हैदराबाद: अप्रैल 1996 में एक दिन भीषण बारिश के बीच 25 वर्षीय सीथक्का वारंगल के नल्लाबेल्ली मंडल में पूरी दम लगाकर जितना भी तेज भाग सकती थीं, भाग रही थीं. उनकी पूरी कोशिश थी कि पुलिस की गोलियों से बच सकें. पैरों में छाले पड़े हुए थे और उनसे खून बह रहा था. उनकी उम्मीद टूटती जा रही थी लेकिन वह एक नक्सली कमांडर थीं और अपने 10 सदस्यीय दलम को वहां से सुरक्षित निकालना उनका कर्तव्य था. वह किसी तरह पुलिस से बचने में सफल रहीं, लेकिन यह एक अंत की शुरुआत थी.
इस घटना के 26 साल बाद, अक्टूबर के ही एक दिन चार पुलिसकर्मी मुस्कुराते हुए दो बार की विधायक 51 वर्षीय डॉ. दानासारी अनसूया उर्फ सीथक्का के बगल में खड़े नजर आए. ये पुलिसकर्मी हैदराबाद स्थित उस्मानिया यूनिवर्सिटी परिसर में उनके साथ तस्वीर खिंचवाने में व्यस्त हैं, जहां कुछ समय पहले ही पॉलिटिकल साइंस विभाग की तरफ से उन्हें पीएचडी की डिग्री प्रदान की गई है.
यह एक पूर्व नक्सली के लिए गर्व का क्षण था, जिसने 1997 में विद्रोही समूह को छोड़ा, कानून की पढ़ाई की और फिर राजनीति में कदम रखा. फिलहाल वह एक कांग्रेस नेता और तेलंगाना के मुलुग निर्वाचन क्षेत्र से निवर्तमान विधायक हैं, जो कि अनुसूचित जनजाति के लिए एक सुरक्षित सीट है.
सीथक्का ने दिप्रिंट को बताया, ‘मैं 2012 से ही पीएचडी की डिग्री हासिल करना चाहती थी और विधायक बनने के बाद मैंने एक बार एग्जाम भी दिया था लेकिन फिर मुझे बतौर विधायक अपने कार्यों को प्राथमिकता देनी थी.’
उनकी थीसिस एक ऐसे विषय पर है जो उनके दिल के बहुत करीब है— गोटी कोया जनजाति का अभावपूर्ण जीवन और सामाजिक पृथक्करण. वह खुद भी खासकर वारंगल और खम्मम जिलों में बसी इसी जनजाति से ही आती हैं.
उन्होंने बताया, ‘मैंने खास तौर पर गोटी कोया को चुना क्योंकि मैं पिछले करीब एक दशक से उनके साथ काम कर रही हूं. वे विस्थापित जीवन जी रहे हैं और राज्य सरकार की तरफ से भी उन्हें कोई मान्यता नहीं दी गई है, उन्हें किसी भी तरह का सरकारी लाभ नहीं मिलता और शायद ही उनके लिए लाइफ सिक्योरिटी जैसा कुछ है. मैं अपने खुद के शोध के आधार पर एक किताब तैयार करने की योजना बना रही हूं और यदि संभव हुआ तो इसे राज्य सरकार और यहां तक कि राष्ट्रपति को भी पेश करूंगी.’
इन सालों में, सीथक्का ने अपने निर्वाचन क्षेत्र के वंचित तबके में शुमार आदिवासी समुदायों के साथ काम किया है, जिसमें उन्हें कानूनी सहायता उपलब्ध कराने से लेकर कोविड के दौरान तमाम ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरकर राहत सामग्री पहुंचाना तक शामिल है. और इसकी वजह से उनके समर्थक भी काफी बढ़ गए हैं.
तेलंगाना में संघर्ष कर रही कांग्रेस के लिए सीथक्का का आत्मविश्वास बहुत ज्यादा मायने रखता है. उनकी लोकप्रियता को देखते हुए पूरी उम्मीद है कि वह अगले साल तेलंगाना में चुनाव होने पर अपनी सीट निश्चित तौर पर बरकरार रख पाएंगी.
बहरहाल, कांग्रेस सूत्रों का मानना है कि उनकी क्षमताओं का अभी तक पूरी तरह इस्तेमाल नहीं किया गया है, भले ही उन्होंने पार्टी के भीतर एक मजबूत जगह बना ली हो और राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का हिस्सा बनी हों.
