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Friday, 20 December, 2024
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नवजोत सिद्धू, रेवंत रेड्डी, नाना पटोले – क्यों मिलता है कांग्रेस में भाजपा के बागियों को अध्यक्षपद का इनाम?

एबीवीपी-टीआरएस-टीडीपी के पूर्व नेता रेवंत रेड्डी को तेलंगाना कांग्रेस का प्रमुख बनने के कुछ दिनों बाद हीं पूर्व भाजपा सांसद सिद्धू ने भी पंजाब कांग्रेस के प्रमुख के रूप में कार्यभार संभाला है. इससे पहले नाना पटोले फरवरी 2021 में महाराष्ट्र में पार्टी के अध्यक्ष बने थे.

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नई दिल्ली: पंजाब कांग्रेस में लगभग एक महीने तक चले मंथन और उठा-पठक के बाद नवजोत सिंह सिद्धू ने शुक्रवार को प्रदेश पार्टी अध्यक्ष का पदभार संभाल लिया. सिद्धू को पार्टी में आये हुए अभी चार साल ही हुए हैं और इससे पहले वे एक दशक से अधिक समय तक भाजपा के सदस्य रहे थे.

पिछले महीने, कांग्रेस आलाकमान ने उन रेवंत रेड्डी को अपनी तेलंगाना इकाई के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया जो पार्टी में सिर्फ चार साल से हीं थे. रेड्डी ने अपनी राजनैतिक पारी आरएसएस – जो भाजपा का वैचारिक स्रोत भी है- की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के सदस्य के रूप में शुरू की थी. 2003 से 2017 के बीच, उन्होंने दो अन्य दलों – क्षेत्रीय दल तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) और तेलुगु देशम पार्टी (TDP) – के साथ भी काम किया. वह साल 2017 में कांग्रेस में शामिल हुए थे.

इसी साल फरवरी में, पार्टी ने नाना पटोले को अपने महाराष्ट्र राज्य प्रमुख के रूप में नियुक्त किया था. नाना पटोले अपना राजनीतिक जीवन तो 1990 में कांग्रेस के हीं साथ शुरू किया था, लेकिन 2018 में अपने राजनैतिक घर वापस लौटने से पहले के बीच के वर्षों में वे दो बार पार्टी छोड़ चुके हैं. 2009 और 2018 के बीच वह भाजपा के भी साथ थे और अपने राजनैटिक करियर एक भाग उन्होंने स्वतंत्र राजनेता के रूप में भी बिताया है.

कांग्रेस में महत्वपूर्ण पदों पर दलबदलुओं के बिठाये जाने के इस चलन ने पार्टी के कुछ सदस्यों को अचम्भे में ड़ाल दिया है.
उदाहरण के लिए, पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह – जो सिद्धू के साथ अपने प्रभुत्व की लड़ाई लड़ रहे हैं – के एक सहयोगी ने कहा कि यह विश्वास से परे है कि जो लोग कुछ वर्षों पहले ही पार्टी में शामिल हुए थे, उन्हें कांग्रेस के लिए दशकों काम करने वालों के बजाय पदोन्नत किया जा रहा है.

दिप्रिंट से बात करते हुए, कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि यह स्पष्ट दिखता है कि इस प्रकार की पदोन्नति के पीछे गांधी परिवार के भाई-बहन की जोड़ी – राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा – के स्वीकृति वाली मुहर है और इसपर सवाल नहीं किया जा सकता.

कुछ अन्य लोगों का कहना है कि यह भाजपा से लड़ने के इच्छुक किसी भी व्यक्ति का स्वागत करने की राहुल की रणनीति का हिस्सा है. उन्होंने इस तथ्य को भी महत्वपूर्ण बताया कि सिद्धू, रेड्डी और पटोले सभी ऐसे समय में कांग्रेस में शामिल हुए थे जब पार्टी काफी ख़राब हालत में थी और चुनावों में लगातार खराब प्रदर्शन कर रही थी.

