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Thursday, 14 November, 2024
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‘नारदमुनि, शुक्राचार्य’- शिवसेना के हर 3 में से 1 बागी नेता ने संजय राउत पर पार्टी के विभाजन का आरोप लगाया

शिंदे का समर्थन करने वाले 39 में से कम से कम 13 विधायकों ने शिवसेना से अपने जाने और उद्धव ठाकरे व नए सीएम के बीच 'असफल बातचीत' के लिए राज्य सभा सांसद को जिम्मेदार ठहराया है.

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मुंबई: उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार के खिलाफ विद्रोह करने और एकनाथ शिंदे, जो अब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री हैं, के साथ बने रहने वाले हर तीन विधायकों में से कम से कम एक ने सीधे तौर पर शिवसेना के राज्य सभा सांसद संजय राउत को अपने जाने के लिए जिम्मेदार ठहराया है या सुलह वार्ता को पटरी से उतरने की वजह बताया है.

मुंबई और अंततः अपने गृह निर्वाचन क्षेत्रों में लौटने के बाद शिंदे का समर्थन करने वाले 39 में से कम से कम 13 विधायकों ने सार्वजनिक रूप से राउत को दोषी ठहराते हुए आरोप लगाया कि वह ‘शिवसेना को खत्म करने’ का पूरा प्रयास कर रहे हैं और विद्रोहियों को कथित तौर पर ‘सूअर और वेश्या’ कहे जाने की भी आलोचना की.

अपने क्षेत्र औरंगाबाद में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए शिंदे खेमे के एक बागी शिवसेना विधायक संजय शिरसत ने कहा: ‘संजय राउत ने जो कहा उससे मैं आहत हूं. उन्होंने कहा, हे गेले वैश्य आहेत (जो चले गए हैं वे वेश्याएं हैं). हमारे साथ महिलाएं भी थीं उन्होंने काफी अपमानित महसूस हुआ.’

उन्होंने दावा किया कि राउत शिवसेना को डुबो देंगे, उनका लक्ष्य पार्टी को खत्म करना है. ये लोग शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे के देखे हुए सपनों को चोट पहुंचा रहे हैं.

महाराष्ट्र की 10 सीटों के लिए विधान परिषद के चुनावों की गहमागहमी के एक दिन बाद, 22 जून को शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के विधायकों का एक समूह एमवीए सरकार से अलग हो गया. एमवीए में शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस शामिल थी.

विद्रोही पहले सूरत, फिर गुवाहाटी और अंत में गोवा गए और मुंबई आने से पहले भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ सरकार बनाने के लिए शिंदे ने पूर्व बीजेपी सीएम देवेंद्र फडणवीस से हाथ मिला लिया. शिंदे मुख्यमंत्री बने तो फडणवीस ने अपने लिए डिप्टी सीएम का पद रखा. बागियों के अपने गृह क्षेत्रों में लौटने के बाद सरकार ने 4 जुलाई को अपना फ्लोर टेस्ट पास कर लिया. कुल मिलाकर शिवसेना के 55 में से 39 विधायक शिंदे के साथ शामिल हो गए हैं.

गुरुवार को पत्रकारों से बात करते हुए राउत ने कहा कि बागी विधायकों को लेकर कुछ साफ नहीं है कि वे क्यों चले गए.

उन्होंने कहा, ‘शुरू में उन्होंने हिंदुत्व को इसका कारण बताया. फिर उन्होंने आरोप लगाया कि राकांपा उन्हें फंड नहीं दे रही है…अब वे मुझ पर आरोप लगा रहे हैं. इसलिए, पहले उन्हें एक साथ बैठकर अपने जाने का कारण तय कर लेना चाहिए.’

राउत ने दिप्रिंट के फोन कॉल का कोई जवाब नहीं दिया.


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‘नारदमुनि, शिवसेना को खत्म करने के लिए तैयार’

लौटने से पहले, कुछ विधायकों ने राउत का नाम लिए बिना परोक्ष रूप से उन पर निशाना साधा था. उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि नेताओं के एक छोटे से समूह ने शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे तक विधायकों की पहुंच को नियंत्रित कर दिया है.

राउत को पार्टी नेतृत्व के विश्वासपात्रों में से एक कहा जाता है और 2019 में एमवीए के गठन के लिए बातचीत के दौरान शिवसेना के दूत भी थे.

अलग होने के बाद से शिंदे खेमे के प्रवक्ता रहे दीपक केसरकर ने एक खुले पत्र में राउत को ‘राकांपा का नीली आंखों वाला लड़का’ कहा था, जो ‘शिवसेना को खत्म करने के लिए तैयार’ है.

