जेडी (यू), जो बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग को पुनः उठाने की योजना बना रही है, की चिंता बढ़ रही है । मुख्यमंत्री नितीश कुमार को असम के नागरिकता विधेयक और मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले के खिलाफ बोलते हुए भी सुना गया है।
नई दिल्ली: पिछले 15 दिनों में बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार, जो भाजपा के ‘बिग ब्रदर’ वाले रवैये से नाखुश माने जा रहें हैं, ने दो अलग अलग अवसरों पर अपने गठबंधन सहभागी को चकित किया है।
17 मई को उन्होंने पटना में अखिल असम छात्र संघ (एएएसयू) के एक प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की, जो चाहते थे कि मुख्यमंत्री नागरिकता विधेयक का विरोध करें जिसे मोदी सरकार लोकसभा में पारित करने जा रही है।
नितीश ने एएएसयू नेताओं से वादा किया कि वह इस मुद्दे को ले कर प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखेंगे और इसके विरोध में उनको सलाह देंगे। उन्होंने प्रतिनिधिमण्डल को यह भी बताया कि चूंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है इसलिए धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं निर्धारित की जा सकती।
26 मई को पटना में एक बैंकिंग सम्मेलन को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने नवंबर 2016 में मोदी सरकार द्वारा किए गए नोटबंदी (demonetisation) की तीखी आलोचना की। यह पहली बार था कि नितीश ने इस कदम की गहरी आलोचना की।
उन्होंने कहा, “मैं नोटबंदी का एक प्रबल समर्थक था। लेकिन इससे कितने लोगों को फायदा हुआ, कुछ शक्तिशाली लोगों ने अपनी नकदी को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित कर दिया और गरीब सहते रहे।
बिहार के मुख्यमंत्री की विस्फोटक टिप्पणियां किसी योजना का हिस्सा नहीं है, दिप्रिंट को मालूम चला है कि ”यह भाजपा के खिलाफ जेडी (यू) के भीतर बढ़ते संघर्ष की अभिव्यक्ति है।“
दबंग सहयोगी
जेडी (यू) के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि पिछले साल अगस्त में जब से दोनों पार्टियों ने सरकार बनाई थी, तब से यह प्रसंस्करण हो रहा है और बीजेपी के खिलाफ गुस्सा पैदा हो रहा है। प्राथमिक कारण गठबंधन में बीजेपी का हठी रवैया प्रतीत होता है। जबकि 243 सदस्यीय सदन में जेडी (यू) की 71 सीटें हैं, भाजपा के पास 53 है।
इस साल मार्च में राज्य में राम नवमी के पर्व के दौरान हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद नितीश ने उपमुख्यमंत्री, बीजेपी के सुशील कुमार मोदी को बताया कि यदि बीजेपी नेअपने कुछ नफरत फैलाने वाले नेताओं को नहीं रोका तो वह गठबंधन से बाहर निकल जाएंगे।
जेडी (यू) में यह भावना है कि बीजेपी उसे किसी महत्वहीन भागीदार के रूप में पेश कर रही है। यह उस समय से बिलकुल विपरीत है जब दोनों पार्टियां पहले वाले गठबंधन में थीं, उस समय बीजेपी ने नितीश और जेडी (यू) को बिहार में नेतृत्व करने की खुली छुट दी। हालांकि इस बार नितीश सरकार का नेतृत्व तो करते हैं लेकिन भाजपा के मंत्री खुद ही काम करते हैं और यही कारण है कि मुख्यमंत्री को अक्सर कैबिनेट की बैठक नहीं बुलाते।
वरिष्ठ जेडी (यू) नेता के. सी. त्यागी कहते हैं,”कुछ लोग भ्रम फैला रहे हैं कि जेडी (यू) गठबंधन के लिए कोई मूल्य नहीं चुकाती । उन्हें याद रखना चाहिए कि 2005 में जेडी (यू) की वजह से ही बीजेपी की सीटें 37 से 55 हो गई थीं। 2010 में यह आंकड़ा 91 तक पहुँच गया था, जब नितीश पार्टी से अलग हो गए थे, तो उनकी सीटें फिर से 53 हो गई थीं।”