ऊपर बताये गए तीन राज्यों में से, कांग्रेस वर्तमान में पंजाब में सत्ता में है और महाराष्ट्र में वह महाविकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार में गठबंधन के एक सहयोगी के रूप में शामिल है. एमवीए के तीन घटकों में से कांग्रेस के पास ही सबसे कम सीटें हैं – इस गठबंधन के अन्य दो घटक शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) हैं – और इसने 2019 में 147 विधानसभा सीटों में से सिर्फ 44 पर जीत हासिल की थीं (महाराष्ट्र विधानसभा में कुल मिलाकर 288 सीटें हैं).
तेलंगाना की 120 सदस्यीय विधानसभा में उसके सिर्फ छह (6) विधायक हैं.


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गांधी परिवार की जोड़ी की मंजूरी वाली मुहर ‘अंतिम और निर्विवाद’

कांग्रेस के कुछ शीर्ष नेताओं का कहना है कि ये नियुक्तियां राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा के द्वारा दिए गए एक संकेत के रूप में हैं – यह एक संदेश कि उनका निर्णय हीं अंतिम और निर्विवाद होगा.

कांग्रेस के एक सांसद ने कहा, ‘यह गांधी भाई-बहन की जोड़ी द्वारा कांग्रेस पर एक तरह से संस्थागत कब्जा है, जहां वे जानते हैं कि इस तरह के निर्णय पार्टी के भीतर अलोकप्रिय हो सकते हैं, लेकिन अगर उनका दिल इसी बात पर टिका है, तो फिर यही होगा.’

इस सांसद ने आगे कहा,’किसी भी तरह की आपत्ति, चाहे वह पंजाब के मामले में खुद राज्य के मुख्यमंत्री द्वारा हीं क्यों न उठाई गई हो, इसके आगे कहीं नहीं टिकती.’

कांग्रेस के एक अन्य पदाधिकारी ने कहा कि पटोले और रेड्डी को भी ‘आलाकमान के अनुमोदन’ वाली ऐसी हीं मुहर मिली थी.

इस पदाधिकारी ने आगे बताया कि ‘इस तरह की सभी नियुक्तियों में ‘हाईकमान’ का मतलब मूल रूप से सिर्फ राहुल गांधी हीं है. अगर वे किसी तरह उनके साथ सही तालमेल बिठाने में कामयाब हो जाते हैं, तो इन नियुक्तियों के रूप में आलाकमान की मंजूरी वाली मुहर मिल जाती है.’

ऐसा माना जाता है कि रेड्डी ने राहुल गांधी के करीबी सहयोगियों के साथ घनिष्ठ संबंध विकसित करके उनकी नजर में अपनी अच्छी पहचान स्थापित की थी. सिद्धू ने भी राहुल गांधी से मुलाकात के बाद ही कांग्रेस में प्रवेश किया, जिन्होंने व्यक्तिगत रूप से उनका पार्टी में स्वागत किया. पटोले भी राहुल के करीबी माने जाते हैं.

एक तीसरे नेता ने कहा कि इस तरह की पदोन्नति राहुल गांधी की ‘भाजपा से लड़ने की इच्छा रखने वाले का स्वागत करने’ की रणनीति का एक हिस्सा है.

पिछले हफ्ते, कांग्रेस की सोशल मीडिया टीम की एक बैठक को संबोधित करते हुए, राहुल ने ‘आरएसएस से भयभीत न होने’ की आवश्यकता के बारे में बात की थी. इस बैठक में उपस्थित कांग्रेस सोशल मीडिया विभाग के एक सदस्य के अनुसार, राहुल ने तब कहा था कि जो कोई भी आरएसएस से डरता है, वह कांग्रेस पार्टी छोड़ के जा सकता है, और यह भी कहा था कि जो लोग बीजेपी और आरएसएस से लड़ना और उन्हें हराना चाहते हैं, उनका स्वागत किया जाना चाहिए.
पार्टी के इन नेताओं ने इस बात का भी उल्लेख किया कि जिन तीन नेताओं को राज्य इकाइयों का अध्यक्ष बनाया गया है, वे ऐसे समय में कांग्रेस में शामिल हुए थे जब पार्टी का लगातार पतन हो रहा था और जब ‘मोदी लहर’ पूरे जोर-शोर के साथ बह रही थी.

महाराष्ट्र कांग्रेस के एक नेता ने कहा, ‘पटोले ने 2018 में बीजेपी छोड़ी थी और साथ ही अपनी एमपी की सीट भी छोड़ दी थी. उनके लिए ऐसा करना और कांग्रेस को चुनना, चाहे वह किसी भी तरह के व्यक्तिगत लाभ के लिए हो, एक ऐसा काम है जिसका आलाकमान ने खुले हाथों/दिल से स्वागत किया.’

