्योंकि हमारे देश के सामने आने वाली चुनौतियों का अभी तक समाधान नहीं हुआ है.”

उन्होंने कहा, “वही सरकार सत्ता में वापस आ गई है — एनडीए. यह सही है कि पिछले 10 सालों में बहुत सारी सकारात्मक चीज़ें हुई हैं…हमने अर्थव्यवस्था, रक्षा रणनीति, खेल, संस्कृति, प्रौद्योगिकी आदि जैसे कई क्षेत्रों में प्रगति की है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि अब हम चुनौतियों से मुक्त हैं…”

भारतीय जनता पार्टी मणिपुर में लोकसभा चुनाव हार गई. भाजपा के बीरेन सिंह द्वारा शासित राज्य की दोनों सीटें कांग्रेस ने जीतीं.


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आरएसएस प्रमुख ने कहा, “पूरी दुनिया में समाज बदल गया है, जिसके परिणामस्वरूप व्यवस्थागत परिवर्तन हुआ है. यही लोकतंत्र का सार है. जैसा कि डॉ. आंबेडकर ने कहा था, किसी भी बड़े परिवर्तन के लिए आध्यात्मिक कायाकल्प आवश्यक है.”

उन्होंने कहा कि एक सच्चा सेवक वह होता है जो काम तो करता है, लेकिन इस बात पर गर्व नहीं करता कि उसने यह काम किया है. उन्होंने आरएसएस सदस्यों से कहा, “काम करो, लेकिन अपने काम पर गर्व मत करो.”

उन्होंने कहा, “जो व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए मर्यादा का पालन करता है, जो अपने काम पर गर्व करता है, फिर भी अनासक्त रहता है, जो अहंकार से रहित है — ऐसा व्यक्ति वास्तव में सेवक कहलाने का हकदार है.”

भागवत ने स्वीकार किया कि “हज़ारों वर्षों के भेदभावपूर्ण व्यवहार के परिणामस्वरूप विभाजन हुआ है, यहां तक ​​कि कुछ प्रकार का गुस्सा भी पैदा हुआ है.”

उन्होंने कहा, “जब चुनाव होता है, तो प्रतिस्पर्धा अपरिहार्य है. इस प्रक्रिया में लोग दूसरों को पीछे धकेलने की कोशिश करते हैं, लेकिन इसमें एक गरिमा होती है. झूठ का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए. लोगों को संसद में जाने और हमारे देश को चलाने के लिए चुना जा रहा है.”

आरएसएस प्रमुख ने कहा, “लोग क्यों चुने जाते हैं — संसद में जाने के लिए विभिन्न मुद्दों पर आम सहमति बनाने के लिए. हमारी परंपरा आम सहमति बनाने की है…ऋग्वेद के ऋषियों को मानव मन की समझ थी…इसलिए उन्होंने स्वीकार किया कि 100 प्रतिशत एकमत नहीं हो सकता है, लेकिन इसके बावजूद जब समाज आम सहमति से काम करने का फैसला करता है तो वह सह-चित्त बन जाता है.”

उन्होंने कहा कि बाहरी विचारधाराओं के साथ समस्या यह है कि वे खुद को सही होने का एकमात्र संरक्षक मानते हैं.

भागवत ने कहा, “भारत में जो धर्म और विचार आए, उनके भी कुछ लोग अलग-अलग कारणों से अनुयायी बन गए, लेकिन हमारी संस्कृति में इससे कोई समस्या नहीं है. बस एक बात है कि हमें इस मानसिकता से छुटकारा पाना चाहिए कि हम ही सही हैं, दूसरे नहीं.”

भागवत ने कहा, “समय के प्रवाह में आई विकृतियों को सोच-समझकर दूर करते हुए, यह जानते हुए कि मत अलग-अलग हो सकते हैं, तरीके अलग-अलग हो सकते हैं. सब कुछ अलग हो सकता है. हमें इस देश को अपना मानना ​​होगा, इसके साथ भक्ति का रिश्ता बनाना होगा और यह जानते हुए व्यवहार करना होगा कि इस देश के सभी बेटे हमारे भाई हैं.”

आरएसएस प्रमुख ने यह भी कहा, “समाज में एकता की जरूरत है, लेकिन अन्याय होता रहा है, इसलिए लोगों में दूरियां हैं.”

उन्होंने कहा, “एक ही बात है, यह विचार छोड़ दें कि हम सही हैं और बाकी सब गलत हैं. धर्म परिवर्तन आदि की कोई ज़रूरत नहीं है. सभी की राय सही है और सभी समान हैं, इसलिए अपनी राय पर अड़े रहना बेहतर है. दूसरों की राय का भी समान रूप से सम्मान करें.”

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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