पटना: जनता दल (यूनाइटेड) ने मंगलवार को ट्रिपल तालाक बिल का विरोध किया. राज्यसभा से वॉकआउट करते हुए राजनीतिक कलाबाजी का प्रदर्शन किया है, लेकिन साथ ही, इसके खिलाफ वोट न देकर अपने रास्ते को सुगम बनाया. इस विवादास्पद कानून पर शब्दों और कार्यों के बीच विरोधाभास ने बिहार में दुविधा को रेखांकित किया है जहां वह भाजपा के साथ गठबंधन में रहते हुए मुसलमानों को लुभाना चाहती है.
पार्टी के प्रवक्ता संजय सिंह ने कहा कि संसद में जदयू के रुख से आश्चर्य नहीं होना चाहिए.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘हमने स्पष्ट कर दिया था कि राम मंदिर, ट्रिपल तालक, यूनिफॉर्म सिविल कोड और अनुच्छेद 370 पर हमारा रुख भाजपा के साथ नहीं हैं.’
जेडीयू नेतृत्व को लगता है कि मुसलमानों को लालू प्रसाद यादव की आरजेडी से अलग करने और उनको अपनी तरफ करने का समय आ गया है. अगले साल बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं और राजद अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है, जिसको लोकसभा चुनावों में एक भी सीट नहीं मिली है.
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मुसलमान- यादव गठजोड़ विभाजित
पिछले तीन दशकों से बिहार की लगभग 17 प्रतिशत आबादी वाले मुसलमान राजद के पीछे मजबूती के साथ खड़े रहे हैं, जो लालू के मशहूर मुस्लिम-यादव वोट बैंक का हिस्सा हैं.
नीतीश ने 2013 में उनके समर्थन का नाटक किया था, जब उन्होंने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने को लेकर भाजपा के साथ अपने 17 साल पुराने संबंधों को तोड़ लिया था लेकिन मुसलमान राज्य की 40 लोकसभा सीटों में से दो को छोड़ कर जद (यू) के साथ मजबूती से खड़े रहे.
2015 के विधानसभा चुनाव के लिए नीतीश ने भाजपा के खिलाफ राजद और कांग्रेस के साथ ‘महागठबंधन’ बनाया था. सीएम नीतीश ने फिर गठबंधन से हाथ खींच लिया और 2017 में फिर से बीजेपी के साथ आ गए.
इस साल के चुनाव में एनडीए ने 40 में से 39 सीटें जीतीं हैं लेकिन सीएसडीएस-लोकनीति सर्वेक्षण से पता चलता है कि मुसलमान अब भी राजद और उसके सहयोगियों के साथ बने हुए हैं. 77 प्रतिशत मुसलमानों ने महागठबंध के लिए मतदान किया, जबकि 6 प्रतिशत ने एनडीए के लिए. इसके उलट, एनडीए यादव वोट बैंक में सेंध लगाने में सफल रहा है. 55 प्रतिशत यादवों ने महागठबंधन के लिए वोट किया और एनडीए को 21 प्रतिशत ने.
लेकिन अब, जेडी(यू) के एक वरिष्ठ नेता का मानना है कि मुसलमानों के लिए नीतीश को अपना समर्थन देने के लिए यह उचित समय है. परिणाम आने के बाद से, सीएम ने बार-बार किशनगंज संसदीय सीट पर परिणाम की ओर संकेत किया है, जिसमें लगभग 70 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं- जेडी (यू) दूसरे स्थान पर रही कांग्रेस से केवल 30,000 वोटों दूर थी.
मुसलमानों की दुविधा
मुस्लिम नेताओं का कहना है कि राजद के पतन के कारण मुस्लिम समुदाय दुविधा का सामना कर रहा है.
पूर्व विधायक अख़लाक अहमद ने दिप्रिंट को बताया कि मुसलमान 1990 के दशक से लालू के साथ बने हुए हैं क्योंकि वे मुसलमान-यादव गठजोड़ में सामाजिक रूप से सुरक्षित महसूस करते थे. आज, वे असुरक्षित और अलग-थलग हैं और जानते हैं कि लालू का मुसलमान-यादव गठजोड़ काम नहीं करने वाला है.
मुसलमान एक मजबूत संगठन में शामिल होना चाहते हैं और नीतीश कुमार निश्चित रूप से एक मजबूत विकल्प हैं.
नाम न बताने की शर्त पर कांग्रेस के एक विधायक ने भी माना कि नीतीश एक विकल्प थे, जिस पर समुदाय विचार कर रहा था.
भाजपा के साथ गठबंधन में होने के बावजूद वे पिछले साल राम नवमी पर भाजपा में मौजूद सांप्रदायिक ताकतों से मजबूती के साथ निपटे और केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के बेटे को आत्मसमर्पण करना पड़ा. नीतीश कुमार ने कहा कि भ्रष्टाचार और अपराध के साथ सांप्रदायिकता को भी बर्दाश्त नहीं करेंगे, कांग्रेस विधायक ने कहा कि उनकी समस्या भाजपा के साथ उनका गठबंधन है.
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‘2020 कोई 2010 नहीं’
मुसलमानों की दुविधा के बारे में पूछे जाने पर एनडीए के राजनेताओं और समर्थकों ने 2010 के विधानसभा चुनावों की ओर इशारा किया. जिसमें जेडीयू-भाजपा गठबंधन ने 243 विधानसभा सीटों में से 206 सीटें जीतीं थी और कई मुसलमानों ने गठबंधन और यहां तक कि भाजपा के लिए भी मतदान किया था.
लेकिन मुस्लिम नेता इस बात पर जोर देते हैं कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में 2010 की पुनरावृत्ति नहीं करेंगे.
2010 और यहां तक कि 2014 (लोकसभा चुनाव) में, ट्रिपल तालक, गौहत्या और भीड़तंत्र जैसे मुद्दे नहीं थे. अहमद ने कहा कि संसद में बनाए जा रहे कानून मुस्लिमों की सुरक्षा की भावना को कमतर कर रहे हैं.
अन्य नेताओं का कहना है कि समुदाय जेडी (यू) के मुस्लिम उम्मीदवारों के लिए वोट कर सकता है, लेकिन भाजपा के लिए नहीं. गैर-भाजपा, गैर-राजद गठबंधन के गठन के बारे में चर्चा है लेकिन अभी तक, नीतीश के इसमें शामिल होने के कोई संकेत नहीं हैं.
जदयू के एक मंत्री ने कहा मुसलमानों द्वारा जद(यू)-भाजपा गठबंधन के खिलाफ वोट करने के बावजूद लोकसभा चुनाव में बड़ी जीत हासिल की है. नीतीश का भाजपा के साथ नाता तोड़ने की उम्मीद करना और उनका अनिश्चित गठबंधन करना बहुत ज्यादा हो चुका है.
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