राज्य कांग्रेस के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘सीथक्का फिलहाल तो अपने निर्वाचन क्षेत्र में ही सक्रिय हैं, लेकिन राज्य इकाई को उनकी बढ़ती लोकप्रियता का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करना चाहिए.’
अगर सीथक्का के जीवन में आए उतार-चढ़ावों पर नजर डालें तो पता चलता है कि उनमें नेतृत्व क्षमता या महत्वाकांक्षाओं की कोई कमी नहीं है. लेकिन पिछले कई सालों से अपने विभिन्न अवतारों के बीच बतौर पूर्व नक्सली की भूमिका उनकी स्मृतियों में बसी है और यह उनके वर्तमान को आकार देने में भी काफी अहम रही है.
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लॉब्रेकर से लॉमेकर तक
डॉक्टरेट की उपाधि मिलने के तुरंत बाद सीथक्का ने ट्विटर पर महज 60 शब्दों में अपनी जीवन यात्रा का ब्योरा कुछ इस तरह दिया— नक्सली से वकील से विधायक और अब पॉलिटिकल साइंस में पीएचडी डिग्रीधारी तक.
In my childhood I never thought i would be a Naxalite, when I am Naxalite I never thought I would be a lawyer, when I am lawyer I never thought I would be MLA, when I am MLA I never thought I will pursue my PhD.
🔥Now you can call me Dr Anusuya Seethakka PhD in political science. pic.twitter.com/v8a6qPERDC— Danasari Anasuya (Seethakka) (@seethakkaMLA) October 11, 2022
मुलुगु जिले के जगन्नापेट गांव के एक आदिवासी परिवार में जन्मी अनसूया अपने स्कूल के समय ही नक्सली विचारधारा की ओर आकृष्ट हुईं..
उन्होंने बताया, ‘मैं जहां पली-बढ़ी हूं, वह जगह नक्सली विचारधारा से प्रभावित थी और स्कूलों और कॉलेजों में हमेशा इस पर चर्चा होती रहती थी. इसलिए, मैं इसकी ओर आकर्षित हुई.’
1960 के दशक के बाद, आर्थिक शोषण, गरीबी, सामाजिक रूप से हाशिए पर होना और खासकर आदिवासी समुदायों के बीच भूमि अधिकारों की लड़ाई आदि तमाम ऐसे कारण थे जो अविभाजित आंध्र प्रदेश में नक्सली विद्रोह भड़कने का कारण बने. हालांकि, 2010-2011 आते-आते हिंसा भी थमी लेकिन इसके पहले कई मुठभेड़ें हुईं और तमाम लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी.
10वीं कक्षा में रहने के दौरान ही अनसूया एक नक्सली समूह का हिस्सा बन गई थी और सीथा उपनाम उन्हें वहीं दिया गया, जो आगे चलकर सीथक्का (तेलुगु में अक्का का अर्थ बड़ी बहन होता है) हो गया था. 1980 के दशक के अंत में पहली बार गिरफ्तारी के बाद, जेल में रहकर ही उन्होंने 10वीं कक्षा की परीक्षा दी. उस समय वह गर्भवती थी.
एक दशक से अधिक समय तक, सीथक्का नक्सली आंदोलन का हिस्सा रहीं लेकिन धीरे-धीरे उनका मोहभंग होने लगा. पूर्व में बताई गई पुलिस से बचकर भागने वाली जैसी घटनाओं ने हालात को बदलने के उनके संकल्प को और मजबूत किया.
1997 में एक राज्य माफी कार्यक्रम के तहत उन्होंने पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया. वह उस समय एक नौ साल के बच्चे की मां थी और उनके पति अभी एक नक्सली ही थे (जो बाद में एक मुठभेड़ में मारा गया). लेकिन इस सबके बावजूद उन्होंने कानून की पढ़ाई करने का फैसला किया ताकि इसकी मदद से वह आदिवासी समुदायों के लोगों का भला कर सकें.
उन्होंने बताया, ‘एक वकील के तौर पर भी मैं एक एनजीओ के साथ मिलकर आदिवासियों से जुड़े मामले उठाती थी. मेरा फोकस वही था.’ लेकिन वह और भी बहुत कुछ करना चाहती थीं.
