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Wednesday, 24 April, 2024
होमराजनीति'सिर्फ एक आध्यात्मिक यात्रा नहीं': महाराष्ट्र बीजेपी के लिए मोदी के 'वारकरी आउटरीच' के क्या है मायने?

‘सिर्फ एक आध्यात्मिक यात्रा नहीं’: महाराष्ट्र बीजेपी के लिए मोदी के ‘वारकरी आउटरीच’ के क्या है मायने?

सिर पर पगड़ी, कांधे पर शॉल और माथे पर टीका लगाए पारंपरिक वेशभूषा में पीएम मोदी मंगलवार को लगभग 50,000 वारकरियों की एक सभा में शामिल हुए.

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मुंबई: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को पुणे के पास देहू में 17वीं शताब्दी के संत को समर्पित संत तुकाराम महाराज मंदिर में एक शिला मंदिर का उद्घाटन किया. मोदी की इस यात्रा को महाराष्ट्र के वारकरी संप्रदाय के बीच पहुंच बनाने के तौर पर देखा जा रहा है.

गैर-राजनीतिक और जाति अज्ञेयवादी होने का दावा करने वाला वारकरी समुदाय अपनी जड़ों को भक्ति आंदोलन से जुड़ा हुआ मानते हैं. इस समुदाय के लोग मराठी संतों तुकाराम, ज्ञानेश्वर और नामदेव के भक्त हैं.

हालांकि भाजपा नेताओं ने आधिकारिक तौर पर कहा है कि देहू में पीएम मोदी की रैली को सिर्फ ‘आध्यात्मिक दृष्टिकोण’ से देखा जाना चाहिए. लेकिन राजनीतिक पर्यवेक्षकों का तर्क है कि यह आयोजन पश्चिमी महाराष्ट्र में पार्टी का एक सोचा-समझा ‘वारकरी आउटरीच’ का हिस्सा था.

मोदी की देहू यात्रा का समय भी महत्वपूर्ण है. क्योंकि ‘वारी’ – वारकरियों की वार्षिक तीर्थयात्रा – अगले सप्ताह शुरू होने वाली है.

भाजपा विधायक राम कदम ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमें पीएम के दौरे का राजनीतिकरण नहीं करना चाहिए. उन्होंने कोई राजनीतिक भाषण नहीं दिया है. यह सिर्फ एक आध्यात्मिक यात्रा थी’

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लेकिन एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि मोदी की यात्रा का आध्यात्मिक असर हो सकता है और इससे भाजपा को चुनावी मदद मिल सकती है क्योंकि ‘पहली बार कोई प्रधानमंत्री वारकरी संप्रदाय के एक कार्यक्रम में शामिल हुआ है.’

राजनीतिक विश्लेषक हेमंत देसाई और प्रताप अस्बे भी उनकी इस बात से सहमत नजर आए.

देसाई ने दिप्रिंट को बताया, ‘पहले किसी ने भी वारकरियों के समुदाय को अपनी ओर लाने (चुनावी रूप से) के बारे में नहीं सोचा था. यह एक सोची समझी रणनीति है. महाराष्ट्र में वारकरी संप्रदाय का बहुत महत्व है और उनकी (मोदी की) घोषणाओं को हर जगह ताली बजाकर स्वागत किया गया था’

अस्बे ने कहा, ‘देहू जाना सीधे वारकरियों और बहुजन समाज (पिछड़े वर्गों) के बीच जाने जैसा है.’

वारकरी और ‘वारी’

सिर पर पगड़ी, कांधे पर शॉल और माथे पर टीका लगाए पारंपरिक वेशभूषा में पीएम मोदी मंगलवार को लगभग 50,000 वारकरियों की एक सभा में शामिल हुए थे.

विट्ठल रुख्मिणी मंदिर में पूजा-अर्चना करने के बाद, पीएम मोदी ने अपने भाषण की शुरुआत एक भक्ति कविता की पंक्तियों ‘अभंग’ से की और अपनी पार्टी के नारे ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास’का जिक्र करते हुए कहा कि उनकी सरकार वारकरी संतों की शिक्षाओं का पालन करती है.

प्रधानमंत्री ने 350 किलोमीटर में फैले दो ‘पालखी मार्ग (तीर्थयात्रा के मार्ग)’ के विकास पर 11,000 करोड़ रुपये खर्च करने की अपनी सरकार की प्रतिबद्धता को भी दोहराया.

