नई दिल्लीः 16वीं लोकसभा में हरियाणा से चुनकर आए सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (एमपीलैड) के तहत प्रत्येक वर्ष मिलने वाली 5 करोड़ की धनराशि भी खर्च नहीं कर पाए हैं.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार हरियाणा के सांसद इस योजना के तहत मिले बजट में से 37.83 करोड़ रुपये खर्च ही नहीं कर पाए. कुल आवंटित राशि 250 करोड़ थी. जबकि मात्र 201 करोड़ रुपये खर्च हो पाये. 238 करोड़ सैंक्शन कर दिये गये थे. राव इंद्रजीत, रतनलाल कटारिया, अश्वनी कुमार और चरणजीत सिंह रौड़ी के क्षेत्र की किश्तें 2019 में रिलीज हुईं. बाकी सांसदों के क्षेत्र में 2018 में रिलीज हुई. 6 सांसदों के क्षेत्र से पैसे के उपयोग संबंधी जानकारी नहीं भेजे जाने की वजह से केंद्र से पैसा रिलीज ही नहीं हुआ. हालांकि, सांसद की जिम्मेदारी सुझाव तक ही है और कार्य को पूरा करवाना स्थानीय अधिकारियों की जिम्मेदारी है. हरियाणा में 10 में से सात सांसद भाजपा के हैं और राज्य में सरकार भी भाजपा की है. ये रही सांसदों को मिले पैसे और खर्चे की जानकारी-
1. गुरुग्राम लोकसभा सीट, सांसद राव इंद्रजीत (भाजपा)
राव इंद्रजीत को इस बजट के तहत 25 करोड़ रिलीज किया गया था. इसमें से 5.10 करोड़ की धनराशि खर्च नहीं की गई. उनके बजट की आखिरी किश्त जनवरी 2019 को रिलीज की गई थी.
2. रोहतक लोकसभा सीट, सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा (कांग्रेस)
दीपेंद्र सिंह हुड्डा को विकास के लिए 22.50 करोड़ का बजट मिला था लेकिन 3.70 करोड़ खर्च नहीं हुए.
3. हिसार लोकसभा सीट, सांसद दुष्यंत सिंह चौटाला (इनेलो)
दुष्यंत चौटाला को 22.50 करोड़ का बजट दिया गया था. लेकिन इसका 3.56 करोड़ खर्च करना बाकी है. अभी इनकी दो किश्तें भी रोक ली गई हैं. स्थानीय अधिकारियों द्वारा भेजी जाने वाली ऑडिट सर्टिफिकेट भी पेंडिंग है.
4. सिरसा (आरक्षित) लोकसभा सीट, सांसद चरणजीत सिंह रौड़ी (इनेलो)
चरणजीत सिंह रौड़ी को 25 करोड़ का बजट दिया गया था. 4.96 करोड़ खर्च नहीं हुए.
5. फरीदाबाद लोकसभा सीट, सांसद कृष्णपाल (भाजपा)
कृष्णपाल को 22.50 करोड़ का बजट दिया गया था. लेकिन 2.48 करोड़ खर्च नहीं किए गए. यूटिलाइजेशन सर्टिफेकिट नहीं भेजने के कारण दो किश्तें अभी पेंडिंग हैं.
6. भिवानी–महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट, सांसद धर्मबीर बालेराम (भाजपा)
धर्मबीर बालेराम को 25 करोड़ का बजट मिला था. 2.28 करोड़ खर्च नहीं किए गए.
7. कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट, सांसद राजकुमार सैनी (भाजपा)
राजकुमार सैनी को 20 करोड़ का बजट विकास के कार्यों में लगाने के लिए दिया गया था. इसमे से 2.19 करोड़ खर्च नहीं किए गए. केंद्र को यूटिलाइजेशन सर्टिफेकिट नहीं भेजा गया और एक किश्त अभी पेंडिंग है.
8. करनाल लोकसभा सीट, सांसद अश्वनी कुमार (भाजपा)
अश्वनी कुमार को कुल 20 करोड़ का बजट दिया गया था. यहां भी 4.50 करोड़ खर्च नहीं किए गए. दो किश्ते भेजी जा चुकी हैं और एक किश्त अभी पेंडिंग है क्योंकि स्थानीय अधिकारियों ने केंद्र को ना ही एमपीआर और नहीं प्रोविजनल यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट भेजा है.
9. सोनीपत लोकसभा सीट, सांसद रमेशचंद्र कौशिक (भाजपा)
रमेशचंद्र कौशिक को 25 करोड़ का विकास बजट दिया गया था लेकिन 3.76 करोड़ खर्च नहीं किए गए. इन्हें दो किश्तों में ही बजट की धनराशि भेज दी गई थी.
