नई दिल्ली: हर किसी की इच्छा होती है ये जानने की कि ये जो नेता हैं वो अपनी जिंदगी में कैसे हैं, या कैसे रहे हैं. क्या उनको भी कभी प्यार, इश्क और मुहब्बत हुई और अगर मुहब्बत हुई तो उन्हें उसे पाने के लिए कितना पापड़ बेला.. क्या उन्हें भी प्यार में घर से भागना पड़ा, या फिर परिवारवालों ने उनके प्यार को स्वीकार कर लिया..क्या ये नेता बचपन से ही नेता बनना चाहते थे या फिर उनकी डेस्टिनी (भाग्य ) ने उन्हें यहां तक पहुंचा दिया. पढ़ाई लिखाई से उनका कितना वास्ता है…अब नेता तो आज बने हैं क्या उन्होंने कभी पढ़ाई के दौरान ‘नकल’ की है… चूंकि चुनाव है तो नेताओं से थोड़ी ठिठोली तो बनती ही है. नवभारत टाइम्स ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में अपना भाग्य आजमा रहे 134 कैंडिडेट्स से 10 गुदगुदाने वाले सवाल दागे. मजेदार बात ये है कि सही हो या गलत करीब-करीब सभी नेताओं ने इन सवालों के खुल कर जवाब दिए हैं.
अब नेता हैं देश के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने में इनकी भूमिका अहम होती है. तो ऐसे में यह सवाल अहम हो जाता है कि क्या इन नेताओं ने ‘ट्रैफिक सिग्नल तोड़ा’ है, ‘कौन से नेता उन्हें पसंद है’, क्या कभी उन्होंने सरकारी स्कूलों की स्थिति को सुधारने के लिए ‘अपने बच्चों को सरकारी स्कूल भेजा’ है…इन सवालों के बीच हर बच्चे से बचपन में बार-बार पूछा जाता है कि ‘आप बड़े होकर क्या बनना चाहते हैं’…मजेदार बात ये है कि इन सारे नेताओं ने चुनाव के मद्देनजर गुदगुदाने वाले जवाब तो दिए ही साथ ही मंझे हुए जवाब भी दिए कुछ ने तो बेबाकी से स्वीकार किया जी ‘हां हमने ये काम किया है’….
एनबीटी ने दिल्ली के चुनावी मैदान में उतरे 134 उम्मीदवारों से बातचीत में ऐसे सवाल दागे जो अक्सर आम लोगों से जुड़े होते हैं..जिससे ये पता चलता है कि ये नेता भी आम लोगों जैसे ही हैं..इन नेताओं से पूछा गया कि वह बचपन में क्या बनना चाहते थे..मजेदार बात ये है कि 29 फीसदी लोगों ने कहा कि वह समाज सेवी बनना चाहते थे. जबकि 12 फीसदी ने तो बचपन में ही तय कर लिया था कि वे नेता बनना चाहते थे, 6 फीसदी टीचर. 7 फीसदी आर्मी ऑफिसर, 6 फीसदी बिजनेस मैन तो पांच फीसदी ऐसे भी हैं जो डॉक्टर बनना चाहते थे..जबकि 6 फीसदी ने सवाल का जवाब ही नहीं देना उचित समझा.
दिल्ली के जाम में फंसने, याफिर कम समय में जल्दी दूरी को तय करने के लिए 80 फीसदी लोगों ने ट्रैफिक सिग्नल तोड़ा ही होता है…लेकिन चुनाव का वक्त है सही या गलत लेकिन 51 फीसदी नेताओं ने बड़ी मासूमियत ने बताया कि कभी सिग्नल नहीं तोड़ा, जबकि चार फीसदी नेताओं ने यह भी बताया कि उन्हें ड्राइविंग नहीं आती है..
अब समाचार पत्र के सवाल थोड़े नटखट भी थे. हर कोई जानना चाहता है ये हमें अच्छाई का पाठ पढ़ाने वाले नेता खुद पढ़ाई में कितने अच्छे थे…55 फीसदी नेताओं ने माना कि वह पढ़ाई में औसत थे जबकि 39 फीसदी ने कहा कि वह अच्छे थे.
नेता हैं तो इनपर देश, समाज और सोसाइटी के लोगों की पूरी नजर होती है..अक्सर नेताओं की फोटो, वीडियो नाचते -गाते, बंदूक लहराते दिखाई दे ही जाते हैं उनकी इन हरकतों के लिए काफी आलोचना भी हुई है. ऐसे में उनसे यह भी पूछा गया कि क्या उन्होंने ‘शराब’ पी है..तो 85 फीसदी लोग ने कहा कि वहीं उन्होंने हाथ भी नहीं लगाई…8 फीसदी ने बेबाकी से माना कि हां पी है जबकि 7 फीसदी ने कहा हां सिर्फ पार्टियों में पी है…
वैसे पढ़ाई लिखाई के मामले में कुछ ही नेता हैं जो देश दुनिया की खबरों से जुड़े रहते या फिर पढ़ते लिखते दिखाई देते हैं..ऐसे में इन नेताओं से जब ये पूछा गया कि किस राजनीतिक किताब से प्रेरित हैं नेताजी तो पता चला किताब से दूर ही रहते हैं नेताजी…21 फीसदी ने कहा किताब नहीं पढ़ता, समय ही नहीं मिलता…वैसे रटा-रटाया जवाब जरूर मिला जिसमें 17 फीसदी नेताजी ने बड़ी बेबाकी से माना कि अखबार ही काफी है…3 फीसदी विवेकानंद की जीवनी. 2 फीसदी अटल जी की कविता और 3 फीसदी भगवद्गीता पढ़ते हैं.
वैसे नेताओं का इश्क मुहब्बत और प्यार भी काफी चर्चित रहा है..चाहें वह सचिन पायलट हों, भाजपा के शहनाज हुसैन हों या फिर कांग्रेस पार्टी के शशि थरूर..अब हमने दिल्ली चुनाव के मैदान में अपना भाग्य आजमा रहे नेताओं से पूछा भाई- इश्क विश्क, प्यार-व्यार किया है…भाई इन नेताओं में से 45 फीसदी ने सिरे से खारिज कर दिया और कहा, ‘नहीं किया’ लेकिन 36 फीसदी ने माना हां किया..लेकिन कुछ तो राजनीतिक चाल चलते हुए कहा हां किया–3 फीसदी ने तो भगवान से प्यार किया है और 5 फीसदी ने देश से…
नवभारत टाइम्स में इस स्टोरी की प्लानिंग से लेकर नेताओं के इंटरव्यू तक से जुड़े रहे एडिटोरियल हेड ने दिप्रिंट से बातचीत में बताया,’ यह थोड़ा कठिन काम था, नेता पहले इस तरह के सवालों से भागते रहे लेकिन बाद में जब हमारी टीम ने उन्हें कहा कि हम नाम नहीं छापेंगे तो सारे नेताओं ने बेबाकी से बात की.
एडिटोरियल टीम को हेड कर रहे संपादक ने बताया, ’12 दिन का समय लगा..हम तो 210 उम्मीदवारों से बात करना चाहते थे लेकिन समय की कमी और नेताओं के चुनाव प्रचार में जुटे होने के कारण हम सिर्फ 134 नेताओं से ही बात कर पाए. इस पूरे सर्वे में 10 पत्रकार और 5-7 डेस्क के हमारे साथी जुड़े थे. और यह एक अच्छा अनुभव रहा.’