नई दिल्ली: बिहार में सहयोगी नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) का साथ छूट जाने के बाद भाजपा ने अब इस ‘विश्वासघात’ को 2024 में अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने पर अपनी नजरें जमा ली हैं. दिप्रिंट को यह जानकारी मिली है.
पार्टी के नेताओं का कहना है कि गठबंधन टूटने और जद (यू) का राजद और कांग्रेस के साथ बिहार में अन्य दलों के साथ हाथ मिलाने के बाद भाजपा के लिए 2024 के लोकसभा चुनाव ‘थोड़ा ज्यादा मुश्किल’ हो गया है.
नेताओं ने जद (यू)-राजद गठबंधन के ‘ठोस जाति अंकगणित’ का हवाला देते हुए कहा कि बदली हुई परिस्थितियों ने 2025 के विधानसभा चुनावों को लेकर भी भाजपा के भीतर कुछ चिंताएं पैदा कर दी है.
गठबंधन के टूटने के संभावित प्रभावों का पार्टी पर असर न पड़े इसके लिए भाजपा ने पहले ही कुछ रणनीतियों पर मंथन करना शुरू कर दिया है.
पार्टी नेताओं ने बताया कि भाजपा ने अपने जूनियर साथी जद (यू) को सीएम की कुर्सी पर बैठने दिया, इसके बावजूद नीतीश अलग हो गए. पार्टी उनके इस ‘विश्वासघात’ को लोगों के सामने लाने के अलावा ‘जंगल राज’ या अराजकता के आरोपों पर राजद को निशाना बनाना चाह रही है. ये वो आरोप हैं जो लालू प्रसाद की पार्टी का काफी समय से पीछा करते रहे हैं.
राज्य के नेताओं को इस पूरे घटनाक्रम में भी एक ‘अवसर’ नजर आ रहा है. वह अब भाजपा को संगठनात्मक रूप से मजबूत करने और ‘जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं की मांग’ के अनुरूप पीएम मोदी के नेतृत्व में अकेले चुनाव लड़ने की ओर देख रहे हैं.
बिहार में जद (यू) और महाराष्ट्र में पूर्व सहयोगी शिवसेना भाजपा पर अपने फायदे के लिए छोटे गठबंधन सहयोगियों को कमजोर करने की कोशिश करने का आरोप लगा रही हैं. पार्टी इन दोनों दलों के नैरेटिव से निपटने के लिए योजनाएं बना रही है.
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा 74 सीटो के साथ एनडीए के बड़े सहयोगी के रूप में उभरी थी. जबकि जद (यू) के पास 43 (अब 45 तक) सीटें थीं. इसके बावजूद दोनों सहयोगी दल इस मुश्किल संबंध को आगे बढ़ाते रहे. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले महीने घोषणा की थी कि भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जद (यू) के साथ फिर से चुनाव लड़ेगी.
लेकिन जद (यू) के अलग होने के बाद पार्टी की पहली आधिकारिक प्रतिक्रिया में, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने पूरे प्रकरण को ‘बिहार के लोगों और भाजपा के साथ विश्वासघात’ करार दिया.
उन्होंने कहा, ‘हमने एनडीए के तहत 2020 का चुनाव एक साथ लड़ा. जनादेश जद (यू) और भाजपा के लिए था. हमने ज्यादा सीटें जीतीं थी. इसके बावजूद नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया गया. आज जो कुछ भी हुआ वह बिहार के लोगों और भाजपा के साथ विश्वासघात है.’
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘हम पहले दिन से ही यह कह रहे हैं कि हमने गठबंधन धर्म का पालन किया है. गठबंधन सुचारू रूप से चलता रहे इसके लिए सब कुछ किया.
उन्होंने बताया, ‘हालांकि, यह नीतीश कुमार हैं जिन्होंने गठबंधन से बाहर निकलने का फैसला किया. हमारा फोकस बिल्कुल साफ है- 2024 के चुनावों की तैयारी करना और पार्टी को संगठनात्मक रूप से मजबूत बनाना. हमने पहले ही काफी जमीनी काम किया है और अब हम कोशिश करेंगे कि राज्य के कोने-कोने तक पहुंचें.
बीजेपी ने सोमवार शाम को मौजूदा राजनीतिक हालात का जायजा लेने के लिए अपने कोर ग्रुप की बैठक बुलाई.
सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के संजय कुमार ने कहा, ‘अगर हम उनकी दीर्घकालिक राजनीति देखते हैं तो भाजपा बिहार में एक बड़ी राजनीतिक ताकत के रूप में उभरेगी.’
उन्होंने बताया ‘लेकिन निश्चित रूप से 2024 के लिए नीतीश-राजद का जातिगत गठबंधन ज्यादा मजबूत है. वहां भाजपा को झटका लग सकता है.’
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‘अपनी चुप्पी तोड़ना’
भाजपा के सूत्रों के अनुसार, पार्टी ने अब तक अपने नेताओं – राज्य और केंद्र दोनों स्तरों पर – नीतीश कुमार और जद (यू) पर टिप्पणी करने से परहेज करने के लिए कह रखा था.
लेकिन यह आदेश नीतीश के शासन पर भाजपा के सार्वजनिक बयानों के बाद दोनों पक्षों के बीच मतभेदों को सामने आने के बाद आया.
सूत्रों ने बताया कि अब नेता जनता का समर्थन हासिल करने के लिए नीतीश के ‘विश्वासघात’ पर फोकस करेंगे.
पार्टी के एक पदाधिकारी ने कहा, ‘इस पूरे घटनाक्रम में हम पीड़ित रहे हैं और यह कुछ ऐसा है जिसे हम लोगों के पास जाते समय सामने रखेंगे’
भाजपा के अनुसार, ‘जंगल राज’ के आरोपों पर राजद पर हमला करने की योजना और भाजपा को सुशासन के एकमात्र विकल्प के रूप में पेश करना, 2020 में काफी काम आया था.
भाजपा नेताओं का कहना है कि योजना अब एक कदम और आगे बढ़ने की है और उस ‘भ्रष्टाचार’ पर भी ध्यान देने की है जिसमें विपक्षी नेता कथित रूप से शामिल रहे हैं.
ऐसी स्थिति में जब जद (यू) राजद के साथ मिलकर भाजपा पर हमला करना शुरू कर देगा, तो भाजपा नेताओं से लालू प्रसाद के ‘भ्रष्टाचार के इतिहास’ और नीतीश के ‘भ्रष्टाचार से समझौता’ पर हमला करने के लिए कहा गया है.
बिहार के एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमारी पहली रणनीति लालू प्रसाद परिवार के भ्रष्टाचार से संबंधित मामलों के इर्द-गिर्द एक नैरेटिव तैयार करने की है ताकि यह संदेश दिया जा सके कि जब प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं, तो नीतीश कुमार – जिन्होंने 2017 में भ्रष्टाचार के आरोप में महागठबंधन से नाता तोड़ लिया था – ने लालू के परिवार को बचाने के लिए भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी लड़ाई से समझौता किया है.’
‘यह न सिर्फ तेजस्वी (लालू के बेटे और नीतीश के संभावित डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव) पर दबाव बनाएगा, बल्कि नीतीश के लिए भी तेजस्वी को भ्रष्टाचार के आरोपों से बचाना मुश्किल होगा. गठबंधन सरकार चलाना आसान और सुगम नहीं होगा.
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एक मौका?
सूत्रों के अनुसार गठबंधन से अलग होने से पहले बिहार भाजपा नेतृत्व ने पार्टी आलाकमान से सरकार में रहने के बावजूद उनके मुद्दों का समाधान नहीं होने की शिकायत की थी.
सूत्रों ने कहा, इस ‘आकलन को देखते हुए कि राज्य में लोकसभा और विधानसभा चुनावों में अकेले जाना उनके लिए फायदेमंद नहीं होगा. केंद्रीय नेतृत्व गठबंधन को जारी रखने के लिए तैयार था.’
पार्टी के एक धड़े का विचार है कि बदले हुए समीकरण भाजपा को राज्य में एक मजबूत खिलाड़ी के रूप में उभरने और अपने स्वयं के जाति गठबंधन पर ध्यान देने के लिए काम करेंगे.
भाजपा राज्य में अपने स्थिति मजबूत करने और पैर फैलाने का प्रयास कर रही है. उसने पिछले महीने सभी 243 विधानसभा सीटों के लिए एक आउटरीच कार्यक्रम का आयोजन किया, जिसमें पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और अमित शाह ने भाग लिया. इसके सदस्यों का कहना है कि वे जानते हैं कि उन्हें पता है कि उन्हें क्या जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं.
