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Tuesday, 18 March, 2025
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तमिलनाडु-केंद्र के तीन भाषा नीति वाले विवाद पर आंध्र के CM नायडू बोले — भाषा से नफरत करना ‘अर्थहीन’

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू की यह टिप्पणी उनके डिप्टी पवन कल्याण द्वारा हिंदी का विरोध करने वाले तमिलनाडु के नेताओं पर ‘संस्कृत का दुरुपयोग’ करने का आरोप लगाने के कुछ दिनों बाद आई है.

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हैदराबाद: उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण के बाद, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू भी अब तीन-भाषा विवाद में कूद पड़े हैं. उन्होंने सहयोगी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के रुख का समर्थन किया है, जो देश में भाषाई बहस को और तेज़ कर सकता है.

तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के प्रमुख और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के सबसे बड़े सहयोगी ने सोमवार को राज्य विधानसभा सत्र के दौरान तीन-भाषा नीति का समर्थन करते हुए कहा, “तेलुगु हमारी मातृभाषा है, हिंदी राष्ट्रीय भाषा है जबकि अंग्रेज़ी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है.”

नायडू ने सदन में यह टिप्पणी की, जन सेना पार्टी के प्रमुख और उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण उनसे कुछ ही दूरी पर बैठे थे.

हिंदी को राष्ट्रीय शिक्षा नीति का हिस्सा बनाने को लेकर भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार और पड़ोसी राज्य तमिलनाडु की द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) सरकार के बीच चल रहे बड़े विवाद के बीच नायडू ने कहा, “किसी भी भाषा से नफरत करने का कोई मतलब नहीं है.”

तीन-भाषा नीति का बचाव करते हुए, नायडू ने कहा कि भाषा संचार का एक साधन है, “बाधा नहीं”.

सीएम ने कहा, “भाषाओं को लेकर राजनीति करने का कोई मतलब नहीं है. भाषा एक संचार साधन है. मैं हिंदी में पारंगत हूं और इसलिए दिल्ली की अपनी यात्राओं के दौरान धाराप्रवाह संवाद कर सकता हूं.”

हालांकि, नायडू ने कहा कि “हमें अपनी मातृभाषा को कभी नज़रअंदाज नहीं करना चाहिए”. उन्होंने कहा कि “जिन लोगों ने अपनी मातृभाषा में पढ़ाई की है, उन्होंने दुनिया भर में बेहतरीन प्रदर्शन किया है”.

मुख्यमंत्री ने विधानसभा में अपना “स्वर्ण आंध्र विजन 2047” दस्तावेज़ पेश करते हुए कहा, “जितनी अधिक भाषाएं आप जानते हैं, उतना ही अधिक फायदा आपको मिलेगा.”

उन्होंने कहा, “हमारे लोग अच्छे मौकों की तलाश में जर्मनी, जापान आदि देशों में जा रहे हैं. ऐसी कई भाषाएं सीखने से वैश्विक बाज़ारों में रोज़गार के मौके बढ़ेंगे.”

नायडू का संदेश जहां नपा-तुला था, वहीं शुक्रवार को उनके डिप्टी ने अधिक आक्रामक रुख अपनाया और हिंदी का विरोध करने वाले तमिलनाडु के नेताओं को फटकार लगाई, उन पर “संस्कृत का दुरुपयोग” करने और कथित हिंदी थोपे जाने पर उत्तेजित होने का आरोप लगाया.

पढ़ाई में तीन-भाषा नीति पर भाजपा और नरेंद्र मोदी सरकार के रुख का समर्थन करते हुए एनडीए सहयोगी ने एक बयान में हैरानी जताई कि तमिल फिल्मों को हिंदी में क्यों डब किया जा रहा है, जबकि तमिलनाडु में हिंदी भाषा का विरोध किया जा रहा है.

अभिनेता से नेता बने पवन ने कहा कि अगर हिंदी का स्वागत नहीं किया जाता है तो “आपको तमिल फिल्मों को हिंदी में डब नहीं करना चाहिए” और उन्हें उत्तर भारत में रिलीज़ नहीं करना चाहिए.

पवन ने शुक्रवार रात अपने विधानसभा क्षेत्र पीथापुरम में एक रैली में कहा, “आप हिंदी पट्टी से पैसा चाहते हैं — यूपी, बिहार, छत्तीसगढ़ से, लेकिन उनकी हिंदी स्वीकार नहीं करते. यह कैसे ठीक है? आप बिहार से आए प्रवासी मज़दूरों का स्वागत करते हैं, लेकिन हिंदी से नफरत करते हैं. ऐसी सोच, रवैया बदलना चाहिए. हमें (कुछ) भाषाओं से नफरत नहीं करनी चाहिए.”

‘अगर आप थोपेंगे नहीं तो विरोध नहीं करेंगे’

आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री की आलोचनात्मक टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब तमिलनाडु में एम.के. स्टालिन के नेतृत्व वाली डीएमके सरकार ने हिंदी थोपने के मुद्दे पर मोदी सरकार के साथ आर-पार की लड़ाई की घोषणा कर दी है.

डीएमके का आरोप है कि भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) में तीन-भाषा फॉर्मूले के जरिए हिंदी थोपने की कोशिश कर रही है.

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और सत्तारूढ़ डीएमके प्रमुख स्टालिन ने फरवरी में पार्टी सदस्यों को लिखे एक पत्र में कहा कि तमिलों पर भाषा थोपना उनके आत्मसम्मान के साथ खिलवाड़ है.

पिछले कुछ हफ्तों में, DMK कार्यकर्ताओं ने तमिलनाडु में कई स्थानों पर हिंदी में लिखे अक्षरों को काला करके रेलवे स्टेशनों पर लगे बोर्ड सहित केंद्र सरकार की संपत्तियों और साइनबोर्ड को खराब कर दिया है.

स्टालिन ने कहा, “अगर आप हिंदी नहीं थोपेंगे तो हम इसका विरोध नहीं करेंगे; तमिलनाडु में हिंदी के शब्दों को काला नहीं करेंगे. आत्मसम्मान तमिलों की अनूठी विशेषता है और हम किसी को भी, चाहे वह कोई भी हो, इसके साथ खेलने की अनुमति नहीं देंगे.”

शुक्रवार को कल्याण की टिप्पणियों ने DMK को नाराज़ कर दिया. पार्टी सांसद के. कनिमोझी ने एक्स पर निशाना साधते हुए कहा कि कल्याण ने भाजपा में शामिल होने के बाद हिंदी के प्रति अपने पहले के विरोध को छोड़ दिया है.

कल्याण ने उसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जवाब देते हुए कहा कि उन्होंने कभी भी हिंदी भाषा का विरोध नहीं किया.

उन्होंने कहा, “मैंने केवल इसे अनिवार्य बनाने का विरोध किया. जब एनईपी 2020 खुद हिंदी को लागू नहीं करता है, तो इसके लागू होने के बारे में गलत बयानबाजी करना जनता को गुमराह करने की कोशिश के अलावा और कुछ नहीं है. किसी भाषा को जबरन थोपना या आंख मूंदकर उसका विरोध करना, इनमें से कोई भी तरीका हमारे भारत की राष्ट्रीय और सांस्कृतिक एकता के उद्देश्य को प्राप्त करने में सहायक नहीं है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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