पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य में आगामी चुनाव के मद्देनज़र शुक्रवार को अपने ‘सात निश्चय पार्ट-2’ का ऐलान कर एक तरह से यह जता दिया है कि महिला मतदाताओं की उनके लिए क्या अहमियत है.
बिहार में लगभग 47 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वालीं महिला मतदाता 2005 के बाद से लगातार उनकी जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती आई हैं. उन्हें अक्सर नीतीश की लगातार चुनावी जीत के पीछे की ‘मूक ताकत’ माना जाता रहा है.
राज्य में तीन चरणों में 28 अक्टूबर, 3 नवंबर और 7 नवंबर को मतदान होना है.
नीतीश के ‘सात निश्चय पार्ट-2’ में ‘सशक्त महिला, सक्षम महिला’ को एक प्रमुख बिंदु के तौर पर शामिल किया गया है.
नीतीश कुमार ने शुक्रवार को कहा, ‘महिलाओं के सशक्तिकरण के बिना कोई विकास नहीं हो सकता है.’ साथ ही महिला उद्यमियों की वित्तीय मदद के तौर पर उन्हें नया वेंचर शुरू करने पर पांच लाख रुपये अनुदान और पांच लाख रुपये के कर्ज का वादा किया.
मुख्यमंत्री ने कक्षा 12 की अविवाहित छात्राओं के लिए सरकारी अनुदान 12,000 रुपये से बढ़ाकर 25,000 रुपये और स्नातक छात्राओं (विवाहितों समेत) के लिए 25,000 रुपये से 50,000 रुपये तक बढ़ाने की बात भी कही.
उन्होंने कहा कि वित्तीय मदद जाति या समुदाय से परे हर वर्ग की महिलाओं के लिए होगी.
नीतीश ने सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण का उल्लेख भी किया जिसकी घोषणा उन्होंने 2016 में की थी.
उन्होंने कहा, ‘उन्हें नौकरी देना भर काफी नहीं है. अगर दोबारा सत्ता में आया तो मैं ब्लॉक से राज्य स्तर तक प्रशासन में महिलाओं का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करूंगा.’
नीतीश द्वारा महिला मतदाताओं को लुभाने की ऐसी आक्रामक कोशिश करने की एक वजह बिहार चुनावों में उनकी लगातार बढ़ती भागीदारी है.
2000 तक मतदान में 20 प्रतिशत लैंगिक अंतर हुआ करता था, जिसमें ज्यादातर महिलाएं अपने मताधिकार का प्रयोग करने से दूर रहती थीं. लेकिन 2010 से महिलाएं बड़ी संख्या में मतदान के लिए आगे आ रही हैं.
2010 के विधानसभा चुनावों में 54.85 प्रतिशत महिला मतदाताओं ने अपने वोट डाले और 2015 के चुनावों में मतदान करने वाली महिलाओं का आंकड़ा बढ़कर 59 प्रतिशत हो गया था.
2019 के लोकसभा चुनावों में लगभग 60 प्रतिशत महिलाओं ने अपना वोट डाला और लोकसभा की 40 सीटों में से 25 में महिला मतदाताओं ने पुरुषों को भी पछाड़ दिया था.
इन सभी चुनावों में नीतीश ने अन्य दलों के साथ गठबंधन में जबर्दस्त जीत हासिल की जिससे इस धारणा को बल मिला कि जातियों और समुदायों से परे महिलाओं का समर्थन उनकी जीत की वजह है.
एक तबके पर नीतीश मेहरबान रहे
2005 में सत्ता में आने के बाद से नीतीश लगातार महिला मतदाताओं पर मेहरबान रहे हैं.
उन्होंने छात्राओं के लिए मुफ्त साइकिल कार्यक्रम शुरू कर अपनी सरकार के पहले पांच वर्षों में 4 लाख साइकिलें बांटी.
नीतीश ने पंचायत और नगरपालिका निकायों में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण भी लागू किया जिसके कारण कई महिलाओं की मुखिया और नगर निकाय अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति हो सकी.
अपने दूसरे कार्यकाल में उन्होंने महिला स्वंय सहायता समूहों (एसएचजी) के गठन पर जोर दिया और दस लाख ऐसे समूहों के गठन का लक्ष्य रखा. उन्होंने अपना व्यवसाय शुरू करने वालों के लिए अनुदान की घोषणा भी की.
नीतीश ने शुक्रवार को कहा, ‘आज 10 लाख (स्वयं सहायता) समूह हैं और 1.3 करोड़ महिलाएं उनके साथ जुड़ी हैं.’
2017 में उन्होंने कक्षा 12 की छात्राओं और स्नातक स्तर की पढ़ाई जारी रखने वाली छात्राओं को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई. इन सबसे इतर उन्होंने सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण की शुरुआत की.
इस साल अप्रैल में उन्होंने आशा कार्यकर्ताओं को दी जाने वाली राशि 3,000 रुपये से बढ़ाकर 5,000 रुपये कर दी. उन्होंने 2016 में महिला एसएचजी की मांग पर राज्य में शराबबंदी लागू की थी.
महिलाओं के खिलाफ अपराध
हालांकि, 2015 के बाद राज्य में महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ने के कारण नीतीश की महिला समर्थक छवि को झटका लगा, खासकर 2018 में कुख्यात मुजफ्फरपुर आश्रय गृह यौन शोषण मामले जैसी घटना के बाद.
राज्य में दुष्कर्म के कई ऐसे मामले भी सामने आए हैं जिसमें आरोपियों ने सोशल मीडिया पर वीडियो तक जारी कर दिए थे.
पिछले साल दिसंबर में नीतीश ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा था जिसमें महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ने के लिए अश्लील साइटों को जिम्मेदार ठहराते हुए इन पर पाबंदी लगाने का आग्रह किया गया था.
बिहार महिला समाज की कार्यकारी अध्यक्ष निवेदिता झा ने कहा, ‘अभी कोविड के समय में भी महिलाओं के खिलाफ अपराध जारी हैं. अस्पतालों में लड़कियों के यौन शोषण के कम से कम दो मामले सामने आए हैं. कोविड काल में महिलाओं की देखभाल के लिए कोई विशेष योजना नहीं है.’
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युवाओं और किसानों पर विशेष ध्यान
अपनी चुनावी रणनीति में महिलाओं की अहमियत को पुन: उजागर करने के अलावा नीतीश ने बेरोजगारी के मुद्दे पर अपने मुख्य राजनीतिक प्रतिद्वंदी और राजद नेता तेजस्वी यादव के आक्रामक हमलों का जवाब देने की भी कोशिश की है.
नीतीश ने ‘सरकारी नौकरियां सीमित होने’ का तर्क देते हुए स्वरोजगार की तलाश में जुटे युवाओं को वित्तीय सहायता और कौशल विकास के अवसर मुहैया कराने की पेशकश की.
उन्होंने हर ब्लॉक में वृद्धाश्रम स्थापित करने का वादा कर बुजुर्गों और सिंचाई की सुविधाएं मुहैया कराने की बात कहकर किसानों को लुभाने की भी पूरी कोशिश की.
नीतीश के पास अपने सहयोगी के लिए भी एक संदेश था. उन्होंने कहा, ‘लोजपा और आरएलएसपी से बातचीत (सीट बंटवारे पर) करना भाजपा का काम है. इससे संदेश साफ है कि उनकी पार्टी अपनी सीटों की हिस्सेदारी घटाने को तैयार नहीं है.
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