हर चुनाव में ये बात उभरती है कि क्या नरेंद्र मोदी का करिश्मा बरकरार है? हर जीत का सेहरा भाजपा प्रधानमंत्री मोदी के सिर पर बांध देते हैं, लेकिन जब हार होती है तब उसका ठीकरा किसी और के सिर पर फोड़ दिया जाता है. पर इन विधान सभा चुनावों में माहौल बनाने और हार को जीत में तब्दील करने का जो माद्दा प्रधानमंत्री मोदी में बताया जाता है, क्या इस बार काम नहीं आ सका?
छत्तीसगढ़ में तीन बार सत्ता में रमन सिंह सरकार को जितने जोरदार तरीके से जनता ने नकारा है वह दिखाता है कि कम से कम यहां मोदी की रैलियों का कोई असर नहीं हुआ. तो स्थानीय मुद्दे, राज्य स्तरीय नेता और माहौल को मोदी का जादू बदल नहीं पाया.
मध्य प्रदेश में शिवराज चौहान भी चौथी बार सत्ता पर काबिज होने की कोशिश में हैं और यहां जितनी कांटे की टक्कर है उससे किसी जादू के चलने का तो सबूत नहीं मिलता.
दोनो राज्यों में नेताओं की अपनी छवि बनी हुई थी, लोगों में बदलाव की चाह थी पर नेताओं के प्रति इस कदर कोई गुस्सा नजर नहीं आ रहा था.
वहीं राजस्थान में हवा का रुख मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे और उनके राजशाही रवैये के खिलाफ शुरू से बना हुआ था और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और वसुंधरा राजे के खराब रिश्तों की चर्चा भी थी. इस सब के बावजूद प्रचार के अंतिम चरण में मोदी के प्रचार से पार्टी का मानना है कि राजस्थान में सूपड़ा साफ होने वाले स्थिति से उबार लिया गया और पार्टी टक्कर में आ गई.
तो इन चुनावों में ये साबित हुआ कि हवा कुछ-कुछ मोदी अब भी बदल सकते हैं, पर मोदी की आंधी अब नज़र नहीं आ रही. मोदी ब्रांड इन चुनावों के बाद कुछ डैमेज हुआ है. दीवार फिल्म के ‘मेरे पास मां है’ डायलॉग की तर्ज़ पर भाजपा का रामबाण था मेरे पास मोदी है. पर क्या ये अब आगामी लोकसभा में उसके लिए काफी होगा.
शायद नहीं. दो चीज़े बदल गई हैं. चांद पर दाग हो सकता है पर मोदी पर नहीं- ऐसा उनके समर्थक मानते थे पर अब मोदी की छवि पर दाग दिखने लगे हैं. लोग सवाल पूछने लगे हैं – क्योंकि अच्छे दिन के जो ख्वाब 2014 में भाजपा ने दिखाया था उसके बदले 15 लाख तो जनता के बैंक खाते में नहीं आए पर साथ ही नोटबंदी, जीएसटी की मार जनता ने झेली. गौरक्षा के नाम पर अराजकता ने समाज का माहौल खराब किया तो कृषि क्षेत्र में संकट ने किसानों को संसद कूच करने पर मजबूर कर दिया. जैसा एक कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा मोदी की लहर नहीं मोदी अब एक बोझ बन गए हैं.
दूसरा 2014 में भाजपा को 31 प्रतिशत मत मिला था और एक छितरे हुए विपक्ष के रहते वो इस मत प्रतिशत को बड़ी संख्या में सीटों में तब्दील कर पाया था. बीस से उपर राज्यों में सरकार बना कर पार्टी मज़बूत स्थिति में थी. पर अब ये चुनाव नतीजे मोदी की पकड़ पर असर डालेंगे.
उत्तर प्रदेश जहां उनको इतना भारी बहुमत मिला था वहां भी जनआक्रोश बढ़ रहा है. और वहां मायावती की बसपा और अखिलेश यादव की सपा के बीच समन्वय बढ़ रहा है. तो एक साल पहले तक जो लग रहा था कि पार्टी आसानी से 2019 में फिर सत्ता में आएगी वो निश्चिंतता अब नहीं है. पीटीआई को दिए एक साक्षात्कार में आर्थिक विश्लेषक रुचिर शर्मा ने कहा है कि मोदी का प्रधानमंत्री बनने का चांस 99 से घट कर 50 प्रतिशत रह गया है.
तो मोदी को अगर अपनी स्थिति सुधारनी है तो महज़ प्रचार, जुमले, राम नाम, 3-डी तकनीक में प्रचार, चाय पर चर्चा और सोशल मीडिया के मैनेजमेंट के सहारे नैया पार करने की कोशिश से काम नहीं चलेगा. मोदी मैजिक की धमक फीकी होती दिख रही है.