पटना: जनता दल (यूनाइटेड) ने अपने वरिष्ठ पार्टी नेता रामचंद्र प्रताप सिंह या आर.सी.पी. सिंह को राज्यसभा में उनके एक और कार्यकाल से वंचित कर दिया.
इसका मतलब यह होगा कि सिंह – जो इस समय केंद्रीय मंत्रिमंडल में पार्टी के एकमात्र प्रतिनिधि हैं – को अब जून में उच्च सदन में उनका कार्यकाल समाप्त होने के बाद इस्पात मंत्री के पद से इस्तीफा देना होगा.
बिहार में सत्तारूढ़ दल जद (यू) ने उनके बजाय इस सीट पर झारखंड जद (यू) के गुमनाम से नेता खेरू महतो को नामांकित करने का विकल्प चुना है.
जद (यू) नेतृत्व ने इस फैसले को इस तरह समझाने की कोशिश की है कि महतो – झारखंड इकाई के प्रदेश अध्यक्ष और हजारीबाग से एक बार के विधायक – को नामांकित करने का यह निर्णय इस राज्य में पार्टी को मजबूत करने के लिए लिया गया है
जद (यू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ़ ललन सिंह ने कहा: ‘जद (यू) ने आरसीपी सिंह को संसद सदस्य नियुक्त करके और उनके लिए मंत्री पद का समर्थन करके उन्हें सम्मानित किया था, लेकिन अब झारखंड में हमारे विस्तार का समय है.’
जैसे ही राजग में जद (यू) की सहयोगी पार्टी भाजपा ने बिहार से अपने उम्मीदवारों – सतीश चंद्र दुबे और शंभू सरन पटेल- के नामों की घोषणा की, जद (यू) ने सिंह को टिकट देने से मना कर दिया. जाति से कुर्मी शंभू सरन पटेल जद (यू) से निकाले जाने के बाद भाजपा में शामिल हो गए थे.
बिहार से भी कोई मौका नहीं मिलने की वजह से सिंह का राजनीतिक भविष्य अब खतरे में दिख रहा है.
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आर.सी.पी. से नाराज क्यों है जद (यू)?
1984 बैच के आईएएस अधिकारी आर.सी.पी. सिंह केंद्रीय रेल मंत्री के रूप में नीतीश कुमार के दिनों से ही बिहार के मुख्यमंत्री के करीबी रहे हैं. उन्होंने कुमार को प्रमुख सचिव के रूप में भी सेवा प्रदान की थी.
हालांकि, कुछ नेताओं ने बताया कि सिंह के भाजपा के बहुत करीब आने के बाद चीजें बिगड़ती चली गईं.
जद (यू) नेताओं ने वताया कि जब से वह 2021 में केन्दीय कैबिनेट के फेरबदल में मंत्री बने हैं, तभी से सिंह ने जातिय जनगणना (नीतीश कुमार जिसके पक्ष में है और जिसे भाजपा द्वारा नापसंद किया जा रहा है), राम जन्मभूमि मंदिर और अन्य मुद्दों पर स्वतंत्र विचार अपनाया है.
उनके ट्विटर हैंडल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीरें हैं, न कि उनके अपने नेता नीतीश कुमार की. वह केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव के भी करीबी हो गए थे. यादव एक ऐसे शख्श है जिन्हें नीतीश कुमार भाजपा आलाकमान के साथ अपने ख़राब हो रहे संबंधों के लिए दोषी मानते हैं. हाल फ़िलहाल में, सिंह ने बिहार के मुख्यमंत्री द्वारा अपने आधिकारिक आवास पर आयोजित कई कार्यक्रमों, जैसे ‘इफ्तार’ पार्टी, को भी नजरअंदाज कर दिया था.
पार्टी सूत्रों का कहना है कि हालांकि भाजपा जद (यू) की राजनीतिक सहयोगी है, फिर भी नीतीश कुमार को अपने नेता द्वारा आपसी भाईचारे के इस तरह के खुले प्रदर्शन पर संदेह हो रहा था. मगर, उन्होंने इस बात से इनकार किया कि बिहार में दोनों दलों के साझेदारी को कोई खतरा है.
खेरू महतो हीं क्यों?
राज्यसभा चुनाव में प्रत्याशी के इस चयन ने कई सारे पार्टी नेताओं को अचम्भे में डाल दिया है. एक विधायक का मानना है कि नीतीश कुमार को सिंह की जगह बिहार से किसी को चुनना चाहिए था.
