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Sunday, 15 September, 2024
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हरियाणा, महाराष्ट्र में NDA सरकार विधानसभा चुनावों में मतदाताओं को लुभाने के लिए बांट रही ‘रेवड़ी’

दोनों राज्य सरकारें लगभग हर वर्ग के लिए योजनाओं के लिए पैसे खर्च कर रही हैं, जबकि विपक्ष और विश्लेषक ऐसी घोषणाओं की अव्यवहारिकता की ओर इशारा करते हैं.

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गुरुग्राम/मुंबई: महाराष्ट्र और हरियाणा में अभी कुछ चीज़ें समान हैं. दोनों राज्य विधानसभा चुनावों की ओर बढ़ रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) दोनों राज्यों में शासन कर रही है — महाराष्ट्र में गठबंधन के हिस्से के रूप में और हरियाणा में अल्पमत सरकार के रूप में. दोनों राज्यों की सत्तारूढ़ पार्टियों को इस साल के लोकसभा चुनावों में करारी हार का सामना करना पड़ा और दोनों राज्यों में यह सुनिश्चित करने की हताशा की भावना है कि विधानसभा चुनावों में समान जनादेश न आए.

परिणामस्वरूप, महाराष्ट्र और हरियाणा दोनों में आम जनता फिलहाल बहुत खुश है.

एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार और नायब सिंह सैनी के नेतृत्व वाली हरियाणा सरकार लगभग हर वर्ग के लिए लोकप्रिय योजनाओं में बड़ी मात्रा में धन खर्च कर रही है.

सब्सिडी वाले गैस सिलेंडर से लेकर स्कूली लड़कियों को फोर्टिफाइड दूध उपलब्ध कराना, स्वरोज़गार के लिए अधिक मात्रा में कर्ज़ देना और हरियाणा में किसानों के लिए सेस में छूट, महिलाओं, युवाओं, वारकरी संप्रदाय के सदस्यों के लिए वजीफा और महाराष्ट्र में वरिष्ठ नागरिकों के लिए मुफ्त तीर्थयात्रा तक, दोनों राज्य चुनाव से पहले लोगों को खुश रखने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं.

मुंबई यूनिवर्सिटी के राजनीति और नागरिक विभाग के एक शोधकर्ता डॉ संजय पाटिल ने दिप्रिंट को बताया, “अगर हम लोकसभा के नतीजों को देखें तो लोग सत्तारूढ़ सरकार से बहुत नाराज़ थे और यह नतीजों में भी झलक रहा था. इसलिए, उस कमी को पूरा करने के लिए इस तरह की योजनाएं लाई जा रही हैं. अब, लोग इन पर प्रतिक्रिया देते हैं या नहीं, यह देखने वाली बात होगी. हालांकि, वे एक हद तक प्रभाव छोड़ते हैं क्योंकि जो कोई भी इन किश्तों को मौखिक रूप से प्राप्त करता है, वह योजनाओं को लोकप्रिय बनाता है.”

उन्होंने कहा, “यह एक तरह से रेवड़ी है. प्रधानमंत्री खुद इस संस्कृति के खिलाफ हैं, लेकिन दोनों राज्यों में भाजपा सरकारें इसका सहारा ले रही हैं.”

हरियाणा में सत्तारूढ़ भाजपा को झटका लगा, जहां उसे 10 में से 5 लोकसभा सीटों का नुकसान हुआ, जबकि 2019 में उसे सभी 10 सीटों पर जीत मिली थी. विधानसभा क्षेत्रों के लिहाज़ से इसका मतलब है कि कुल 90 सीटों में से 46 सीटों का नुकसान हुआ.