10. अंबाला लोकसभा सीट, सांसद रतनलाल कटारिया (भाजपा)
रनतलाल कटारिया को 22.50 करोड़ की धनराशि आवंटित की गई थी लेकिन 5.50 करोड़ खर्च ही नहीं हुए. केंद्र को ऑडिट और यूटिलाइजेशन सर्टिफेकिट नहीं भेजा गया इसलिए दो किश्तें अभी नहीं भेजी गई हैं.
पैसा कहां हुआ खर्च?
2014 में केंद्र में भाजपा की जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि टॉयलेट्स बनाने में सांसदों को अपनी निधि खर्च करनी चाहिए. वहीं अमित शाह ने कहा था कि सांसदों की कमिटी बनाकर कोशिश की जानी चाहिए कि पैसा सही जगह खर्च हो. हरियाणा की बात करें तो दो सांसदों रमेश कौशिक और कृष्णपाल गुज्जर ने केरल में आई बाढ़ में भी पैसे दिए थे.
इसके अलावा हरियाणा में प्रॉयरिटी सेक्टर्स में ये पैसे आवंटित किए गये-
खेती में लगभग 9 लाख रुपये. पीने के पानी के लिए 2 करोड़ 30 लाख के करीब. शिक्षा में 4 करोड़ 30 लाख के करीब. साफ सफाई और हेल्थ में 2 करोड़ के आस-पास. खेल में 2 करोड़ 20 लाख के आस-पास. शहरी विकास में 11 लाख रुपये. अन्य पब्लिक फैसिलिटी के लिए 33 करोड़. नॉन कन्वेंशनल ऊर्जा सोर्सेज के लिए 1.4 लाख. सिंचाई में 93 लाख. रेलवे, सड़क इत्यादि के लिए 22 करोड़ के करीब.
अगर पंद्रहवीं लोकसभा की बात करें तो 190 करोड़ रुपए रिलीज हुए थे और 184 करोड़ रुपए लगभग खर्च हुए थे. वहीं चौदहवीं लोकसभा में 260 करोड़ रुपए रिलीज हुए और 263 करोड़ रुपए खर्च हुए. ब्याज लगने की वजह से ये पैसे बैंक में बढ़ जाते हैं और खर्चे के लिए ज्यादा मिल जाता है.
क्या है एमपीलैड बजट?
सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (एमपीलैड) के तहत प्रत्येक सांसद को अपने निर्वाचन क्षेत्र में विकास के कामों को करवाने का दायित्व सौंपा गया है. इसके अंतर्गत प्रत्येक सांसद अपने निर्वाचन क्षेत्र में 5 करोड़ प्रति वर्ष के कार्यों की लागत राशि का सुझाव भेज सकता है.
एमपीलैड की शुरुआत 1993-1994 में की गई थी. उस वक्त केंद्र में नरसिंह राव की सरकार थी. इस योजना को लागू करने का उद्देश्य था कि स्थानीय लोगों को जरूरी सुविधाएं प्रदान करने के लिए सांसद विकास के कार्यों जैसे पानी, शिक्षा, स्वास्थय, स्वच्छता और सड़कों का काम करने के लिए सिफारिशें कर सकें.
इसके अलावा बाढ़, भूकंप और अकाल जैसी प्राकृतिक आपादाओं से पीड़ित क्षेत्रों में काम करने के लिए भी सिफारिशें की जा सकती है. मनमोहन सिंह की सरकार ने सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना कार्यक्रम (एमपीलैड) के तहत प्रत्येक सांसद को आवंटित की जाने वाली राशि को दो करोड़ से पांच करोड़ के प्रस्ताव को मंजूर दी जिसे वित्तीय वर्ष 2011-2012 से लागू किया गया.
समय–समय पर इस योजना के दिशा–निर्देशों में संशोधन भी किए जाते रहे हैं. हालांकि, इस योजना के जरिए सांसदों पर घोटालों के आरोप लगाकर इस योजना को बंद करने की मांगें भी उठती रहती हैं. एमपीलैड के सरकारी वेबसाइट पर मासिक प्रगति रिपोर्ट और अपने कामों का ब्यौरा अपलोड करने के मामले में हरियाणा, छत्तीसगढ़, मिजोरम, पंजाब, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, गुजरात और ओडिशा का प्रदर्शन सबसे बेहतर रहा.
वहीं, प्रतिशत के हिसाब से एमपीलैड योजना को सबसे ज्यादा इस्तेमाल करने के मामले में लक्ष्य द्वीप, अंडमान निकोबार द्वीप समूह, केरल, महाराष्ट्र और तमिलनाडु सबसे आगे रहे.