उन्होंने कहा: ‘खेरू महतो साल 1994 में समता पार्टी के गठन के बाद से ही नीतीश कुमार के साथ हैं. लेकिन झारखंड के महतो समुदाय ने कभी भी बिहार के कुर्मियों का साथ नहीं दिया है. ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) के सुदेश महतो ही उनके नेता हैं, नीतीश कुमार नहीं. मैं नहीं समझ सकता कि इस फैसले से हमारे मुख्यमंत्री को कोई राजनीतिक लाभ कैसे होगा?‘
अब क्या करेंगें आर.सी.पी. सिंह?
सिंह 2005 से ही नीतीश कुमार के बहुत करीब रहे हैं. पहले, वह कुमार के निजी सचिव थे. उत्तर प्रदेश कैडर के आईएएस अधिकारी के रूप में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने और पार्टी में शामिल होने के बाद 2010 में उन्हें राज्यसभा के लिए नामांकित किया गया था.
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि जब भाजपा ने 2021 में सिंह को केंद्रीय मंत्री बनाया, तो नीतीश कुमार इस बात से ज्यादा खुश नहीं थे. यह अफवाह भी उडी थी कि केंद्रीय मंत्रिमडल में अपनी पार्टी के लिए चार प्रतिनिधियों की नीतीश कुमार की मांग को अनदेखा करते हुए सिंह ने स्वयं अपने लिए मंत्रालय पद पर बातचीत की थी.
लेकिन जब पार्टी उनके नामांकन में आनाकानी कर रही थी, तो सिंह ने कहा था : ‘नीतीश बाबू द्वारा केंद्रीय भाजपा नेतृत्व को मेरे नाम की सिफारिश करने के बाद ही मैं केंद्रीय मंत्री बना. मैं नीतीश जी का वफादार रहा हूं.’
सिंह के समर्थकों का कहना है कि उनका पद चले जाने की संभावना के साथ सिंह थोड़ी देर के लिए शांत बैठे रहेंगे. एक विधायक ने कहा: ‘लेकिन वह आगे चलकर में नीतीश कुमार के लिए एक गंभीर खतरा साबित होंगे. पहले से ही एक धारणा बनी है कि उन्हें एक भूमिहार नेता (ललन सिंह पढ़ें) के इशारे पर बाहर किया गया है. वह बाद में भाजपा में शामिल हो सकते हैं और मुख्यमंत्री पर पलटवार करने का इंतजार कर सकते हैं.‘
इस बीच, सिंह ने सोमवार को एक संवाददाता सम्मेलन में कुमार को ‘विभिन्न क्षमताओं में जद (यू) की सेवा करने का अवसर प्रदान करने’ के लिए धन्यवाद दिया. उन्होंने कहा, ‘मैंने पिछले 25 सालों से नीतीश कुमार के साथ काम किया है. यह फैसला लेते समय उन्होंने जरूर मेरी उपयोगिता का आकलन किया होगा. ‘
केंद्रीय मंत्री ने यह भी कहा कि उन्होंने अपनी पार्टी के नेता को नाराज करने जैसा कुछ भी नहीं किया है, लेकिन उन्होंने कहा कि वह अपने मंत्रालय से इस्तीफा देने से पहले प्रधानमंत्री से मिलेंगे.
बिहार से राज्य सभा के लिए नामांकित पांच प्रत्याशी
सिंह के बाहर होने और खेरू महतो के अंदर आने के साथ ही बिहार से राज्यसभा के लिए सभी पांच उम्मीदवारों के नाम स्पष्ट हो गए हैं.
राष्ट्रीय जनता दल ने लालू की बड़ी बेटी मीसा भारती को उनके दूसरे राज्यसभा कार्यकाल के लिए नामित किया है. साथ ही, इसने मधुबनी में एक मेडिकल कॉलेज चलाने वाले पूर्व विधायक फैयाज अहमद को भी नामित किया है.
भाजपा ने सतीश दुबे को चुना है – ये वहीँ शख्श हैं जिन्होंने 2019 में भाजपा-जद (यू) गठबंधन के लिए अपनी लोकसभा सीट छोड़ दी थी. इस बीच, चुनावी मैदान में झारखंड से आने वाले शंभू शरण पटेल और खेरू महतो की एंट्री सबको हैरान करने वाली है.
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