नई दिल्ली: भले ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने सांसद निशिकांत दुबे और दिनेश शर्मा की सुप्रीम कोर्ट पर की गई टिप्पणियों से खुद को अलग कर लिया हो, लेकिन उनके बयान मोदी सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी की उस बेचैनी को दर्शाते हैं जो हालिया कोर्ट के फैसलों और कार्यवाहियों से जुड़ी है जो उनके पक्ष में नहीं गई हैं.
भाजपा के भीतर एक व्यापक भावना है कि सुप्रीम कोर्च अपनी सीमाओं से बाहर जाकर कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप कर रहा है. खासकर दो मामलों में: पहला, राष्ट्रपति और राज्यपालों को बिलों को मंजूरी देने के लिए समयसीमा तय करना और दूसरा, संसद द्वारा पारित वक्फ अधिनियम पर दिया गया अंतरिम आदेश.
हालांकि भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने दुबे और शर्मा के बयानों से पार्टी को अलग कर लिया, लेकिन कई वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने निजी तौर पर कहा कि तमिलनाडु राज्यपाल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने “न्यायिक अतिक्रमण” किया है.
इस “बेचैनी” का पहला संकेत तब मिला जब केरल के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने तमिलनाडु राज्यपाल मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को “ओवररीच” बताया.
“संविधान ने राज्यपाल को बिल पर सहमति देने के लिए कोई समयसीमा तय नहीं की है. लेकिन अगर सुप्रीम कोर्ट कहता है कि एक या तीन महीने की समयसीमा होनी चाहिए, तो यह एक संवैधानिक संशोधन बन जाता है. अगर संवैधानिक संशोधन अदालत कर रही है, तो फिर संसद और विधायिका की क्या जरूरत है.” उन्होंने हिंदुस्तान टाइम्स को दिए इंटरव्यू में कहा. “संविधान में संशोधन करना संसद का अधिकार है. उसके लिए दो-तिहाई बहुमत चाहिए. और दो जज वहां बैठकर संविधान की व्यवस्था का फैसला कर रहे हैं? मैं इसे समझ नहीं पा रहा हूं. यह न्यायपालिका द्वारा ओवररीच है. ऐसा नहीं होना चाहिए था. मैं गलत हो सकता हूं.”
इससे पहले, अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा था कि बिलों को मंजूरी देने के लिए तीन महीने की समयसीमा तय करने से पहले सुप्रीम कोर्ट को राष्ट्रपति का पक्ष भी सुनना चाहिए था.
यह बेचैनी तब और बढ़ गई जब स्वयं उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने तमिलनाडु बनाम राज्यपाल मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि राष्ट्रपति और राज्यपालों को राज्य सरकारों द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने के लिए समयसीमा देना गलत है. उन्होंने अनुच्छेद 142, जो सुप्रीम कोर्ट को पूर्ण अधिकार देता है, को “लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ 24×7 उपलब्ध न्यायपालिका का परमाणु मिसाइल” बताया.
सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि पूर्व भाजपा नेता धनखड़ ने यह तीखी टिप्पणी राज्यसभा इंटर्नशिप कार्यक्रम के समापन समारोह में की. न्यायपालिका पर इस तरह के हमले के लिए उन्हें व्यापक आलोचना का सामना करना पड़ा है, खासकर तब जब वे एक संवैधानिक पद पर हैं.
माना जा रहा है कि मामला तब और बिगड़ गया जब मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने वक्फ अधिनियम की सुनवाई के दौरान इसके कुछ पहलुओं पर रोक लगाने का संकेत दिया. इससे मोदी सरकार को समय मांगना पड़ा, जो कि सरकार के लिए शर्मिंदगी भरा था.
इसी सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के संदर्भ में दुबे ने सीजेआई संजीव खन्ना को देश में “गृह युद्ध” के लिए जिम्मेदार ठहराया. सुप्रीम कोर्ट अगर कानून बनाएगा तो संसद को बंद कर देना चाहिए, भाजपा के चार बार के सांसद ने ‘एक्स’ पर लिखा.
