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Thursday, 25 April, 2024
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NPP ने BJP पर मणिपुर चुनाव प्रचार के लिए आतंकियों से सहयोग लेने का आरोप लगाया

एनपीपी और भाजपा, मेघालय में सहयोगी दल हैं. यहां क्षेत्रीय दल, भाजपा की अगुवाई वाले गठबंधन एनईडीए की सहयोगी है. वहीं, मणिपुर में भाजपा और एनपीपी एक दूसरे के विरोध में हैं.

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नई दिल्लीः नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) ने मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा के समक्ष यह मुद्दा क्यों नहीं उठाया कि भाजपा कथित रूप से चुनाव प्रचार में आतंकियों का सहयोग ले रही है ? दिप्रिंट को पता चला है कि इनपीपी की नजरें चुनाव के बाद की स्थिति पर लगी हैं. पार्टी अब विरोधी बन चुके अपने पूर्व सहयोगी भाजपा को नाराज नहीं करना चाहती.

सीईसी चंद्रा और उनकी टीम ने मणिपुर का दौरा इस हफ्ते किया था. हालांकि, एनपीपी ने यह मुद्दा नहीं उठाया. गौरतलब है कि मणिपुर में चुनाव होने वाले हैं.

एनपीपी मेघालय में भाजपा की सहयोगी है और भाजपा के नेतृत्व वाली नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक एलायंस (एनईडीए) के मुख्य क्षेत्रीय घटकों में से एक है. हालांकि, मणिपुर में सभी पार्टियां यह चुनाव अलग-अलग लड़ रही हैं. इस स्तर पर एनपीपी के लिए यह जरूरी हो गया है कि वह भाजपा के साथ सोच-विचार करके रणनीति तय करे. यह बात राजनीतिक दलों के अलावा मणिपुर के चुनाव पर नजर रखने वाले लोगों ने भी कही है.

एनपीपी नेताओं ने कहा है कि उन्होंने मामले को पिछले हफ्ते राज्य के मुख्य चुनाव कार्यालय में दर्ज कराया था. हालांकि, उन्होंने चंद्रा के समक्ष यह मामला न उठाने की वजह बताने से इंकार कर दिया. चुनाव आयोग के अधिकारियों का मानना है कि इस मामले में तुरंत ही जांच शुरू हो सकती है.

नेताओं और जानकारों का मानना है कि इससे पता चलता है कि एनपीपी सोच समझकर मणिपुर में भाजपा के खिलाफ कुछ ऐसा करने से बच रही जिससे वह नाराज न हो. मणिपुर का सामाजिक ढांचा दशकों से काफी उलझा हुआ है जहां आतंकवाद और राजनीति एक दूसरे से जुड़े हुए हैं.

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मणिपुर के उप-मुख्यमंत्री यमनाम जॉयकुमार सिंह ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमने मामले की जानकारी राज्य के मुख्य चुनाव कार्यालय में दे दी है.’ हालांकि, उन्होंने इस चर्चा के विषय में कुछ साझा करने से इंकार कर दिया.

दिप्रिंट ने एनपीपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा की टिप्पणी लेने के लिए कई बार फोन किए और मैसेज डाले मगर इस खबर लिखे जाने तक उनका कोई जवाब नहीं आ सका.


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मुख्य चुनाव आयुक्त का दौरा

सीईसी सुशील चंद्रा और उनकी टीम ने इस हफ्ते की शुरुआत में मणिपुर का दौरा किया था. यह दौरा सामान्य था. आमतौर पर इस तरह का दौरा चुनाव पूर्व की स्थिति जानने, चुनाव वाले क्षेत्रों में तैयारी और सुरक्षा की समीक्षा के लिए होता है. चुनाव आयोग की टीम इसमें राजनीतिक दलों, राज्य के चुनाव अधिकारियों, सुरक्षा एजेंसी के अधिकारियों और सरकारी अधिकारियों के साथ चर्चा करती है. एक ईसी अधिकारी ने नाम न छपने की शर्त पर बताया कि इन बैठकों में जो मामले चर्चा में आते हैं उन पर त्वरित कार्रवाई की जाती है.

मंगलवार को चंद्रा की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में, राजनीतिक दलों ने सुरक्षा संबंधी मामलों और क्रिश्चियन समूहों के चुनाव की तारीख में बदलाव की मांग को लेकर चर्चा की थी. इसके बाद, ईसी ने पहले चरण के चुनावों की तारीख को 27 फरवरी से बदलकर 28 फरवरी और दूसरे चरण की तारीख को 3 मार्च से 5 मार्च कर दिया था.

एनपीपी ने इसी दिन बयान जारी करते हुए आरोप लगाया था कि कई आतंकी संगठन मणिपुर में सत्तारूढ़ भाजपा के लिए खुलेआम प्रचार कर रहे हैं. पार्टी ने इनमें केएनएफ-एमसी, केएनफ-जेड, यूकेएलएफ, केएनए और एचपीसी (डी) जैसे संगठनों के नाम भी गिनाए थे. उन्होंने उन घटनाओं को भी रेखांकित किया था जिसमें उनके उम्मीदवारों को भाजपा के समर्थन में प्रचार कर रहे आतंकियों की धमकियां मिली थीं.

टीम में शामिल एक अन्य अधिकारी ने बताया कि 8 फरवरी को चंद्रा की अध्यक्षता में हुई बैठक में इस मुद्दे को (भाजपा का प्रचार आतंकी संगठन कर रहे हैं) नहीं उठाया गया था. वह अधिकारी भी एनपीपी समेत मणिपुर के दूसरे राजनीतिक दलों के साथ हुई इस बैठक में शामिल था.

एनईडीए की उलझन

आगामी चुनावों में एनपीपी और भाजपा अपने दम पर चुनाव लड़ रहे हैं. दोनों का दावा है कि उनकी पार्टी सबसे ज्यादा सीटें जीतेंगी. दोनों पार्टियां दावा कर रही हैं कि उनको किसी सहयोगी की जरूरत नहीं है.

भाजपा ने इस चुनाव में सभी 60 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं. वहीं, एनपीपी ने 43 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं. 2017 के चुनावों में एनपीपी नौ सीटों पर चुनाव लड़ी थी और चार सीटों पर जीत दर्ज की थी.

इम्फाल के राजनीतिक विश्लेषक सुंजू बचापतिमायूम ने कहा, ‘आंतकी संगठनों का मणिपुर के चुनावों में प्रचार करना, न तो नया है और न ही कोई गोपनीय बात है. लेकिन, इसमें सिर्फ एक पार्टी शामिल हो ऐसा नहीं है.’

‘एनपीपी का बयान राजनीतिक ज्यादा लगता है, क्योंकि आतंकी समूह जातीय समुदायों से नजदीकी रूप से जुड़े हुए हैं. ऐसे में किसी एक समूह के साथ जुड़ने का मतलब है, दूसरे को नाराज़ करना. इससे कुछ जगहों पर विरोधी के वोट बैंक पर नकारात्मक असर पड़ सकता है.’

‘वैसे एनपीपी, भाजपा का विरोध एक सीमा तक ही कर सकती है. मेघालय में पार्टी उसकी सहयोगी है और एनपीपी एनईडीए का एक हिस्सा है. भाजपा मणिपुर में चुनाव के बाद की परिस्थितियों पर भी नजर रख रही है. ऐसे में गठबंधन की संभावनाओं से भी इंकार नहीं किया जा सकता.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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