नई दिल्ली: पंजाब में सत्ता में आने के तुरंत बाद, राज्य की आम आदमी पार्टी (आप) सरकार ने समाचार चैनलों, रेडियो और समाचार पत्रों में विज्ञापनों पर 37.36 करोड़ रुपए खर्च किए. सूचना के अधिकार (आरटीआई) के जवाब में पंजाब के एक सामाजिक कार्यकर्ता को यह जानकारी मिली है.
इसके विज्ञापन अभियान का लाभ उठने वाले कुछ मीडिया संगठन मुख्य रूप से गुजराती दर्शकों और पाठकों द्वारा ही देखे और पढ़े जाते हैं. इनमें रिपब्लिक टीवी और सुदर्शन न्यूज जैसे चैनल्स के नाम भी शामिल हैं.
पार्टी के एक सूत्र के मुताबिक, आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने अपनी पार्टी के सहयोगियों को इन दोनों चैनलों को किसी भी तरह की न्यूज बाइट (बयान) देने और उनकी पैनल चर्चा में शामिल होने पर रोक लगा रखी है.
पंजाब में 10 मार्च को प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई आम आदमी पार्टी अब इस साल के अंत में होने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है.
मानसा जिले में रहने वाले कार्यकर्ता माणिक गोयल को अपनी आरटीआई के जवाब में पता चला कि पंजाब की आप सरकार से विज्ञापन हासिल करने वाले प्रकाशनों की लिस्ट में दिव्य भास्कर, कच्छमित्र, संदेश और फूलछाब सहित कई गुजरात-आधारित क्षेत्रीय समाचार पत्र शामिल हैं.
ऐसे ही, इसी अवधि के दौरान पंजाब में आप सरकार से विज्ञापन हासिल करने वाले टीवी न्यूज़ चैनलों की सूची में टीवी 9 गुजराती, जी 24 कलाक, संदेश न्यूज, एबीपी अस्मिता, न्यूज़ 18 गुजराती, वीटीवी-गुजराती और जनता टीवी आदि के नाम शामिल हैं.
इस बारे में बात करते हुए पंजाब सरकार के सूचना और जनसंपर्क विभाग की निदेशक सोनाली गिरि ने दिप्रिंट को बताया कि उन चैनलों और प्रकाशनों में विज्ञापन देना जो राज्य के बाहर के दर्शकों द्वारा देखे – पढ़े जाते हैं, एक ‘नियमित मामला’ है. उन्होंने यह भी कहा कि पिछली सरकारों ने भी ऐसा किया था.
‘सिर्फ इतना ही नहीं, अन्य राज्य सरकारें भी पंजाबी चैनलों और समाचार पत्रों में अपने विज्ञापन प्रकाशित करती हैं. पिछले कुछ महीनों में, पंजाब के अखबारों में तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और हरियाणा सरकारों सहित कई अन्य राज्यों के विज्ञापन नजर आए हैं.’
गिरी ने कहा, ‘विज्ञापन प्राप्त करने के लिए, संबंधित चैनल या प्रकाशन को डीएवीपी (डायरेक्टोरेट ऑफ एडवरटाइजिंग एंड विजुअल पब्लिसिटी) के साथ रजिस्टर्ड होना होता है. इसके अलावा, पंजाब सरकार अपने विज्ञापनों के लिए भुगतान केवल डीएवीपी दरों पर ही करती है.’
पंजाब में आप सरकार द्वारा 11 मार्च से 10 मई के बीच विज्ञापनों पर खर्च किए गए 37.36 करोड़ रुपए में से 20.15 करोड़ रुपए टीवी और रेडियो चैनलों पर विज्ञापन देने में गए, जबकि शेष 17.21 करोड़ रुपए अखबारों के उपर खर्च किए गये थे.
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विपक्ष ने मांगा जवाब
इन्हीं आरटीआई दस्तावेजों का हवाला देते हुए, पंजाब कांग्रेस के प्रमुख अमरिंदर सिंह राजा वारिंग ने इन विज्ञापनों को ‘जनता के पैसे की शर्मनाक बर्बादी’ बताते हुए मुख्यमंत्री भगवंत मान पर निशाना साधा.
उन्होंने ट्विटर पर लिखा ‘इस सरकार के पास पंजाबी यूनिवर्सिटी को वित्तीय संकट से उबारने (बेलआउट करने) के लिए पैसे नहीं हैं, उर्जा के बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए भी कोई पैसा नहीं है लेकिन अपने स्वयं के विज्ञापन पर खर्च करने के लिए इसकी अधिकता है.’