मंगलवार और गुरुवार के बीच मुंबई वापस आने और अपने निर्वाचन क्षेत्रों में लौटने के बाद से बागी विधायक पार्टी कार्यकर्ताओं, घटकों और स्थानीय मीडिया को अपने द्वारा उठाए गए कदमों की वजह बताने की कोशिश करते हुए राउत की आलोचना में अधिक मुखर हो गए हैं.

सोलापुर के सांगोला से शिवसेना के बागी विधायक शाहजी पाटिल ने पत्रकारों से बात करते हुए राउत को ‘नारदमुनि’ कहा – भारतीय पौराणिक कथाओं में एक ऋषि जो खबरों को यहां से वहां पहुंचाने के तौर पर जाने जाते हैं. ग्रामीण जलगांव से सेना के बागी विधायक गुलाबराव पाटिल ने परोक्ष रूप से राउत को ‘शुक्राचार्य’ बताया- एक ऋषि और भारतीय पौराणिक कथाओं में असुरों (राक्षसों) का गुरु था.

ठाकरे के नेतृत्व वाली एमवीए सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे गुलाबराव ने संवाददाताओं से कहा: ‘हम उद्धव साहब के खिलाफ नहीं हैं, हम आदित्य साहब के खिलाफ नहीं हैं. हम उनका सम्मान करते हैं. आप जानते हैं कि शुक्राचार्य कौन हैं, जिन्होंने हमारी पार्टी को खत्म कर दिया है और हम इसे बचाने की कोशिश कर रहे हैं. उनके बारे में बात करने का कोई मतलब नहीं है. बेकार की बातें क्यों की जाए?’

राउत के बारे में पूछे जाने पर, सतारा में पाटन के एक बागी विधायक शंभूराज देसाई ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा: ‘हम संजय राउत को क्यों महत्व दें, जिनकी वजह से पार्टी इस स्थिति में पहुंची है और जिनकी वजह से 40 विधायक शिवसेना से बाहर हो गए हैं?’


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‘किसी भी सुलह वार्ता पर पूर्ण विराम लगाया’

यवतमाल के डिग्रास के विधायक संजय राठौड़ एमवीए से अलग होने के दो दिन बाद गुवाहाटी में शिंदे के विद्रोही खेमे में शामिल हो गए. अब फ्लोर टेस्ट के बाद वापस अपने निर्वाचन क्षेत्र में आने के बाद राठौड़ ने राउत को शिंदे और ठाकरे के बीच विफल वार्ता के लिए दोषी ठहराया.

6 जुलाई को राठौड़ ने अपने समर्थकों से कहा कि उद्धव ठाकरे एकनाथ शिंदे से बातचीत के लिए तैयार हैं.

उन्होंने कहा, ‘आदित्य ठाकरे सूरत जाने वाले थे लेकिन राउत की मध्यस्थता विफल रही.’ उन्होंने कहा कि जब राउत ने विद्रोहियों का जिक्र करते हुए ‘बेहद अभद्र भाषा’ बोलना शुरू किया तो मामला और बिगड़ गया.

एक अन्य बागी विधायक संजय गायकवाड़ ने अपने गृह निर्वाचन क्षेत्र बुलढाणा में पत्रकारों से बात करते हुए कहा, ‘एक तरफ, आप वापस आने के लिए कहते हैं. दूसरी ओर हमें वैश्या, दुक्कर, कुत्र (वेश्या, सूअर, कुत्ते) कहते हैं, हमारे पिता के बारे में बात करते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘इस संजय राउत ने शिवसेना को पूरी तरह से बर्बाद करने के लिए एनसीपी से सुपारी (किसी को मारने का ठेका) ली है. इसी वजह से जब भी कुछ सुलह होने को होती, उस पर पूर्ण विराम लग जाता.’

जलगांव जिले के पचोरा के एक बागी विधायक किशोर पाटिल ने अपने समर्थकों की एक सभा को संबोधित किया, जिसके बाद उन्होंने टीवी 9 मराठी से बात करते हुए कहा कि राउत ने ‘घावों पर नमक छिडकने’ का काम किया है.

इसी तरह, सतारा जिले के कोरेगांव के एक बागी विधायक महेश शिंदे ने अपने निर्वाचन क्षेत्र में संवाददाताओं से कहा, ‘एमवीए के तहत क्या विकास हुआ? हर सुबह, संजय राउत महाराष्ट्र के लोगों को परेशान करते हुए अपना भजन कीर्तन शुरू करने लगते थे.’

शिंदे राउत की लगभग रोजाना सुबह की प्रेस वार्ता का जिक्र कर रहे थे.

शिंदे ने कहा, ‘संजय राउत शिवसेना के बड़े नेता हैं. विधायकों के जाने के बाद अगर उन्होंने संयम दिखाया होता तो स्थिति पर काबू पाया जा सकता था. लेकिन जिस तरह से उन्होंने स्थिति को संभाला, जिस तरह से उन्होंने हमारा अपमान किया, उसने हमें व्यथित कर दिया.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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