एक अन्य नेता के आगे कहा, ‘यह एक स्मार्ट रणनीति इस कारण से भी है क्योंकि ऐसे समय में जब कांग्रेस के नेता अधिक-से-अधिक संख्या में भाजपा में शामिल होने के लिए पार्टी छोड़ रहे हैं, तब जो लोग भाजपा छोड़ने और कांग्रेस में शामिल होने का विकल्प चुनते हैं, उन्हें प्रोत्साहित करने या फिर और भी अधिक लोगों को पार्टी में शामिल होने के लिए लुभाने का यह एक अच्छा तरीका है.’


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‘सिंह भी कभी शिअद के साथ थे…राजनीति में पाला-बदल आम बात है’

पंजाब में, पार्टी के कुछ ऐसे भी सदस्य हैं जिनके बारे में माना जाता है कि वे सिद्धू की तरक्की से नाराज़ हैं, भले ही वे खुद अमरिंदर सिंह से पूरी तरह से पसंद न करते हों.

सांसद प्रताप सिंह बाजवा को 2017 के राज्य विधानसभा चुनावों से पहले पंजाब कांग्रेस प्रमुख के पद से हटा दिया गया था, और उनके बदले अमरिंदर सिंह को यह जिम्मेदारी दी गयी थी जो बाद में पार्टी के सीएम पद के चेहरे बन गए.
अमरिंदर सिंह के खेमे को अब सता रहा है कि इस बार भी कुछ ऐसा ही हो सकता है और सिद्धू सीएम पद के चेहरे के रूप में सामने आ सकते हैं. पंजाब कांग्रेस प्रमुख के रूप में सिद्धू की नियुक्ति से पहले के कुछ दिनों में उनके समर्थकों ने कथित तौर पर उन्हें ‘अगले सीएम के चेहरे’ के रूप में दर्शाने वाले पोस्टर लगाए थे.

जिस दिन सिद्धू को राज्य के पार्टी प्रमुख घोषित किया जाना था उस दिन बाजवा सहित पंजाब कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं ने सीएम अमरिंदर सिंह से मुलाकात की थी जिसे उनकी एकजुटता के प्रदर्शन के रूप में देखा गया था.

अमरिंदर के एक सहयोगी ने कहा ‘पार्टी के कई वफादार उसके लिए दशकों तक रात-दिन काम करते हैं, लेकिन इसका क्या मतलब रह जाता है, जब कोई व्यक्ति जो कुछ ही सालों पहले पार्टी में शामिल हुआ था वह इतनी जल्दी तरक्की पा जाता है.’

हालांकि पंजाब के कई कांग्रेसी नेता पूरी तरह से सिद्धू की पदोन्नति के पक्ष में नजर आ रहे हैं. सिद्धू ने बुधवार को शक्ति प्रदर्शन के रूप में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में 62 विधायकों के एक समूह का नेतृत्व किया. पंजाब के 117 सदस्यों वाले सदन में पार्टी के कुल 77 विधायक हैं.

इस समूह का हिस्सा रहे एक विधायक ने दिप्रिंट को बताया, ‘इसका सीधा मतलब है कि हम सभी सिद्धू का समर्थन करते हैं और उनकी नियुक्ति से खुश हैं. इस बात से कोई इंकार नहीं है कि 2017 के चुनावों में किए गए कई वादे अभी तक पूरे नहीं हुए हैं. तो अब समय कुछ बदलाव लाने का है.’

इस विधायक ने कहा कि पाला बदल (आना-जाना) राजनीति का एक हिस्सा है और इस ओर भी इशारा किया कि अमरिंदर सिंह ने स्वयं भी 1984 में कांग्रेस छोड़ दी थी और 1998 में कांग्रेस में वापस लौटने से पहले वे शिरोमणि अकाली दल (शिअद) में शामिल हो गए थे.

इस विधायक के कहा. ‘वह (अमरिंदर सिंह) भी एक दशक से अधिक समय तक शिअद के साथ थे, लेकिन कांग्रेस ने उनका फिर से स्वागत किया. इसलिए राजनीति में ये चीजें आम बात हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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