वारिंग की पार्टी में उनके सहयोगी, राज्य के पूर्व शिक्षा एवं खेल मंत्री, परगट सिंह ने भी आप सरकार पर ‘पंजाब के करदाताओं के पैसे का इस्तेमाल पंजाब से बाहर के राज्यों में चुनावी लाभ के लिए’ करने का आरोप लगाने के लिए ट्विटर का सहारा लिया.
परगट सिंह ने लिखा, ‘यह पंजाब और उसके लोगों के साथ विश्वासघात है.’
इस सारी आलोचना को खारिज करते हुए पंजाब में आप के मुख्य प्रवक्ता, मलविंदर सिंह कांग ने दिप्रिंट को बताया ‘आप विकास और लोक भलाई-आधारित शासन के एक मॉडल का पालन करती है. पार्टी का मानना है कि देश भर के लोगों को इसके बारे में पता होना चाहिए. हमारे संदेश को फैलाने का सबसे अच्छा माध्यम मीडिया ही है.’
उन्होंने कहा, ‘अखबारों और चैनलों को इस बात के लिए विज्ञापन देने में क्या हर्ज है ताकि अन्य राज्यों में अधिक से अधिक लोग हमारे मॉडल और दिल्ली-पंजाब में हमारी सरकारों द्वारा किए गए कार्यों के बारे में जानें? अन्य दलों के ऐसे आरोप निराधार हैं. वे हमारी रचनात्मक आलोचना करने में असमर्थ हैं.’
कांग ने कहा, ‘जहां तक खर्च की गई राशि का सवाल है, हमारे आलोचकों को उन कई तौर-तरीकों पर भी रौशनी डालनी चाहिए जिनसे आप सरकार पंजाब का राजस्व बढ़ा रही है और जिस तरह से यह अनावश्यक खर्च कम कर रही है.’
दिल्ली के एक वरिष्ठ आप नेता ने उनका नाम न छापे जाने की शर्त पर कहा कि इसी तरह दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार 2016 से पंजाबी चैनलों और अखबारों में विज्ञापनों पर खर्च कर रही थी. पार्टी उस समय दिल्ली की सत्ता में थी और 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रही थी. जिसे वह अंततः हार गयी.
उन्होंने कहा, ‘यह बहुत ही बुनियादी बात है. मुझे यहां कोई विरोधाभास नहीं दिख रहा है. हम भला और किस तरह अपनी पैठ का विस्तार कर सकते हैं? कई अन्य राज्य सरकारें भी ऐसा ही करती हैं. हम इस मामले में अकेले नहीं हैं.’
आप के वरिष्ठ पदाधिकारी ने आगे बताया कि आप टीवी न्यूज चैनल रिपब्लिक टीवी और उसके हिंदी संस्करण, रिपब्लिक टीवी भारत, को भी साल 2020 के अंत से विज्ञापन दे रही है.
उन्होंने कहा, ‘लेकिन सुदर्शन न्यूज में विज्ञापन बाद में, शायद 2021 के अंत में, दिए गए. इसके पीछे का मूल विचार अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचना है, चाहे वे किसी भी तरह की राजनीति से जुड़े हों. हालांकि, बॉस (केजरीवाल) का एक सख्त आदेश है कि कोई भी पार्टी पदाधिकारी इन चैनलों पर होने वाली तथाकथित बहस और पैनल चर्चा में शामिल नहीं हो सकता है या उन्हें कोई भी न्यूज बाइट्स नहीं देगा. ये आदेश अभी भी लागू होता है.’
इस सारे विज्ञापन खर्च को लेकर पंजाब सरकार की आलोचना पर प्रतिक्रिया देते हुए सुदर्शन न्यूज के चीफ मैनेजिंग डायरेक्टर और एडिटर इन चीफ सुरेश चव्हाणके ने ट्विटर पर लिखा, ‘हम उन सरकारों के साथ कानूनी लड़ाई लड़ते हैं जो हमें विज्ञापन नहीं देती हैं. यहां तक कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली राज्य सरकारों को भी हमें विज्ञापन देना चाहिए.’
उन्होंने सवाल किया, ‘हम डीएवीपी में पंजीकृत एक न्यूज चैनल हैं. जब हमारे पास एक बड़ा और महत्वपूर्ण दर्शकों का आधार है, तो जो लोग हमें विज्ञापन देने से इनकार करते हैं, वे कैसे खुद के लोकतांत्रिक होने का दावा कर सकते हैं?’
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