उन्होंने बताया, ‘मेरे साथी वकीलों ने मुझे राजनीति में आने को प्रोत्साहित किया. उनका मानना था कि बेहतर फंड और ज्यादा शक्तियों के साथ, मैं ज्यादा बेहतर सेवा कर सकती हूं और इस तरह से मैं राजनीति में आ गई.’
सीथक्का ने अपने सियासी सफर की शुरुआत 2004 में चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के साथ की. उन्होंने उसी साल मुलुग सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा लेकिन जीतने में नाकाम रहीं. 2009 में, टीडीपी ने उन्हें फिर उसी सीट से टिकट दिया और इस बार वह चुनाव जीत गईं.
हालांकि, 2014 के चुनाव में वह तीसरे स्थान पर रहीं और 2017 में कांग्रेस में शामिल हो गईं. 2018 में तेलंगाना राष्ट्र समिति या टीआरएस (जिसका नाम अब भारत राष्ट्र समिति हो गया है) की जबर्दस्त लहर के बावजूद सीथक्का कांग्रेस के टिकट पर मुलुग से फिर विधायक चुनी गईं. राज्य में अभी टीआरएस का ही शासन है.
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कोविड के दौरान हुई ‘ख्यात’
2020 में जब कोविड महामारी ने दस्तक दी और देशव्यापी लॉकडाउन लगा तो मुलुगु जिले के दूरदराज के इलाकों में बसे आदिवासी समुदायों के पास आवश्यक चीजों की आपूर्ति बुरी तरह प्रभावित हुई.
इन कमजोर तबकों की मदद के लिए सीथक्का की पहल ने देशभर में उनके प्रति लोगों का ध्यान आकृष्ट किया, तमाम फोटो और वीडियो में उन्हें ऊबड़-खाबड़ और पथरीले रास्तों से गुजरकर लोगों के दैनिक उपभोग की वस्तुएं पहुंचाते देखा जा सकता था.
सिर पर दुपट्टा बंधा रहता और साड़ी को कमर में कसकर सीथक्का हर दिन दूरदराज के गांवों में जातीं, जहां सड़कों के जरिये पहुंच बेहद सीमित थी और परिवहन की भी पर्याप्त सुविधा नहीं थी. वह अक्सर अपने कंधों पर भारी बैग लेकर कई किलोमीटर तक चलतीं, या आदिवासी गांवों तक पहुंचने के लिए बैलगाड़ी की सवारी करतीं.
उसी समय अपने एक ट्विटर अपडेट में उन्होंने लिखा था कि जब वह नक्सली आंदोलन का हिस्सा थीं, तब आदिवासी गांवों में लोग उन्हें खाना खिलाते थे और अब ‘उनका कर्ज चुकाने’ की बारी उनकी है.
एक अन्य ट्वीट में, उन्होंने लिखा कि यह सब उन्हें ‘पुराने दिनों’ की याद दिलाता है. लेकिन अंतर यही है कि अब उनके हाथ में गोला-बारूद के बजाये चावल और सब्जियों हैं.
वरिष्ठ कांग्रेस नेता और राज्य सभा सदस्य दिग्विजय सिंह ने सीथक्का के एक वीडियो को अपने ट्विटर अकाउंट पर साझा किया और उन्हें ‘सराहनीय’ बताया.
Doesn’t the video look like that of a migrant worker waking to her village? But it isn’t! This is an MLA carrying essentials in the hot sun and rocky path to far flung tribal villages. Seethakka has been doing this for about 39days now. Spellbound by her dedication @seethakkaMLA pic.twitter.com/PPWfgccL6K
— Revathi (@revathitweets) May 3, 2020
कोविड के दौरान अपने कार्यों के बारे में पूछे जाने पर सीथक्का ने बताया कि आदिवासी समुदायों की सेवा करने को लेकर उनका नजरिया हमेशा व्यावहारिक रहा है.
उन्होंने कहा, ‘लोगों को लॉकडाउन के दौरान मेरे कार्यों के बारे में पता चला जब मैंने इसके स्निपेट पोस्ट करने शुरू किए. लेकिन मैं जीवन भर इसी तरह सेवा करती रही हूं और आगे भी करती रहूंगी.’