क़ानून यदि सुप्रीम कोर्ट ही बनाएगा तो संसद भवन बंद कर देना चाहिये
— Dr Nishikant Dubey (@nishikant_dubey) April 19, 2025
इसी तरह, राज्यसभा सांसद दिनेश शर्मा ने कहा था कि भारत के संविधान के अनुसार राष्ट्रपति सर्वोच्च हैं और कोई भी राष्ट्रपति भवन को चुनौती नहीं दे सकता।
‘इस्तीफा देने को तैयार’
भाजपा सांसद जगदंबिका पाल, जो वक्फ (संशोधन) विधेयक पर संसद की संयुक्त समिति (जेपीसी) के अध्यक्ष हैं, ने चेतावनी दी कि अगर अदालत ने कानून पर रोक लगाई तो वे जेपीसी से इस्तीफा दे देंगे.
पाल, जो उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं, ने दिप्रिंट से कहा, “अदालत की सभी चिंताओं को जेपीसी में पहले ही संबोधित किया जा चुका है, जिसने विधेयक की विस्तार से समीक्षा की है. अगर कहीं कोई कमी है तो मैं इस्तीफा देने को तैयार हूं. विपक्षी पार्टियां राजनीति कर रही हैं और मुसलमानों को गुमराह कर रही हैं; वे देश का बंटवारा चाहते हैं.”
मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने माना कि दुबे को यह टिप्पणी सार्वजनिक रूप से नहीं करनी चाहिए थी. उन्होंने मीडिया से कहा, “कई बार सच्चाई भी हो तो उसे बोलना नहीं चाहिए. निशिकांत जी मेरे छोटे भाई जैसे हैं, उन्हें सार्वजनिक रूप से नहीं बोलना चाहिए था. पार्टी ने इस मुद्दे पर बोलने से मना किया है. आज के समय में लोग सब जानते हैं…”
केरल भाजपा प्रमुख राजीव चंद्रशेखर ने भी कहा कि नड्डा का बयान पार्टी और उनका भी रुख है.
भाजपा महिला मोर्चा की प्रमुख वकील वनाठी श्रीनिवासन ने दिप्रिंट से कहा कि पार्टी ने कार्यकर्ताओं को इस मुद्दे पर कुछ भी बोलने से मना किया है और पार्टी अध्यक्ष ने स्पष्ट कर दिया है कि पार्टी संविधानिक संस्थाओं और न्यायपालिका का सम्मान करती है.
दक्षिण दिल्ली के पूर्व सांसद और दिल्ली हाईकोर्ट में वकालत करने वाले रमेश बिधूड़ी ने दिप्रिंट से कहा कि हर संवैधानिक संस्था को गरिमा बनाए रखनी चाहिए और दुबे को इस मामले पर कुछ नहीं कहना चाहिए था.
एक वरिष्ठ भाजपा पदाधिकारी ने इस बात को लेकर अधिक स्पष्टता से बताया कि क्यों नड्डा ने इन बयानों से पार्टी को अलग किया. उन्होंने कहा, “कोई गलत संदेश नहीं जाना चाहिए.”
“सरकार और पार्टी के भीतर बेचैनी के बावजूद, सरकार यह संदेश नहीं देना चाहती कि वह अपने कार्यकर्ताओं को सुप्रीम कोर्ट पर हमला करने की छूट दे रही है, जो उल्टा असर डालेगा… इसलिए यह संदेश खुद भाजपा अध्यक्ष ने दिया, न कि किसी प्रवक्ता ने,” उस पदाधिकारी ने कहा.
“अगर कोई संवैधानिक संस्था इस मुद्दे पर बोलती है तो वह अलग बात है… लेकिन कार्यकर्ताओं को मुख्य न्यायाधीश पर हमला करने देना खतरनाक साबित हो सकता है. पार्टी सार्वजनिक रूप से यह नहीं दिखाना चाहती कि वह न्यायपालिका पर हमला कर रही है.”
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