महाराष्ट्र में शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना, भाजपा और अजित पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) वाली महायुति सरकार ने महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों में से सिर्फ 17 सीटें जीतीं. प्रतिद्वंद्वी महा विकास अघाड़ी (एमवीए), जिसमें शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे), कांग्रेस और एनसीपी (शरदचंद्र पवार) शामिल हैं, ने 30 सीटें जीतीं. कांग्रेस के एक बागी निर्दलीय उम्मीदवार ने आखिरकार एमवीए को अपना समर्थन दिया और 48वीं सीट जीत ली.

हाल के संसदीय चुनावों में स्थानीय मुद्दों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसमें नासिक में प्याज किसानों का असंतोष और मराठवाड़ा में मराठा कोटा विरोध प्रदर्शन शामिल हैं. अक्टूबर में होने वाले विधानसभा चुनावों तक इन चुनौतियों के पूरी तरह खत्म होने की संभावना नहीं है और महायुति लोगों को अपने पक्ष में करने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है.

पूर्व मुख्यमंत्री और हरियाणा विधानसभा में विपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि भाजपा “आधारहीन घोषणाएं कर रही है जिन्हें वह लागू नहीं कर सकती” क्योंकि वह विधानसभा चुनावों में स्पष्ट हार से घबरा गई है.

गुरुवार को दिप्रिंट से बात करते हुए हुड्डा ने इस बात पर जोर दिया कि फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित किया जाता है, न कि राज्य सरकार द्वारा.

सैनी सरकार ने इस हफ्ते की शुरुआत में मौजूदा 15 की जगह 24 फसलों की खरीद की घोषणा की थी.

हुड्डा ने बताया कि केंद्र सरकार ने इस साल के बजट में एमएसपी गारंटी का उल्लेख नहीं किया है, जिस आधार पर राज्य सरकार ने ऐसी घोषणा की है, उस पर सवाल उठाते हुए उन्होंने भाजपा को एमएसपी की गारंटी के लिए संसद में विधेयक लाने की चुनौती दी.

हुड्डा ने तर्क दिया, “हरियाणा में चुनाव दो महीने दूर हैं और एक महीने में आचार संहिता लागू हो जाएगी, ऐसे में भाजपा की एमएसपी की बात गलत समय पर की गई है, क्योंकि अगले महीने तक कोई भी फसल बाजार में नहीं आएगी.”

Graphic by Shruti Naithani, ThePrint
ग्राफिक : श्रुति नैथानी/दिप्रिंट

महाराष्ट्र में माज़ी लड़की बहन योजना, मुख्यमंत्री युवा कार्य प्रशिक्षण योजना और वारकरियों को पेंशन देने जैसी योजनाओं की घोषणा की गई है.

गुरुवार को पुणे में पत्रकारों से बात करते हुए शरद पवार ने कहा कि हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में महायुति को जो झटका लगा है, उसने उसे नई योजनाएं शुरू करके लोगों के कल्याण के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया है.

Graphic by Shruti Naithani, ThePrint
ग्राफिक : श्रुति नैथानी/दिप्रिंट

उन्होंने कहा, “यह सराहनीय है कि भाई-बहनों के कल्याण पर ध्यान दिया जा रहा है, लेकिन यह जादू पूरी तरह से लोकसभा चुनाव के वोटों की वजह से है. अगर मतदाता समझदारी से अपना वोट देंगे, तो सभी बहनें, भाई और अन्य लोग याद किए जाएंगे.”


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मतदाताओं को खुश रखना

हरियाणा में सीएम सैनी ने बुधवार को घोषणा की कि प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत लाभार्थी 1.80 लाख रुपये से कम वार्षिक आय वाले 46 लाख परिवारों को अब 500 रुपये में गैस सिलेंडर मिलेगा.

उन्होंने यह भी घोषणा की कि मुख्यमंत्री दुग्ध उपहार योजना के तहत, कुपोषण से निपटने के लिए 14 से 18 वर्ष की आयु की स्कूली लड़कियों को 150 दिनों के लिए फोर्टिफाइड दूध उपलब्ध कराया जाएगा, जिससे लगभग 2.65 लाख किशोर लड़कियों को लाभ होगा.