सूत्रों ने कहा, पार्टी जानती है कि जाति गठबंधन 2024 के लोकसभा और 2025 के विधानसभा चुनावों में महागठबंधन का पक्ष ले सकता है. इसलिए भाजपा को बिहार के लिए अपनी रणनीति बदलनी होगी.
राज्य के एक भाजपा नेता ने कहा, ‘लोकसभा चुनाव में जद (यू) और राजद को हराना इतना मुश्किल काम नहीं है. हमने इसे 2014 में किया था. लेकिन 2015 के विधानसभा चुनाव में जब हम लोजपा और अन्य छोटी पार्टियों के साथ अकेले लड़े थे तो हमें सिर्फ 53 सीटें मिलीं थीं. जबकि जद (यू) को 73 और राजद को 80 सीटें मिलीं.’
वह आगे बताते हैं, ‘राजद का मुस्लिम-यादव वोट बैंक और जद (यू) का सबसे पिछड़ा वर्ग (एमबीसी) वोट बैंक कुर्मी और अन्य छोटी जातियों उनके साथ है. उनका जातिगत गठबंधन भाजपा की तुलना में अधिक मजबूत होगा. इसलिए जहां यह भाजपा के लिए अकेले जाने का अवसर है, वहीं यह उलटा भी पड़ सकता है.’
नेता ने कहा, ‘अगर गठबंधन बना रहता तो इससे भाजपा को राज्य में संगठनात्मक रूप से विकसित होने का समय मिल जाता.’
नेता ने कहा, ‘हमें अब अपनी योजनाओं में कुछ बदलाव करने होंगे और यह सुनिश्चित करना होगा कि हम अभी से ही 2024 की तैयारी के लिए जमीनी कार्य शुरू कर दें और वह भी अधिक आक्रामक तरीके से.’
‘अपने गठबंधन सहयोगियों को खा रहे हैं’
अपने सहयोगी से गठबंधन टूटने के बाद एक और चिंता जो भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को डरा रही है वो विपक्ष दलों का उन पर लगाया गया आरोप है. उनके मुताबिक भाजपा ‘अपने ही गठबंधन सहयोगियों को खा रही है.’ एक केंद्रीय भाजपा नेता ने कहा, ‘लोकसभा चुनाव से पहले, विपक्षी दल इस पर फोकस कर सकते हैं और यह राय बनाने के खेल में पार्टी के लिए अच्छा काम नहीं करेगा. हालांकि, लोकसभा चुनाव दूर हैं और हमारे पास जमीन पर मजबूत होने का समय है, जो कि बिहार में 2020 के विधानसभा चुनावों के दौरान भी दिखाई दे रहा था.
नेता ने बताया, ‘हम यह संदेश नहीं देना चाहते हैं कि सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी अपने गठबंधन सहयोगी के साथ बेवफा है. बल्कि अब हम नीतीश कुमार के विश्वासघात और उनकी ‘पलटू राम’ की छवि को पूरे जोर-शोर के साथ उठाएंगे.’
बिहार भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि जद (यू) के साथ पार्टी का गठबंधन ‘2020 के जनादेश के बाद किया गया समझौता’ था.
नेता ने कहा, ‘हम बिहार में सबसे बड़ी पार्टी थे. लेकिन हमने गठबंधन के बड़े हित के लिए मुख्यमंत्री पद का त्याग किया. जद (यू) की सीटें कम थीं, लेकिन इसके बावजूद हमने सीएम पद की मांग नहीं की.’
उन्होंने बताया, ‘हालांकि पार्टी में अकेले चुनाव लड़ने की मांग बढ़ रही थी. लेकिन हमने लालू को दूर रखने के लिए साझेदारी का सम्मान किया. अब जब उन्होंने (नीतीश) लालू के साथ हाथ मिलाने का फैसला किया है, तो भाजपा को बिहार में नए सिरे से शुरुआत करने का मौका मिलेगा. अब जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं के मूड को ध्यान में रखते हुए काम किया जाएगा, जो 2024 और 2025 में मोदी के नेतृत्व में अकेले चुनाव लड़ने की मांग कर रहे हैं.’
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