राज्य के लिए विशेष दर्जे की मांग को पुनः उठाना
बिहार के लिए विशेष राज्य के दर्जे को लेकर जेडी (यू) अपनी मांगों को दोबरा उठा रही है। तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) ने आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा न दिए जाने पर एनडीए से बाहर निकलने के बाद से बिहार में विपक्ष ने मुख्यमंत्री पर दबाव बढ़ाया है, जिन्होंने एक बार इस मुद्दे का समर्थन किया था। मार्च 2013 में जब यूपीए सत्ता में थी तो नितीश ने भी बिहार के लिए विशेष राज्य की मांग को ले कर दिल्ली में एक रैली आयोजित की थी।
उनकी पार्टी अब 2019 से पहले भाजपा पर दबाव डालने के लिए उसी मांग को दोबारा उठा रही है, 29 मई को नितीश ने अपने निजी ब्लॉग से एक पोस्ट ट्वीट किया कि मुद्दा एक बार पुनः उठा रहा हूँ।
उन्होंने ब्लॉग में लिखा, “वित्त आयोग को विशेष रूप से बिहार और पिछड़े राज्यों की अलग-अलग ज़रूरतों को देखना चाहिए।”
15 वां वित्त आयोग किसी भी राज्य को विशेष दर्जा देने के पक्ष में नहीं है लेकिन जेडी (यू) कुछ और सोचती है।
त्यागी ने कहा,”वित्त आयोग की सिफारिशें कोई पवित्र पुस्तक नहीं हैं। बिहार को न्याय नहीं मिला है, अगर हम बिहार को उसका यथोचित स्थान नहीं दिला पाते हैं तो हम किस चेहरे से लोगों के पास जाएंगे। विशेष दर्जा देने के लिए बिहार एक उत्तम उदहारण है।”
पर्याप्त नहीं है बाढ़ पैकेज
मुख्यमंत्री केंद्र सरकार द्वारा बिहार को दिए गए बाढ़ पैकेज से भी नाखुश हैं। पिछले साल अगस्त में बिहार ने बड़ी बाढ़ का अनुभव किया जिसने 19 जिलों को प्रभावित किया और इसमें 500 से अधिक लोगों ने अपनी जान गंवाई। बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करने परप्रधानमंत्री मोदी ने राज्य द्वारा आवश्यक समर्थन को बढ़ाने के वादे के साथ 500 करोड़ रुपये की त्वरित राहत की घोषणा की थी।
बाद में राज्य सरकार ने बाढ़ राहत पैकेज के रूप में 7,636 करोड़ रुपये की मांग की। हालांकि केंद्र सरकार ने केवल 1,700 करोड़ रूपये ही मंजूर किए, जिसमें प्रधानमंत्री द्वारा वादा किए गये 500 करोड़ रुपये भी शामिल थे।
बिहार के आपदा प्रबंधन मंत्री और जेडी (यू) के एक वरिष्ठ नेता दिनेश चंद्र यादव ने कहा, “वास्तव में हमें केवल 1,220 करोड़ रुपये मिले, हमने और अधिक मांग की थी लेकिन हम क्या कर सकते हैं केंद्र ने हमें इतना ही दिया।”
जेडी (यू) को अभी भी उम्मीद है कि मोदी सरकार पार्टी द्वारा उठाए गए मामलों की जाँच करेगी और यह सब कुछ 2019 के चुनावों से पहले हल किया जाएगा। त्यागी ने कहा, “यह कार्य करने के लिए आठ से दस महीने का समय पर्याप्त है और हम उम्मीद करते हैं कि केंद्र सरकार बिहार के लोगों से किए गए वादों को पूरा करेगी।”
हालांकि बिहार में विपक्ष ने यह आरोप लगाया है कि बिहार सरकार द्वारा हाल ही में उठाए गये कदम पूर्णतः नाटकीय हैंऔर चर्चा में बने रहने से प्रेरित हैं।
आरजेडी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद मनोज झा ने पूछा कि, “हमें यह समझ में नहीं आता की राज्य को विशेष दर्जा दिलाने की माग 2017 के बाद ढीली क्यों पड़ गई जब उन्होंने जनादेश का मजाक उड़ाते हुए भाजपा के साथ सरकार बनाई। अब इस सच्चाईसे निराश होकर कि वह लगभग राजनीतिक विस्मृति के दरवाजे तक पहुँच गये हैं, वह केवल इस मांग पर चर्चा में बने रहने के लिए वापस आए हैं।
Read in English: Nitish Kumar is getting restless with the BJP—once again