उनकी कुछ अन्य घोषणाओं में हरियाणा मातृशक्ति उद्यमिता योजना के तहत स्वरोज़गार के लिए ऋण राशि को 3 लाख रुपये से बढ़ाकर 5 लाख रुपये करना शामिल है. इस योजना के तहत स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) के लिए परिक्रामी निधि को 20,000 रुपये से बढ़ाकर 30,000 रुपये कर दिया गया और समूह सखी के लिए मासिक मानदेय 150 रुपये से बढ़ाकर 500 रुपये कर दिया गया.

हरियाणा के सीएम ने 130 करोड़ रुपये के लंबित आबियाना (नहर के पानी पर सेस) और किसानों से सालाना वसूले जाने वाले 54 करोड़ रुपये के आबियाना को माफ करने की भी घोषणा की.

महाराष्ट्र में महायुति सरकार द्वारा घोषित लोकप्रिय योजनाएं, महिलाओं, युवाओं, वारकरियों और वरिष्ठ नागरिकों जैसे विभिन्न समूहों को मासिक वित्तीय सहायता प्रदान करती हैं — राज्य के वित्तीय बोझ को बढ़ाएंगी. सरकार ने हाल ही में 2023-24 के लिए 7 लाख करोड़ रुपये से अधिक के कर्ज वाले राज्य में अतिरिक्त 96,000 करोड़ रुपये की अनुपूरक मांगें पेश कीं.

राजनीतिक टिप्पणीकार प्रकाश बल ने कहा, महाराष्ट्र में लोकलुभावन योजनाएं शिंदे के राजनीति खेलने के तरीके के अनुरूप हैं, लेकिन राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा संकेत नहीं है.

बाल ने कहा, “लेकिन दान देना एकनाथ शिंदे की शैली है. यही उनकी राजनीति रही है, चाहे वह पार्षद के तौर पर हो या सीएम के तौर पर.”

हालांकि, सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के लोकनीति की रिसर्च एसोसिएट ज्योति मिश्रा ने कहा कि मौजूदा राजनीतिक संदर्भ में कोई भी पार्टी चुनावी जीत हासिल करने के लिए कल्याणकारी उपायों या रेवड़ी संस्कृति के आकर्षण से बच नहीं सकती. उन्होंने कहा, “बीजेपी, जिसने पहले इस प्रथा की आलोचना की थी, अब हरियाणा और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों से पहले इसे अपना रही है. हरियाणा में, बीजेपी सरकार ने लोकसभा चुनाव 2024 के बाद कई लोकलुभावन उपायों की घोषणा की है, जिसमें एक लाख रुपये से कम वार्षिक आय वाले परिवारों के लिए “मुफ्त बस यात्रा” शामिल है. इसके अलावा, सरकार गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों को मुफ्त में ज़मीन के टुकड़े दे रही है, जिसका उद्देश्य लोकसभा में अपने वोट शेयर में उल्लेखनीय गिरावट के बाद मतदाताओं की शिकायतों को दूर करना है. महाराष्ट्र में भी महिलाओं के लिए मासिक भत्ता, किसानों के लिए सब्सिडी, कृषि पंपों के लिए मुफ्त बिजली और प्याज तथा दूध उत्पादकों के लिए वित्तीय सहायता है.”

मिश्रा ने कहा कि ये पहल रणनीति में बदलाव को दर्शाती है क्योंकि भाजपा प्रमुख मतदाता जनसांख्यिकी के बीच खोई साख को फिर से हासिल करना चाहती है.

उन्होंने कहा, “चूंकि, राजनीतिक दल चुनाव जीतने के लिए कल्याणकारी वादों का सहारा ले रहे हैं, इसलिए भाजपा द्वारा इन उपायों को अपनाना समकालीन भारतीय चुनावों में वितरणात्मक राजनीति के बढ़ते महत्व को दर्शाता है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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