पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को गुरुवार को कुढ़नी विधानसभा उपचुनाव में जनता दल (यूनाइटेड) प्रत्याशी की हार से करारा झटका लगा है, क्योंकि यह चुनाव उनकी प्रतिष्ठा का सवाल बना हुआ था. कुढ़नी सीट अंतत: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की झोली में जाने से पूर्व चुनावी बाजी कई बार दोनों दलों के प्रत्याशियों के पक्ष में तेजी से बदलती नजर आई.
काफी उतार-चढ़ाव की गवाह बनी 23 राउंड की मतगणना के बाद आखिरकार भाजपा के केदार प्रसाद गुप्ता ने 3,600 से अधिक वोटों से जीत हासिल की. उन्हें 76,722 वोट मिले, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी और जदयू प्रत्याशी मनोज कुशवाहा को 73,073 वोट मिले.
गुप्ता के लिए यह जीत इस वजह से भी खासी मायने रखती है क्योंकि वह 2020 के बिहार चुनाव में इसी सीट पर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अनिल साहनी से लगभग 750 मतों के अंतर से हार गए थे.
इस सीट पर उपचुनाव की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि साहनी को वित्तीय अनियमितता के एक मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद अक्टूबर में बिहार विधानसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया था.
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने कहा, ‘नीतीश जब हमारे साथ थे तो हमारी जीत सुनिश्चित नहीं कर पाए थे. और, अब वह अपने छह सहयोगियों और एक वीआईपी उम्मीदवार—भाजपा के वोटों में सेंध लगाने के लिए डमी उम्मीदवार—के बावजूद अपनी पार्टी की जीत सुनिश्चित नहीं कर पाए. यह बताता है कि जमीनी स्तर पर नीतीश कुमार की लोकप्रियता किस स्थिति में पहुंच गई है.’
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मोकामा और गोपालगंज में नवंबर के उपचुनावों के तुरंत बाद इस चुनाव में महागठबंधन की हार हुई है. उन दोनों सीटों पर राजद और भाजपा ने अपना-अपना दबदबा कायम रखा था, हालांकि दोनों ही दलों की जीत का अंतर थोड़ा घटा था.
अगस्त में नीतीश कुमार के राजद के साथ गठबंधन सरकार के लिए पाला बदलने के बाद जदयू और भाजपा के बीच सीधे तौर पर यह पहला चुनावी मुकाबला था. यह हार जदयू के लिए इस वजह से भी शर्मनाक मानी जा रही है क्योंकि कुशवाहा कोई कमजोर प्रत्याशी नहीं थे, वह 2005 से 2015 तक बिहार विधानसभा के सदस्य रहे हैं.
भाजपा के राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने दावा किया, ‘जदयू यह सीट नीतीश कुमार की वजह से हारी है. उन्हें जिम्मेदारी लेनी चाहिए और 2014 की तरह ही पद छोड़ना चाहिए. जिस अत्यंत पिछड़ी जाति (ईबीसी) के वोटों पर नीतीश अपना दावा जताते रहे हैं, वो अब भाजपा के साथ आ चुका है.’
कुढ़नी उपचुनाव में जदयू के प्रत्याशी के समर्थन में नीतीश, उनके डिप्टी तेजस्वी यादव के साथ-साथ राज्य के करीब-करीब सभी मंत्रियों और महागठबंधन नेताओं ने प्रचार किया था. हालांकि, मैदान में 13 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे थे लेकिन मुकाबला भाजपा और जदयू के बीच ही था.
कुढ़नी में प्रचार के दौरान नीतीश कुमार ने जहां भाजपा पर समाज को सांप्रदायिक आधार पर बांटने की कोशिश करने का आरोप लगाया था, वहीं तेजस्वी ने मतदाताओं से कहा था कि उनके पिता और राजद प्रमुख लालू प्रसाद अपने ऑपरेशन के बाद उपचुनाव के नतीजे जानने के लिए उत्सुक होंगे.
विपक्षी खेमे की बात करें तो भाजपा ने प्रचार के लिए ज्यादातर स्थानीय नेताओं पर ही भरोसा किया, वहीं लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता चिराग पासवान ने भी गुप्ता के समर्थन में रोड शो किया.
राजद ने आधिकारिक तौर पर उपचुनाव नतीजे पर कोई टिप्पणी नहीं की है, लेकिन पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि मूड ठीक नहीं है. राजद के एक मंत्री ने कहा, ‘नीतीशजी को हमें यह सीट छोड़ने पर मजबूर करने के बजाय इसे राजद के लिए छोड़ देना चाहिए था.’
क्या शराबबंदी ने जदयू की संभावनाओं पर असर डाला?
नतीजे को लेकर चर्चाओं में यह विषय काफी छाया रहा कि क्या 2016 में बिहार में शराबबंदी लागू करने के नीतीश के फैसले से चुनावी नुकसान पहुंचाया है.
भाजपा विधायक हरिभूषण ठाकुर ने कहा, ‘मैं तीन दिनों के लिए कुढ़नी में था और मुझे एक बात समझ आई कि जाति समीकरणों के अलावा एक अलग वोट बैंक है जो शराब विरोधी कानूनों से प्रभावित है. मुझे बताया गया कि अकेले कुढ़नी में इस सिलसिले में 6,000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया है और इसे लेकर नीतीश को हराने की शपथ ली गई थी.’
यहां तक कि सत्तारूढ़ महागठबंधन में शामिल कांग्रेस और जीतनराम मांझी के नेतृत्व वाले हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) ने भी नीतीश कुमार से शराब विरोधी कानूनों पर नरमी बरतने की गुहार लगाई थी. नवंबर के अंतिम सप्ताह में ताड़ी बेचने के अपने अधिकारों की बहाली की मांग कर रहे ताड़ी निकालने वालों पर पुलिस के लाठीचार्ज ने स्थिति को और बिगाड़ दिया.
जदयू संसदीय बोर्ड के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने हिंदी में किए ट्वीट में लिखा, ‘हमें कुढ़नी के नतीजे से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है. पहला सबक: ‘जनता हमारे अनुसार नहीं चलती, बल्कि हमें जनता के अनुसार चलना होता है.’
हालांकि, जदयू प्रवक्ता नीरज कुमार ने इस बात से इनकार किया कि उपचुनाव का नतीजा शराब कानूनों को लेकर नाराजगी का संकेत हैं. नीरज कुमार ने कहा, ‘उपचुनाव मूलरूप से स्थानीय मुद्दों पर लड़े जाते हैं. क्या गलत हुआ, इसका अध्ययन करने के लिए हम उपचुनाव (परिणाम) की समीक्षा करेंगे.’
जदयू के एक विधायक ने कहा, ‘हालांकि नीतीश कुमार हमेशा यह दावा करते रहे हैं कि उन्होंने बिहार में शराबबंदी महिलाओं की मांग पर ही की है, लेकिन यह कदम वोट के मामले में कारगर नहीं रहा है.’
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