पुणे के अलंदी में श्री ज्ञानेश्वर महाराज संस्थान समिति के एक पदाधिकारी वकील विकास धागे पाटिल ने कहा कि वारकरी किसी भी जाति या धर्म को नहीं मानते हैं. वो संतों के अनुयायी हैं जो खुद अलग-अलग जातियों से आते हैं.

धागे पाटिल ने कहा, ‘इसके (वारकरी संप्रदाय) पीछे सहिष्णुता और समावेशिता का विचार है. जातिविहीन समाज के संदेश ने सामाजिक आंदोलन को जन्म दिया है’

धागे पाटिल ने कहा कि संप्रदाय लगभग 700-800 साल पुरानी अपनी सालाना ‘वारी’ तीर्थयात्रा के दौरान सबसे ज्यादा नजर में आता है.

सदियों से देहु और अलंदी के मंदिर से ही शहर की ‘वारी’ की शुरुआती होती आई है. इसमें लाखों भक्त भाग लेते हैं. जो क्रमशः संत तुकाराम और संत ज्ञानेश्वर की पादुकाओं के साथ पंढरपुर तक जाते हैं.

धागे पाटिल ने कहा, ‘एक निम्न जाति का व्यक्ति भी वारी में भाग ले सकता है. हमारे साथ कई मुस्लिम प्रतिभागी भी जुड़े हैं. यहां जाति या समुदाय कोई मायने नहीं रखता है. आपको सिर्फ संत का भक्त होना चाहिए’

धागे पाटिल के अनुमान के मुताबिक, हालांकि ‘वारी’ में भाग लेने वाले ज्यादातर किसान हैं. लेकिन 12 लाख वारकरियों के बीच कामकाजी पेशेवर भी मिल जाएंगे. ये सब तीर्थयात्रा के लिए हर साल पंढरपुर में इकट्ठा होते हैं.

‘बहुजन समाज को अपनी ओर लाना चाहती है बीजेपी’

देहू में मोदी की रैली का जिक्र करते हुए, राजनीतिक विश्लेषक प्रताप अस्बे ने दिप्रिंट को बताया कि कोई भी इसके राजनीतिक उद्देश्यों से इंकार नहीं कर सकता. उन्होंने कहा, ‘भाजपा सीधे बहुजन समाज को अपनी ओर लाना चाहती है क्योंकि इस समुदाय का संत तुकाराम से काफी गहरा जुड़ाव हैं’

राजनीतिक विश्लेषक हेमंत देसाई ने कहा कि वारकरियों तक मोदी की पहुंच को भाजपा के अपने ‘उच्च-जाति के टैग’ को छोड़ने और राज्य के ग्रामीण हिस्सों, विशेष रूप से पश्चिमी महाराष्ट्र, जिसमें देहू, अलंदी और पंढरपुर शामिल हैं, में प्रवेश करने के प्रयास के रूप में देखा जा सकता है.

पिछले साल मई में भाजपा महाराष्ट्र के सोलापुर जिले की पंढरपुर-मंगलवेधा विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में महा विकास अघाड़ी (एमवीए) को हराने में सफल रही थी. उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी समाधान औताड़े ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के भगीरथ भालके को 3700 से ज्यादा मतों के अंतर से हराकर जीत दर्ज की थी.

‘वारकरी सभी जातियों और समुदायों से हैं, लेकिन मराठों की संख्या ज्यादा है. ग्रामीण महाराष्ट्र की आबादी विशेष रूप से वारी से जुड़ी हुई है और भाजपा ग्रामीण महाराष्ट्र को अपने साथ लाना चाहती है.

नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से बात करने वाले भाजपा नेता ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पारंपरिक वारकरी पोशाक पहनने, एक ‘अभंग’ का पाठ करने और वीणा- संत तुकाराम और अन्य मराठी संतों का वाद्य – धारण करने के फैसले ने वारकरियों के साथ तालमेल बिठाया है.

भाजपा नेता ने कहा, ‘यह आसान नहीं है. ऐसा करने से इस समुदाय के लोग इस धारणा के साथ उनसे जुड़ गए कि यह आदमी हम में से एक है’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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