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Thursday, 26 December, 2024
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‘BJP के खिलाफ राजनीतिक लामबंदी नहीं’ शरद पवार के घर पर विपक्ष की बैठक के बाद NCP नेता माजिद बोले

एनसीपी नेता माजिद मेनन बोले- आज दिल्ली में राष्ट्र मंच की बैठक हुई. यह बैठक भाजपा के ख़िलाफ़ एकजुट पार्टियों की बैठक नहीं थी और ना ही कांग्रेस को बहिष्कार करने के लिए आयोजित हुई थी.

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नई दिल्ली: भाजपा विरोधी कई पार्टियों के नेताओं की राकांपा प्रमुख शरद पवार के यहां स्थित आवास पर मंगलवार को एक बैठक हुई, जिसे भगवा दल को कहीं अधिक मजबूत चुनौती देने के लिए विपक्षी नेताओं के एकजुट होने की कवायद के तौर पर देखा जा रहा है.

हालांकि, बैठक में शामिल हुए नेताओं ने इसके राजनीतिक महत्व को तवज्जो नहीं देने की कोशिश की और इसे पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा के राष्ट्र मंच के बैनर तले समान विचार वाले लोगों के बीच एक संवाद बताया.

तृणमूल कांग्रेस नेता सिन्हा का यह गैर राजनीतिक संगठन भाजपा विरोधी विचार अभिव्यक्त करता रहा है.

टीएमसी के नेता सिन्हा ने कहा, राष्ट्र मंच की बैठक लगभग 2.5 घंटे चली. इस बैठक में बहुत सारे मुद्दों पर चर्चा की गई.’


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‘भाजपा के खिलाफ एकजुट नहीं’

वहीं एनसीपी नेता माजिद मेनन ने कहा, ‘आज दिल्ली में राष्ट्र मंच की बैठक हुई. यह बैठक भाजपा के ख़िलाफ़ एकजुट पार्टियों की बैठक नहीं थी और ना ही कांग्रेस को बहिष्कार करने के लिए आयोजित हुई थी.’

उन्होंने कहा कि इस बैठक के लिए कांग्रेस को भी निमंत्रण दिया गया था. बैठक में देश के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक मुद्दों पर बातचीत हुई.

राष्ट्र मंच की बैठक के बाद माजिद ने कहा, ‘हमने कांग्रेस के 5 सांसदों को बैठक में आमंत्रित किया था लेकिन वे किसी मज़बूरी के कारण बैठक में नहीं आ पाए.’

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार कोई भी व्यक्ति इस बात की अनेदेखी नहीं कर सकता है कि बैठक की मेजबानी पवार ने अपने आवास पर की. यह बैठक चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर के साथ हुई उनकी हालिया मुलाकातों के बाद हुई है. पवार की किशोर के साथ एक बैठक महज एक दिन पहले सोमवार को ही हुई थी.

पश्चिम बंगाल के हालिया विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस द्वारा भाजपा को करारी शिकस्त देने के कुछ समय बाद विपक्षी नेताओं की यह बैठक हुई.

भाजपा नीत मोर्चे ने हाल ही में हुए तमिलनाडु और केरल विधानसभा चुनावों में भी खराब प्रदर्शन किया था. तमिलनाडु में द्रमुक नीत गठबंधन ने जीत हासिल की जबकि केरल में वाम मोर्चे ने लगातार दूसरी बार जीत दर्ज की. वहीं, भाजपा की मुख्य राष्ट्रीय राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस ने असम और केरल में उत्साहजनक प्रदर्शन नहीं किया.

2022 कई राज्यों में विधान सभा चुनाव

अगले साल उत्तर प्रदेश और पंजाब जैसे राज्यों के अलावा कई अन्य राज्यों में भी विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में क्षेत्रीय क्षत्रपों और गैर भाजपा दलों को एकजुट करने की कोशिश को मुख्य रूप से 2024 के लोकसभा चुनाव के प्रति लक्षित देखा जा रहा है.

भाजपा के केंद्र की सत्ता में आने के बाद से उसके खिलाफ कांग्रेस की तुलना में क्षेत्रीय दलों ने काफी बेहतर प्रदर्शन किया है और उनके द्वारा कहीं अधिक एकजुट तरीके से मोदी सरकार को राष्ट्रीय स्तर पर चुनौती देने का विचार हाल के समय में दृढ़ हुआ है.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री एवं तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने मार्च में भाजपा विरोधी 15 पार्टियों (कांग्रेस सहित) के नेताओं को पत्र लिख कर भगवा पार्टी के खिलाफ अधिक एकजुट लड़ाई लड़ने का अनुरोध किया था.

पवार के आवास पर बैठक में शामिल हुए माकपा के नीलोत्पल बसु ने कहा कि उन्होंने कोविड प्रबंधन, बेरोजगारी जैसे शासन के मुद्दे तथा भाजपा द्वारा संस्थाओं पर किये जा रहे कथित हमले पर चर्चा की. साथ ही, उन्होंने बैठक के राजनीतिक महत्व को तवज्जो नहीं दी.

पवार, बसु और सिन्हा के अलावा, भाजपा के एक पूर्व नेता एवं अब तृणमूल कांग्रेस उपाध्यक्ष, समाजवादी पार्टी के घनश्याम तिवारी, राष्ट्रीय लोक दल के जयंत चौधरी, नेशनल कांफ्रेंस के उमर अब्दुल्ला, भाकपा के बिनय विश्वम और आप के सुशील गुप्ता, नागरिक समाज संस्थाओं के कई सदस्य बैठक में शामिल हुए.

कांग्रेस के कुछ नेताओं को भी आमंत्रित किया गया था लेकिन उनमें से किसी के शरीक नहीं होने से यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि मुख्य विपक्षी पार्टी क्षेत्रीय दलों के नेतृत्व वाले मोर्चे का हिस्सा नहीं बनना चाहती है.

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने बैठक पर टिप्पणी करने से इनकार करते हुए कहा कि यह राजनीति पर चर्चा करने का समय नहीं है.

लोक जनशक्ति पार्टी के नेता चिराग पासवान से जब यह सवाल किया गया कि क्या वह संभावित समूह या मोर्चा में खुद के लिए कोई भूमिका देखते हैं, उन्होंने कहा, ‘कोई भी संभावनाओं के लिहाज से कभी नहीं, नहीं कहता.’ शिवसेना, द्रमुक और झारखंड मुक्ति मोर्चा भी बैठक में शामिल नहीं हुए.

गौरतलब है कि कांग्रेस (जब उसका केंद्र में शासन था) को चुनौती देने के लिए तीसरे या चौथे मोर्चे के गठन के लिए क्षेत्रीय दलों का प्रयोग भी अल्पकालिक साबित हुआ है.


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