उन्होंने बताया, ‘कांग्रेस आलाकमान ने तभी मेरी सराहना की थी और जब राहुल गांधी बाद में मुझसे मिले तो उन्होंने भी कहा कि मैं अच्छा काम कर रही हूं. निश्चित तौर पर इससे मुझे खुशी हुई.’
हालांकि, कोविड के दौरान राहत कार्यों में जुटने का मतलब था, अपने एकेडमिक प्लान को बीच में छोड़ देना. लेकिन सीथक्का को इसका कोई मलाल नहीं है.
उन्होंने बताया, ‘मैंने लॉकडाउन के दौरान अपना पीएचडी प्रोग्राम दो साल आगे बढ़ा दिया. शुरू में मुझे लगा था कि मैं इसे घर पर ही पूरा कर सकती हूं लेकिन फिर एहसास हुआ कि गांवों के लोगों के पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन उपलब्ध नहीं है. तब मुझे लगा कि फिलहाल जरूरी यही है कि मैं खुद को किताबों के बीच न समेटकर फील्ड में रहूं और अपने लोगों की मदद करूं.’
जुलाई में जब तेलंगाना के कुछ हिस्सों में बाढ़ आ गई तो सीथक्का ने एक बार फिर खुद राहत कार्यों का जिम्मा संभाल लिया.
उन्होंने कहा कि आज भी उनके नियमित कार्यक्रम में सुबह के समय स्थानीय लोगों से उनके घर जाकर मिलना और उनकी शिकायतें सुनना शामिल है, फिर वह कुछ घंटे अपने निर्वाचन क्षेत्र में पार्टी कार्यालय में बिताती हैं और नियमित रूप से गांवों का दौरा भी करती हैं.
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तेलंगाना कांग्रेस के लिए उम्मीद की एक किरण?
कभी तेलंगाना में प्रमुख विपक्षी दल का दर्जा रखने वाली कांग्रेस आज राज्य में अपने पैर जमाने के लिए संघर्ष कर रही है. मौजूदा समय में 119 सदस्यीय विधानसभा में उसके पास केवल पांच विधायक हैं, जो आंकड़ा 2014 में 21 था.
राज्य में पार्टी की स्थिति सबसे ज्यादा तब खराब हुई जब 2019 में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में 18 में से एक दर्जन कांग्रेस विधायक टीआरएस में शामिल हो गए और फिर 2021 में एक और विधायक ने भाजपा का हाथ थाम लिया. इस बीच, भाजपा तेलंगाना में अपनी ताकत बढ़ाने में जुटी है और पिछले कुछ समय में दो महत्वपूर्ण उपचुनावों में सत्तारूढ़ टीआरएस को हराने के बाद उसके पास तीन विधायक हैं. टीआरएस ने 2018 के चुनावों में 88 सीटें हासिल की थीं.
भाजपा ने ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम के चुनावों में भी अच्छा प्रदर्शन किया और टीआरएस के बाद दूसरे नंबर पर रही. जबकि कांग्रेस काफी पीछे रह गई.
कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि इस सबके बीच सीथक्का जैसे लोकप्रिय नेता पार्टी को कुछ उम्मीदें बंधाते हैं.
उन्होंने कहा कि इनकी उपलब्धियों को सामने लाने और राज्य इकाई में ‘उन्हें कोई बड़ी भूमिका देने’ से पार्टी की छवि मजबूत करने में मदद मिल सकती है.
फिलहाल, तो सीथक्का कन्याकुमारी में शुरू होने के बाद से राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में अहम भूमिका निभा रही हैं और अब तक यात्रा में कवर किए गए राज्यों में से आंध्र प्रदेश को छोड़कर बाकी सभी में दो या तीन दिनों तक साथ चल चुकी है.
इस समय सीथक्का तेलंगाना के मुनुगोडे उपचुनाव की जिम्मेदारी भी संभाल रही हैं और 3 नवंबर को चुनाव हो जाने के बाद वह फिर से यात्रा में शामिल होने की तैयारी में हैं.
उन्होंने कहा, ‘मेरी पार्टी और मेरा कर्तव्य ही हमेशा मेरी प्राथमिकता रही है. अगर किसी कारण लोग मुझे दोबारा नहीं चुनना चाहते हैं, तो इसका मतलब यह नहीं है कि मैं अपना काम करना बंद कर दूंगी. जब तक मैं यह सब कर सकती हूं, करती रहूंगी.’
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